इस बार के उपचुनावों में मीरापुर (मुजफ्फरनगर), कुंदरकी (मुरादाबाद), गाजियाबाद, खैर (अलीगढ़), करहल (मैनपुरी), सीसामऊ (कानपुर), फूलपुर (प्रयागराज), कटेहरी (अंबेडकरनगर), और मझवां (मिर्जापुर) जैसी सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 20 नवंबर को होने वाले इन उपचुनावों के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय विधानसभा उपचुनावों का माहौल गरम है। नौ सीटों पर होने वाले इन उपचुनावों में प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) ने पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को साधने के लिए अपने-अपने दांव खेले हैं। हाल ही में लोकसभा चुनावों में सपा ने 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूला अपनाकर बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। इस फॉर्मूले ने न केवल सपा को बढ़त दिलाई, बल्कि बीजेपी को कई सीटों पर हार का सामना भी करना पड़ा।
इस बार के उपचुनावों में मीरापुर (मुजफ्फरनगर), कुंदरकी (मुरादाबाद), गाजियाबाद, खैर (अलीगढ़), करहल (मैनपुरी), सीसामऊ (कानपुर), फूलपुर (प्रयागराज), कटेहरी (अंबेडकरनगर), और मझवां (मिर्जापुर) जैसी सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 20 नवंबर को होने वाले इन उपचुनावों के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सफलता ने बीजेपी को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया। इस बार, बीजेपी ने चार ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। करहल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई सीट से बीजेपी ने अनुजेश यादव को उम्मीदवार बनाया है। यहां यादव वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। दूसरी ओर, सपा ने इस सीट से तेज प्रताप यादव को उतारा है। कटेहरी सीट पर बीजेपी ने धर्मराज निषाद को मैदान में उतारा है, जो सपा की शोभावती वर्मा को चुनौती देंगे। यहां कुर्मी और निषाद वोटों के समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने यह फैसला लिया है। फूलपुर से दीपक पटेल और मझवां सीट से सुचिश्मिता मौर्या को उम्मीदवार बनाया गया है।
समाजवादी पार्टी ने नौ में से चार सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा, दो सीटों पर दलित और तीन पर ओबीसी उम्मीदवार खड़े किए हैं। मीरापुर से सुम्बुल राणा, खैर से चारू कैन, और मंझवां से ज्योति बिंद प्रमुख उम्मीदवार हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने भी उपचुनाव में खासा ध्यान दिया है। बसपा ने करहल से अवनीश शाक्य, गाजियाबाद से परमानंद गर्ग, और कटेहरी से अमित वर्मा को उतारा है। बीएसपी ने जातीय संतुलन बनाए रखते हुए दो मुस्लिम, दो ब्राह्मण, एक दलित, और चार ओबीसी उम्मीदवारों को मौका दिया है।
राजनीतिक विश्लेषण और प्रतिक्रिया
सपा के 'पीडीए' फॉर्मूले की सफलता को देखते हुए बीजेपी ने इस बार अपने 'पीडीए' में बदलाव करते हुए अगड़ी जातियों को भी जोड़ा है। सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने बीजेपी की रणनीति को "नकल" करार दिया। उनका कहना है कि सपा जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय की बात पर आगे बढ़ रही है, जबकि बीजेपी केवल वोटों के लिए पिछड़ों को साधने का प्रयास कर रही है।
प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा ने जातीय समीकरण के हिसाब से दीपक पटेल को प्रत्याशी बनाया है। यहां पटेल-मौर्य बिरादरी का बहुमत है, जो भाजपा के पक्ष में मजबूत समर्थन दिखा रहा है। हालांकि, सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार मुस्तफा सिद्दीकी को उतारा है, जिससे यादव-मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है।
