मध्य प्रदेश के ग्रामीण हाशिए पर रह रहे समुदायों के सशक्तिकरण और जागरूकता के लिए काम करने वाला ‘HOWL’ समूह हाल ही में पुलिस की बर्बरता और हिंदुत्ववादी अफवाहों का नया निशाना बना है।

मध्य प्रदेश के देवास जिले के शुकरवासा नाम के वन ग्राम में 22 जुलाई को एक बड़े संकट की शुरुआत हुई। स्थानीय आदिवासी समुदाय के कल्याण पर केंद्रित एक स्व-वित्तपोषित क्षेत्रीय समूह HOWL के सदस्य अपने यूनिट कैंपस में एक डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग में लगे थे। 24 वर्षीय फिल्ममेकर और फोटोग्राफर युवराज सिंह चौहान एक पुरानी बरगद के पेड़ पर फिल्म बनाने के लिए उत्सुक थे, जो कभी 12 बीघा में फैला था, लेकिन अब केवल 3 बीघा तक सिकुड़ गया है, जो स्थानीय सांस्कृतिक स्मृति का एक स्थल है।
उसके साथ ही उनके साथी 21 वर्षीय ताशिव पटेल और बृजेंद्र सिंह राठौड़ और कोलकाता से आए 62 वर्षीय फिल्ममेकर और अकादमिक विद्वान निलाद्री मुखोपाध्याय भी डॉक्यूमेंट्री बनाने को देखने के लिए शामिल हुए। एक अन्य सदस्य 28 वर्षीय पत्रकार और फिल्ममेकर प्रणय त्रिपाठी गांव में अखबार बांटने में व्यस्त थे जो HOWL की एक परंपरा है। समूह का अगला हफ्ता काफी व्यस्त था, क्योंकि उन्होंने 9 अगस्त को रैली भी रखी थी, जो आदिवासी दिवस के रूप में मनाई जाती है।
लेकिन उनकी सारी तैयारी ठप्प हो गई जब अचानक बरोथा पुलिस स्टेशन की टीम बिना बताये वहां पहुंच गई और जांच शुरू कर दी। पता नहीं क्यों वे जांच कर रहे थे। पुलिस ने तुरंत सबके लैपटॉप और फोन छीन लिए। थोड़ी देर में माहौल गंभीर हो गया और पुलिस ने उन्हें बिना रोक-टोक पीटना शुरू कर दिया। साथ ही, उन्हें इस पूरे वाकये को फोटो या वीडियो में कैद करने से भी मना कर दिया। फिर जबरदस्ती उन्हें पुलिस वैन में बैठाकर बरोथा थाना ले जाया गया।
HOWL (How Ought We Live) को सौरव बनर्जी नाम के एक पत्रकार और भाषाविद ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर शुरू किया था ताकि शुकरवासा के आदिवासी लोगों की मदद की जा सके। इस ग्रुप में अलग-अलग तरह के लोग हैं- जैसे लेखक, कलाकार और पढ़ने-लिखने वाले युवा, जिनमें चौहान, पटेल, राठौड़, त्रिपाठी के अलावा श्वेता रघुवंशी, निशिता गौड़ और हर्ष सालेचा भी शामिल हैं। ये लोग ज्यादातर इंदौर और देवास से काम करते हैं, और इनका कैंपस शुकरवासा में है। ये लोग खुद को एक "मेहनतकश संगठन" बताते हैं और अपने इलाके के कमजोर समुदायों के बीच पढ़ाई-लिखाई और सेहत की जानकारी फैलाने का काम करते हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, इस समूह ने गांव के आदिवासी लोगों को पर्वतपुरा पंचायत विकास समिति (PPDC) शुरू करने में मदद की है, जिसे आमतौर पर “समिति” कहा जाता है। त्रिपाठी बताते हैं, “हमने HOWL के साथ एक ऐसा प्रयोग किया है जो एक स्वावलंबी और स्वशासित समाज का मॉडल है। हम आदिवासियों, दलितों और पिछड़ी जातियों के बीच काम कर रहे हैं। समिति का मकसद उन्हें शिक्षित-समर्थ-सशक्त बनाना है।”
