नरेंद्र मोदी क्यों हिट हैं? मैं जवाब हिंदू के भक्त मनोविज्ञान में बूझता हूं। हिंदुओं की इतिहासजन्य मुस्लिम ग्रंथि में वे सुरक्षा के अवतार हैं। अकेले सुरक्षा-संजीवनी का गोवर्धन पर्वत उठाए हुए हैं। हिंदूओं के सर्वज्ञ हैं। उनके श्रीमुख में हिंदूजन पृथ्वी का दर्शन करते हैं। छह साल की लीलाओं के बाद नरेंद्र मोदी आज कर्मयोगी (हार्ड वर्क) श्रीकृष्ण की तरह तर्जनी उंगली में कोरोना राक्षस को खत्म करने वाला सुर्दशन चक्र लिए हुए हैं। हजार साल की गुलाम व कुंद बुद्धि और भक्तिकाल की प्रवृत्तियों में हिंदुओं के लिए भक्ति-डर-गुलामी की नियति में यह सोचना संभव ही नहीं है कि आधुनिक युग सत्य यानी ज्ञान-विज्ञान-बौद्धिकता का है।
वायरस से लड़ाई के मौजूदा परिदृश्य में भारत वह देश है, जो पूरी तरह नरेंद्र मोदी की तर्जनी उंगली के सुदर्शन चक्र पर निर्भर है। वे ही नेतृत्वकर्ता हैं। वे ही 130 करोड़ लोगों पर ताला लगाने और ताला खोलने की चाबी लिए हुए है। वे कहेंगे ताली बजाओ तो देश ताली बजाएगा। वे कहेंगे दीये जलाओ तो देश वायरस को दिया दिखाएगा। वे ही कभी डोनाल्ड ट्रंप से, तो कभी खिलाड़ियों, मुख्यमंत्रियों, सचिवों, पूर्व प्रधानमंत्रियों, जनता से बात करते हुए हैं। उनसे बात कर विपक्षी नेता संतुष्ट तो जनता, मीडिया, अदालत आदि संस्थाएं, श्रेष्ठिजन, मंत्रीजन, अफसर गद्गद् भाव, सभी मुंहदेखी के साथ दुनिया को दिखला दे रहे हैं कि हमारे मोदीजी का सुदर्शन चक्र कोरोना के अंधेरे को चीरते हुए वायरस के संहार के लिए चल पड़ा है! 21 दिन बाद वायरसी राक्षस का सर धड़ से कटा जमीन पर पड़ा मिलेगा!
कभी खैबर पार से घुड़सवार जब दिल्ली तख्त को जीतने के लिए कूच करते थे तो सिंध के हिंदू लोग, भारत माता के हिंदू लाल अपने शहर किले के बाहर या पानीपत तक आ गए हमलावरों की चिंता इसलिए नहीं करते थे क्योंकि सब मानते थे हमारा राजा तो है विष्णु भगवान का अवतार। इसलिए जब हमारा प्रतापी राजा हाथी पर बैठ बाहर निकलेगा तो दुश्मन भाग खड़ा होगा। बजाओ नगाड़ा, बजाओ थाली, जलाओ दीया-उतारो आरती, अपने राजा ने हुंकारा मार दिया है विजय होगी। हां, इस तरह के उदाहरणों से हिंदू इतिहास भरा पड़ा है। राजा और उसकी मुंह देखी में हां से हां मिलाने वाले मंत्री, दरबारी, सचिव यह नहीं बताया-समझाया करते थे कि जनाब आ रहे दुश्मन घोड़े पर सवार हैं। महाक्रूर हैं। ये पुराने वायरस जैसे नहीं हैं, न ही ये गर्मी में मरेंगे। ठंडे इलाकों से आ रहे ये दुश्मन नए गोला बारूद लिए, भारत के खुले चरागाह की उर्वरता से खींचे चले आ रहे हैं!
