केरल, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में BLO के रूप में कार्यरत लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाओं के कुछ ही दिनों बाद गुजरात के खेड़ा जिले में बीएलओ की ड्यूटी निभा रहे एक स्कूल शिक्षक की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई। परिवार का कहना है कि उनकी मौत का मुख्य कारण विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से जुड़े ‘अत्यधिक काम के दबाव’ रहे।

साभार : एससीओ
केरल, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के रूप में काम कर रहे कर्मचारियों द्वारा मतदाता सूची के जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से जुड़े कथित अत्यधिक कार्यभार के दबाव में आत्महत्या करने की घटनाओं के कुछ ही दिनों बाद गुजरात के खेड़ा जिले में बीएलओ की जिम्मेदारी निभा रहे एक स्कूल शिक्षक की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई।
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, बीएलओ के परिवार ने कहा है कि उनकी मौत का कारण चल रहे एसआईआर से जुड़ा ‘काम का बहुत ज्यादा दबाव’ है।
उनके भाई नरेंद्र परमार ने बताया कि बीएलओ की मौत बुधवार और गुरुवार (19–20 नवंबर) की दरमियानी रात घर पर सोते समय हार्ट अटैक से हुई।
द वायर ने लिखा, नरेंद्र परमार ने कहा, ‘बीएलओ का काम खत्म करने के बाद वह बुधवार शाम करीब 7.30 बजे घर लौटा और फ्रेश होने के बाद फिर से पेपरवर्क करने लगा। क्योंकि उसके गांव में मोबाइल नेटवर्क की दिक्कत थी, इसलिए वह अपना काम खत्म करने के लिए मेरे घर आया। उन्होंने रात 11.30 बजे तक काम किया और अपने घर लौट गया। फिर वह खाना खाने के बाद सो गया। लेकिन जब वह सुबह नहीं उठा, तो हम उन्हें तुरंत पास के हॉस्पिटल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।’
मृतक के भाई ने कहा, ‘हमें लगता है कि काम के ज़्यादा प्रेशर की वजह से उन्हें हार्ट अटैक आया होगा।’ रमेशभाई परमार की बेटी शिल्पा ने भी कहा कि वह बीएलओ से जुड़े काम की वजह से दबाव में थे।
हफ्ते भर में तीसरी घटना
इससे पहले, 16 नवंबर को केरल के कन्नूर में 44 वर्षीय अनीश जॉर्ज- जो एक स्कूल ऑफिस असिस्टेंट थे- अपने घर में मृत पाए गए थे। उनके परिवार का कहना है कि जॉर्ज अपने बूथ पर गिनती से जुड़े काम की समय सीमा पूरी करने के लिए काफी मेहनत और दबाव में काम कर रहे थे।
राजस्थान के नाहरी का बास से भी इसी तरह की एक घटना सामने आई। यहां 45 वर्षीय मुकेश जांगिड़-जो सरकारी स्कूल में शिक्षक और बीएलओ थे-ने 16 नवंबर को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। हालांकि पूरी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन बिंदायका एसएचओ विनोद वर्मा के अनुसार उन्होंने कथित तौर पर बिंदायका रेलवे क्रॉसिंग के पास ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी।
जांगिड़ के भाई गजानंद ने दावा किया कि उन्हें उनके भाई का सुसाइड नोट मिला है। इसमें कथित तौर पर लिखा है कि वह SIR ड्यूटी के कारण गंभीर तनाव में थे, और उनका सुपरवाइज़र उन पर लगातार दबाव डाल रहा था तथा उन्हें निलंबन की धमकी भी दे रहा था।
ज्ञात हो कि पिछले महीने पूरे भारत में सुसाइड और हैरेसमेंट की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें चुनावों की एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी को सुसाइड और गंभीर मानसिक परेशानी से जोड़ा गया है। इस संकट का बड़ा कारण वोटर रोल का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) है, जो अभी 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जा रहा है।
इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया (ECI) का दावा है कि उसका काम वोटर लिस्ट को अपडेट और सुधार करना है, लेकिन सरकारी कर्मचारियों और लोगों की मौत के बाद ग्राउंड पर इस्तेमाल किए जा रहे तरीके की कड़ी जांच हो रही है।
