भारत में चरित्र निर्माण पर बहुत ज़ोर है। उतना ही ज़ोर कंडोम निर्माण पर भी है। हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड कंडोम मैन्युफैक्चर करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है। यानी हम भारतवासी सिर्फ चरित्र के धनी नहीं हैं बल्कि कंडोम के भी धनी हैं। वैज्ञानिक शोध प्रमाणित करते हैं कि 99 प्रतिशत मामलो में कंडोम धोखा नहीं देते। चरित्र के बारे में वैज्ञानिक अब तक ऐसा कोई दावा नहीं कर पाये हैं। इसलिए सरकार बड़े-बड़े होर्डिंग लगवाती हैं—कंडोम के साथ चलो। जहां चरित्र धोखा दे जाएगा, वहां कंडोम ही बचाएगा। सेक्यूलर से लेकर राष्ट्रवादी तक तमाम सरकारें इस मामले में एकमत रहीं है। इसलिए सरकार बदलने के बाद भी दिल्ली की सड़को से `कंडोम के साथ चलो’ वाले होर्डिंग हटाये नहीं जाते। होर्डिंग ही नहीं बल्कि सरकार कंडोम वेंडिंग मशीने भी लगवाती हैं। कंडोम धोखा नहीं देते, लेकिन सरकारी चरित्र की तरह सरकारी मशीन अक्सर धोखा दे जाती है। चरित्रावन लोग कंडोम शब्द से बहुत चिढ़ते हैं। यह देश चरित्रवान लोगो का है और उनकी इसी चिढ़ की वजह से एक अरब का भारत देखते-देखते सवा अरब का हो चुका है।
फादर कमिल बुल्के की अंग्रेजी हिंदी-डिक्शनरी में कंडोम का शाब्दिक अर्थ टोपी लिखा हुआ। यह अर्थ मुझे बेतुका लगता है। लेकिन जेएनयू कैंपस में घुसकर `टोपी’ उछालने की अनोखी कोशिश देखने के बाद लगता है कि अनुवाद ठीक ही है। यह नया `टोपी राष्ट्रवाद’ है। सरकार कहती है, टोपी पहनो। बीजेपी के विधायक जी चीखते हैं-- खबरदार! टोपी पहनने वाले देशद्रोही होते हैं। मैने पता लगा लिया है, जेएनयू वाले टोपी पहनने हैं। एक-एक कमरे में झांककर देखा है। एक-एक डस्बिन में और एक-एक नाली में जाकर ढूंढा है, तब जाकर इतनी बरामदी हुई है। ऐसा लग रहा है, विधायक जी किसी आतंकवादी वारदात के बीच से गोलियों के खोखे ढूंढ लाये हैं और अपने शौर्य के प्रदर्शन के लिए उनकी माला बनाकर गले में पहने घूम रहे हैं। मेहनत की तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन कुछ सवाल हैं। ये तीन हज़ार का जादुई आंकड़ा आपने कैसे प्राप्त किया? दुविधा यह भी है कि ये कैसे पता चलेगा कि उन तीन हज़ार में सब के सब देशद्रोही थे, कुछ राष्ट्रवादी भी तो होंगे! विधायक जी चाहे तो दावा कर सकते हैं कि राष्ट्रवादी लोगो में आधे उनकी तरह ब्रहचारी होते हैं और आधे सदाचारी। इसलिए जेएनयू की ये कारास्तानी सिर्फ दुराचारी देशद्रोहियों की है। मैं भी यह दलील मान लेता अगर मुझे छह महीना पहले खत्म हुए नासिक महाकुंभ की कहानियां पता नहीं होतीं। महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने देशी-विदेशी संस्कारी लोगो की भारी भीड़ को देखते हुए नासिक को कंडोम सप्लाई दोगुनी करने का आदेश दिया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुंभ के लिए 5.40 लाख कंडोम नासिक भेजे गये थे। क्या अपनी फैक्ट्स फाइंडिंग कमेटी के साथ विधायक जी कुंभ के मेले में भी गये थे? अगर गये थे तो कितनी बरामदी हुई? क्या विधायक जी ने नेताओं की टोपी की तरह इस टोपी को भी विचारधाराओं में बांट दिया है, राष्ट्रवादी टोपी, सनातनी टोपी, देशद्रोही टोपी और सेक्यूलर टोपी। क्या उन्होने यह पता लगा लिया था कि सनातनी टोपी वाले धारण करने से पहले कामदेव का कीर्तन करते हैं और उसी आधार पर उन्हे माफ कर दिया?
टोपी को कैरेक्टर सार्टिफिकेट मत बनाइये विधायक जी। भारत में एचआईवी के नये मरीजो की तादाद तेजी से गिरी है। इसकी वजह यही है कि लोग अब जागरूक हो रहे हैं। कंडोम का इस्तेमाल करने वाले कहीं ज्यादा चरित्रावान और जिम्मेदार होते हैं। वे यौन संक्रमण नहीं फैलाते। चरित्रहीन वे होते हैं जो एड्स के खतरों को जानते समझते हुए भी असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं। इसलिए आपकी मेहनत फिजूल है। अगर आपको यूज्ड कंडोम जमा करने का गिनीज बुक रिकॉर्ड बनाना था तो आप एलान करते। प्यारी जनता ऐसे ही आपके घर पहुंचा देती। कूड़ेदान छानने की क्या ज़रूरत थी? जब इतना कर ही रहे थे तो कूड़ा और उठा देते, मोदीजी के स्वच्छता मिशन में कुछ योगदान हो जाता। आशा करता हूं कि इस जगहंसाई के लिए पार्टी आपको फटकार ज़रूर लगाएगी। ऐसे मैं आशा ही कर सकता हूं, क्या पता क्रोनी कैपटलिज्म के साथ कंडोम नेशनलिज्म का युग सचमुच आ गया हो।