प्रदेश में पाँच वर्ष से कम आयु के प्रत्येक दस में से पाँच बच्चे, यानी लगभग 50 प्रतिशत, एनीमिया से प्रभावित हैं। इसी तरह, हर दस में से तीन महिलाएं (30 प्रतिशत) खून की कमी से जूझ रही हैं। यह स्थिति केवल एक स्वास्थ्य संबंधी चुनौती भर नहीं है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विषमता, अपर्याप्त पोषण और जागरूकता की कमी को भी उजागर करती है।

मध्यप्रदेश में पोषण और स्वास्थ्य को लेकर सामने आई ताज़ा रिपोर्ट ने एक बार फिर यह गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि अनेक सरकारी योजनाओं और अभियानों के बावजूद कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं अब तक पूरी तरह समाप्त क्यों नहीं हो पाई हैं। एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम 2025–26 के अंतर्गत हुई हालिया स्क्रीनिंग के आंकड़े दर्शाते हैं कि प्रदेश की बड़ी आबादी आज भी खून की कमी से प्रभावित है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ महिलाओं के समग्र स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में पाँच वर्ष से कम आयु के प्रत्येक दस में से पाँच बच्चे, यानी लगभग 50 प्रतिशत, एनीमिया से पीड़ित हैं। इसी तरह, हर दस में से तीन महिलाएं (30 प्रतिशत) खून की कमी से जूझ रही हैं। यह स्थिति केवल स्वास्थ्य की समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता, अपर्याप्त पोषण और जनजागरूकता की कमी की ओर भी इशारा करती है।
द मूकनायक से बातचीत में डॉ. मनीष राठौर ने बताया कि एनीमिया का प्रभाव केवल कमजोरी या थकान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह बच्चों की सीखने की क्षमता, स्मरण शक्ति और मानसिक विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। वहीं, महिलाओं में एनीमिया गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं, प्रसव के समय बढ़ते जोखिम और मातृ मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बन सकता है।
इस चिंताजनक स्थिति के बीच एक सकारात्मक संकेत भी सामने आया है। मध्यप्रदेश ‘एनीमिया मुक्त भारत’ अभियान के प्रभावी क्रियान्वयन में लगातार छह महीनों से देशभर में प्रथम स्थान पर बना हुआ है। यह उपलब्धि जमीनी स्तर पर कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों, आशा कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सेविकाओं के सतत प्रयासों का परिणाम मानी जा रही है।
प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इस उपलब्धि को स्वास्थ्य तंत्र की सुदृढ़ प्रतिबद्धता और समन्वित टीमवर्क का नतीजा बताया है। उनके अनुसार, समयबद्ध स्क्रीनिंग, डिजिटल तकनीकों के प्रभावी उपयोग और उपचार तक त्वरित पहुँच ने इस अभियान को अधिक सफल और प्रभावी बनाया है।
‘दस्तक अभियान’
वित्तीय वर्ष 2025–26 में संचालित ‘दस्तक अभियान’ के तहत प्रदेश में 70.62 लाख बच्चों की जांच डिजिटल हीमोग्लोबिनोमीटर के माध्यम से की गई। इस जांच में 35.21 लाख बच्चों में एनीमिया की पुष्टि हुई, जिनका उपचार तुरंत प्रारंभ कर दिया गया।
इसी क्रम में 9.42 लाख गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग की गई, जिनमें 3 लाख से अधिक महिलाएं मध्यम से गंभीर एनीमिया से प्रभावित पाई गईं। इन महिलाओं को स्थिति की गंभीरता के अनुसार आयरन सुक्रोज इंजेक्शन उपलब्ध कराए गए तथा आवश्यकता पड़ने पर रक्ताधान जैसी चिकित्सीय सुविधाएं भी प्रदान की गईं।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, डिजिटल जांच प्रणाली से न केवल आंकड़ों की सटीकता बढ़ी है, बल्कि गंभीर मामलों की पहचान भी पहले की तुलना में कहीं अधिक तेजी से संभव हो पाई है।
इलाज के साथ जागरूकता भी जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि एनीमिया की समस्या का समाधान केवल दवाओं तक सीमित नहीं हो सकता। इसके लिए संतुलित पोषण, स्वच्छता, समयबद्ध जांच और खान-पान को लेकर व्यापक जनजागरूकता उतनी ही आवश्यक है। विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में आयरन-युक्त खाद्य पदार्थों की कमी, एकरस आहार और गरीबी आज भी एनीमिया के प्रमुख कारण बने हुए हैं।
एनीमिया से कैसे बचें?
