आजादी के 75 साल बाद बहराइच के दलित आदिवासियों को मिला जमीन का मालिकाना हक

Written by Navnish Kumar | Published on: January 11, 2022
आजादी के 75 साल बाद ही सही, बहराइच के हजारों दलित आदिवासियों के जीवन में शनिवार एक नई सुबह लेकर आया। लोगों को उनकी जमीन का मालिकाना हक मिला तो सड़क, बिजली, पानी जैसे बुनियादी अधिकारों के मिलने का रास्ता भी साफ हो गया है। यह सब हुआ है वनाधिकार कानून 2006 के चलते। जी हां, जिले के मिहींपुरवा विकास खंड के चार वन टोंगिया ग्राम बिछिया, भवानीपुर, ढकिया, टेड़िया को राजस्व ग्राम का दरजा मिल गया है।


प्रतीकात्मक छवि

कतर्नियाघाट सेंचुरी के मध्य बसे इन वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्जा देने की कवायद सालों से चल रही है जो अब सफल हुई है। इसके लिए अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के बैनर तले लोग लंबे अरसे से संघर्ष कर रहे थे जो अब जाकर सफलता मिली है। खास है कि पूरे प्रकरण में अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी युनियन और उसके तब के कार्यकारी अध्यक्ष व सहारनपुर नगर विधायक संजय गर्ग की सराहनीय भूमिका रही है। संजय गर्ग ने 2017 में विधानसभा में मामले को उठाया था जिसके बाद ही प्रक्रिया आगे बढ़ सकी। खास यह भी है कि पूरे प्रदेश के वन व टोंगिया गावों के लिए यह आदेश 2009 में ही हो गए थे जिसे 2018 में कारगर किया गया था। बहराइच में अब हुआ है लेकिन देर आए दुरस्त आए की तर्ज पर इसका स्वागत होना चाहिए। इसके लिए अधिसूचना जारी होते ही अब इन वन ग्रामों के हजारों बाशिंदों को उनके मूलभूत अधिकार मिलने का रास्ता खुल गया है।

जिले के चार वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाए जाने का शासन ने फैसला ले लिया है। शनिवार को अधिसूचना जारी होने के बाद दलित आदिवासियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है और वन निवासियों ने इस पर हर्ष व्यक्त किया है। राजस्व गांव बनने के बाद इन गांवों की सूरत तो बदलेगी ही साथ ही ग्रामीणों को सड़क बिजली पानी की बुनियादी सुविधाएं भी मिल सकेंगी। शासकीय योजनाओं एवं कार्यक्रमों का लाभ मिलने से लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा। रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

तहसील मिहींपुरवा के चार वन ग्रामों भवानीपुर, टेड़िया, ढकिया व बिछिया को राजस्व ग्राम बनाया गया है। इन वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाए जाने के लिए अरसे से मांग की जा रही थी। अब राजस्व ग्राम घोषित हो जाने से वन निवासियों को शासकीय योजनाओं एवं कार्यक्रमों का लाभ मिलेगा। साथ ही ग्रामीणों की जीवनशैली बदलने के साथ आर्थिक समृद्धि भी आएगी। जमीन का मालिकाना हक व वोट डालने का अधिकार भी मिलेगा।

जिलाधिकारी डॉ. दिनेश चन्द्र ने ग्रामवासियों को बधाई देते हुए कहा कि जनप्रतिनिधियों की ओर से किए गए प्रयासों व वन ग्रामवासियों के संघर्ष के मद्देनजर, शासन की ओर से लोगों के हित में फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि यह बहराइच के लिए अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है। शासन के इस निर्णय से वनग्रामवासियों को सरकार की ओर से संचालित विकासपरक व जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा। और यह लोग भी अब विकास की मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे।

कतर्नियाघाट संरक्षित वन क्षेत्र के बीच आजादी के पूर्व से यह गांव बसे हुए हैं, लेकिन इन वन ग्रामों को राजस्व गांव की सुविधाएं नहीं मिल सकी थीं। वन ग्राम में निवास करने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं। 75 साल से अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हजारों परिवारों को अब जाकर अधिसूचना जारी हुई है। 

चार वनग्रामों में करीब 500 परिवार व लगभग 1500 की आबादी है। भवानीपुर में 250, बिछिया में 60, ढकिया में 50 व टेड़िया में लगभग 140 परिवार हैं। राजस्व विभाग ने गांवों का नक्शा तैयार किया है। ढांचागत विकास के लिए सड़क, खलिहान, भवन निर्माण, स्कूल भवन, पंचायत भवन समेत सभी प्रकार के निर्माण कार्य नक्शे के मुताबिक होगा।  वहीं, अब इन परिवारों के मुखिया को अब जमीन का पट्टा भी मिलेगा। अब यहां पक्के मकान बनेंगे। गांव को जोड़ने वाली कच्ची सड़कें पक्की बनेंगी। बिजली, पानी, स्वास्थ्य की मुकम्मल सेवाएं मिलेंगी। 