नरेंद्र मोदी के मनोविज्ञान में वायरस का डर था और है। इस डर में नरेंद्र मोदी ने गंभीर हो कर लॉकडाउन ऐलान किया। मगर बिना आगा-पीछा सोचे! बिना बुद्धि-हार्वर्ड-एक्सपर्टों, जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय, इंपीरियल कॉलेज, गेट्स फाउंडेशन आदि की मेडिकल रिर्सच, रणनीति से सलाह किए। तभी वायरस की 130 करोड़ आबादी की संख्या के अनुपात में टेस्टिंग की बिना तैयारी के ही लॉकडाउन कर डाला। और तो और भारत के लोगों के मनोविज्ञान, मजबूरी, दशा का भी मोदी ने ख्याल नहीं रखा। तभी लॉकडाउन की घोषणा की अगली सुबह महानगरों से दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ गांवों की और पैदल निकल पड़ी। सोचें, चार-पांच दिन लाखों लोगों के रेले में पैदल यात्रियों की भीड़ अपने साथ यदि एक प्रतिशत भी कोरोना को दूरदराज के गांव-कस्बों-बस्तियों में या हाईवे के किनारे के संपर्कों में ले गई होगी तो महीने बाद क्या रूप लेगा?
क्या ऐसा अराजक, बिना सोचे-समझे, बिना मेडिकल तैयारी के दुनिया में कहीं और लॉकडाउन हुआ है? यह सत्य हमेशा याद रखें कि कोरोना से लड़ने का पहला लॉकडाउन 23 जनवरी को चीन ने वुहान प्रांत में किया। आठ-नौ मार्च को उत्तरी इटली, अगले दिन पूरे इटली में लॉकडाउन हुआ। ट्रंप ने 13 मार्च को बिना लॉकडाउन के राष्ट्रीय इमरजेंसी घोषित की। 14 मार्च को स्पेन में इमरजेंसी-लॉकडाउन हुआ। 17 मार्च को फ्रांस के राष्ट्रपति ने लॉकडाउन की घोषणा की। 23 मार्च को ब्रिटेन ने लॉकडाउन घोषित किया और भारत में 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित हुआ।
क्यों लॉकडाउन? ताकि वायरस प्रभावित इलाके को घेर कर, आबादी के अनुपात में पर्याप्त टेस्टिंग कर संक्रमितों को चिन्हित कर, उन्हें क्वरैंटाइन कर, अस्पतालों में डाल, उनकी सघन चिकित्सा और बाकी आबादी को तालाबंदी में रखते हुए संक्रमण न फैलने दे कर इलाका विशेष को वायरस मुक्त बनाया जाए। लॉकडाउन पर नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूटे ने पते की बात की है। उनका कहना था ऐसे संकट में नेता को दो टूक मतलब सौ टके का निर्णय पचास फीसदी डाटा को आधार बना कर लेना होता है। निर्णय के साथ सवाल ध्यान रखना होगा की आगे कैसे-कब लॉकडाउन खत्म होगा, खास कर जब वैक्सीन 12-18 महीने बाद आनी है तो लॉकडाउन के साथ एक ही तरीका क्रिटिकल है और वह है-सिस्टेमेटिक, रैपिड और वाइडस्प्रेड टेस्टिंग (व्यवस्थित, द्रुत और विस्तृत टेस्टिंग)।
भारत अकेला देश है, जिसने बिना टेस्टिंग-मेडिकल तैयारी के सीधे 130 करोड़ लोगों को ताले में डाला। इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, लॉकडाउन बाद से दो दिन पहले तक क्रमशः साढ़े सात लाख, साढ़े तीन लाख, ढाई लाख, पौने तीन लाख और 23 लाख टेस्ट कर चुके हैं। भारत का आंकड़ा है कोई सवा लाख! जबकि इन तमाम देशों की आबादी को जोड़ लें तब भी भारत की आबादी कोई ढाई गुना ज्यादा होगी।