वे आगे कहते हैं, “पिछले पांच साल से हम अपने छोटे से आदिवासी गांव में काम कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “हमने वहां की हालत देखी -कुपोषण, खराब सड़कें, बिजली और पानी की कमी... लोग सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं उठा पा रहे थे। शिक्षा की स्थिति बहुत खराब थी और 15 किलोमीटर के दायरे में कोई क्लिनिक तक नहीं था। 35-40 किलोमीटर के दायरे में कोई सरकारी अस्पताल नहीं था। वहां की मुख्य आबादी आदिवासी और अनुसूचित जनजाति तथा अनुसूचित जाति से आती है। उन्होंने हमें अपनी बातें बतानी शुरू कीं - कैसे वे स्कूल नहीं जा पाए, कैसे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाए... इन बातों को सुनकर, धीरे-धीरे हमने तय किया कि हम इस क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ा काम करेंगे।”
उनके प्रयासों का असर साफ नजर आने लगा। शुकरवासा की रहने वाली कमला बाई HOWL के काम के बारे में बताती हैं और कैसे इसने क्षेत्र की हाशिए पर रहने वाली समुदायों की मदद की है। वह कहती हैं, “उन्होंने हमें पढ़ाया, हमें जागरूक किया। हमारे लिए मेडिकल व्यवस्था की। हमारे गांव में बड़े डॉक्टर लाए।” वह आगे कहती हैं, “लगभग पांच साल हो गए हैं। उन्होंने यहां के बच्चों को पढ़ाया, जरूरतमंदों को खाना खिलाया और कपड़ों जैसी मूल जरूरतें मुहैया कराईं।”
समिति ने जातिवाद और धार्मिक कट्टरवाद के खिलाफ भी सक्रिय रूप से लड़ाई लड़ी है। साथ ही, इसने किसानों, मजदूरों और उनके परिवारों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई है, उन्हें उनके मूलभूत मानवाधिकारों, संवैधानिक कर्तव्यों और कानून के बारे में जागरूक करके। त्रिपाठी बताते हैं, “प्रमुख जातियों और समुदायों के लोग हमारे असर से डरने लगे, इसलिए उन्होंने अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं कि हम यहां के लोगों में धार्मिक धर्मांतरण करवा रहे हैं।” वे आगे कहते हैं, “यह 2022 में शुरू हुआ था, लेकिन तब सिर्फ अफवाहें थीं। लेकिन 2023 में हमारे संस्थापक सौरव बनर्जी पर हमला किया गया। उनकी हत्या करने की आठ से ज्यादा कोशिशें हुईं।”
उस इलाके में तब से हालात अस्थिर बने हुए हैं। हालांकि इस समूह को ऐसे हमलों का अनुभव रहा है, लेकिन हालिया घटना के पीछे का मकसद अब भी साफ नहीं है। चौहान बताते हैं, “पुलिस के आने पर शुकरवासा के लोग मौजूद थे, लेकिन उन्हें डराया-धमकाया गया और जबरन वहां से भगा दिया गया।” वे आगे बताते हैं कि पुलिस जांच पूरे दिन चली और उन्हें लगभग 11:30 बजे रात को छोड़ दिया गया। “पुलिस बिना वारंट के सबकी जांच करने लगी और बहुत गैर-पेशेवर तरीके से काम किया। उन्होंने जबरदस्ती हमारे बैग चेक किए, हमें पीटा, गाली-गलौज की। उस डॉक्यूमेंट्री को भी ले गई जो हम बना रहे थे। उन्होंने हमारा धर्म, जाति, नाम पूछा, क्या वह सरकारी नाम है या नहीं और हमारा असली आधार कार्ड था या नहीं, जो पहचान के तौर पर दिया गया था। अंत में उन्होंने हमारे लिखित सबूत ले लिए और हमें छोड़ दिया।” त्रिपाठी, जो उस समय शुकरवासा के लोगों में अखबार बांट रहे थे, पुलिस के आने की खबर मिलते ही कैंपस की ओर भागे। इस टीम में 25 से ज्यादा अधिकारी शामिल थे, जिनकी अगुवाई DSP देवास पुलिस और बरोथा के तहसीलदार कर रहे थे।