बसपा ने जितेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन पहली बार चुनाव लड़ने के कारण उनकी उपस्थिति कमजोर है। कांग्रेस का यहां परंपरागत वोट बैंक है। यहां मुकाबला कांटे का है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के "बंटोगे तो कटोगे" वाले बयान ने वोटरों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया है, लेकिन बीजेपी कितना कामयाब होगी, कहना मुश्किल है।
सीसामऊ सीट पर समाजवादी पार्टी की नसीम सोलंकी भावनात्मक और जातीय समीकरण दोनों पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में सपा का वोट बैंक पारंपरिक रूप से मजबूत है। नसीम सोलंकी अपनी सहानुभूति और सोलंकी परिवार के 22 साल के प्रभाव के कारण वोटरों से भावनात्मक जुड़ाव बनाने में सफल हो रही हैं।
भाजपा में टिकट को लेकर अंदरूनी असंतोष है, जिससे भितरघात का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, हिंदू वोटरों के बीच भाजपा के पक्ष में हलचल है, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में सपा की स्थिति मजबूत बनी हुई है। सपा-कांग्रेस गठबंधन इस सीट पर एकजुट है, और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी नसीम सोलंकी के लिए प्रचार कर रहे हैं। जातीय समीकरण और सपा के परिवारवादी प्रभाव के कारण इस सीट पर नसीम सोलंकी की स्थिति मजबूत नजर आ रही है।
कुंदरकी सीट पर भाजपा ने रामवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। सपा के तीन बार विधायक रह चुके हाजी रिजवान का मुकाबला AIMIM, बसपा और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के कारण जटिल हो गया है। तुर्क वोटों का बंटवारा सपा के समीकरण बिगाड़ सकता है। फिर भी सपा का पलड़ा कमजोर नहीं है।
मीरापुर सीट पर भाजपा और रालोद गठबंधन ने 2009 के उपचुनाव का फॉर्मूला अपनाते हुए नॉन-मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है। सपा की सुम्बुल राणा को बसपा, AIMIM और आजाद समाज पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशियों के कारण वोट विभाजन का सामना करना पड़ रहा है। जयंत चौधरी की व्यक्तिगत मॉनिटरिंग और मिथलेश पाल की सक्रियता रालोद को थोड़ी मजबूती देती नजर आ रही है।
कटेहरी (अंबेडकरनगर) में मुकाबला काफी दिलचस्प है। यहां भाजपा के धर्मराज निषाद और सपा की शोभावती वर्मा के बीच सीधा मुकाबला है। भाजपा ने ओबीसी वोटरों को साधने के लिए धर्मराज निषाद को टिकट दिया है। इन्हें यकीन है कि सत्ता का सहयोग उसके लिए जीत की राह आसान कर सकती है।
मिर्जापुर की मझवां सीट पर बीजेपी की राह आसान नहीं है। यहां बीजेपी ने सुचिस्मिता मौर्य और सपा ने ज्योति बिंद को टिकट दिया है। दोनों महिलाओं की मौजूदगी ने इस चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। निषाद पार्टी के आरोप और बसपा के ब्राह्मण उम्मीदवार दीपक तिवारी की मौजूदगी भाजपा के लिए चुनौती पैदा कर सकती है।
करहल (मैनपुरी) सीट पर सपा के तेज प्रताप यादव का मुकाबला भाजपा के अनुजेश यादव से है। यादव बनाम यादव का यह मुकाबला रोचक है, लेकिन सैफई परिवार की सहानुभूति और सपा का पारंपरिक वोट बैंक तेज प्रताप यादव को मजबूत स्थिति में बनाए हुए है।
खैर (अलीगढ़) में भाजपा के सुरेंद्र दिलेर का मुकाबला सपा की चारू कैन और बसपा के पहल सिंह से हो रहा है। जातीय समीकरणों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य समाज भाजपा के साथ खड़ा दिख रहा है, जबकि बसपा और आजाद समाज पार्टी के बीच दलित वोटों का बंटवारा सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
गाजियाबाद (सदर) में भाजपा के संजीव शर्मा सपा के सिंह राज और बसपा के पीएन गर्ग पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। व्यापारी वर्ग का समर्थन और भाजपा का संगठित अभियान संजीव शर्मा को मजबूत स्थिति में ला रहा है। दलित वोटरों के बंटवारे से भाजपा को अतिरिक्त लाभ हो सकता है। इन सीटों पर जातीय समीकरण, पारिवारिक प्रभाव, और स्थानीय मुद्दे निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा अपने संगठित अभियान और जातीय संतुलन के कारण बढ़त बनाए हुए है, जबकि सपा कुछ सीटों पर पारंपरिक वोट बैंक के सहारे संघर्ष कर रही है।
