पिछले चार हफ्तों से गांव की सभी छह नाई की दुकानों ने दलित ग्राहकों को बाल काटने से मना कर दिया है। गांव के रहने वाले महादेव बैठा (38) ने कहा, "पुलिस के दखल के बावजूद वे हमारा बाल नहीं काट रहे हैं।"

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा ब्लॉक के जयपुरा गांव में अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि स्थानीय नाइयों ने उनके बाल काटने का काम रोक दिया है।
स्थानीय लोगों के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार हफ्तों से गांव की सभी छह नाई की दुकानों ने दलित ग्राहकों को बाल काटने से मना कर दिया है। गांव के रहने वाले महादेव बैठा (38) ने कहा, "पुलिस के दखल के बावजूद वे हमारा बाल नहीं काट रहे हैं।"
2011 की जनगणना के अनुसार, जयपुरा में 54 घरों में 347 लोगों की आबादी थी। स्थानीय लोगों का दावा है कि पिछले 15 सालों में आबादी काफी बढ़ गई है। बैठा ने कहा, "गांव में लगभग 30 दलित परिवार हैं।"
एक अन्य व्यक्ति ने आरोप लगाया कि नाइयों ने दलित ग्राहकों को दूर रखने के लिए ज्यादा पैसे लेना शुरू कर दिया है। रखाहरी मुखी (50) ने कहा, "जब हमारे बच्चे बाल कटवाने जाते हैं, तो वे 300 रुपये लेते हैं। शेविंग के लिए भी वे 100 रुपये मांगते हैं।"
समुदाय के सदस्यों ने सबसे पहले 8 नवंबर को बारसोल थाने में पुलिस को इस मुद्दे की सूचना दी और तब से कई बार फॉलो-अप किया है। मुखी ने कहा, "पुलिस ने नाइयों को कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, लेकिन कुछ नहीं बदला है।"
गांव वालों ने बताया कि पुलिस स्टेशन इंचार्ज ने रविवार को सभी नाइयों को बुलाया और उन्हें बात मानने या कार्रवाई का सामना करने का निर्देश दिया। एक दलित निवासी सागर कालिंदी ने कहा, "गत सोमवार को गांव की सभी नाई की दुकानें बंद रही।"
पुलिस स्टेशन इंचार्ज अभिषेक कुमार ने इस बात से इनकार किया कि यह सामाजिक बहिष्कार का मामला है। उन्होंने कहा, "वे जो पैसे ले रहे हैं, उस पर कन्फ्यूजन है। कुछ लोगों का मानना है कि उनसे बचने के लिए जानबूझकर पैसे बढ़ाए गए हैं।"
बारसोल पुलिस को एक रिप्रेजेंटेशन सौंपने वासले महादलित समाज के नेता विमल बैठा ने जोर देकर कहा कि यह सामाजिक बहिष्कार का साफ मामला है। दलित प्रतिनिधियों ने पुलिस पर मामले को मामूली तौर पर देखने का आरोप लगाया।
बता दें कि बीते साल सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने दलित समुदाय के नेताओं के साथ मिलकर जागरूकता फैलाने के लिए एक मार्च निकाला था। यह मार्च डोड्डाबल्लापुरा के कदानूर गांव में दलितों को कथित तौर पर दुकानों पर बाल कटवाने से मना किए जाने के बाद निकाला गया था।
डोड्डाबल्लापुरा में कर्नाटक दलित संघर्ष समिति के संयोजक रामू नीलाघट्टा ने कहा था कि, "गांव की कुछ दुकानों ने सिर्फ उनकी जाति की वजह से दलित समुदाय के लोगों के बाल काटने से मना कर दिया। ऐसा सालों से हो रहा है।"
जब दलित नेताओं ने सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के अधिकारियों से शिकायत की, तो उन्होंने छुआछूत खत्म करने के मकसद से शनिवार को संविधान जागरूकता मार्च निकाला था।
जिले की सोशल वेलफेयर डिप्टी डायरेक्टर टीएलएस प्रेमा ने कहा था, "हमें दलित नेताओं से हेयरकट की दुकानों में भेदभाव के बारे में शिकायतें मिलीं। इसके बाद, मैंने दूसरे अधिकारियों के साथ मिलकर ऐसी दुकानों का दौरा किया और नाईयों को जागरूक किया। हमने यह भी पक्का किया कि वहां मौजूद दलित लोगों के बाल काटे जाएं।"
अधिकारी ने कहा था कि डिपार्टमेंट भविष्य में ऐसी अमानवीय हरकतों पर नजर रखेगा ताकि वंचित समुदाय के लोगों को उनके अधिकार मिल सकें।
दलित नेता ने कहा था, "गांव में हेयरकट की दुकानों को घेरकर, हमने प्रतीकात्मक रूप से छुआछूत की इस घिनौनी प्रथा को खत्म कर दिया है। हमने यह पक्का किया है कि हमारे दलित भाइयों को वह सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं।"
दलित नेता नीलाघट्टा ने कहा था कि, "यह दुख की बात है कि आज के जमाने में भी छुआछूत हमें परेशान कर रही है। ऐसा लगता है कि हम अपनी साझा इंसानियत को भूल गए हैं और हीनता की इन पुरानी सोच को बनाए रखा है। अब समय आ गया है कि हमारा समाज बदले और समानता को अपनाए।"