इस काम में घर-घर जाकर सख्ती से वेरिफ़िकेशन, डेटा इकट्ठा करना और वोटर रिकॉर्ड का डिजिटाइज़ेशन शामिल है, लेकिन इसे एक टाइट शेड्यूल में कर दिया गया है। नेताओं और कर्मचारी यूनियनों का आरोप है कि जो प्रोसेस आम तौर पर सालों तक चलता है, उसे दो महीने के टाइम में कर दिया गया है, जिससे अनरियलिस्टिक टारगेट बन गए हैं। लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की वजह से इस प्रोसेस के फुट सोल्जर्स – बूथ लेवल ऑफ़िसर्स (BLOs) – पर “अमानवीय” काम का दबाव पड़ा है और गरीबों में मताधिकार छिनने का डर पैदा हुआ है, जो नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स (NRC) को लेकर फैली चिंताओं की याद दिलाता है।
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साभार : एससीओ
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न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, बीएलओ के परिवार ने कहा है कि उनकी मौत का कारण चल रहे एसआईआर से जुड़ा ‘काम का बहुत ज्यादा दबाव’ है।
उनके भाई नरेंद्र परमार ने बताया कि बीएलओ की मौत बुधवार और गुरुवार (19–20 नवंबर) की दरमियानी रात घर पर सोते समय हार्ट अटैक से हुई।
द वायर ने लिखा, नरेंद्र परमार ने कहा, ‘बीएलओ का काम खत्म करने के बाद वह बुधवार शाम करीब 7.30 बजे घर लौटा और फ्रेश होने के बाद फिर से पेपरवर्क करने लगा। क्योंकि उसके गांव में मोबाइल नेटवर्क की दिक्कत थी, इसलिए वह अपना काम खत्म करने के लिए मेरे घर आया। उन्होंने रात 11.30 बजे तक काम किया और अपने घर लौट गया। फिर वह खाना खाने के बाद सो गया। लेकिन जब वह सुबह नहीं उठा, तो हम उन्हें तुरंत पास के हॉस्पिटल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।’
मृतक के भाई ने कहा, ‘हमें लगता है कि काम के ज़्यादा प्रेशर की वजह से उन्हें हार्ट अटैक आया होगा।’ रमेशभाई परमार की बेटी शिल्पा ने भी कहा कि वह बीएलओ से जुड़े काम की वजह से दबाव में थे।
हफ्ते भर में तीसरी घटना
इससे पहले, 16 नवंबर को केरल के कन्नूर में 44 वर्षीय अनीश जॉर्ज- जो एक स्कूल ऑफिस असिस्टेंट थे- अपने घर में मृत पाए गए थे। उनके परिवार का कहना है कि जॉर्ज अपने बूथ पर गिनती से जुड़े काम की समय सीमा पूरी करने के लिए काफी मेहनत और दबाव में काम कर रहे थे।
राजस्थान के नाहरी का बास से भी इसी तरह की एक घटना सामने आई। यहां 45 वर्षीय मुकेश जांगिड़-जो सरकारी स्कूल में शिक्षक और बीएलओ थे-ने 16 नवंबर को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। हालांकि पूरी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन बिंदायका एसएचओ विनोद वर्मा के अनुसार उन्होंने कथित तौर पर बिंदायका रेलवे क्रॉसिंग के पास ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी।
जांगिड़ के भाई गजानंद ने दावा किया कि उन्हें उनके भाई का सुसाइड नोट मिला है। इसमें कथित तौर पर लिखा है कि वह SIR ड्यूटी के कारण गंभीर तनाव में थे, और उनका सुपरवाइज़र उन पर लगातार दबाव डाल रहा था तथा उन्हें निलंबन की धमकी भी दे रहा था।
ज्ञात हो कि पिछले महीने पूरे भारत में सुसाइड और हैरेसमेंट की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें चुनावों की एडमिनिस्ट्रेटिव मशीनरी को सुसाइड और गंभीर मानसिक परेशानी से जोड़ा गया है। इस संकट का बड़ा कारण वोटर रोल का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) है, जो अभी 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जा रहा है।
इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया (ECI) का दावा है कि उसका काम वोटर लिस्ट को अपडेट और सुधार करना है, लेकिन सरकारी कर्मचारियों और लोगों की मौत के बाद ग्राउंड पर इस्तेमाल किए जा रहे तरीके की कड़ी जांच हो रही है।
इस काम में घर-घर जाकर सख्ती से वेरिफ़िकेशन, डेटा इकट्ठा करना और वोटर रिकॉर्ड का डिजिटाइज़ेशन शामिल है, लेकिन इसे एक टाइट शेड्यूल में कर दिया गया है। नेताओं और कर्मचारी यूनियनों का आरोप है कि जो प्रोसेस आम तौर पर सालों तक चलता है, उसे दो महीने के टाइम में कर दिया गया है, जिससे अनरियलिस्टिक टारगेट बन गए हैं। लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की वजह से इस प्रोसेस के फुट सोल्जर्स – बूथ लेवल ऑफ़िसर्स (BLOs) – पर “अमानवीय” काम का दबाव पड़ा है और गरीबों में मताधिकार छिनने का डर पैदा हुआ है, जो नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स (NRC) को लेकर फैली चिंताओं की याद दिलाता है।
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