महाराष्ट्र भर में विरोध प्रदर्शन, जन सुरक्षा अधिनियम को असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी बताते हुए निंदा की गई

Written by sabrang india | Published on: September 11, 2025
विपक्ष, मानवाधिकार समूह और जन आंदोलन एकजुट होकर इसे "जन-विरोधी, लोकतंत्र-विरोधी कानून" बता रहे हैं।



महाराष्ट्र में एक बड़ा आंदोलन देखने को मिला, जब विपक्षी दलों, नागरिक समाज संगठनों और जमीनी स्तर के समूहों ने हाल ही में पारित महाराष्ट्र सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक का विरोध करते हुए इसे “जन उत्पीड़न विधेयक” करार दिया। मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, सोलापुर, पालघर, बीड़, हिंगोली, धुले, गढ़चिरौली और गोंदिया सहित कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए। इसे हाल के वर्षों में राज्य स्तर पर हुआ सबसे बड़ा और संगठित आंदोलन माना जा रहा है।

विवादित कानून के प्रस्ताव और पारित होने के बाद से जन संगठनों और विपक्षी दलों का एक अनोखा गठबंधन उभरा है, जिसने अब तक चार बार इस कानून के खिलाफ संयुक्त रूप से प्रदर्शन किया है। इस कानून को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विरोध और असहमति के अधिकार के लिए गंभीर खतरे के रूप में देखा जा रहा है। अप्रैल 2025 और जुलाई 2025 में राज्यभर में आयोजित विरोध प्रदर्शनों ने लगातार बढ़ती नागरिक चिंताओं को उजागर किया।

पुणे: "राज्य दमन" के खिलाफ आह्वान

पुणे में राकांपा (शरद पवार गुट) की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और सांसद सुप्रिया सुले के नेतृत्व में पुणे स्टेशन के पास स्थित बाबासाहेब अंबेडकर स्मारक पर एक विशाल जनसभा हुई। इस मौके पर शहर राकांपा अध्यक्ष प्रशांत जगताप ने नागरिकों से अपील की कि वे इस कानून का विरोध करें। उन्होंने चेतावनी दी कि यह कानून राज्य को असहमति जताने वालों को सीधे जेल भेजने और सार्वजनिक विरोध को दबाने का अधिकार देता है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गंभीर खतरा है।










मुंबई: विपक्षी कार्रवाई समिति (Opposition Action Committee) के नेतृत्व में संयुक्त विरोध प्रदर्शन


मुंबई में जनसुरक्षा विधेयक विरोधी कार्रवाई समिति के नेतृत्व में दादर स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज मैदान में शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक संयुक्त विरोध प्रदर्शन हुआ। सभा की अध्यक्षता कॉमरेड प्रकाश रेड्डी (भाकपा) ने की और विभिन्न दलों के नेताओं ने भाग लिया।

● कांग्रेस – धनंजय शिंदे

● राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) – रूपेश खंडके

● भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) – कॉ. शैलेन्द्र कांबले

● भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी – कॉ. एस. के. रेगे, आमिर काजी, कॉ. नाना परब

● पीजैंट्स एंड वर्कर्स पार्टी – कॉ. राजेंद्र कोर्डे

● हम भारत के लोग – फिरोज मितिभोरवाला

● भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) – कॉ. विजय कुलकर्णी

● APCR – शाकिर शेख, अधिवक्ता इनामदार

● स्वायत्त महिला संगठन और महिला अधिकार समूह – फोरम अगेंस्ट ओप्रेशन ऑफ वीमेन तथा अन्य नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता

विधायक सचिन अहीर (शिवसेना-यूबीटी) ने भी एकजुटता का संदेश दिया। कई जन संगठनों ने इसमें भाग लेने का संकल्प लिया।

लोह और ग्रामीण महाराष्ट्र: संविधान और लोकतंत्र की रक्षा

लोह में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ प्रदर्शन शुरू हुआ। नारे लगे:

● “संविधान अमर रहे”

● “जनविरोधी जन सुरक्षा अधिनियम रद्द करो”

● “फडणवीस-शिंदे-अजित पवार सरकार मुर्दाबाद”

कॉमरेड रामेश्वर पवल (माकपा), मिलिंद सावंत (कांग्रेस), रामेश्वर बहिरत (शिवसेना-यूबीटी) और भाई यू.आर. थोम्बल (शेतकरी कामगार पक्ष) सहित कई नेताओं ने कानून की निंदा करते हुए इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बताया। प्रदर्शनकारियों ने याद दिलाया कि राज्यपाल को 10 लाख हस्ताक्षर और 1.24 लाख से ज्यादा लिखित आपत्तियां सौंपी गई थीं, फिर भी सरकार ने विधानसभा में विधेयक पारित करा दिया।





अन्य जिलों में हुए विरोध प्रदर्शन

● कोल्हापुर: महा विकास अघाड़ी ने कांग्रेस के हर्षवर्धन सपकाल और जिला नेताओं के नेतृत्व में कलेक्टर कार्यालय में धरना दिया और ज्ञापन सौंपा।



● सोलापुर: प्रदर्शनकारियों ने प्रतीकात्मक अस्वीकृति के तौर पर इस कानून का पुतला जलाया।





● मंचर: एमवीए के बैनर तले विशाल जनसमूह ने कानून की निंदा की।



● पालघर जिला: दहानू, पालघर, वसई, वाडा, विक्रमगढ़, जव्हार और मोखदा में प्रदर्शन हुए।



● बीड, शेवगांव (अहमदनगर), हिंगोली, धुले, गढ़चिरौली, गोंदिया: जिला स्तर पर कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज समूहों ने ज्ञापन सौंपे।



विपक्ष का रुख

पश्चिमी महाराष्ट्र के शहादा, नंदुरबार, शंभाजीनगर और सतारा में वक्ताओं ने कहा कि एमएसपीएस अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है, असहमति को अपराध बनाता है और राज्य को अनियंत्रित शक्तियां देता है। उन्होंने इसे तत्काल रद्द करने की मांग की और चेतावनी दी कि महाराष्ट्र "पुलिस राज्य" बनने के खतरे में है।

हर किसी की जुबान पर नारा था: “सार्वजनिक सुरक्षा नहीं, बल्कि सार्वजनिक उत्पीड़न विधेयक!”

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