शोधकर्ताओं ने चेताया है कि ये डिजिटल हमले अब तेजी से वास्तविक दुनिया तक फैल रहे हैं। हालिया अध्ययन से पता चला है कि 14% महिला पत्रकारों को ऑनलाइन धमकियों के कारण वास्तविक जीवन में हिंसा का सामना करना पड़ा है।

Photo Credit: freepressunlimited.org
यूनेस्को ने आगाह किया है कि करीब तीन-चौथाई महिला पत्रकार ऑनलाइन हिंसा की शिकार रही हैं, और अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का इस्तेमाल डीपफेक से लेकर डॉक्सिंग तक — इन खतरों को और गंभीर बना रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की इस सांस्कृतिक संस्था ने बताया है कि सर्वेक्षण में शामिल हर चार में से एक महिला पत्रकार को शारीरिक हमले या जान से मारने की धमकियां मिली हैं।
संगठन ने बढ़ते इस दुर्व्यवहार से निपटने के लिए एक नया अभियान शुरू किया है।
यह ऑनलाइन हिंसा — जिसमें लैंगिक दुष्प्रचार, निगरानी और लक्षित उत्पीड़न शामिल हैं — महिला पत्रकारों को डराने, चुप कराने और उनकी छवि धूमिल करने के उद्देश्य से की जा रही है।
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ये डिजिटल हमले अब तेजी से वास्तविक दुनिया तक फैल रहे हैं। हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि 14% महिला पत्रकारों को ऑनलाइन धमकियों के परिणामस्वरूप वास्तविक जीवन में हिंसा झेलनी पड़ी है।
यह चेतावनी रविवार, 2 नवंबर को — पत्रकारों के खिलाफ अपराधों में दंडमुक्ति समाप्त करने के अंतरराष्ट्रीय दिवस से ठीक पहले जारी की गई है।
गौरतलब है कि यह समस्या वैश्विक स्तर पर सामने आ रही है। यूक्रेन में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 81% महिला पत्रकारों ने ऑनलाइन हिंसा का सामना किया है, जबकि जिम्बाब्वे में यह संख्या 63% रही। अक्सर ये धमकियां पत्रकारों के परिवार के सदस्यों तक पहुंच जाती हैं और आगे चलकर ऑफलाइन उत्पीड़न का रूप ले लेती हैं।
उल्लेखनीय है कि यूनेस्को का अभियान ‘CTRL + ALT + MUTE’ नीतिगत पहलों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से एआई के जरिए बढ़ते ऑनलाइन उत्पीड़न का मुकाबला करने का लक्ष्य रखता है।
द वायर ने लिखा, इस संबंध में एजेंसी ने एक बयान में कहा, “जैसे-जैसे जनरेटिव एआई अधिक शक्तिशाली बनता जा रहा है, वैसे-वैसे महिला पत्रकारों और सभी महिलाओं की आवाज़ दबाने वाले डिजिटल उपकरण भी और अधिक प्रभावशाली होते जा रहे हैं।”
संगठन का कहना है कि मीडिया में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना, सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनिवार्य है।
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यूनेस्को ने आगाह किया है कि करीब तीन-चौथाई महिला पत्रकार ऑनलाइन हिंसा की शिकार रही हैं, और अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का इस्तेमाल डीपफेक से लेकर डॉक्सिंग तक — इन खतरों को और गंभीर बना रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र की इस सांस्कृतिक संस्था ने बताया है कि सर्वेक्षण में शामिल हर चार में से एक महिला पत्रकार को शारीरिक हमले या जान से मारने की धमकियां मिली हैं।
संगठन ने बढ़ते इस दुर्व्यवहार से निपटने के लिए एक नया अभियान शुरू किया है।
यह ऑनलाइन हिंसा — जिसमें लैंगिक दुष्प्रचार, निगरानी और लक्षित उत्पीड़न शामिल हैं — महिला पत्रकारों को डराने, चुप कराने और उनकी छवि धूमिल करने के उद्देश्य से की जा रही है।
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ये डिजिटल हमले अब तेजी से वास्तविक दुनिया तक फैल रहे हैं। हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि 14% महिला पत्रकारों को ऑनलाइन धमकियों के परिणामस्वरूप वास्तविक जीवन में हिंसा झेलनी पड़ी है।
यह चेतावनी रविवार, 2 नवंबर को — पत्रकारों के खिलाफ अपराधों में दंडमुक्ति समाप्त करने के अंतरराष्ट्रीय दिवस से ठीक पहले जारी की गई है।
गौरतलब है कि यह समस्या वैश्विक स्तर पर सामने आ रही है। यूक्रेन में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 81% महिला पत्रकारों ने ऑनलाइन हिंसा का सामना किया है, जबकि जिम्बाब्वे में यह संख्या 63% रही। अक्सर ये धमकियां पत्रकारों के परिवार के सदस्यों तक पहुंच जाती हैं और आगे चलकर ऑफलाइन उत्पीड़न का रूप ले लेती हैं।
उल्लेखनीय है कि यूनेस्को का अभियान ‘CTRL + ALT + MUTE’ नीतिगत पहलों और जागरूकता अभियानों के माध्यम से एआई के जरिए बढ़ते ऑनलाइन उत्पीड़न का मुकाबला करने का लक्ष्य रखता है।
द वायर ने लिखा, इस संबंध में एजेंसी ने एक बयान में कहा, “जैसे-जैसे जनरेटिव एआई अधिक शक्तिशाली बनता जा रहा है, वैसे-वैसे महिला पत्रकारों और सभी महिलाओं की आवाज़ दबाने वाले डिजिटल उपकरण भी और अधिक प्रभावशाली होते जा रहे हैं।”
संगठन का कहना है कि मीडिया में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना, सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनिवार्य है।
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