पीएचडी शोधार्थी ने जातिगत भेदभाव के गंभीर आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पोस्ट में परेशानी बताई। संस्कृत विभाग प्रमुख सी.एन. विजयकुमारी के खिलाफ श्रीकार्यम पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

केरल विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में जातिगत भेदभाव का एक नया मामला सामने आया है। दलित पीएचडी स्कॉलर विपिन विजयन ने विभाग की डीन डॉ. सी.एन. विजयकुमारी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने जाति के आधार पर भेदभाव किया, अपने पद का दुरुपयोग किया और उनकी पीएचडी डिग्री रोक दी। विपिन का आरोप है कि डॉ. विजयकुमारी, जिनके आरएसएस-बीजेपी से जुड़े होने की बात कही जा रही है, ने सुनियोजित तरीके से उनकी शैक्षणिक प्रगति में बाधा डाली। यह मामला अब पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है और रोहित वेमुला मामले की यादें फिर से ताजा हो गई हैं।
विपिन की एक फेसबुक पोस्ट के हवाले से द मूकनायक ने लिखा, उन्होंने श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय से संस्कृत में बी.ए. और एम.ए., केरल विश्वविद्यालय से बी.एड. और एम.एड. की शिक्षा पूरी की तथा उसके बाद करियावट्टम कैंपस से संस्कृत में एम.फिल. की डिग्री प्राप्त की है, जिसकी मार्गदर्शक संस्कृत विभाग की हेड डॉ. विजयकुमारी ही थीं। लेकिन अब वही डीन उन्हें "संस्कृत न जानने वाला" बताकर पीएचडी रोक रही हैं। विपिन ने डीन के कथित जातिवादी बयान का हवाला देते हुए बताया कि "पुलायन या परायन (केरल में मानी जाने वाली निम्न जातियां) कितना भी झुक जाएं, संस्कृत ब्राह्मणों की तरह उनके आगे कभी नहीं झुकेगी।"
विपिन विजयन का कहना है कि उनके शोध प्रबंध "EPISTEMOLOGICAL REVIEW OF KENOPANISAD" को परीक्षकों ने सराहा था और पीएचडी की सिफारिश भी की थी। इसके बावजूद, डीन ने विश्वविद्यालय को एक पत्र लिखकर दावा किया कि विपिन को संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है, जबकि विश्वविद्यालय के नियम स्पष्ट रूप से अंग्रेजी या मलयालम में शोध करने की अनुमति देते हैं। विपिन का आरोप है कि वे वामपंथी विचारधारा से जुड़े हैं, जबकि डीन संघ परिवार से जुड़े शिक्षक संगठन की सक्रिय सदस्य हैं और यही कारण है कि उनके साथ जातिवादी और वैचारिक पक्षपात किया जा रहा है। विपिन सवाल उठाते हैं, “मेरी राजनीतिक विचारधारा पर सवाल किए जा रहे हैं, लेकिन उनकी विचारधारा पर कोई चुप्पी क्यों है?”
शोधार्थी ने अपने फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय की डीन डॉ. सी.एन. विजयकुमारी ने उनके खिलाफ यह झूठी रिपोर्ट दी है कि उन्हें संस्कृत पढ़नी और लिखनी नहीं आती। शोधार्थी के अनुसार, यह आरोप पूरी तरह निराधार और मनगढ़ंत है।
मकतूब की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने आरोप लगाया कि डॉ. विजयकुमारी द्वारा निर्देशित और विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित बोर्ड द्वारा जांच किए जाने के बावजूद, एम.फिल. की डिग्री वैध तरीके से प्राप्त करने के बावजूद, उसी प्रोफेसर ने अंतिम चरण में उनकी पीएचडी में बाधा डाली।
यह आरोप लगाते हुए कि यह मामला जातिगत पूर्वाग्रह से जुड़ा है, विपिन ने पूछा, “अगर मुझे संस्कृत नहीं आती, तो उन्होंने किस आधार पर मेरा मार्गदर्शन किया और मेरी एम.फिल. की डिग्री स्वीकृत की? अगर मैं धोखेबाज हूं, तो क्या यह उन्हें दोषी नहीं ठहराता? या मैं एम.फिल. के बाद किसी तरह संस्कृत भूल गया?”