यह तो बस एक बड़ी समस्या की शुरुआत थी। अगले दिन, 23 जुलाई को, इंदौर और देवास के लोकल प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया ने इस घटना को कवर करना शुरू कर दिया; लेकिन उनकी रिपोर्ट्स में काफी गलत जानकारी थी। यह कवरेज-जो मुख्यतः हिंदी में था-समूह के खिलाफ काफी पक्षपाती था और बिना आधार के धार्मिक धर्मांतरण के आरोप लगाता था। खासकर दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण ने HOWL के खिलाफ रिपोर्ट छापी। चौहान बताते हैं, “इंदौर और देवास के पत्रकार हमसे सवाल पूछने लगे। खबरें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के न्यूज चैनलों पर भी दिखाई गईं। इसके अलावा, कुछ पत्रकार कई न्यूज आउटलेट्स के लिए काम कर रहे थे।” उन्होंने आगे बताया, “हमने तय किया कि खुद को बचाने के लिए शुकरवासा के लोगों के साथ मिलकर फिजिकल और डिजिटल सबूत-पर्चे, अखबार, दस्तावेज, फिल्में- इकट्ठा करेंगे और अगले दिन इंदौर के प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करेंगे।”
लेकिन सदस्यों ने बताया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पाई। 24 जुलाई को HOWL के सदस्यों का सामना अनजान भगवा पोशाक में कुछ हमलावरों से हुआ, जो उन्हें वहां से चले जाने की धमकी दे रहे थे। चौहान बताते हैं, “वे चिल्ला रहे थे ‘बाहर जाओ’। वे बिना बुलाए आ गए थे। बाद में पता चला कि वे बजरंग दल के सदस्य थे, जो एक प्रमुख दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठन है। HOWL का पक्ष रखने के लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस पूरी तरह से उनके द्वारा बिगाड़ दी गई।”
त्रिपाठी बताते हैं कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के रूकावट के तुरंत बाद बनर्जी और अन्य लोग प्रेस क्लब के बाहर हमला झेल रहे थे। आखिर में, इस हंगामे ने इंदौर के प्रेस क्लब में मीडिया का ध्यान खींचा, जो इस तरह की पहली घटना थी। खासकर बनर्जी से रिपोर्टरों ने सवाल किए और एक हमलावर ने इंटरव्यू के बीच में उन्हें थप्पड़ भी मारा। अंततः, इंदौर प्रेस क्लब ने इस अफरातफरी के कारण HOWL को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से मना कर दिया।
शुकरवासा के रहने वालों को भी भीड़ ने धमकाकर चुप करा दिया था। HOWL के सदस्य तुरंत वहां से चले गए और इंदौर समाचार के ऑफिस में शरण लेने का फैसला किया, जो एक क्षेत्रीय प्रकाशन है। चौहान बताते हैं, “इंदौर समाचार सभी के लिए एक सुरक्षित जगह थी। सौरव को छोड़कर 4-5 सदस्य एफआईआर दर्ज कराने के लिए गए क्योंकि प्रेस क्लब में हमले हुए थे। हम अपने जख्मों का इलाज कराना और हमले का मेडिकल प्रमाण भी हासिल करना चाहते थे।” लेकिन पुलिस ने फिर से उन्हें पकड़ लिया। त्रिपाठी बताते हैं, “हमारी गाड़ी को पुलिस ने रोक लिया। हमारी लोकेशन ट्रैक की गई और हमें रोका गया, फिर कहा गया कि हम देवास के एसपी ऑफिस आएं।”
