सिस्टम की कमजोरी या जानबूझकर रुकावट? महाराष्ट्र और कर्नाटक में मतदाता सूची से छेड़छाड़ की जांच क्यों है ठप?  

Written by AMAN KHAN | Published on: September 23, 2025
तुलजापुर, पनवेल, उरण (महाराष्ट्र) और आलंद (कर्नाटक) में हजारों डुप्लिकेट और फर्जी मतदाता आवेदन से जुड़ी चुनावी अनियमितताओं की घटनाओं ने एक चुनौतीपूर्ण बहु-राज्यीय योजना की ओर इशारा करती है, जो मतदाता सूचियों में छेड़छाड़ करने के लिए की गई है। हालांकि एफआईआर दर्ज की गई हैं और हाईकोर्ट का आदेश भी जारी हुआ है लेकिन जांच को व्यवस्थित तरीके से रोका और टालमटोल किया जा रहा है।



महाराष्ट्र के धाराशिव जिले की तुलजापुर विधानसभा सीट हाल ही में मतदाता सूची में गड़बड़ी की वजह से सुर्खियों में है। मतदाता सूची में हेराफेरी की यह कोशिश किसी तकनीकी डेटा विश्लेषण से नहीं, बल्कि एक पारंपरिक जमीनी प्रक्रिया-‘चावडी वाचन’ यानी मतदाता सूची को सार्वजनिक रूप से पढ़ने-के ज़रिये उजागर हुई। इस तरह की प्रक्रिया जिले के करीब 100 मतदान केंद्रों पर आयोजित किया गई थी, जिसमें स्थानीय नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता शामिल हुए। इसी दौरान सतर्क नागरिकों ने मतदाता सूची में संदिग्ध रूप से बड़ी संख्या में नए नामों के पंजीकरण को देखा। 

तुलजापुर: 6,000 फर्जी वोटरों की गुप्त तरीके से वृद्धि

तुलजापुर विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची से जुड़ी बड़ी गड़बड़ी का खुलासा उस वक्त हुआ जब शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) के पदाधिकारियों और सांसद ओमप्रकाश राजे निम्बालकर ने औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। शिकायत के बाद सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (AERO) अरविंद बोलांगे ने प्रारंभिक जांच शुरू की। जांच के नतीजे चौंकाने वाले थे क्योंकि 6,000 से ज्यादा ऑनलाइन आवेदन फर्जी पाए गए, जो नए मतदाताओं को जोड़ने के लिए किए गए थे। 

इन आवेदनों के लिए जाली दस्तावेज लगाए गए जिनमें फर्जी आधार कार्ड, फोटो और गलत नाम व पते शामिल थे। 



ओमप्रकाश राजे निम्बालकर का निर्वाचन आयोग को दिनांक 21.08.2025 का पत्र

इस अपराध की गंभीरता को देखते हुए, सहायक निर्वाचक नामावली रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (AERO) ने तत्परता दिखाते हुए 17 अक्टूबर 2024 को तुलजापुर पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR क्रमांक 476/2024) दर्ज करवाई। खास बात यह है कि यह एफआईआर किसी अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ सामान्य शिकायत नहीं थी, बल्कि इसमें ठोस जानकारी दी गई थी जैसे कि उन 40 व्यक्तियों के नाम और मोबाइल नंबर, जिन्होंने इन फर्जी ऑनलाइन आवेदनों के बैच सबमिट किए थे। इतनी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध होने के बाद, यह अपेक्षा की जा रही थी कि दोषियों की जल्द पहचान कर उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा।

हालांकि, एफआईआर दर्ज किए जाने के दस महीने बीत चुके हैं, लेकिन जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। जिन 40 व्यक्तियों के नाम एफआईआर में स्पष्ट रूप से दर्ज थे, उन्हें अब तक पूछताछ के लिए भी तलब नहीं किया गया है, गिरफ्तारी की तो बात ही दूर है। शिकायत दर्ज किए जाने के समय जो सुराग स्पष्ट और ताजा थे, उन्हें अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के अधीन आने वाली पुलिस की यह स्पष्ट निष्क्रियता अब जानबूझकर की गई बाधा के रूप में देखी जा रही है, और इस पर पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोप लग रहे हैं।