चुकंदर और अंजीर जैसे खाद्य पदार्थ आयरन, फोलेट और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो नियमित सेवन पर हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं। अंजीर खून की कमी को दूर करने में मदद करता है, जबकि चुकंदर रक्त संचार को बेहतर बनाकर कमजोरी और थकान को कम करता है।
वहीं केला और शकरकंद ऊर्जा के उत्कृष्ट स्रोत हैं। इनमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम मांसपेशियों को मजबूत रखने, थकावट कम करने और शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
लौकी एक हल्की, सुपाच्य और विटामिन-मिनरल से भरपूर सब्जी मानी जाती है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में भी सहायक होती है। वहीं नींबू और आंवला जैसे विटामिन-C युक्त खाद्य पदार्थ आयरन के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे भोजन से प्राप्त आयरन का शरीर बेहतर ढंग से उपयोग कर पाता है। संतुलित आहार में इन सभी खाद्य पदार्थों को शामिल करने से पोषण स्तर सुदृढ़ होता है और एनीमिया जैसी समस्याओं से बचाव में मदद मिलती है।
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मध्यप्रदेश में पोषण और स्वास्थ्य को लेकर सामने आई ताज़ा रिपोर्ट ने एक बार फिर यह गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि अनेक सरकारी योजनाओं और अभियानों के बावजूद कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं अब तक पूरी तरह समाप्त क्यों नहीं हो पाई हैं। एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम 2025–26 के अंतर्गत हुई हालिया स्क्रीनिंग के आंकड़े दर्शाते हैं कि प्रदेश की बड़ी आबादी आज भी खून की कमी से प्रभावित है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ महिलाओं के समग्र स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में पाँच वर्ष से कम आयु के प्रत्येक दस में से पाँच बच्चे, यानी लगभग 50 प्रतिशत, एनीमिया से पीड़ित हैं। इसी तरह, हर दस में से तीन महिलाएं (30 प्रतिशत) खून की कमी से जूझ रही हैं। यह स्थिति केवल स्वास्थ्य की समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता, अपर्याप्त पोषण और जनजागरूकता की कमी की ओर भी इशारा करती है।
द मूकनायक से बातचीत में डॉ. मनीष राठौर ने बताया कि एनीमिया का प्रभाव केवल कमजोरी या थकान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह बच्चों की सीखने की क्षमता, स्मरण शक्ति और मानसिक विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। वहीं, महिलाओं में एनीमिया गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं, प्रसव के समय बढ़ते जोखिम और मातृ मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बन सकता है।
इस चिंताजनक स्थिति के बीच एक सकारात्मक संकेत भी सामने आया है। मध्यप्रदेश ‘एनीमिया मुक्त भारत’ अभियान के प्रभावी क्रियान्वयन में लगातार छह महीनों से देशभर में प्रथम स्थान पर बना हुआ है। यह उपलब्धि जमीनी स्तर पर कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों, आशा कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी सेविकाओं के सतत प्रयासों का परिणाम मानी जा रही है।
प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इस उपलब्धि को स्वास्थ्य तंत्र की सुदृढ़ प्रतिबद्धता और समन्वित टीमवर्क का नतीजा बताया है। उनके अनुसार, समयबद्ध स्क्रीनिंग, डिजिटल तकनीकों के प्रभावी उपयोग और उपचार तक त्वरित पहुँच ने इस अभियान को अधिक सफल और प्रभावी बनाया है।
‘दस्तक अभियान’
वित्तीय वर्ष 2025–26 में संचालित ‘दस्तक अभियान’ के तहत प्रदेश में 70.62 लाख बच्चों की जांच डिजिटल हीमोग्लोबिनोमीटर के माध्यम से की गई। इस जांच में 35.21 लाख बच्चों में एनीमिया की पुष्टि हुई, जिनका उपचार तुरंत प्रारंभ कर दिया गया।
इसी क्रम में 9.42 लाख गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग की गई, जिनमें 3 लाख से अधिक महिलाएं मध्यम से गंभीर एनीमिया से प्रभावित पाई गईं। इन महिलाओं को स्थिति की गंभीरता के अनुसार आयरन सुक्रोज इंजेक्शन उपलब्ध कराए गए तथा आवश्यकता पड़ने पर रक्ताधान जैसी चिकित्सीय सुविधाएं भी प्रदान की गईं।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, डिजिटल जांच प्रणाली से न केवल आंकड़ों की सटीकता बढ़ी है, बल्कि गंभीर मामलों की पहचान भी पहले की तुलना में कहीं अधिक तेजी से संभव हो पाई है।
इलाज के साथ जागरूकता भी जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि एनीमिया की समस्या का समाधान केवल दवाओं तक सीमित नहीं हो सकता। इसके लिए संतुलित पोषण, स्वच्छता, समयबद्ध जांच और खान-पान को लेकर व्यापक जनजागरूकता उतनी ही आवश्यक है। विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में आयरन-युक्त खाद्य पदार्थों की कमी, एकरस आहार और गरीबी आज भी एनीमिया के प्रमुख कारण बने हुए हैं।
एनीमिया से कैसे बचें?
चुकंदर और अंजीर जैसे खाद्य पदार्थ आयरन, फोलेट और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो नियमित सेवन पर हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं। अंजीर खून की कमी को दूर करने में मदद करता है, जबकि चुकंदर रक्त संचार को बेहतर बनाकर कमजोरी और थकान को कम करता है।
वहीं केला और शकरकंद ऊर्जा के उत्कृष्ट स्रोत हैं। इनमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम मांसपेशियों को मजबूत रखने, थकावट कम करने और शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
लौकी एक हल्की, सुपाच्य और विटामिन-मिनरल से भरपूर सब्जी मानी जाती है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में भी सहायक होती है। वहीं नींबू और आंवला जैसे विटामिन-C युक्त खाद्य पदार्थ आयरन के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे भोजन से प्राप्त आयरन का शरीर बेहतर ढंग से उपयोग कर पाता है। संतुलित आहार में इन सभी खाद्य पदार्थों को शामिल करने से पोषण स्तर सुदृढ़ होता है और एनीमिया जैसी समस्याओं से बचाव में मदद मिलती है।
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