सोचें, सवा सौ करोड़ आबादी में सवा लाख टेस्ट नहीं हुए और भारत में विचार होने लगा कि तालाबंदी खत्म करें? ... इसलिए मोदीजी ईश्वर के लिए अपने सुदर्शन चक्र को, अपने हार्ड वर्क को कुछ दिन विश्राम दीजिए। महामारी के आगे जब तमाम भगवानों ने कपाट बंद करा अपने को विश्राम अवस्था में रखा हुआ है तो भारत को भी कुछ महीने डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, लोकतांत्रिक विचार-विमर्श, हार्वर्ड-ऑक्सफोर्ड याकि बुद्धि के भरोसे छोड़ दीजिए। बुद्धि वाले नास्तिकों, अभक्तों को मौका दीजिए। अपने भक्तों-लंगूरों को भी विश्राम की सलाह दीजिए। और जब टेस्टिंग, मेडिकल लड़ाई के जरिए कोरोना से भारत के लोग मुक्ति पा जाएं तो कपाट खोल अपने दर्शन देते हुए जनता से दीये जलवा लीजिएगा। जनता तब खूब जयकारा कर डालेगी। हम हिंदुओं के आधुनिक भगवानजी, जरा रहम कीजिए, हार्ड वर्क से विश्राम करके कुछ महीने हार्वर्ड वालों को वायरस से लड़ने दीजिए।
(यह नया इंडिया में प्रकाशित मूल लेख का संक्षिप्त हिस्सा है)
वायरस से लड़ाई के मौजूदा परिदृश्य में भारत वह देश है, जो पूरी तरह नरेंद्र मोदी की तर्जनी उंगली के सुदर्शन चक्र पर निर्भर है। वे ही नेतृत्वकर्ता हैं। वे ही 130 करोड़ लोगों पर ताला लगाने और ताला खोलने की चाबी लिए हुए है। वे कहेंगे ताली बजाओ तो देश ताली बजाएगा। वे कहेंगे दीये जलाओ तो देश वायरस को दिया दिखाएगा। वे ही कभी डोनाल्ड ट्रंप से, तो कभी खिलाड़ियों, मुख्यमंत्रियों, सचिवों, पूर्व प्रधानमंत्रियों, जनता से बात करते हुए हैं। उनसे बात कर विपक्षी नेता संतुष्ट तो जनता, मीडिया, अदालत आदि संस्थाएं, श्रेष्ठिजन, मंत्रीजन, अफसर गद्गद् भाव, सभी मुंहदेखी के साथ दुनिया को दिखला दे रहे हैं कि हमारे मोदीजी का सुदर्शन चक्र कोरोना के अंधेरे को चीरते हुए वायरस के संहार के लिए चल पड़ा है! 21 दिन बाद वायरसी राक्षस का सर धड़ से कटा जमीन पर पड़ा मिलेगा!
कभी खैबर पार से घुड़सवार जब दिल्ली तख्त को जीतने के लिए कूच करते थे तो सिंध के हिंदू लोग, भारत माता के हिंदू लाल अपने शहर किले के बाहर या पानीपत तक आ गए हमलावरों की चिंता इसलिए नहीं करते थे क्योंकि सब मानते थे हमारा राजा तो है विष्णु भगवान का अवतार। इसलिए जब हमारा प्रतापी राजा हाथी पर बैठ बाहर निकलेगा तो दुश्मन भाग खड़ा होगा। बजाओ नगाड़ा, बजाओ थाली, जलाओ दीया-उतारो आरती, अपने राजा ने हुंकारा मार दिया है विजय होगी। हां, इस तरह के उदाहरणों से हिंदू इतिहास भरा पड़ा है। राजा और उसकी मुंह देखी में हां से हां मिलाने वाले मंत्री, दरबारी, सचिव यह नहीं बताया-समझाया करते थे कि जनाब आ रहे दुश्मन घोड़े पर सवार हैं। महाक्रूर हैं। ये पुराने वायरस जैसे नहीं हैं, न ही ये गर्मी में मरेंगे। ठंडे इलाकों से आ रहे ये दुश्मन नए गोला बारूद लिए, भारत के खुले चरागाह की उर्वरता से खींचे चले आ रहे हैं!
नरेंद्र मोदी के मनोविज्ञान में वायरस का डर था और है। इस डर में नरेंद्र मोदी ने गंभीर हो कर लॉकडाउन ऐलान किया। मगर बिना आगा-पीछा सोचे! बिना बुद्धि-हार्वर्ड-एक्सपर्टों, जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय, इंपीरियल कॉलेज, गेट्स फाउंडेशन आदि की मेडिकल रिर्सच, रणनीति से सलाह किए। तभी वायरस की 130 करोड़ आबादी की संख्या के अनुपात में टेस्टिंग की बिना तैयारी के ही लॉकडाउन कर डाला। और तो और भारत के लोगों के मनोविज्ञान, मजबूरी, दशा का भी मोदी ने ख्याल नहीं रखा। तभी लॉकडाउन की घोषणा की अगली सुबह महानगरों से दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ गांवों की और पैदल निकल पड़ी। सोचें, चार-पांच दिन लाखों लोगों के रेले में पैदल यात्रियों की भीड़ अपने साथ यदि एक प्रतिशत भी कोरोना को दूरदराज के गांव-कस्बों-बस्तियों में या हाईवे के किनारे के संपर्कों में ले गई होगी तो महीने बाद क्या रूप लेगा?