श्री निम्बालकर ने इस संस्थागत निष्क्रियता को लेकर लगातार मुखर रुख अपनाया है। उन्होंने कहा, “राजनीतिक दबाव के कारण किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है” और यह संकेत दिया कि दोषियों को बचाने के लिए जानबूझकर प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने इस मामले को उच्च स्तर पर उठाते हुए भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त को एक ज्ञापन सौंपा है। अपने पत्राचार में उन्होंने “जानबूझकर की गई देरी” का खुलासा करते हुए निर्वाचन आयोग से जवाबदेही की मांग की है।




पनवेल और उरण: 85,000 मतदाताओं की रहस्यमयी सूची 

जहां तुलजापुर में मतदाताओं की फर्जी प्रविष्टियां दर्ज की गईं, वहीं रायगढ़ जिले की तटीय विधानसभा सीटों-पनवेल और उरण- में चुनावी धांधली का एक अलग, लेकिन उतना ही गंभीर रूप सामने आया जहां पहले से मौजूद मतदाताओं का बड़े पैमाने पर डुप्लीकेशन देखा गया। इस भारी गड़बड़ी का खुलासा किसी चुनाव अधिकारी ने नहीं, बल्कि पीजैंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (PWP) के उम्मीदवार श्री बलाराम पाटिल ने अपनी कड़ी मेहनत और पड़ताल से किया।

जांच में सामने आया बड़ा डुप्लीकेशन

2024 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारी के दौरान, विपक्षी महा विकास आघाड़ी (MVA) की लोकसभा चुनावों में मजबूत पकड़ से प्रेरित होकर, पाटिल की टीम ने मतदाता सूची में अनियमितताओं की अफवाहों की पड़ताल शुरू की। उनकी जांच में पनवेल और उसके आस-पास के क्षेत्रों में कुल 85,211 डुप्लिकेट मतदाता प्रविष्टियां सामने आईं। इस मामलों ने कई चिंताओं को बढ़ाया क्योंकि;

● पनवेल विधानसभा क्षेत्र: 25,855 नाम दो बार, तीन बार या यहां तक कि चार बार भी दर्ज पाए गए।
● उरण विधानसभा क्षेत्र: 27,275 मतदाता एक से ज्यादा बार पंजीकृत पाए गए।
● ऐरोली विधानसभा क्षेत्र: 16,096 डुप्लीकेट नाम पाए गए।
● बेलापुर विधानसभा क्षेत्र: पनवेल विधानसभा क्षेत्र में भी 15,397 मतदाता मौजूद थे।

इस बड़े सबूत के साथ, पाटिल ने चुनाव के रिटर्निंग ऑफिसर (RO)  रहे पनवेल के उप-प्रभागीय अधिकारी (SDO) से संपर्क किया और इन डुप्लिकेट प्रविष्टियों को तुरंत हटाने का अनुरोध किया। करीब 15 दिनों तक, उनकी इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और उन्हें अनदेखा किया गया।

SDO की निष्क्रियता से निराश होकर, पाटिल ने 26 सितंबर 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। अदालत ने शिकायत की गंभीरता को समझा और 7 अक्टूबर 2024 को एक त्वरित निर्देश जारी करते हुए SDO को दो सप्ताह के भीतर “उचित निर्णय” लेने का आदेश दिया। 

बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश 07.10.2024 यहां पढ़ा जा सकता है



जवाबदेही की राह में प्रक्रियागत अड़चनें 

जैसे-जैसे हाईकोर्ट की समय सीमा नजदीक आई, राज्य के दूसरे हिस्से से एक सुविधाजनक मिसाल सामने आई। मुक्तिनगर निर्वाचन क्षेत्र के शिवसेना विधायक चंद्रकांत पाटिल ने मतदाता सूची ठीक करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के औरंगाबाद बेंच से इसी प्रकार की याचिका दायर की थी। 