उन्होंने उन पर जातिवादी टिप्पणी करने और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के पूर्व सदस्य के रूप में अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि का फायदा उठाकर उन्हें निशाना बनाने का भी आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि उनके पास श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय और केरल विश्वविद्यालय से संस्कृत में डिग्रियां हैं और उन्होंने उन मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया जिनमें उन्हें रिसर्च स्कॉलर्स यूनियन का “पूर्व महासचिव” बताया गया था।
विपिन ने स्पष्ट किया कि उन्होंने रिसर्च स्कॉलर्स यूनियन के चुनावों के लिए कभी नामांकन दाखिल नहीं किया, फिर भी मीडिया रिपोर्टों में उन्हें यूनियन का महासचिव बताया गया।
उन्होंने कहा, “मेरी और डॉ. विजयकुमारी — दोनों की राजनीतिक मान्यताएं हैं। मेरी वामपंथी हैं; उनकी आरएसएस-भाजपा की राजनीति से जुड़ी हैं। सिर्फ मेरी राजनीति पर ही सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं, उनकी नहीं?”
उन्होंने पूछा, “जब उन्हें संत के रूप में बताया जा रहा है, तो मैं अपराधी कैसे हो सकता हूँ? क्या अब समाचारों में तथ्यों का कोई महत्व नहीं रह गया है?”
विपिन विजयन ने बताया कि उनके पीएचडी शोध प्रबंध, सद्गुरुसर्वसम: एक अध्ययन, जो विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार अंग्रेजी में लिखा गया था, का दो विशेषज्ञों — इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल प्रताप गिरि और श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति के प्रोफेसर जी. पद्मनाभम — द्वारा सकारात्मक मूल्यांकन किया गया था। दोनों को कुलपति द्वारा नियुक्त किया गया था।
उन्होंने कहा कि तीनों परीक्षकों ने डिग्री देने की सिफारिश की थी और खुले बचाव की अध्यक्षता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल प्रताप गिरि ने की थी।
उन्होंने एक वीडियो भी दिखाया जिसमें अध्यक्ष परीक्षक रिपोर्ट पढ़ते हुए, आधिकारिक मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत उनकी पीएचडी की डिग्री देने की औपचारिक सिफारिश करते दिखाई दे रहे थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि इसके बावजूद, डीन ने उनकी फाइल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह "संस्कृत में एक शब्द भी बोलने के योग्य नहीं हैं।"
उन्होंने सवाल उठाया कि डीन के पास ऐसा कौन-सा नैतिक, कानूनी या शैक्षणिक अधिकार है कि वह उस थीसिस के खिलाफ आरोप लगाएं, जिसकी जांच और अनुमोदन पहले ही अकादमिक विशेषज्ञों द्वारा किया जा चुका है।
उन्होंने कहा, "डीन अपने अधिकार का अतिक्रमण कर रही हैं और कुलपति के फ़ैसलों को भी चुनौती दे रही हैं।"
विजयन ने यह भी दावा किया कि उन्होंने अपमानजनक टिप्पणियां कीं, जैसे कि, "यह विभाग अशुद्ध हो गया है, इसे फिर से शुद्ध किया जाना चाहिए।"
विजयन ने कहा कि उन्होंने अपने शोध के सपनों की रक्षा के लिए चुपचाप बार-बार अपमान सहा, लेकिन अब कानूनी कार्रवाई करने की योजना बना रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मैंने बहुत कुछ सहा है। डीन का जातिगत पूर्वाग्रह और पद का दुरुपयोग यूं ही नहीं रुक सकता।" उन्होंने डॉ. विजयकुमारी के कार्यों को "डीन के गरिमापूर्ण पद के अयोग्य" बताया और उन्हें पद से तत्काल हटाने की मांग की।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि उनके शोध प्रबंध से जुड़ी गोपनीय रिपोर्ट मीडिया तक कैसे पहुंची और उनकी शैक्षणिक प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए एक सुनियोजित प्रयास का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, "जो लोग विश्वविद्यालय की रक्षा करने का दावा करते हैं, वे अब मुझ पर हमला करने के लिए खूंखार जानवरों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, "किसी भी छात्र को फिर से सत्ता के इस तरह के दुरुपयोग का शिकार या पीड़ित नहीं बनाया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय की गौरवशाली विरासत इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