इंदौर समाचार में हुई घटना का गवाह पर्यावरण पत्रकार शिशिर अग्रवाल ने अपनी बातें साझा कीं। “सौरव ने घटना के एक दिन पहले मुझे फोन किया था। उन्होंने मुझे HOWL के समर्थन में होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में बताया। मैं पहले से प्रणय को जानता था, इसलिए वहां जाकर उनसे मिलने का फैसला किया। मुझे पता नहीं था कि सदस्यों पर पहले से हमला हो चुका था। जब मैं इंदौर समाचार के ऑफिस पहुंचा, तो देखा कि पुलिस सौरव से बात कर रही थी और उन्होंने कहा ‘यहां पे मामला बिगड़ सकता है।’ अचानक भीड़ अंदर घुस आई और सौरव और बाकी HOWL के सदस्यों पर हमला कर दिया। मुझे लगा कि स्थिति और खराब हो सकती है, इसलिए मैं वहां से चला आया। बाहर सड़क पर बड़ी भीड़ थी जो ऑफिस में घुसने की कोशिश कर रही थी।”
इस हंगामे के कारण जाहिर तौर पर भयानक परिणाम हुए। चौहान बताते हैं, “इसी उथल-पुथल के बीच निलाद्री दा गायब हो गए। कुछ दिन बाद हमें पता चला कि वह पुलिस के साथ थे। उन्हें शुकरवासा जाते हुए किसी अज्ञात व्यक्ति ने हमला किया था, जबकि उन्हें वहां की स्थिति का पता नहीं था। किसी ने उन्हें पहचान लिया और पुलिस के पास ले गया। वह बेहोश हो गए थे। निलाद्री दा, 62 साल के हैं और शुगर के मरीज भी हैं।”
बाद में समूह को पता चला कि मुखोपाध्याय को अनजान कारणों से कोलकाता वापस भेज दिया गया। बताया गया है कि उन्हें काफी धमकाया गया और शुकरवासा लौटने से रोका भी गया। बाकी सदस्यों को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया और गांव में प्रवेश से रोका गया। त्रिपाठी बताते हैं कि HOWL का कैंपस भी ध्वस्त कर दिया गया और बदहाल हालत में छोड़ दिया गया। “किसी भी सदस्य को ध्वस्त करने का कोई नोटिस नहीं दिया गया। यह सब कुछ ही दिनों में हो गया।” चौहान बताते हैं कि समूह को कानूनी मदद लेने से भी मना किया गया। “हमें अपने मामले की लड़ाई के लिए वकील से संपर्क तक करने नहीं दिया गया। हमें वकील से मिलने से पहले ही ले जाया गया।”
बनर्जी को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को आहत करने) के तहत भी आरोपित किया गया है। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है और इस साल 2 अगस्त से अनिश्चित कारणों से न्यायिक हिरासत में रखा गया है।
अभी शुकरवासा में भय का माहौल छाया हुआ है। रहने वालों के लिए विरोध करना मुश्किल हो गया है क्योंकि उनका एकमात्र सहारा छिन चुका है। कमला बाई ने दुख जताते हुए कहा, “हम गरीब लोग हैं; हमारे पास न तो पर्याप्त जमीन है और न ही पैसे। कोई हमारी सुनता ही नहीं।” वह आगे कहती हैं, “पुलिस हमें कैंपस जाने नहीं देती और गांव में चौकीदार रखवा दिया है ताकि वहां नजर रखी जा सके। वे (HOWL के सदस्य) हमारे लिए परिवार जैसे थे। अब हमारी कौन सुनवाई करेगा? हमारे पास पैसे नहीं हैं; हम बारोथा तक कैसे जाकर काम करेंगे?”