हालांकि, उनकी याचिका विधानसभा चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बाद दायर की गई थी। 18 अक्टूबर 2024 को अदालत ने उनका आवेदन खारिज कर दिया और तर्क दिया कि, “चूंकि अब चुनाव घोषित हो चुके हैं, इसलिए यह संभव नहीं होगा… कि चुनाव आयोग मतदाता सूची को सुधार सके।” फ्रंटलाइन ने ये रिपोर्ट प्रकाशित की।

फ्रंटलाइन के अनुसार, पनवेल के उप-प्रभागीय अधिकारी (SDO) ने इस फैसले का फायदा उठाया। 23 अक्टूबर 2024 को, मुक्तिनगर आदेश को आधार बनाते हुए, SDO ने बलराम पाटिल की याचिका को भी खारिज कर दिया, जबकि पाटिल ने चुनाव कार्यक्रम घोषित होने से बहुत पहले ही अधिकारियों से संपर्क किया था और अदालत का रूख किया था। इस तरह, 85,000 से ज्यादा डुप्लिकेट प्रविष्टियों से भरी हुई दोषपूर्ण मतदाता सूची यूं ही छोड़ दी गई।

चुनाव 20 नवंबर को हुए और परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए गए जिसमें भाजपा के प्रशांत ठाकुर को 1,83,931 वोटों के साथ विजेता घोषित किया गया, उन्होंने पाटिल को 51,091 वोटों के अंतर से हराया। परिणाम को जो पाटिल गलत मानते थे, स्वीकार करने से इनकार करते हुए उन्होंने दूसरी, गहन जांच शुरू की।

धोखाधड़ी का पर्दाफाश, बूथ दर बूथ

फ्रंटलाइन के अनुसार, पाटिल ने सबसे पहले पनवेल, उरण, ऐरोली और बेलापुर के उप-प्रभागीय अधिकारियों (SDOs) से आधिकारिक अंकित मतदाता सूची मांगी -वे सूची जो मतदान अधिकारियों द्वारा मतदान के समय मतदाताओं पर टिक लगाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। उनके अनुरोधों को ठुकरा दिया गया, क्योंकि पनवेल SDO ने दावा किया कि बिना अदालत के आदेश के यह डेटा साझा नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद, पाटिल ने अपनी बूथ स्तर सहायक (BLA) की अपनी टीम की मदद ली, जिन्होंने मतदान के दिन से अपनी खुद की अंकित मतदाता सूचियां सहेज कर रखी थीं।

उनकी टीम ने पनवेल के 574 मतदान बूथों के आंकड़ों को डिजिटाइज और क्रॉस-रेफरेंस करने का मुश्किल काम शुरू किया। अपनी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 490 बूथों के आंकड़ों का विश्लेषण किया था और 11,628 ऐसे मतों का स्पष्ट सबूत पाया जो एक ही व्यक्ति द्वारा दो या उससे ज्यादा बार अलग-अलग मतदाता पहचान पत्र (EPIC) का इस्तेमाल करके डाले गए थे।

यहां कुछ खुलेआम दिखने वाले उदाहरण हैं:

● प्रदीप पोराजी, उम्र 23 वर्ष, EPIC आईडी RSC6522387 के साथ, बूथ नंबर 4 पर मतदान किया। वही प्रदीप पोराजी, जिसकी तस्वीर और पिता का नाम (रामु पोराजी) भी समान था, लेकिन उम्र 22 वर्ष और EPIC आईडी RSC5081641 के साथ, बूथ नंबर 310 पर भी मतदान किया। 

● प्राची डोंगरे, उम्र 18 वर्ष, बूथ नंबर 1 पर EPIC आईडी RSC6376198 के साथ पंजीकृत थीं। पूरी तरह समान विवरण वाली वही मतदाता बूथ नंबर 2 पर EPIC आईडी RSC6381800 के साथ भी पंजीकृत थी। 