अंशकालिक नौकरियों से अपना गुजारा करने वाले विजयन ने कहा कि उनकी डिग्री मिलने में हुई देरी ने उनकी जिंदगी को तहस-नहस कर दिया है।
उन्होंने कहा, "पीएचडी मेरा सपना था। 'संस्कृत न जानने वाला' का तमगा मुझे हमेशा सताता रहेगा। डीन की अनुशासन के रक्षक के रूप में प्रशंसा की जाएगी, जबकि मेरे वर्षों के संघर्ष को कुचल दिया गया है। मेरा जीवन अंधकार में डूब गया है।"
उन्होंने कहा, "डीन के एक ही पत्र से मेरा पूरा जीवन बर्बाद हो गया है।" उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि कड़ी मेहनत से हासिल मेरी सभी डिग्रियां अब बेकार हो गई हैं।"
एफआईआर दर्ज
विपिन विजयन की शिकायत पर करियावट्टम कैंपस में ओरिएंटल स्टडीज फैकल्टी की डीन और संस्कृत विभाग की प्रमुख डॉ. सी.एन. विजयकुमारी के खिलाफ श्रीकारयम पुलिस ने जातिवादी अपमान का मामला दर्ज किया है।
शनिवार रात देर से दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, विजयकुमारी ने 15 अक्टूबर को हुए ओपन डिफेंस के बाद विपिन के थीसिस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। बाद में जब विपिन ने उन्हें दोबारा पीएचडी प्रक्रिया पूरी करने के लिए दस्तावेज पर साइन करने का अनुरोध किया, तो आरोपी ने अन्य शिक्षकों और छात्रों की मौजूदगी में जातिवादी टिप्पणियां कीं।
शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि विजयकुमारी 2015 से ही विपिन के एमफिल के दौरान उनकी देखरेख में इसी तरह की जाति-आधारित टिप्पणियां करती रही हैं। एफआईआर के मुताबिक विजयकुमारी ने शिकायतकर्ता से कहा कि निचली जातियों के लोग संस्कृत नहीं सीख सकते और उनके कमरे में आने के बाद वह पानी से सफाई करती हैं।
पुलिस ने बताया कि मामला SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(र) और 3(1)(एस) के तहत दर्ज किया गया है, जो सार्वजनिक दृष्टि में SC/ST समुदाय के सदस्य को जाति नाम से जानबूझकर अपमानित और गाली देने के अपराध से संबंधित है। अधिकारियों ने कहा कि ये अपराध गैर-जमानती हैं, और गिरफ्तारी से पहले विस्तृत जांच की जाएगी।
पहले जब विवाद सामने आया था, तो विजयकुमारी ने जातिवादी टिप्पणियां करने से इनकार किया था और दावा किया था कि उन्होंने थीसिस पर साइन करने से इसलिए मना किया क्योंकि शोधार्थी को संस्कृत का पर्याप्त ज्ञान नहीं था और उसके काम में कई खामियां थीं।
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विपिन की एक फेसबुक पोस्ट के हवाले से द मूकनायक ने लिखा, उन्होंने श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय से संस्कृत में बी.ए. और एम.ए., केरल विश्वविद्यालय से बी.एड. और एम.एड. की शिक्षा पूरी की तथा उसके बाद करियावट्टम कैंपस से संस्कृत में एम.फिल. की डिग्री प्राप्त की है, जिसकी मार्गदर्शक संस्कृत विभाग की हेड डॉ. विजयकुमारी ही थीं। लेकिन अब वही डीन उन्हें "संस्कृत न जानने वाला" बताकर पीएचडी रोक रही हैं। विपिन ने डीन के कथित जातिवादी बयान का हवाला देते हुए बताया कि "पुलायन या परायन (केरल में मानी जाने वाली निम्न जातियां) कितना भी झुक जाएं, संस्कृत ब्राह्मणों की तरह उनके आगे कभी नहीं झुकेगी।"
विपिन विजयन का कहना है कि उनके शोध प्रबंध "EPISTEMOLOGICAL REVIEW OF KENOPANISAD" को परीक्षकों ने सराहा था और पीएचडी की सिफारिश भी की थी। इसके बावजूद, डीन ने विश्वविद्यालय को एक पत्र लिखकर दावा किया कि विपिन को संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है, जबकि विश्वविद्यालय के नियम स्पष्ट रूप से अंग्रेजी या मलयालम में शोध करने की अनुमति देते हैं। विपिन का आरोप है कि वे वामपंथी विचारधारा से जुड़े हैं, जबकि डीन संघ परिवार से जुड़े शिक्षक संगठन की सक्रिय सदस्य हैं और यही कारण है कि उनके साथ जातिवादी और वैचारिक पक्षपात किया जा रहा है। विपिन सवाल उठाते हैं, “मेरी राजनीतिक विचारधारा पर सवाल किए जा रहे हैं, लेकिन उनकी विचारधारा पर कोई चुप्पी क्यों है?”