सोनिया पोंडकार मुंबई के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिनका ध्यान मुख्य रूप से भारत के हाशिए पर रहने वाले समाज के राजनीतिक और मानवीय मुद्दों पर होता है। उनका काम आदिवासी, दलित और अन्य पीड़ित समुदायों की आवाज को मुखर करना है, और उनके अधिकारों, गरिमा और स्व-निर्णय की लड़ाई का दस्तावेज तैयार करना है। वह राज्य की ताकत, सामाजिक न्याय और जमीनी स्तर पर हो रही प्रतिरोध की जटिलताओं पर रिपोर्टिंग करती हैं।
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उसके साथ ही उनके साथी 21 वर्षीय ताशिव पटेल और बृजेंद्र सिंह राठौड़ और कोलकाता से आए 62 वर्षीय फिल्ममेकर और अकादमिक विद्वान निलाद्री मुखोपाध्याय भी डॉक्यूमेंट्री बनाने को देखने के लिए शामिल हुए। एक अन्य सदस्य 28 वर्षीय पत्रकार और फिल्ममेकर प्रणय त्रिपाठी गांव में अखबार बांटने में व्यस्त थे जो HOWL की एक परंपरा है। समूह का अगला हफ्ता काफी व्यस्त था, क्योंकि उन्होंने 9 अगस्त को रैली भी रखी थी, जो आदिवासी दिवस के रूप में मनाई जाती है।
लेकिन उनकी सारी तैयारी ठप्प हो गई जब अचानक बरोथा पुलिस स्टेशन की टीम बिना बताये वहां पहुंच गई और जांच शुरू कर दी। पता नहीं क्यों वे जांच कर रहे थे। पुलिस ने तुरंत सबके लैपटॉप और फोन छीन लिए। थोड़ी देर में माहौल गंभीर हो गया और पुलिस ने उन्हें बिना रोक-टोक पीटना शुरू कर दिया। साथ ही, उन्हें इस पूरे वाकये को फोटो या वीडियो में कैद करने से भी मना कर दिया। फिर जबरदस्ती उन्हें पुलिस वैन में बैठाकर बरोथा थाना ले जाया गया।
HOWL (How Ought We Live) को सौरव बनर्जी नाम के एक पत्रकार और भाषाविद ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर शुरू किया था ताकि शुकरवासा के आदिवासी लोगों की मदद की जा सके। इस ग्रुप में अलग-अलग तरह के लोग हैं- जैसे लेखक, कलाकार और पढ़ने-लिखने वाले युवा, जिनमें चौहान, पटेल, राठौड़, त्रिपाठी के अलावा श्वेता रघुवंशी, निशिता गौड़ और हर्ष सालेचा भी शामिल हैं। ये लोग ज्यादातर इंदौर और देवास से काम करते हैं, और इनका कैंपस शुकरवासा में है। ये लोग खुद को एक "मेहनतकश संगठन" बताते हैं और अपने इलाके के कमजोर समुदायों के बीच पढ़ाई-लिखाई और सेहत की जानकारी फैलाने का काम करते हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, इस समूह ने गांव के आदिवासी लोगों को पर्वतपुरा पंचायत विकास समिति (PPDC) शुरू करने में मदद की है, जिसे आमतौर पर “समिति” कहा जाता है। त्रिपाठी बताते हैं, “हमने HOWL के साथ एक ऐसा प्रयोग किया है जो एक स्वावलंबी और स्वशासित समाज का मॉडल है। हम आदिवासियों, दलितों और पिछड़ी जातियों के बीच काम कर रहे हैं। समिति का मकसद उन्हें शिक्षित-समर्थ-सशक्त बनाना है।”