● नेहा विवेक कुलकर्णी, उम्र 27 वर्ष, बूथ नंबर 4 पर EPIC आईडी UZZ9331422 के साथ पंजीकृत थीं। वह बूथ नंबर 2 पर भी 28 वर्ष की उम्र के साथ EPIC आईडी RSC6678189 के तहत पंजीकृत थीं। 

पाटिल का अनुमान है कि बाकी बूथों के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद, ऐसे कई बार डाले गए मतों की संख्या 17,000 से भी अधिक हो जाएगी। यह केवल प्रशासनिक त्रुटि नहीं है; बल्कि यह एक संगठित धोखाधड़ी का प्रमाण है। 

यह सबूत इकट्ठा करने के बाद, पाटिल ने जून में महाराष्ट्र के मुख्य चुनाव अधिकारी और भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त से संपर्क किया और उन्हें पूरी जानकारी भेजी। अभी तक उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। उनका चुनाव आयोग पर भरोसा पूरी तरह टूट चुका है। उन्होंने कहा, “सच कहूं तो, मुझे चुनाव आयोग से कोई उम्मीद नहीं है। मेरी शिकायत यह है कि यह गड़बड़ी बीजेपी द्वारा चुनाव आयोग की सक्रिय मदद से की जा रही है… यह चुनाव की खुलेआम लूट है।” यह रिपोर्ट में लिखा गया है।

स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जब पनवेल के उप-प्रभागीय अधिकारी (SDO) ने बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश की खुलेआम अनदेखी की। इस कार्रवाई में अदालत की अवमानना शामिल होती है और पाटिल अब औपचारिक शिकायत दर्ज कराने की योजना बना रहे हैं। पनवेल-उरण मामला कई स्तरों पर असफलताओं को उजागर करता है यानी कि रिटर्निंग ऑफिसर (RO) द्वारा मतदाता सूची साफ करने से इनकार, उसके बाद चुनाव आयोग (ECI) की तरफ से बार-बार मतदान के ठोस सबूतों की जांच न होना, और इसके बावजूद हाईकोर्ट के आदेश को नजरअंदाज किया जाना।

आलंद मामला: अवरोध का एक प्रारूप

महाराष्ट्र में जो घटनाएं हुई हैं, वे किसी अलग दुनिया की नहीं हैं। ये कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में हुए एक समान और बेहतर तरीके से दर्ज मामले की झलक हैं, जो यह दिखाता है कि इस प्रकार की चुनावी धोखाधड़ी कैसे अंजाम दी जाती है और बाद में जांच से कैसे बचाई जाती है।

रुकी हुई जांच और संरक्षण के आरोप

फरवरी 2023 में कांग्रेस उम्मीदवार श्री बी.आर. पाटिल की शिकायत के बाद, मतदाताओं के नाम हटाने के लिए 5,994 फर्जी ऑनलाइन आवेदन (फॉर्म 7) पाए जाने के बाद, अलंद में एक प्राथमिकी (संख्या 26/2023) दर्ज की गई। मामला कर्नाटक आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दिया गया, जिसने जल्द ही एक परिष्कृत ऑपरेशन के सबूत खोज निकाले, जिसमें कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले मतदाताओं को निशाना बनाकर उनके नाम हटाने के लिए ऑटोमेटेड सॉफ्वेयर, फर्जी लॉगिन और राज्य के बाहर के मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया था।

हालांकि, जांच भारत के चुनाव आयोग द्वारा खींची गई एक लकीर से टकरा गई। अपराधियों का पता लगाने के लिए, सीआईडी को महत्वपूर्ण तकनीकी डेटा की जरूरत थी यानी ऑनलाइन सबमिशन के लिए डेस्टिनेशन आईपी ऐडरेस और डेस्टिनेशन पोर्ट की आवश्यकता थी। यह जानकारी धोखाधड़ी के लिए इस्तेमाल किए गए विशिष्ट उपकरणों की पहचान कर सकती थी। कर्नाटक के सीईओ के माध्यम से चुनाव आयोग को कम से कम 18 पत्र भेजने के बावजूद, सीआईडी को यह महत्वपूर्ण डेटा नहीं मिला है। चुनाव आयोग द्वारा "कार्रवाई की जानकारी" देने से इनकार करने के कारण जांच एक साल से भी ज्यादा समय से अटकी हुई है, जिससे सीआईडी मास्टरमाइंड की पहचान नहीं कर पा रही है।

