गरबा कार्यक्रमों में तिलक, पहचान पत्र की जांच और धार्मिक भेदभाव: क्या हो रहा है?

Written by sabrang india | Published on: September 24, 2025
नवरात्रि शुरू होते ही खुशियां फीकी पड़ने लगी हैं। आधार कार्ड की जांच, तिलक लगाने की बातें और मुस्लिमों को अंदर आने से रोकने की मांगों की वजह से त्योहार वाले मैदान अब अलगाव के माहौल में बदलते जा रहे हैं।



महाराष्ट्र और पूरे भारत में जहां त्योहार का मौसम होता है और इस दौरान माहौल आमतौर पर डांडिया की लयबद्ध थाप, रंग-बिरंगे घाघरे और सामूहिक उल्लास से सराबोर रहता है, वहीं इस साल का उत्सव एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया है। इसे कई लोग विभाजन की कोशिश मानते हैं। 22 सितंबर को नवरात्रि उत्सव शुरू होने से पहले ही, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी समूहों ने राज्य भर के गरबा और डांडिया आयोजकों को निर्देश देना शुरू कर दिया था। उनका सीधा संदेश था कि गैर-हिंदुओं, खासकर मुसलमानों, को इसमें भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि बहिष्कार का यह प्रयास सिर्फ धार्मिक पहचान का मामला नहीं है, बल्कि नगर निगम चुनावों से पहले सांप्रदायिक तनाव भड़काने की एक सोची-समझी साजिश है। इस बात पर ध्यान केंद्रित करके कि कौन जश्न मना सकता है, यह नैरेटिव लोगों का ध्यान जलभराव, टूटी सड़कें और उद्योगों के लगातार स्थानांतरण जैसी रोजमर्रा की चिंताओं से हटाने का काम करता है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो आम लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं।



भारत के त्योहारों को हथियार बनाने का यह चलन पिछले एक दशक से देखा जा रहा है। पिछले साल, अक्टूबर 2024 में, सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने दस्तावेज़ तैयार किया था कि कैसे गुजरात के कच्छ जिले में एक दलित परिवार को कथित तौर पर गरबा कार्यक्रम में शामिल होने पर ऊंची जाति के लोगों ने पीटा था।

विहिप की सांप्रदायिक मांग: आधार कार्ड की जांच अनिवार्य हो और प्रतिभागियों को तिलक लगाया जाए

सामुदायिक उत्सवों की प्रकृति को नए सिरे से परिभाषित करने के फैसले के तहत, महाराष्ट्र के नवरात्रि आयोजनों के लिए विहिप की सलाह में बहिष्कार का एक स्पष्ट प्रोटोकॉल निर्धारित किया गया था। यह केवल एक सुझाव नहीं था, बल्कि इसे लागू करने के लिए विस्तृत निर्देश थे, जिनमें उत्सव स्थलों के प्रवेश बिंदुओं को धार्मिक पहचान की जांच चौकियों में बदल दिया गया था।

इस नए नियम का पहला चरण आधार कार्ड के जरिए पहचान का अनिवार्य सत्यापन है। आयोजकों को बताया गया कि यह तरीका यह सुनिश्चित करने के लिए है कि केवल हिंदू समुदाय के लोग ही प्रवेश पा सकें। इस जांच के बाद, दूसरा चरण हर प्रतिभागी के माथे पर तिलक लगाना था। जो पारंपरिक टीका सदियों से स्वागत और धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता रहा है, उसे इस बार गरबा कार्यक्रमों में एक पहचान-चिह्न के तौर पर इस्तेमाल किया गया। त्योहार में शामिल होने से पहले, कुछ आयोजनों में इसी टीके को अंतिम "स्वीकृति की मुहर" के रूप में इस्तेमाल किया गया, यह तय करने के लिए कि कोई व्यक्ति किस धर्म का है और उसे अंदर आने दिया जाए या नहीं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रवक्ता श्रीराज नायर ने गरबा-डांडिया कार्यक्रमों से गैर-हिंदुओं को दूर रखने के निर्णय के पीछे का कारण स्पष्ट शब्दों में बताया। नायर ने कहा, “नवरात्रि केवल मौज-मस्ती का त्योहार नहीं है। यह एक धार्मिक आयोजन है, जिसमें भक्त देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। इसलिए गैर-हिंदुओं को गरबा-डांडिया कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने देना चाहिए।”