वे आगे कहते हैं, “पिछले पांच साल से हम अपने छोटे से आदिवासी गांव में काम कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “हमने वहां की हालत देखी -कुपोषण, खराब सड़कें, बिजली और पानी की कमी... लोग सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं उठा पा रहे थे। शिक्षा की स्थिति बहुत खराब थी और 15 किलोमीटर के दायरे में कोई क्लिनिक तक नहीं था। 35-40 किलोमीटर के दायरे में कोई सरकारी अस्पताल नहीं था। वहां की मुख्य आबादी आदिवासी और अनुसूचित जनजाति तथा अनुसूचित जाति से आती है। उन्होंने हमें अपनी बातें बतानी शुरू कीं - कैसे वे स्कूल नहीं जा पाए, कैसे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाए... इन बातों को सुनकर, धीरे-धीरे हमने तय किया कि हम इस क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ा काम करेंगे।”
उनके प्रयासों का असर साफ नजर आने लगा। शुकरवासा की रहने वाली कमला बाई HOWL के काम के बारे में बताती हैं और कैसे इसने क्षेत्र की हाशिए पर रहने वाली समुदायों की मदद की है। वह कहती हैं, “उन्होंने हमें पढ़ाया, हमें जागरूक किया। हमारे लिए मेडिकल व्यवस्था की। हमारे गांव में बड़े डॉक्टर लाए।” वह आगे कहती हैं, “लगभग पांच साल हो गए हैं। उन्होंने यहां के बच्चों को पढ़ाया, जरूरतमंदों को खाना खिलाया और कपड़ों जैसी मूल जरूरतें मुहैया कराईं।”
समिति ने जातिवाद और धार्मिक कट्टरवाद के खिलाफ भी सक्रिय रूप से लड़ाई लड़ी है। साथ ही, इसने किसानों, मजदूरों और उनके परिवारों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई है, उन्हें उनके मूलभूत मानवाधिकारों, संवैधानिक कर्तव्यों और कानून के बारे में जागरूक करके। त्रिपाठी बताते हैं, “प्रमुख जातियों और समुदायों के लोग हमारे असर से डरने लगे, इसलिए उन्होंने अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं कि हम यहां के लोगों में धार्मिक धर्मांतरण करवा रहे हैं।” वे आगे कहते हैं, “यह 2022 में शुरू हुआ था, लेकिन तब सिर्फ अफवाहें थीं। लेकिन 2023 में हमारे संस्थापक सौरव बनर्जी पर हमला किया गया। उनकी हत्या करने की आठ से ज्यादा कोशिशें हुईं।”
उस इलाके में तब से हालात अस्थिर बने हुए हैं। हालांकि इस समूह को ऐसे हमलों का अनुभव रहा है, लेकिन हालिया घटना के पीछे का मकसद अब भी साफ नहीं है। चौहान बताते हैं, “पुलिस के आने पर शुकरवासा के लोग मौजूद थे, लेकिन उन्हें डराया-धमकाया गया और जबरन वहां से भगा दिया गया।” वे आगे बताते हैं कि पुलिस जांच पूरे दिन चली और उन्हें लगभग 11:30 बजे रात को छोड़ दिया गया। “पुलिस बिना वारंट के सबकी जांच करने लगी और बहुत गैर-पेशेवर तरीके से काम किया। उन्होंने जबरदस्ती हमारे बैग चेक किए, हमें पीटा, गाली-गलौज की। उस डॉक्यूमेंट्री को भी ले गई जो हम बना रहे थे। उन्होंने हमारा धर्म, जाति, नाम पूछा, क्या वह सरकारी नाम है या नहीं और हमारा असली आधार कार्ड था या नहीं, जो पहचान के तौर पर दिया गया था। अंत में उन्होंने हमारे लिखित सबूत ले लिए और हमें छोड़ दिया।” त्रिपाठी, जो उस समय शुकरवासा के लोगों में अखबार बांट रहे थे, पुलिस के आने की खबर मिलते ही कैंपस की ओर भागे। इस टीम में 25 से ज्यादा अधिकारी शामिल थे, जिनकी अगुवाई DSP देवास पुलिस और बरोथा के तहसीलदार कर रहे थे।
