“अंतरजातीय विवाह राष्ट्रीय हित में हैं, इसलिए इन्हें संरक्षण मिलना चाहिए” : दिल्ली हाईकोर्ट

Written by sabrang india | Published on: November 11, 2025
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अंतरजातीय विवाह राष्ट्रीय हित में हैं और इन्हें पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से सुरक्षित रखा जाना चाहिए। अदालत ने जोर देते हुए कहा कि जब दो वयस्क आपसी सहमति से विवाह या साथ रहने का निर्णय लेते हैं, तो न परिवार और न ही समुदाय उन्हें कानूनी रूप से रोक सकता है, उन पर दबाव डाल सकता है या किसी प्रकार का प्रतिबंध लगा सकता है।



दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अंतरजातीय विवाह राष्ट्रीय हित में हैं और ऐसे विवाहों को पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से सुरक्षित रखा जाना चाहिए।

अंतरजातीय विवाह को पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से सुरक्षित रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब दो वयस्क आपसी सहमति से विवाह या साथ रहने का निर्णय लेते हैं, तो न परिवार और न ही समुदाय उन्हें कानूनी रूप से रोक सकता है, उन पर दबाव डाल सकता है, प्रतिबंध लगा सकता है या धमकी दे सकता है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस संजीव नरूला की एकल पीठ ने एक अंतरजातीय दंपति को पुलिस सुरक्षा प्रदान करते हुए ये टिप्पणियां कीं। यह दंपति पिछले 11 वर्षों से एक-दूसरे के साथ संबंध में है और अब विवाह करने का इरादा रखता है।

महिला का परिवार इस रिश्ते का विरोध कर रहा है और लगातार धमकियां दे रहा है, जिसके कारण दंपति ने दिल्ली पुलिस से सुरक्षा की मांग की। दिल्ली पुलिस के वकील ने अदालत को बताया कि पहले दर्ज शिकायत के आधार पर दंपति को एक कॉन्स्टेबल का संपर्क नंबर उपलब्ध कराया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत का मानना है कि भारत में जाति का सामाजिक प्रभाव अब भी गहराई से मौजूद है। ऐसे में अंतरजातीय विवाह सामाजिक एकीकरण को प्रोत्साहित करते हैं और जातिगत विभाजन को कम करके एक महत्वपूर्ण संवैधानिक और सामाजिक भूमिका निभाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे विवाह राष्ट्रहित में हैं और इन्हें समुदायों या परिवारों के हस्तक्षेप से सख्त संरक्षण मिलना चाहिए।

अदालत ने कहा कि जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।

अदालत ने संबंधित पुलिस थाने के एसएचओ को निर्देश दिया कि वह दंपति को होने वाले संभावित खतरे का संक्षिप्त आकलन करें। अदालत ने कहा कि आकलन के परिणामों के आधार पर अधिकारी को कानून द्वारा अनुमत सभी निवारक कदम उठाने चाहिए — जिनमें उचित डायरी इंट्री करना, दंपति के वर्तमान निवास के आसपास गश्त बढ़ाना, और उत्पीड़न या धमकी को रोकने के लिए आवश्यक अन्य उपाय शामिल हैं।

अदालत ने निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता अपने परिवार के सदस्यों द्वारा किसी भी तरह के खतरे या हस्तक्षेप की सूचना देते हैं, तो पुलिस को उस पर कानून के अनुसार कार्रवाई करनी होगी।

ज्ञात हो कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब अंतरजातीय विवाह को लेकर लड़की के परिजनों ने लड़के पर जानलेवा हमला किया, जिसमें लड़के की जान चली गई।

तमिलनाडु के थूथुकुड़ी जिले के एरल के पास अरुमुगमंगलम गांव के रहने वाले 27 वर्षीय दलित सॉफ्टवेयर इंजीनियर कविन सेल्व गणेश की दिनदहाड़े तिरुनेलवेली के केटीसी नगर में 28 जुलाई 2025 को धारदार हथियार से हत्या कर दी गई। आरोपी एस. सुरजीत (21 वर्ष) ने कथित रूप से अपनी बहन सुभाषिनी (जो एक सिद्धा चिकित्सक हैं) के साथ कविन के संबंधों को लेकर उस पर दरांती से हमला किया। कविन और सुभाषिनी लंबे समय से अंतरजातीय रिश्ते में थे, जिसका सुरजीत और उसका परिवार, जो प्रभावशाली मरवर समुदाय (एमबीसी) से ताल्लुक रखता है, कड़ा विरोध कर रहा था।

सुरजीत सिर्फ एक आम नागरिक नहीं है, बल्कि वह तमिलनाडु सशस्त्र पुलिस के दो सेवारत सब-इंस्पेक्टरों — सरवनन और कृष्णकुमारी — का बेटा है। इन दोनों को भी प्राथमिकी (FIR) में सह-आरोपी के रूप में नामजद किया गया। इसके बावजूद, इन पुलिसकर्मियों को केवल निलंबित किया गया, गिरफ्तार नहीं किया गया, जिससे जनता में भारी नाराज़गी थी। यह मामला अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 2015 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की संबंधित धाराओं के तहत दर्ज किया गया।

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