शोधार्थी ने अपने फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय की डीन डॉ. सी.एन. विजयकुमारी ने उनके खिलाफ यह झूठी रिपोर्ट दी है कि उन्हें संस्कृत पढ़नी और लिखनी नहीं आती। शोधार्थी के अनुसार, यह आरोप पूरी तरह निराधार और मनगढ़ंत है।
मकतूब की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने आरोप लगाया कि डॉ. विजयकुमारी द्वारा निर्देशित और विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित बोर्ड द्वारा जांच किए जाने के बावजूद, एम.फिल. की डिग्री वैध तरीके से प्राप्त करने के बावजूद, उसी प्रोफेसर ने अंतिम चरण में उनकी पीएचडी में बाधा डाली।
यह आरोप लगाते हुए कि यह मामला जातिगत पूर्वाग्रह से जुड़ा है, विपिन ने पूछा, “अगर मुझे संस्कृत नहीं आती, तो उन्होंने किस आधार पर मेरा मार्गदर्शन किया और मेरी एम.फिल. की डिग्री स्वीकृत की? अगर मैं धोखेबाज हूं, तो क्या यह उन्हें दोषी नहीं ठहराता? या मैं एम.फिल. के बाद किसी तरह संस्कृत भूल गया?”
उन्होंने उन पर जातिवादी टिप्पणी करने और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के पूर्व सदस्य के रूप में अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि का फायदा उठाकर उन्हें निशाना बनाने का भी आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि उनके पास श्री शंकराचार्य विश्वविद्यालय और केरल विश्वविद्यालय से संस्कृत में डिग्रियां हैं और उन्होंने उन मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया जिनमें उन्हें रिसर्च स्कॉलर्स यूनियन का “पूर्व महासचिव” बताया गया था।
विपिन ने स्पष्ट किया कि उन्होंने रिसर्च स्कॉलर्स यूनियन के चुनावों के लिए कभी नामांकन दाखिल नहीं किया, फिर भी मीडिया रिपोर्टों में उन्हें यूनियन का महासचिव बताया गया।
उन्होंने कहा, “मेरी और डॉ. विजयकुमारी — दोनों की राजनीतिक मान्यताएं हैं। मेरी वामपंथी हैं; उनकी आरएसएस-भाजपा की राजनीति से जुड़ी हैं। सिर्फ मेरी राजनीति पर ही सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं, उनकी नहीं?”
उन्होंने पूछा, “जब उन्हें संत के रूप में बताया जा रहा है, तो मैं अपराधी कैसे हो सकता हूँ? क्या अब समाचारों में तथ्यों का कोई महत्व नहीं रह गया है?”
विपिन विजयन ने बताया कि उनके पीएचडी शोध प्रबंध, सद्गुरुसर्वसम: एक अध्ययन, जो विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार अंग्रेजी में लिखा गया था, का दो विशेषज्ञों — इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल प्रताप गिरि और श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपति के प्रोफेसर जी. पद्मनाभम — द्वारा सकारात्मक मूल्यांकन किया गया था। दोनों को कुलपति द्वारा नियुक्त किया गया था।
उन्होंने कहा कि तीनों परीक्षकों ने डिग्री देने की सिफारिश की थी और खुले बचाव की अध्यक्षता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल प्रताप गिरि ने की थी।
उन्होंने एक वीडियो भी दिखाया जिसमें अध्यक्ष परीक्षक रिपोर्ट पढ़ते हुए, आधिकारिक मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत उनकी पीएचडी की डिग्री देने की औपचारिक सिफारिश करते दिखाई दे रहे थे।
उन्होंने आरोप लगाया कि इसके बावजूद, डीन ने उनकी फाइल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह "संस्कृत में एक शब्द भी बोलने के योग्य नहीं हैं।"
उन्होंने सवाल उठाया कि डीन के पास ऐसा कौन-सा नैतिक, कानूनी या शैक्षणिक अधिकार है कि वह उस थीसिस के खिलाफ आरोप लगाएं, जिसकी जांच और अनुमोदन पहले ही अकादमिक विशेषज्ञों द्वारा किया जा चुका है।
उन्होंने कहा, "डीन अपने अधिकार का अतिक्रमण कर रही हैं और कुलपति के फ़ैसलों को भी चुनौती दे रही हैं।"