यह तो बस एक बड़ी समस्या की शुरुआत थी। अगले दिन, 23 जुलाई को, इंदौर और देवास के लोकल प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया ने इस घटना को कवर करना शुरू कर दिया; लेकिन उनकी रिपोर्ट्स में काफी गलत जानकारी थी। यह कवरेज-जो मुख्यतः हिंदी में था-समूह के खिलाफ काफी पक्षपाती था और बिना आधार के धार्मिक धर्मांतरण के आरोप लगाता था। खासकर दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण ने HOWL के खिलाफ रिपोर्ट छापी। चौहान बताते हैं, “इंदौर और देवास के पत्रकार हमसे सवाल पूछने लगे। खबरें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के न्यूज चैनलों पर भी दिखाई गईं। इसके अलावा, कुछ पत्रकार कई न्यूज आउटलेट्स के लिए काम कर रहे थे।” उन्होंने आगे बताया, “हमने तय किया कि खुद को बचाने के लिए शुकरवासा के लोगों के साथ मिलकर फिजिकल और डिजिटल सबूत-पर्चे, अखबार, दस्तावेज, फिल्में- इकट्ठा करेंगे और अगले दिन इंदौर के प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करेंगे।”
लेकिन सदस्यों ने बताया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पाई। 24 जुलाई को HOWL के सदस्यों का सामना अनजान भगवा पोशाक में कुछ हमलावरों से हुआ, जो उन्हें वहां से चले जाने की धमकी दे रहे थे। चौहान बताते हैं, “वे चिल्ला रहे थे ‘बाहर जाओ’। वे बिना बुलाए आ गए थे। बाद में पता चला कि वे बजरंग दल के सदस्य थे, जो एक प्रमुख दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठन है। HOWL का पक्ष रखने के लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस पूरी तरह से उनके द्वारा बिगाड़ दी गई।”
त्रिपाठी बताते हैं कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के रूकावट के तुरंत बाद बनर्जी और अन्य लोग प्रेस क्लब के बाहर हमला झेल रहे थे। आखिर में, इस हंगामे ने इंदौर के प्रेस क्लब में मीडिया का ध्यान खींचा, जो इस तरह की पहली घटना थी। खासकर बनर्जी से रिपोर्टरों ने सवाल किए और एक हमलावर ने इंटरव्यू के बीच में उन्हें थप्पड़ भी मारा। अंततः, इंदौर प्रेस क्लब ने इस अफरातफरी के कारण HOWL को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से मना कर दिया।
शुकरवासा के रहने वालों को भी भीड़ ने धमकाकर चुप करा दिया था। HOWL के सदस्य तुरंत वहां से चले गए और इंदौर समाचार के ऑफिस में शरण लेने का फैसला किया, जो एक क्षेत्रीय प्रकाशन है। चौहान बताते हैं, “इंदौर समाचार सभी के लिए एक सुरक्षित जगह थी। सौरव को छोड़कर 4-5 सदस्य एफआईआर दर्ज कराने के लिए गए क्योंकि प्रेस क्लब में हमले हुए थे। हम अपने जख्मों का इलाज कराना और हमले का मेडिकल प्रमाण भी हासिल करना चाहते थे।” लेकिन पुलिस ने फिर से उन्हें पकड़ लिया। त्रिपाठी बताते हैं, “हमारी गाड़ी को पुलिस ने रोक लिया। हमारी लोकेशन ट्रैक की गई और हमें रोका गया, फिर कहा गया कि हम देवास के एसपी ऑफिस आएं।”
