सुप्रीम कोर्ट ने असम पुलिस को वरिष्ठ पत्रकार करन थापर और सिद्धार्थ वरदराजन को गिरफ्तार करने पर रोक लगाई

Written by sabrang india | Published on: August 23, 2025
"इस मामले को 15 सितंबर को सूचीबद्ध किया जाए। इस बीच, याचिकाकर्ता संख्या 2 और याचिकाकर्ता-संस्था के सदस्यों, जिनमें कनसल्टिंग एडिटर (Consulting Editor) भी शामिल हैं, के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दर्ज प्राथमिकी के आधार पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, बशर्ते वे जांच में सहयोग करें।”



सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को असम पुलिस को द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और वरिष्ठ पत्रकार करन थापर के खिलाफ किसी भी दंडात्मक (coercive) कार्रवाई से रोक दिया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा, "इस मामले को 15 सितंबर को सूचीबद्ध किया जाए। इस बीच, याचिकाकर्ता संख्या 2 और याचिकाकर्ता-संस्था के सदस्यों, जिनमें कनसल्टिंग एडिटर (Consulting Editor) भी शामिल हैं, के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दर्ज प्राथमिकी के आधार पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, बशर्ते वे जांच में सहयोग करें।”

मकतूब की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पत्रकारों से यह भी कहा कि उनके खिलाफ दर्ज मामलों की जांच में वे पूरा सहयोग करें।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर द्वारा दायर याचिका पर दिया, जिसमें उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दर्ज प्राथमिकी (FIR) के संबंध में क्राइम ब्रांच द्वारा जारी किए गए समन को चुनौती दी थी।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं और उन्होंने अदालत को बताया कि विवादित प्राथमिकी (FIR) मई महीने की है और इसे उसी समय दर्ज किया गया जब सर्वोच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले में याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा दी थी।

यह घटनाक्रम उसके ठीक एक दिन बाद सामने आया है जब 15 सांसदों ने एक संयुक्त बयान जारी कर द वायर के पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन, करन थापर और अन्य के खिलाफ असम पुलिस द्वारा नए देशद्रोह कानून के तहत की जा रही कार्रवाई को "उत्पीड़न" करार दिया। सांसदों ने इसे "पत्रकारिता की स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर सीधा हमला" बताया।

सांसदों ने कहा, “हम सिद्धार्थ वरदराजन, करन थापर और द वायर से जुड़े अन्य पत्रकारों को असम पुलिस द्वारा परेशान किए जाने को लेकर बेहद चिंतित हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार नई संशोधित देशद्रोह कानूनों का दुरुपयोग कर रही है, ताकि स्वतंत्र आवाजों को डराया जा सके और आलोचनात्मक आवाज को चुप कराया जा सके।

उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से पहले से ही प्राप्त संरक्षण के बावजूद संयुक्त बयान में पत्रकारों को समन जारी किए जाने को "पत्रकारिता की स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर हमला" करार दिया।

बयान में आगे असम की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया गया कि वह देशद्रोह कानूनों का दुरुपयोग कर रही है, ताकि स्वतंत्र आवाजों को डराया जा सके और आलोचकों को चुप कराया जा सके।

सांसदों ने मांग की कि इन मामलों को तत्काल वापस लिया जाए।

बयान में कहा गया, "हम पुलिस से अपील करते हैं कि ये दुर्भावनापूर्ण मामले वापस लिए जाएं और मीडिया के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के दुरुपयोग को तुरंत रोका जाए।"

इस संयुक्त बयान पर सीपीआई(एम), कांग्रेस, डीएमके, सपा और अन्य दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किए थे। हस्ताक्षरकर्ताओं में जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह, जया बच्चन, तिरुचि शिवा, रामगोपाल यादव, रेणुका चौधरी, मुकुल वासनिक, शक्तिसिंह गोहिल, सैयद नसीर हुसैन, जावेद अली खान, आर. गिरिराजन, और अनिल कुमार यादव शामिल थे।

गुवाहाटी पुलिस ने द वायर के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर को देशद्रोह के आरोपों में दर्ज मामले के सिलसिले में समन जारी किया है। ऐसा नोटिस में उल्लेख किया गया है।

यह 12 अगस्त 2025 को हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय ने द वायर द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें नए देशद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका में द वायर के पत्रकारों, जिनमें संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन भी शामिल हैं, को असम पुलिस द्वारा जुलाई में मोरिगांव में दर्ज मामले में किसी भी प्रकार की "दंडात्मक कार्रवाई" से सुरक्षा दी थी।

वरदराजन को जारी समन, जो पुलिस इंस्पेक्टर सौमर्ज्योति राय द्वारा भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा S.35(3) के तहत जारी किया गया है, में एक प्राथमिकी (FIR संख्या 03/2025) का जिक्र है। यह प्राथमिकी गुवाहाटी के पानबाजार स्थित क्राइम ब्रांच में दर्ज की गई है, जिसमें धारा 152, 196, 197(1)(D)/3(6), 353, 45, और 61 धाराओं के तहत मामला दर्ज है।

हालांकि, समन में प्राथमिकी (FIR) की तारीख का जिक्र नहीं किया गया है, न ही कथित अपराध के विवरण दिए गए हैं और प्राथमिकी की कोई प्रति भी समन के साथ संलग्न नहीं की गई है।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI), इंडियन विमेन प्रेस कॉर्प्स (IWPC) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दर्ज प्राथमिकिओं पर गहरी चिंता और निराशा जाहिर की है। इन संगठनों ने इस धारा को "कठोर देशद्रोह कानून (आईपीसी की धारा 124A)" का रीपैकेज्ड वर्जन बताया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2022 में स्टे लगा दिया था।

उन्होंने असम पुलिस की उन कार्रवाइयों की निंदा की जिन्हें उन्होंने “प्रतिशोधात्मक कार्रवाई” बताया, और मामले तत्काल वापस लेने की मांग की। साथ ही, उन्होंने कहा कि ये मामले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारिता की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा हैं।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने आगे यह भी कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के द्वारा स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने के लिए विभिन्न आपराधिक धाराओं का बढ़ता हुआ दुरुपयोग एक गंभीर प्रवृत्ति बनती जा रही है। उसने यह भी कहा कि लंबी न्यायिक प्रक्रिया स्वयं ही एक प्रकार की सजा का काम करती हैं। 

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