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झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा ब्लॉक के जयपुरा गांव में अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि स्थानीय नाइयों ने उनके बाल काटने का काम रोक दिया है।
स्थानीय लोगों के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार हफ्तों से गांव की सभी छह नाई की दुकानों ने दलित ग्राहकों को बाल काटने से मना कर दिया है। गांव के रहने वाले महादेव बैठा (38) ने कहा, "पुलिस के दखल के बावजूद वे हमारा बाल नहीं काट रहे हैं।"
2011 की जनगणना के अनुसार, जयपुरा में 54 घरों में 347 लोगों की आबादी थी। स्थानीय लोगों का दावा है कि पिछले 15 सालों में आबादी काफी बढ़ गई है। बैठा ने कहा, "गांव में लगभग 30 दलित परिवार हैं।"
एक अन्य व्यक्ति ने आरोप लगाया कि नाइयों ने दलित ग्राहकों को दूर रखने के लिए ज्यादा पैसे लेना शुरू कर दिया है। रखाहरी मुखी (50) ने कहा, "जब हमारे बच्चे बाल कटवाने जाते हैं, तो वे 300 रुपये लेते हैं। शेविंग के लिए भी वे 100 रुपये मांगते हैं।"
समुदाय के सदस्यों ने सबसे पहले 8 नवंबर को बारसोल थाने में पुलिस को इस मुद्दे की सूचना दी और तब से कई बार फॉलो-अप किया है। मुखी ने कहा, "पुलिस ने नाइयों को कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, लेकिन कुछ नहीं बदला है।"
गांव वालों ने बताया कि पुलिस स्टेशन इंचार्ज ने रविवार को सभी नाइयों को बुलाया और उन्हें बात मानने या कार्रवाई का सामना करने का निर्देश दिया। एक दलित निवासी सागर कालिंदी ने कहा, "गत सोमवार को गांव की सभी नाई की दुकानें बंद रही।"
पुलिस स्टेशन इंचार्ज अभिषेक कुमार ने इस बात से इनकार किया कि यह सामाजिक बहिष्कार का मामला है। उन्होंने कहा, "वे जो पैसे ले रहे हैं, उस पर कन्फ्यूजन है। कुछ लोगों का मानना है कि उनसे बचने के लिए जानबूझकर पैसे बढ़ाए गए हैं।"
बारसोल पुलिस को एक रिप्रेजेंटेशन सौंपने वासले महादलित समाज के नेता विमल बैठा ने जोर देकर कहा कि यह सामाजिक बहिष्कार का साफ मामला है। दलित प्रतिनिधियों ने पुलिस पर मामले को मामूली तौर पर देखने का आरोप लगाया।
बता दें कि बीते साल सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने दलित समुदाय के नेताओं के साथ मिलकर जागरूकता फैलाने के लिए एक मार्च निकाला था। यह मार्च डोड्डाबल्लापुरा के कदानूर गांव में दलितों को कथित तौर पर दुकानों पर बाल कटवाने से मना किए जाने के बाद निकाला गया था।
डोड्डाबल्लापुरा में कर्नाटक दलित संघर्ष समिति के संयोजक रामू नीलाघट्टा ने कहा था कि, "गांव की कुछ दुकानों ने सिर्फ उनकी जाति की वजह से दलित समुदाय के लोगों के बाल काटने से मना कर दिया। ऐसा सालों से हो रहा है।"
जब दलित नेताओं ने सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के अधिकारियों से शिकायत की, तो उन्होंने छुआछूत खत्म करने के मकसद से शनिवार को संविधान जागरूकता मार्च निकाला था।
जिले की सोशल वेलफेयर डिप्टी डायरेक्टर टीएलएस प्रेमा ने कहा था, "हमें दलित नेताओं से हेयरकट की दुकानों में भेदभाव के बारे में शिकायतें मिलीं। इसके बाद, मैंने दूसरे अधिकारियों के साथ मिलकर ऐसी दुकानों का दौरा किया और नाईयों को जागरूक किया। हमने यह भी पक्का किया कि वहां मौजूद दलित लोगों के बाल काटे जाएं।"
अधिकारी ने कहा था कि डिपार्टमेंट भविष्य में ऐसी अमानवीय हरकतों पर नजर रखेगा ताकि वंचित समुदाय के लोगों को उनके अधिकार मिल सकें।
दलित नेता ने कहा था, "गांव में हेयरकट की दुकानों को घेरकर, हमने प्रतीकात्मक रूप से छुआछूत की इस घिनौनी प्रथा को खत्म कर दिया है। हमने यह पक्का किया है कि हमारे दलित भाइयों को वह सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं।"
दलित नेता नीलाघट्टा ने कहा था कि, "यह दुख की बात है कि आज के जमाने में भी छुआछूत हमें परेशान कर रही है। ऐसा लगता है कि हम अपनी साझा इंसानियत को भूल गए हैं और हीनता की इन पुरानी सोच को बनाए रखा है। अब समय आ गया है कि हमारा समाज बदले और समानता को अपनाए।"
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