इस सबूत को विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 18 सितंबर 2025 को आयोजित विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस “वोट चोरी फैक्ट्री” में प्रस्तुत किया। इस मामले में एक बेहद संगठित प्रयास का पता चला, जिसे निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा परिभाषित किया गया: 

पहचान का दुरुपयोग: अनजान मतदाताओं जैसे सेवानिवृत्त प्राचार्य सूर्यकांत गोविन के क्रेडेंशियल्स का इस्तेमाल उनकी जानकारी के बिना बड़ी संख्या में मतदाता हटाने के अनुरोध दाखिल करने के लिए किया गया।
ऑटोमेटेड स्पीड: आवेदन “मानवीय स्तर पर असंभव” गति से दाखिल किए गए, जैसे 36 सेकंड में दो फॉर्म, जो सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के इस्तेमाल का संकेत देता है।
लक्षित तरीके से हटाना: जिन बूथों से सबसे ज्यादा मतदाता हटाने के अनुरोध आए, वे अधिकांशतः कांग्रेस के मजबूत क्षेत्र थे।

आलंद मामला एक चिंताजनक मिसाल स्थापित करता है। यह स्पष्ट रूप से एक ऐसे पैटर्न को दर्शाता है जहां बड़े पैमाने पर चुनावी अपराध की आपराधिक जांच शुरू होने के बावजूद, चुनाव आयोग (ECI) के सहयोग न करने से जांच ठप पड़ जाती है, जिससे आयोग पर दोषियों की रक्षा करने के आरोप लगते हैं।

लोकतांत्रिक विश्वसनीयता का संकट

तुलजापुर, पनवेल, उरण और आलंद के मामलों को एक साथ देखने पर भारत के चुनावी लोकतंत्र की स्थिति पर गहरी चिंता पैदा होती है। ये केवल अलग-थलग प्रशासनिक त्रुटियां नहीं हैं, बल्कि यह एक “संगठित और चतुराईपूर्ण प्रयास” की तरफ इशारा करते हैं, जिसका उद्देश्य मतदान प्रक्रिया में छेड़छाड़ करना और धोखाधड़ी के जरिए जनादेश हासिल करना है। इन सभी मामलों में एक समान पैटर्न दिखता है -बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए तकनीक का इस्तेमाल, स्थानीय चुनाव अधिकारियों और पुलिस की निष्क्रियता और टालमटोल और भारत के चुनाव आयोग के उच्चतम स्तर से लगातार रूकावट और बहानेबाज़ी।

तुलजापुर में 40 नामजद संदिग्धों की जांच से इंकार, पनवेल में हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना और आलंद में सीआईडी को महत्वपूर्ण तकनीकी डेटा न देना -ये सभी मिलकर जवाबदेही की प्रणालीगत विफलता की ओर इशारा करते हैं। यह एक असहज लेकिन जरूरी सवाल उठाता है कि क्या यही संगठित मैनिपुलेशन कारण है कि आर्थिक संकट, बेरोजगारी से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों तक जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे सत्ता में बैठे संस्थान के चुनावी जनादेश पर कम प्रभाव डाल रहे हैं?

जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सबसे बुनियादी नींव -एक साफ-सुथरी और निष्पक्ष मतदाता सूची - ही भ्रष्ट हो जाती है, तो जनता की इच्छाशक्ति खतरनाक तरीके से लचीली हो जाती है और प्रतिनिधित्व सरकार की पूरी संरचना संकट में पड़ जाती है। 

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