नायर ने गरबा कार्यक्रमों से गैर-हिंदुओं को बाहर रखने के अभियान को धार्मिक दृष्टिकोण से उचित ठहराते हुए मूर्ति-पूजा के आधार पर सवाल उठाया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नायर ने कहा,
“यह त्योहार मूर्ति-पूजा पर आधारित है। ऐसे में जो लोग मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं करते, उनकी इसमें मौजूदगी पर सवाल उठना लाजमी है।”

बात यहीं नहीं रुकी। उन्होंने एक स्पष्ट और विवादास्पद प्रस्ताव भी दिया, “अगर मुस्लिम समुदाय के लोग इतनी ही उत्सुकता से गरबा में शामिल होना चाहते हैं, तो पहले हिंदू धर्म अपनाएं और पूरे मन से हमारे धर्म को स्वीकार करें। आखिर उनके पूर्वज भी हिंदू ही थे। वे तो बाद में धर्म बदलने वाले हैं। अगर वे हिंदू धर्म स्वीकार करते हैं, तो हमें कोई आपत्ति नहीं।”

16 सितंबर को हमने रिपोर्ट किया था कि कैसे दक्षिणपंथी संगठन एएचपी-राष्ट्रीय बजरंग दल ने 'लव जिहाद' का हवाला देते हुए जबलपुर में नवरात्रि के गरबा में मुसलमानों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। मध्य प्रदेश के गुना समेत कई जगहों से ऐसी ही नकारात्मक मांगों को दोहराते हुए, इन संगठनों ने आधार जांच की मांग की थी और प्रशासन को धमकी दी थी कि अगर तनाव बढ़ा तो परिणाम भुगतने होंगे!!

वैचारिक औचित्य: 'लव जिहाद' से "धार्मिक बहस" तक

विहिप के अभियान का आधार "लव जिहाद" षड्यंत्र सिद्धांत है—एक अप्रमाणित दावा कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को इस्लाम में धर्मांतरित करने के उद्देश्य से प्रेम संबंधों में फंसाने की एक सुनियोजित साजिश में लगे हुए हैं। यह नैरेटिव दक्षिणपंथी समूहों के लिए हमेशा का विषय रहा है और नवरात्रि, जिसमें युवाओं की बड़ी भीड़ होती है, को ऐसी गतिविधियों के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

पिछले वर्षों में, विहिप ने प्रमुख गरबा स्थलों की सक्रिय निगरानी की है, मौजूद लोगों के आधार कार्ड की जांच की और धार्मिक पहचान के रूप में तिलक लगाया—इस साल भी यही तरीका जारी रखने का इरादा है।

हालांकि, वरिष्ठ विहिप सदस्य प्रशांत तित्रे ने कहा, “हमारा रुख स्पष्ट है और हमारा अभियान इस साल भी जारी रहेगा।” उन्होंने जोर देकर कहा, “गरबा-डांडिया आयोजकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर प्रतिभागी के आधार कार्ड की सख्ती से जांच के बाद केवल हिंदुओं को ही अनुमति दी जाए।” (टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट)।

विहिप ने आगे आरोप लगाया कि नवरात्रि समारोहों का दुरुपयोग "लव जिहाद" को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है और दावा किया कि कई हिंदू महिलाओं और लड़कियों को दूसरे धर्मों के लोगों ने प्रेम के नाम पर धोखा दिया है। बड़ी संख्या में परिवारों के शामिल होने के कारण, समूह का तर्क है कि ऐसे आयोजन "असामाजिक और आपराधिक तत्वों" द्वारा शोषण का शिकार हो सकते हैं। विवादों और संभावित तनाव को देखते हुए, विहिप ने एहतियातन सभी गरबा आयोजनों में अनिवार्य CCTV निगरानी और पुलिस सुरक्षा की मांग की है।

कुरान में मूर्ति पूजा की सख्त मनाही है, ऐसे लोग गरबा में क्यों आएं? भाजपा ने पूछा

महाराष्ट्र भाजपा प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने X (पहले ट्विटर) पर कहा कि यह प्रतिबंध दरअसल इस्लाम का सम्मान करने का प्रयास है। उन्होंने लिखा, “कुरान मूर्ति-पूजा की सख्त मनाही करता है (सूरह अल-अंकबूत - 29:25)। इसलिए, जिनके धार्मिक ग्रंथ खुद मूर्ति-पूजा पर प्रतिबंध लगाते हैं, उनके लिए हिंदुओं के गरबा में भाग लेना उनकी अपनी आस्था का अपमान है! फिर भी - ऐसे लोग गरबा में क्यों आएं?”