उपचुनावों का कितना महत्व
राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "बीजेपी के लिए यह उपचुनाव सिर्फ जीत-हार का सवाल नहीं है, बल्कि यह आगामी लोकसभा चुनाव की दिशा तय कर सकते हैं। राय का कहना है कि पिछड़ों का समर्थन खोने के बाद बीजेपी अब सहयोगी दलों पर निर्भर है। यही वजह है कि वह हर संभव तरीके से ओबीसी वोटरों को रिझाने का प्रयास कर रही है। बीजेपी ने ओबीसी और गैर-यादव ओबीसी समुदाय पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। ओबीसी समुदाय ने बीजेपी की पिछली चुनावी जीत में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन अब इसका समर्थन कम होता दिख रहा है।"
सीएसडीएस लोकनीति के सर्वेक्षण के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बीजेपी को ऊंची जातियों से 79% वोट मिले, लेकिन ओबीसी वोटर्स के बीच उसका समर्थन कम हुआ है। ओबीसी समुदाय ने इस बार संविधान, आरक्षण और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को महत्व दिया है।
बीजेपी को कुर्मी और कोयरी जाति से 61% वोट मिले, जो पिछली बार से 19% कम है। गैर-यादव ओबीसी से 59% वोट मिले, जो 13% की गिरावट दिखाता है। गैर-जाटव दलित वोट 29% रहा, जो 19% की गिरावट है।
2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में 43 सीटें जीती थीं, जिसमें सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं। बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 73 सीटें जीती थीं, जबकि 2019 में यह घटकर 64 रह गई।
2022 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने गठबंधन के साथ 273 सीटें जीती थीं, जिसमें अकेले बीजेपी के खाते में 249 सीटें आईं। सपा ने 103 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस और बीएसपी क्रमशः 2 और 1 सीटों पर सिमट गईं।
योगी की साख दांव पर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस उपचुनाव के नतीजे 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमरेंद्र राय के अनुसार, "अगर उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की साख पर बट्टा लग सकता है। उत्तर प्रदेश में जिन सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें कई दिलचस्प समीकरण उभरकर सामने आ रहे हैं। करहल, कटेहरी, कुंदरकी, सीसामऊ और मिल्कीपुर जैसी सीटें पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के कब्जे में थीं। हालांकि, इस बार मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव घोषित नहीं हुए हैं।"
"दूसरी ओर, गाज़ियाबाद, खैर, और फूलपुर की सीटें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास थीं, जबकि मीरापुर सीट को राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने सपा के गठबंधन के तहत जीता था। लेकिन अब आरएलडी बीजेपी के साथ है। इसके अलावा, एक सीट निषाद पार्टी के पास थी।"
अमरेंद्र राय का कहना है कि अगर ईमानदारी से चुनाव होते हैं तो बीजेपी के लिए तीन से चार सीटें जीत पाना ही संभव होगा। बाकी सभी सीटों पर सपा की बढ़त बनने की संभावना है। सपा का 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूला इस बार भी अपना प्रभाव दिखा सकता है। उपचुनावों में आमतौर पर वोटरों की रुचि कम होती है, लेकिन इन नतीजों का प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों पर गहरा पड़ सकता है।
अगर सपा नौ में से सात सीटें जीतने में सफल रहती है, तो यह पार्टी के लिए 2027 के विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने के दावे को और मजबूत करेगा। वहीं, बीजेपी अगर अपनी पांच मौजूदा सीटों के अलावा एक-दो अतिरिक्त सीटें भी जीत लेती है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की गुजराती लॉबी के मुकाबले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद और मजबूत हो सकता है।