अपने हक और अधिकार के लिए वन ग्रामों के लोग अरसे से संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष का नतीजा यह है कि अरसा पूर्व वन ग्राम समितियों का गठन हुआ। इसकी फाइल तैयार हुई। राजस्व ग्राम का दर्जा देने की कवायद शुरू की गई। लेकिन रफ्तार इतनी धीमी है कि संघर्ष के डेढ़ दशक बाद अब आकर वन ग्रामों को राजस्व गांव का दर्जा मिल सका है।

वनाधिकार कानून के तहत संघर्ष का नेतृत्व कर रही अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं कि एक लंबे जन संघर्ष के बाद ये ऐतिहासिक क्षण आना सम्भव हुआ। कोई भी सरकार व अधिकारी बिना जनदबाव के न तो विधानसभा में ऐसे मुद्दे पर चर्चा करते और न ही कोई ऐसा फैसला करते। इसीलिए ऐसे क्षण में सबसे पहले क्षेत्र के संघर्षशील जनता के भुमिका को याद करना चाहिए। स्थानीय जन-संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका की अहमियत भी ध्यान रखना चाहिए जिसके नेतृत्व में इस लंबे संघर्ष को सफलतापूर्वक चलाया गया। साथ ही साथ राष्ट्रीय संगठन और विधायक जिन्होंने 2017 में विधानसभा के बजट सत्र में राज्यस्तरीय इस गंभीर मुद्दा को उठा कर सरकार पर अमल करने के लिए दबाव बनाएं थे उनके भूमिका को भी संज्ञान में रखना चाहिए। अधिकारियों के भूमिका उसके बाद में शुरू होती है। यह ध्यान रखना जरुरी है कि सरकारी अधिकारी मुख्य रूप से सरकार के निर्देश पालन करते हैं जनता के नहीं। जब जनपक्ष मजबूत होता है तब ही सरकार सुनते हैं और उसके बाद ही अधिकारियों को निर्देशित करते हैं। कोई भी सरकार अपने आप जनपक्षीय फैसला नहीं करते। जन-दबाव से ही उन्हें करना पड़ता है।

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की अध्यक्ष सुकालो गोंड और राष्ट्रीय महासचिव रोमा के साथ सिटिजंस फ़ॉर जस्टिस एंड पीस की राष्ट्रीय सचिव तीस्ता सीतलवाड़ ने भी सभी वन टोंगिया निवासियों को खुशी के इस ऐतिहासिक पल पर बधाई दी है और सामूहिक अधिकारों के प्राप्ति तक संघर्ष को जारी रखने का आह्वान किया। बहराइच के चार वन ग्रामों के राजस्व ग्राम बनने पर ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नहीं है।

उधर, ग्रामीणों जंग हिंदुस्तानी आदि ने सभी साथियों और संगठन का आभार जताया है। कहा 17 वर्षों तक चले आंदोलन में जिन साथियों ने कदम दर कदम साथ दिया, उन सभी साथियों का हदय से आभारी हूं। जिन लोगों ने हमारे आंदोलन में हमारा विरोध किया उनको भी हार्दिक धन्यवाद देता हूं क्योंकि उनके विरोध ने मुझे और भी आगे बढ़ कर लड़ने की शक्ति दी। राज्य और केंद्र स्तर पर वन अधिकार आंदोलन को समर्थन देने वाले अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के समस्त पदाधिकारियों अशोक दा, राष्ट्रीय महासचिव रोमाजी, तीस्ता जी, अध्यक्ष सुकालो गोंड जी, मुन्नीलाल, विपिन गैरोला, रजनीश दादा सहित समस्त साथियों का बहुत बहुत आभार है जिन के मार्गदर्शन से बहराइच के वन ग्राम राजस्व ग्राम हो सके। सभी टौंगिया वासी और संगठन के संग्रामी साथियों को क्रांतिकारी सलाम!

Related:
2021 में वन अधिकारों की रक
दलित और आदिवासियों के लिए हिंसक और भेदभाव भरा रहा साल 2021
जनसुनवाई: दलित आदिवासियों ने सुनाईं कोरोना महामारी में पुलिसिया दमन और अत्याचारों की आपबीती

बाकी ख़बरें