क्या ऐसा अराजक, बिना सोचे-समझे, बिना मेडिकल तैयारी के दुनिया में कहीं और लॉकडाउन हुआ है? यह सत्य हमेशा याद रखें कि कोरोना से लड़ने का पहला लॉकडाउन 23 जनवरी को चीन ने वुहान प्रांत में किया। आठ-नौ मार्च को उत्तरी इटली, अगले दिन पूरे इटली में लॉकडाउन हुआ। ट्रंप ने 13 मार्च को बिना लॉकडाउन के राष्ट्रीय इमरजेंसी घोषित की। 14 मार्च को स्पेन में इमरजेंसी-लॉकडाउन हुआ। 17 मार्च को फ्रांस के राष्ट्रपति ने लॉकडाउन की घोषणा की। 23 मार्च को ब्रिटेन ने लॉकडाउन घोषित किया और भारत में 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित हुआ।
क्यों लॉकडाउन? ताकि वायरस प्रभावित इलाके को घेर कर, आबादी के अनुपात में पर्याप्त टेस्टिंग कर संक्रमितों को चिन्हित कर, उन्हें क्वरैंटाइन कर, अस्पतालों में डाल, उनकी सघन चिकित्सा और बाकी आबादी को तालाबंदी में रखते हुए संक्रमण न फैलने दे कर इलाका विशेष को वायरस मुक्त बनाया जाए। लॉकडाउन पर नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूटे ने पते की बात की है। उनका कहना था ऐसे संकट में नेता को दो टूक मतलब सौ टके का निर्णय पचास फीसदी डाटा को आधार बना कर लेना होता है। निर्णय के साथ सवाल ध्यान रखना होगा की आगे कैसे-कब लॉकडाउन खत्म होगा, खास कर जब वैक्सीन 12-18 महीने बाद आनी है तो लॉकडाउन के साथ एक ही तरीका क्रिटिकल है और वह है-सिस्टेमेटिक, रैपिड और वाइडस्प्रेड टेस्टिंग (व्यवस्थित, द्रुत और विस्तृत टेस्टिंग)।
भारत अकेला देश है, जिसने बिना टेस्टिंग-मेडिकल तैयारी के सीधे 130 करोड़ लोगों को ताले में डाला। इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, लॉकडाउन बाद से दो दिन पहले तक क्रमशः साढ़े सात लाख, साढ़े तीन लाख, ढाई लाख, पौने तीन लाख और 23 लाख टेस्ट कर चुके हैं। भारत का आंकड़ा है कोई सवा लाख! जबकि इन तमाम देशों की आबादी को जोड़ लें तब भी भारत की आबादी कोई ढाई गुना ज्यादा होगी।
सोचें, सवा सौ करोड़ आबादी में सवा लाख टेस्ट नहीं हुए और भारत में विचार होने लगा कि तालाबंदी खत्म करें? ... इसलिए मोदीजी ईश्वर के लिए अपने सुदर्शन चक्र को, अपने हार्ड वर्क को कुछ दिन विश्राम दीजिए। महामारी के आगे जब तमाम भगवानों ने कपाट बंद करा अपने को विश्राम अवस्था में रखा हुआ है तो भारत को भी कुछ महीने डॉक्टरों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, लोकतांत्रिक विचार-विमर्श, हार्वर्ड-ऑक्सफोर्ड याकि बुद्धि के भरोसे छोड़ दीजिए। बुद्धि वाले नास्तिकों, अभक्तों को मौका दीजिए। अपने भक्तों-लंगूरों को भी विश्राम की सलाह दीजिए। और जब टेस्टिंग, मेडिकल लड़ाई के जरिए कोरोना से भारत के लोग मुक्ति पा जाएं तो कपाट खोल अपने दर्शन देते हुए जनता से दीये जलवा लीजिएगा। जनता तब खूब जयकारा कर डालेगी। हम हिंदुओं के आधुनिक भगवानजी, जरा रहम कीजिए, हार्ड वर्क से विश्राम करके कुछ महीने हार्वर्ड वालों को वायरस से लड़ने दीजिए।
(यह नया इंडिया में प्रकाशित मूल लेख का संक्षिप्त हिस्सा है)