हालांकि, अगर बीजेपी मौजूदा सीटों से कम सीटें जीतती है, तो योगी आदित्यनाथ को हटाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ सकती है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पहले ही पार्टी के भीतर अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं। मौर्य ने हाल ही में प्रयागराज में छात्रों के आंदोलन में सरकार के खिलाफ खड़े होकर छात्रों को समर्थन दिया। इस कदम के चलते सरकार को झुकना पड़ा। केशव मौर्य का बयान कि "सरकार से बड़ी पार्टी होती है," बीजेपी के आंतरिक समीकरणों को और उलझा सकता है। यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि पार्टी के भीतर सत्ता को लेकर खींचतान जारी है।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव न केवल इन सीटों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में भी नए समीकरण तैयार कर सकते हैं। अमरेंद्र राय का यह विश्लेषण सपा और बीजेपी के बीच की टक्कर को और अधिक रोचक बनाता है। अगर सपा इन उपचुनावों में बड़ा प्रदर्शन करती है, तो यह आगामी चुनावों के लिए उसके पक्ष में माहौल तैयार करेगा। वहीं, बीजेपी के लिए यह उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व और पार्टी की आंतरिक स्थिरता की परीक्षा साबित हो सकते हैं।
गाज़ियाबाद उपचुनाव में सपा, बीजेपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। जहां सपा मुस्लिम-यादव-जाटव समीकरण के जरिए बढ़त बनाने की कोशिश कर रही है, वहीं बीजेपी और बीएसपी भी अपने-अपने वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। इन चुनावों के नतीजे न केवल प्रदेश की मौजूदा राजनीति पर असर डालेंगे, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों की रणनीतियों को भी प्रभावित करेंगे।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय विधानसभा उपचुनावों का माहौल गरम है। नौ सीटों पर होने वाले इन उपचुनावों में प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) ने पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को साधने के लिए अपने-अपने दांव खेले हैं। हाल ही में लोकसभा चुनावों में सपा ने 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूला अपनाकर बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। इस फॉर्मूले ने न केवल सपा को बढ़त दिलाई, बल्कि बीजेपी को कई सीटों पर हार का सामना भी करना पड़ा।
इस बार के उपचुनावों में मीरापुर (मुजफ्फरनगर), कुंदरकी (मुरादाबाद), गाजियाबाद, खैर (अलीगढ़), करहल (मैनपुरी), सीसामऊ (कानपुर), फूलपुर (प्रयागराज), कटेहरी (अंबेडकरनगर), और मझवां (मिर्जापुर) जैसी सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 20 नवंबर को होने वाले इन उपचुनावों के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।
लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सफलता ने बीजेपी को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया। इस बार, बीजेपी ने चार ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। करहल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई सीट से बीजेपी ने अनुजेश यादव को उम्मीदवार बनाया है। यहां यादव वोट निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। दूसरी ओर, सपा ने इस सीट से तेज प्रताप यादव को उतारा है। कटेहरी सीट पर बीजेपी ने धर्मराज निषाद को मैदान में उतारा है, जो सपा की शोभावती वर्मा को चुनौती देंगे। यहां कुर्मी और निषाद वोटों के समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने यह फैसला लिया है। फूलपुर से दीपक पटेल और मझवां सीट से सुचिश्मिता मौर्या को उम्मीदवार बनाया गया है।
