शर्मनाक: पिता के शव के साथ भटकते रहे बच्चे, मुस्लिम नागरिकों ने आगे आकर कराया अंतिम संस्कार

Written by sabrang india | Published on: August 28, 2025
बच्चे अपने पिता के शव को लेकर इधर-उधर भटकते रहे लेकिन आसपास के लोगों और रिश्तेदारों से उन्हें मदद नहीं मिल पाई। आखिरकार एक वार्ड मेंबर की मदद से वो अपने पिता का अंतिम संस्कार कर पाए।


फोटो साभार : बीबीसी

क्या समाज का इतना नैतिक पतन हो चुका है कि अंतिम संस्कार करने के लिए मृतक पिता का शव लेकर नाबालिग बच्चे दर-दर भटकते रहे लेकिन इनकी मदद करने कोई नहीं आया। घटना उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के नौतनवां की है जहां एक व्यक्ति की मौत के बाद उनके तीन बच्चों को अंतिम संस्कार करने के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ी।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे अपने पिता के शव को लेकर इधर-उधर भटकते रहे लेकिन आसपास के लोगों और रिश्तेदारों से उन्हें मदद नहीं मिल पाई। आखिरकार एक वार्ड मेंबर की मदद से वो अपने पिता का अंतिम संस्कार कर पाए।

वहीं जिला प्रशासन का कहना है कि उन्हें घटना की जानकारी नहीं मिल पाई इस वजह से बच्चों की समय पर मदद नहीं हो पाई। स्थानीय प्रशासन ने दावा किया कि अब बच्चों की हर मुमकिन मदद के इंतजाम किए जा रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, मृतक के 14 साल के बड़े बेटे ने कहा, "हम लोग दरवाजे पर ठेला लेकर खड़े थे। कई लोग आए, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।"

बच्चे जब शव को दफनाने के लिए कब्रिस्तान ले गए, तो उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया कि मृतक हिंदू थे, इसलिए उन्हें वहां दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

हर तरफ से निराश होकर जब बच्चे शव को ठेले पर लेकर चौराहों पर भटक रहे थे, तभी स्थानीय नागरिक राशिद क़ुरैशी और उनके रिश्तेदार वारिस क़ुरैशी ने आगे आकर मदद की और शव का दाह संस्कार करवाया।

40 वर्षीय लवकुमार महाराजगंज के नौतनवां इलाके में अकेले रहते थे। उनकी पत्नी का निधन पहले ही हो चुका था। उनके दो बेटे और एक बेटी अपनी दादी के साथ अलग रहते थे। कई दिनों से लवकुमार की तबीयत खराब थी। वह कुछ दिनों अस्पताल में भर्ती थे। इलाज के बाद जब वे घर लौटे तो करीब 20 दिन बाद पिछले सप्ताह उनकी मौत हो गई।

लवकुमार की मृत्यु के बाद उनके बच्चों ने अंतिम संस्कार के लिए मोहल्लेवालों, रिश्तेदारों और करीबी लोगों से मदद की गुहार लगाई। लवकुमार के बड़े बेटे ने कहा, "हमारे पास पैसे नहीं थे। हम शव को मानवाघाट लेकर गए तो हमें वहां से उन्होंने मुस्लिम कब्रिस्तान भेज दिया, लेकिन वहां भी मना कर दिया गया। हम लोग चकवा चौकी के पास खड़े होकर घंटों मदद मांगते रहे, लेकिन कोई नहीं आया।"

आखिरकार बच्चों ने राहगीरों से पैसे मांगकर अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी जुटाने की कोशिश शुरू की। इस दौरान शव कई घंटे तक ठेले पर ही पड़ा रहा और धीरे-धीरे उसकी स्थिति बिगड़ती गई। तब स्थानीय लोगों ने वार्ड सदस्य राशिद क़ुरैशी को सूचना दी।

राशिद ने बीबीसी से कहा, " सोमवार करीब सात बजे मेरे पास फोन आया कि छपवा तिराहे पर एक डेड बॉडी पड़ी है। बच्चे रो रहे हैं। लेकिन कोई मदद नहीं कर रहा है। मैं मौके पर पहुंचा तो देखा कि शव फूल चुका था और दुर्गंध आ रही थी। लोग पास भी नहीं जाना चाहते थे। परिवार ने बताया कि दो दिन से उन्हें कहीं से मदद नहीं मिल रही है।"

कुरैशी ने जल्द लकड़ी का इंतजाम किया और रात 12 बजे तक श्मशान में हिंदू रीति-रिवाज से मृतक का दाह संस्कार कराया। वारिस कुरैशी और परिवार के अन्य लोगों ने भी सहयोग दिया।

राशिद क़ुरैशी ने कहा, "धर्म से ऊपर इंसानियत है। जब बच्चे अकेले खड़े होकर पिता की लाश के साथ रो रहे हों तो चुप रहना गुनाह है।"

घटना की जानकारी मिलने के बाद नौतनवां के उपजिलाधिकारी नवीन कुमार अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि बच्चों को तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान की गई है और कोटेदार के माध्यम से राशन भी उपलब्ध कराया गया है।

नौतनवां के उपजिलाधिकारी नवीन कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "ये बच्चे अनाथ हो चुके हैं। उन्हें बाल सेवा योजना में शामिल कर लिया गया है। जैसे ही उनका बैंक खाता खुलेगा, प्रत्येक बच्चे को पांच हजार रुपये प्रति माह की सहायता दी जाएगी। अब तक वे स्कूल भी नहीं जा रहे थे, लेकिन प्रशासन ने अब उनकी शिक्षा की व्यवस्था कर दी है।"

एसडीएम ने यह भी स्पष्ट किया कि मृतक लवकुमार नगर पंचायत के बाहर इलाके में अकेले रहते थे। उन्होंने कहा कि घटना की जानकारी नहीं मिल पाई थी इसलिए मदद नहीं की जा सकी। एसडीएम ने कहा कि मृतक की तबीयत खराब थी, संभवत: रविवार को मृत्यु हो गई थी। परिवारवालों को भी उनकी मृत्यु का बाद में पता चला।

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