इंदौर समाचार में हुई घटना का गवाह पर्यावरण पत्रकार शिशिर अग्रवाल ने अपनी बातें साझा कीं। “सौरव ने घटना के एक दिन पहले मुझे फोन किया था। उन्होंने मुझे HOWL के समर्थन में होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में बताया। मैं पहले से प्रणय को जानता था, इसलिए वहां जाकर उनसे मिलने का फैसला किया। मुझे पता नहीं था कि सदस्यों पर पहले से हमला हो चुका था। जब मैं इंदौर समाचार के ऑफिस पहुंचा, तो देखा कि पुलिस सौरव से बात कर रही थी और उन्होंने कहा ‘यहां पे मामला बिगड़ सकता है।’ अचानक भीड़ अंदर घुस आई और सौरव और बाकी HOWL के सदस्यों पर हमला कर दिया। मुझे लगा कि स्थिति और खराब हो सकती है, इसलिए मैं वहां से चला आया। बाहर सड़क पर बड़ी भीड़ थी जो ऑफिस में घुसने की कोशिश कर रही थी।”
इस हंगामे के कारण जाहिर तौर पर भयानक परिणाम हुए। चौहान बताते हैं, “इसी उथल-पुथल के बीच निलाद्री दा गायब हो गए। कुछ दिन बाद हमें पता चला कि वह पुलिस के साथ थे। उन्हें शुकरवासा जाते हुए किसी अज्ञात व्यक्ति ने हमला किया था, जबकि उन्हें वहां की स्थिति का पता नहीं था। किसी ने उन्हें पहचान लिया और पुलिस के पास ले गया। वह बेहोश हो गए थे। निलाद्री दा, 62 साल के हैं और शुगर के मरीज भी हैं।”
बाद में समूह को पता चला कि मुखोपाध्याय को अनजान कारणों से कोलकाता वापस भेज दिया गया। बताया गया है कि उन्हें काफी धमकाया गया और शुकरवासा लौटने से रोका भी गया। बाकी सदस्यों को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया और गांव में प्रवेश से रोका गया। त्रिपाठी बताते हैं कि HOWL का कैंपस भी ध्वस्त कर दिया गया और बदहाल हालत में छोड़ दिया गया। “किसी भी सदस्य को ध्वस्त करने का कोई नोटिस नहीं दिया गया। यह सब कुछ ही दिनों में हो गया।” चौहान बताते हैं कि समूह को कानूनी मदद लेने से भी मना किया गया। “हमें अपने मामले की लड़ाई के लिए वकील से संपर्क तक करने नहीं दिया गया। हमें वकील से मिलने से पहले ही ले जाया गया।”
बनर्जी को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को आहत करने) के तहत भी आरोपित किया गया है। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है और इस साल 2 अगस्त से अनिश्चित कारणों से न्यायिक हिरासत में रखा गया है।
अभी शुकरवासा में भय का माहौल छाया हुआ है। रहने वालों के लिए विरोध करना मुश्किल हो गया है क्योंकि उनका एकमात्र सहारा छिन चुका है। कमला बाई ने दुख जताते हुए कहा, “हम गरीब लोग हैं; हमारे पास न तो पर्याप्त जमीन है और न ही पैसे। कोई हमारी सुनता ही नहीं।” वह आगे कहती हैं, “पुलिस हमें कैंपस जाने नहीं देती और गांव में चौकीदार रखवा दिया है ताकि वहां नजर रखी जा सके। वे (HOWL के सदस्य) हमारे लिए परिवार जैसे थे। अब हमारी कौन सुनवाई करेगा? हमारे पास पैसे नहीं हैं; हम बारोथा तक कैसे जाकर काम करेंगे?”
सोनिया पोंडकार मुंबई के एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिनका ध्यान मुख्य रूप से भारत के हाशिए पर रहने वाले समाज के राजनीतिक और मानवीय मुद्दों पर होता है। उनका काम आदिवासी, दलित और अन्य पीड़ित समुदायों की आवाज को मुखर करना है, और उनके अधिकारों, गरिमा और स्व-निर्णय की लड़ाई का दस्तावेज तैयार करना है। वह राज्य की ताकत, सामाजिक न्याय और जमीनी स्तर पर हो रही प्रतिरोध की जटिलताओं पर रिपोर्टिंग करती हैं।
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