समाजवादी पार्टी ने नौ में से चार सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा, दो सीटों पर दलित और तीन पर ओबीसी उम्मीदवार खड़े किए हैं। मीरापुर से सुम्बुल राणा, खैर से चारू कैन, और मंझवां से ज्योति बिंद प्रमुख उम्मीदवार हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने भी उपचुनाव में खासा ध्यान दिया है। बसपा ने करहल से अवनीश शाक्य, गाजियाबाद से परमानंद गर्ग, और कटेहरी से अमित वर्मा को उतारा है। बीएसपी ने जातीय संतुलन बनाए रखते हुए दो मुस्लिम, दो ब्राह्मण, एक दलित, और चार ओबीसी उम्मीदवारों को मौका दिया है।
राजनीतिक विश्लेषण और प्रतिक्रिया
सपा के 'पीडीए' फॉर्मूले की सफलता को देखते हुए बीजेपी ने इस बार अपने 'पीडीए' में बदलाव करते हुए अगड़ी जातियों को भी जोड़ा है। सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने बीजेपी की रणनीति को "नकल" करार दिया। उनका कहना है कि सपा जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय की बात पर आगे बढ़ रही है, जबकि बीजेपी केवल वोटों के लिए पिछड़ों को साधने का प्रयास कर रही है।
प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा ने जातीय समीकरण के हिसाब से दीपक पटेल को प्रत्याशी बनाया है। यहां पटेल-मौर्य बिरादरी का बहुमत है, जो भाजपा के पक्ष में मजबूत समर्थन दिखा रहा है। हालांकि, सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार मुस्तफा सिद्दीकी को उतारा है, जिससे यादव-मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश की जा रही है।
बसपा ने जितेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन पहली बार चुनाव लड़ने के कारण उनकी उपस्थिति कमजोर है। कांग्रेस का यहां परंपरागत वोट बैंक है। यहां मुकाबला कांटे का है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के "बंटोगे तो कटोगे" वाले बयान ने वोटरों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया है, लेकिन बीजेपी कितना कामयाब होगी, कहना मुश्किल है।
सीसामऊ सीट पर समाजवादी पार्टी की नसीम सोलंकी भावनात्मक और जातीय समीकरण दोनों पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में सपा का वोट बैंक पारंपरिक रूप से मजबूत है। नसीम सोलंकी अपनी सहानुभूति और सोलंकी परिवार के 22 साल के प्रभाव के कारण वोटरों से भावनात्मक जुड़ाव बनाने में सफल हो रही हैं।
भाजपा में टिकट को लेकर अंदरूनी असंतोष है, जिससे भितरघात का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि, हिंदू वोटरों के बीच भाजपा के पक्ष में हलचल है, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में सपा की स्थिति मजबूत बनी हुई है। सपा-कांग्रेस गठबंधन इस सीट पर एकजुट है, और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी नसीम सोलंकी के लिए प्रचार कर रहे हैं। जातीय समीकरण और सपा के परिवारवादी प्रभाव के कारण इस सीट पर नसीम सोलंकी की स्थिति मजबूत नजर आ रही है।
कुंदरकी सीट पर भाजपा ने रामवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। सपा के तीन बार विधायक रह चुके हाजी रिजवान का मुकाबला AIMIM, बसपा और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के कारण जटिल हो गया है। तुर्क वोटों का बंटवारा सपा के समीकरण बिगाड़ सकता है। फिर भी सपा का पलड़ा कमजोर नहीं है।
मीरापुर सीट पर भाजपा और रालोद गठबंधन ने 2009 के उपचुनाव का फॉर्मूला अपनाते हुए नॉन-मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है। सपा की सुम्बुल राणा को बसपा, AIMIM और आजाद समाज पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशियों के कारण वोट विभाजन का सामना करना पड़ रहा है। जयंत चौधरी की व्यक्तिगत मॉनिटरिंग और मिथलेश पाल की सक्रियता रालोद को थोड़ी मजबूती देती नजर आ रही है।