विजयन ने यह भी दावा किया कि उन्होंने अपमानजनक टिप्पणियां कीं, जैसे कि, "यह विभाग अशुद्ध हो गया है, इसे फिर से शुद्ध किया जाना चाहिए।"
विजयन ने कहा कि उन्होंने अपने शोध के सपनों की रक्षा के लिए चुपचाप बार-बार अपमान सहा, लेकिन अब कानूनी कार्रवाई करने की योजना बना रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मैंने बहुत कुछ सहा है। डीन का जातिगत पूर्वाग्रह और पद का दुरुपयोग यूं ही नहीं रुक सकता।" उन्होंने डॉ. विजयकुमारी के कार्यों को "डीन के गरिमापूर्ण पद के अयोग्य" बताया और उन्हें पद से तत्काल हटाने की मांग की।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि उनके शोध प्रबंध से जुड़ी गोपनीय रिपोर्ट मीडिया तक कैसे पहुंची और उनकी शैक्षणिक प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए एक सुनियोजित प्रयास का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, "जो लोग विश्वविद्यालय की रक्षा करने का दावा करते हैं, वे अब मुझ पर हमला करने के लिए खूंखार जानवरों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, "किसी भी छात्र को फिर से सत्ता के इस तरह के दुरुपयोग का शिकार या पीड़ित नहीं बनाया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय की गौरवशाली विरासत इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
अंशकालिक नौकरियों से अपना गुजारा करने वाले विजयन ने कहा कि उनकी डिग्री मिलने में हुई देरी ने उनकी जिंदगी को तहस-नहस कर दिया है।
उन्होंने कहा, "पीएचडी मेरा सपना था। 'संस्कृत न जानने वाला' का तमगा मुझे हमेशा सताता रहेगा। डीन की अनुशासन के रक्षक के रूप में प्रशंसा की जाएगी, जबकि मेरे वर्षों के संघर्ष को कुचल दिया गया है। मेरा जीवन अंधकार में डूब गया है।"
उन्होंने कहा, "डीन के एक ही पत्र से मेरा पूरा जीवन बर्बाद हो गया है।" उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि कड़ी मेहनत से हासिल मेरी सभी डिग्रियां अब बेकार हो गई हैं।"
एफआईआर दर्ज
विपिन विजयन की शिकायत पर करियावट्टम कैंपस में ओरिएंटल स्टडीज फैकल्टी की डीन और संस्कृत विभाग की प्रमुख डॉ. सी.एन. विजयकुमारी के खिलाफ श्रीकारयम पुलिस ने जातिवादी अपमान का मामला दर्ज किया है।
शनिवार रात देर से दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, विजयकुमारी ने 15 अक्टूबर को हुए ओपन डिफेंस के बाद विपिन के थीसिस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। बाद में जब विपिन ने उन्हें दोबारा पीएचडी प्रक्रिया पूरी करने के लिए दस्तावेज पर साइन करने का अनुरोध किया, तो आरोपी ने अन्य शिक्षकों और छात्रों की मौजूदगी में जातिवादी टिप्पणियां कीं।
शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि विजयकुमारी 2015 से ही विपिन के एमफिल के दौरान उनकी देखरेख में इसी तरह की जाति-आधारित टिप्पणियां करती रही हैं। एफआईआर के मुताबिक विजयकुमारी ने शिकायतकर्ता से कहा कि निचली जातियों के लोग संस्कृत नहीं सीख सकते और उनके कमरे में आने के बाद वह पानी से सफाई करती हैं।
पुलिस ने बताया कि मामला SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(र) और 3(1)(एस) के तहत दर्ज किया गया है, जो सार्वजनिक दृष्टि में SC/ST समुदाय के सदस्य को जाति नाम से जानबूझकर अपमानित और गाली देने के अपराध से संबंधित है। अधिकारियों ने कहा कि ये अपराध गैर-जमानती हैं, और गिरफ्तारी से पहले विस्तृत जांच की जाएगी।
पहले जब विवाद सामने आया था, तो विजयकुमारी ने जातिवादी टिप्पणियां करने से इनकार किया था और दावा किया था कि उन्होंने थीसिस पर साइन करने से इसलिए मना किया क्योंकि शोधार्थी को संस्कृत का पर्याप्त ज्ञान नहीं था और उसके काम में कई खामियां थीं।
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