उन्होंने बहिष्कार के रुख को शत्रुतापूर्ण कृत्य के रूप में नहीं, बल्कि "धर्मों के प्रति सम्मान बनाए रखने" के रूप में पेश किया और तर्क दिया कि “‘गरबा में केवल हिंदू’ - यह पहल समाज में सद्भाव और आपसी सम्मान को बढ़ावा देती है।”



राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित नफरती अभियान

महाराष्ट्र में यह अभियान कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि कई अन्य राज्यों में भी लागू की जा रही एक योजना है, जो एक समन्वित राष्ट्रीय रणनीति का संकेत देती है।

मध्य प्रदेश और राजस्थान के शहरों में, बहिष्कार का संदेश सार्वजनिक और आधिकारिक रूप से प्रसारित किया गया। भोपाल, खंडवा, कोटा और भीलवाड़ा में आयोजकों ने शहर के चौराहों और आयोजन स्थलों के प्रवेश द्वारों पर बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लगाए, जिनमें गैर-हिंदुओं को गरबा पंडालों में प्रवेश करने से साफ तौर पर मना किया गया।

जबलपुर, मध्य प्रदेश

13 सितंबर को नवरात्रि शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले, अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद (एएचपी) और राष्ट्रीय बजरंग दल के सदस्यों ने ओमती में औपचारिक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर गरबा कार्यक्रमों में मुसलमानों की भागीदारी, आयोजन और उपस्थिति पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की। "लव जिहाद" और बॉलीवुड गानों द्वारा "सनातन धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने" का हवाला देते हुए, उन्होंने चेतावनी दी कि किसी भी "सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि" के लिए प्रशासन जिम्मेदार होगा।



सतना, मध्य प्रदेश

18 सितंबर को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्य सड़कों पर उतरे, हनुमान चालीसा का पाठ किया, टायर जलाए और सड़कें जाम कर दीं। उनकी मांगों में आसपास के मीट बाजारों को हटाना (जिन पर उनका आरोप था कि वे अवैध हैं) और जिले में होने वाले सभी गरबा कार्यक्रमों में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर सख्ती से प्रतिबंध लगाना शामिल था। उन्होंने जिला अधिकारियों को अपनी मांगों से संबंधित एक ज्ञापन भी सौंपा।



सपा नेता ने गरबा आयोजनों में मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध का समर्थन किया

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी के नेता एस.टी. हसन ने प्रतिबंध का स्वागत करते हुए एक अलग दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा,
“मैं इस कदम का स्वागत करता हूं क्योंकि नवरात्रि एक धार्मिक आयोजन है। इस्लाम में मूर्ति-पूजा स्वीकार्य नहीं है, इसलिए अगर कोई मुस्लिम भाई वहां जाता है, तो वह अपनी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ काम करेगा। जैसा कि मैंने पहले कहा है, मुस्लिम युवाओं को हिंदू लड़कियों को अपनी बहन मानना चाहिए...”



हालांकि, पिछले साल झांसी, इंदौर, देवास और गुना में हुई घटनाएं यह भी दर्शाती हैं कि यह सिर्फ अचानक भड़की घटनाओं का सिलसिला नहीं है, बल्कि यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति बनती जा रही है। कई भाजपा शासित राज्यों में, नवरात्रि जैसे त्योहारों को बहिष्कार का मंच बनाया जा रहा है। धार्मिक भावनाओं की रक्षा के नाम पर मुस्लिम कलाकारों और युवाओं को निशाना बनाया गया, उन्हें प्रदर्शन से रोका गया, परेशान किया गया और यहां तक कि उन पर हमले भी किए गए। ये कोई अलग-थलग मामले नहीं हैं—ये कुछ समुदायों को सार्वजनिक और सांस्कृतिक स्थलों से बाहर करने की गहरी कोशिशों को दर्शाते हैं। त्योहार, जो कभी लोगों को एक साथ लाते थे, अब धीरे-धीरे लोगों को अलग करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं।

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