कटेहरी (अंबेडकरनगर) में मुकाबला काफी दिलचस्प है। यहां भाजपा के धर्मराज निषाद और सपा की शोभावती वर्मा के बीच सीधा मुकाबला है। भाजपा ने ओबीसी वोटरों को साधने के लिए धर्मराज निषाद को टिकट दिया है। इन्हें यकीन है कि सत्ता का सहयोग उसके लिए जीत की राह आसान कर सकती है।
मिर्जापुर की मझवां सीट पर बीजेपी की राह आसान नहीं है। यहां बीजेपी ने सुचिस्मिता मौर्य और सपा ने ज्योति बिंद को टिकट दिया है। दोनों महिलाओं की मौजूदगी ने इस चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। निषाद पार्टी के आरोप और बसपा के ब्राह्मण उम्मीदवार दीपक तिवारी की मौजूदगी भाजपा के लिए चुनौती पैदा कर सकती है।
करहल (मैनपुरी) सीट पर सपा के तेज प्रताप यादव का मुकाबला भाजपा के अनुजेश यादव से है। यादव बनाम यादव का यह मुकाबला रोचक है, लेकिन सैफई परिवार की सहानुभूति और सपा का पारंपरिक वोट बैंक तेज प्रताप यादव को मजबूत स्थिति में बनाए हुए है।
खैर (अलीगढ़) में भाजपा के सुरेंद्र दिलेर का मुकाबला सपा की चारू कैन और बसपा के पहल सिंह से हो रहा है। जातीय समीकरणों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य समाज भाजपा के साथ खड़ा दिख रहा है, जबकि बसपा और आजाद समाज पार्टी के बीच दलित वोटों का बंटवारा सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
गाजियाबाद (सदर) में भाजपा के संजीव शर्मा सपा के सिंह राज और बसपा के पीएन गर्ग पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। व्यापारी वर्ग का समर्थन और भाजपा का संगठित अभियान संजीव शर्मा को मजबूत स्थिति में ला रहा है। दलित वोटरों के बंटवारे से भाजपा को अतिरिक्त लाभ हो सकता है। इन सीटों पर जातीय समीकरण, पारिवारिक प्रभाव, और स्थानीय मुद्दे निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा अपने संगठित अभियान और जातीय संतुलन के कारण बढ़त बनाए हुए है, जबकि सपा कुछ सीटों पर पारंपरिक वोट बैंक के सहारे संघर्ष कर रही है।
उपचुनावों का कितना महत्व
राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "बीजेपी के लिए यह उपचुनाव सिर्फ जीत-हार का सवाल नहीं है, बल्कि यह आगामी लोकसभा चुनाव की दिशा तय कर सकते हैं। राय का कहना है कि पिछड़ों का समर्थन खोने के बाद बीजेपी अब सहयोगी दलों पर निर्भर है। यही वजह है कि वह हर संभव तरीके से ओबीसी वोटरों को रिझाने का प्रयास कर रही है। बीजेपी ने ओबीसी और गैर-यादव ओबीसी समुदाय पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। ओबीसी समुदाय ने बीजेपी की पिछली चुनावी जीत में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन अब इसका समर्थन कम होता दिख रहा है।"
सीएसडीएस लोकनीति के सर्वेक्षण के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बीजेपी को ऊंची जातियों से 79% वोट मिले, लेकिन ओबीसी वोटर्स के बीच उसका समर्थन कम हुआ है। ओबीसी समुदाय ने इस बार संविधान, आरक्षण और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को महत्व दिया है।
बीजेपी को कुर्मी और कोयरी जाति से 61% वोट मिले, जो पिछली बार से 19% कम है। गैर-यादव ओबीसी से 59% वोट मिले, जो 13% की गिरावट दिखाता है। गैर-जाटव दलित वोट 29% रहा, जो 19% की गिरावट है।
2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में 43 सीटें जीती थीं, जिसमें सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं। बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 73 सीटें जीती थीं, जबकि 2019 में यह घटकर 64 रह गई।
2022 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने गठबंधन के साथ 273 सीटें जीती थीं, जिसमें अकेले बीजेपी के खाते में 249 सीटें आईं। सपा ने 103 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस और बीएसपी क्रमशः 2 और 1 सीटों पर सिमट गईं।
योगी की साख दांव पर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस उपचुनाव के नतीजे 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा तय करेंगे। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमरेंद्र राय के अनुसार, "अगर उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की साख पर बट्टा लग सकता है। उत्तर प्रदेश में जिन सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें कई दिलचस्प समीकरण उभरकर सामने आ रहे हैं। करहल, कटेहरी, कुंदरकी, सीसामऊ और मिल्कीपुर जैसी सीटें पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के कब्जे में थीं। हालांकि, इस बार मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव घोषित नहीं हुए हैं।"
"दूसरी ओर, गाज़ियाबाद, खैर, और फूलपुर की सीटें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास थीं, जबकि मीरापुर सीट को राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने सपा के गठबंधन के तहत जीता था। लेकिन अब आरएलडी बीजेपी के साथ है। इसके अलावा, एक सीट निषाद पार्टी के पास थी।"
अमरेंद्र राय का कहना है कि अगर ईमानदारी से चुनाव होते हैं तो बीजेपी के लिए तीन से चार सीटें जीत पाना ही संभव होगा। बाकी सभी सीटों पर सपा की बढ़त बनने की संभावना है। सपा का 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूला इस बार भी अपना प्रभाव दिखा सकता है। उपचुनावों में आमतौर पर वोटरों की रुचि कम होती है, लेकिन इन नतीजों का प्रभाव आगामी विधानसभा चुनावों पर गहरा पड़ सकता है।
अगर सपा नौ में से सात सीटें जीतने में सफल रहती है, तो यह पार्टी के लिए 2027 के विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने के दावे को और मजबूत करेगा। वहीं, बीजेपी अगर अपनी पांच मौजूदा सीटों के अलावा एक-दो अतिरिक्त सीटें भी जीत लेती है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की गुजराती लॉबी के मुकाबले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद और मजबूत हो सकता है।
हालांकि, अगर बीजेपी मौजूदा सीटों से कम सीटें जीतती है, तो योगी आदित्यनाथ को हटाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ सकती है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पहले ही पार्टी के भीतर अपनी आवाज बुलंद कर चुके हैं। मौर्य ने हाल ही में प्रयागराज में छात्रों के आंदोलन में सरकार के खिलाफ खड़े होकर छात्रों को समर्थन दिया। इस कदम के चलते सरकार को झुकना पड़ा। केशव मौर्य का बयान कि "सरकार से बड़ी पार्टी होती है," बीजेपी के आंतरिक समीकरणों को और उलझा सकता है। यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि पार्टी के भीतर सत्ता को लेकर खींचतान जारी है।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव न केवल इन सीटों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में भी नए समीकरण तैयार कर सकते हैं। अमरेंद्र राय का यह विश्लेषण सपा और बीजेपी के बीच की टक्कर को और अधिक रोचक बनाता है। अगर सपा इन उपचुनावों में बड़ा प्रदर्शन करती है, तो यह आगामी चुनावों के लिए उसके पक्ष में माहौल तैयार करेगा। वहीं, बीजेपी के लिए यह उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व और पार्टी की आंतरिक स्थिरता की परीक्षा साबित हो सकते हैं।
गाज़ियाबाद उपचुनाव में सपा, बीजेपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। जहां सपा मुस्लिम-यादव-जाटव समीकरण के जरिए बढ़त बनाने की कोशिश कर रही है, वहीं बीजेपी और बीएसपी भी अपने-अपने वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। इन चुनावों के नतीजे न केवल प्रदेश की मौजूदा राजनीति पर असर डालेंगे, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों की रणनीतियों को भी प्रभावित करेंगे।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)