तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. पॉलसन सैम्युअल ने डॉ. चौधरी (सामान्य वर्ग) को 2017, 2018 और 2019 में कुल छह पीएचडी छात्र आवंटित किए, जबकि डॉ. सिंह (एससी) को चार छात्र मिले। इसके विपरीत, डॉ. नायक (एसटी) को इस पूरे तीन साल के दौरान एक भी पीएचडी छात्र नहीं मिला।

मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनआईटी) के आदिवासी समुदाय के सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने इंस्टिट्यूट एडमिनिस्ट्रेशन पर जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में त्वरित राहत देने से इनकार करते हुए उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करने का निर्देश दिया है।
प्रोफेसर नायक का आरोप है कि संस्थान ने उनकी शिकायतों का समाधान करने के बजाय, उन पर झूठी अनुशासनात्मक कार्रवाई और यौन उत्पीड़न के फर्जी आरोप लगाकर उनके न्याय की लड़ाई को दबाने की कोशिश की है। द मूकनायक से बातचीत में नायक ने बताया, 'संस्थान ने मुझे डराने के इरादे से 21 जुलाई को पहला नोटिस और 28 जुलाई को दूसरा नोटिस भेजा, ताकि मैं कोई कानूनी कदम न उठाऊं।
यह मामला उच्च शिक्षण संस्थानों में संकाय सदस्यों को मिलने वाली प्रोन्नति और शोध अवसरों में मौजूद जातीय पक्षपात की गंभीर स्थिति को उजागर करता है। एमएनआईटी प्रशासन ने उनके कानूनी संघर्ष के बाद प्रतिशोधात्मक कार्रवाई की, जिससे हालात और अधिक खराब हो गए। उन्होंने आरोप लगाया कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंध रखने के कारण जानबूझकर उन्हें पीएचडी छात्रों के मार्गदर्शन का अवसर नहीं दिया गया और उनकी प्रोन्नति में भी देरी की गई। इसके ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने के बावजूद, डॉ. नायक को हर स्तर पर संस्थागत विरोध का सामना करना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा त्वरित राहत देने से इनकार किए जाने और इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करने के निर्देश के बाद, डॉ. नायक ने आरोप लगाया है कि संस्थान अब कानूनी प्रक्रिया में देरी का लाभ उठाकर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई कर रहा है, जिससे उन्हें और ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। यह मामला भारत के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में वंचित समुदायों से आने वाले शिक्षकों की सुरक्षा, समानता और न्याय के सवालों को गंभीर रूप से उजागर करता है।
वर्ष 2012 में जब डॉ. एम. नायक ने मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनआईटी) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला, तब उनके साथ ही डॉ. नवनीत कुमार सिंह (अनुसूचित जाति) और डॉ. निरज कुमार चौधरी (सामान्य वर्ग) ने भी पदभार ग्रहण किया। वर्ष 2017 तक तीनों ने अपनी पीएचडी पूरी कर ली, लेकिन डॉ. नायक का आरोप है कि इसके बाद से ही उनके साथ भेदभाव शुरू हो गया। डॉ. नायक के अनुसार, तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. पॉलसन सैम्युअल ने डॉ. चौधरी को वर्ष 2017, 2018 और 2019 के बीच कुल छह पीएचडी छात्र आवंटित किए, वहीं डॉ. सिंह को चार छात्र दिए गए। लेकिन डॉ. नायक, जो अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से आते हैं, को इस पूरी अवधि में एक भी पीएचडी छात्र नहीं दिया गया।
इस उपेक्षा का प्रत्यक्ष प्रभाव डॉ. नायक की प्रोन्नति प्रक्रिया पर पड़ा। जब 6 जून 2019 को डॉ. नायक, डॉ. नवनीत कुमार सिंह और डॉ. निरज कुमार चौधरी को असिस्टेंट प्रोफेसर ग्रेड-वन (AGP 8000) में पदोन्नत किया गया, तब तक डॉ. नायक शोध निर्देशन के क्षेत्र में अपने सहयोगियों की तुलना में काफी पीछे रह चुके थे। नवंबर 2019 में एनआईटी सिलचर से डॉ. प्रशांत कुमार तिवारी के विभाग में शामिल होने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। डॉ. नायक को अपना पहला पीएचडी छात्र वर्ष 2020 में मिला, जबकि उनके सहयोगियों को पहले ही तीन साल का अकादमिक और पेशेवर लाभ मिल चुका था।
26 जुलाई 2023 को जब चारों शिक्षकों ने एसोसिएट प्रोफेसर (AGP 9500) पद के लिए साक्षात्कार दिया, तब सभी के पास आवश्यक क्रेडिट पॉइंट्स उपलब्ध थे। इसके बावजूद, उस समय किसी को भी पदोन्नति नहीं दी गई। हालांकि, 23 अगस्त 2024 को आयोजित दूसरे साक्षात्कार में केवल डॉ. एम. वेंकटेश नायक को शॉर्टलिस्ट नहीं किया गया। संस्थान ने इसका कारण यह बताया कि डॉ. नायक किसी भी पीएचडी छात्र का मार्गदर्शन नहीं कर पाए थे जबकि यह वही शर्त थी, जिसे पूरा करना उनके लिए लगभग असंभव था, क्योंकि उन्हें पहला पीएचडी छात्र वर्ष 2020 में ही आवंटित किया गया था।
6 जनवरी 2025 को डॉ. सिंह, डॉ. चौधरी और डॉ. तिवारी को एसोसिएट प्रोफेसर पद पर पदोन्नत कर दिया गया, जबकि डॉ. नायक को इस पद से वंचित रखा गया। इसके परिणामस्वरूप डॉ. तिवारी, जिन्होंने डॉ. नायक के बाद संस्थान में नियुक्ति ली थी, पदोन्नति के आधार पर अब वरिष्ठ माने जा रहे हैं। यह सीनियरिटी का नुकसान डॉ. नायक के अनुसार, सीधे तौर पर वर्ष 2017 से 2019 के बीच जानबूझकर उन्हें पीएचडी छात्र न दिए जाने के फैसले का परिणाम था।
5 मार्च 2025 को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) की एक बैठक में एमएनआईटी के निदेशक प्रो. आर.एस. वर्मा ने सात अन्य सदस्यों के साथ भाग लिया। डॉ. नायक का आरोप है कि इस बैठक में उनके खिलाफ झूठे साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो आयोग के सदस्य जतोठ हुसैन ने उन्हें जबरन बैठक से बाहर कर दिया और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। डॉ. नायक का यह भी कहना है कि एनसीएसटी के निदेशक पी. कल्याण रेड्डी ने उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाणों की न तो जांच की और न ही उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई शुरू की। बैठक के मिनट्स केवल लगातार आरटीआई आवेदन और अनुरोधों के बाद तीन महीने बाद, 2 जून 2025 को जारी किए गए। हालांकि, डॉ. नायक के अनुसार, एमएनआईटी प्रशासन ने आयोग की सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया।
डॉ. नायक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि, 8 अगस्त 2025 को हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का निर्देश दिया। डॉ. नायक का आरोप है कि संस्थान उनकी आवाज को दबाने के उद्देश्य से उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर रहा है। उनका कहना है कि उन्होंने जो शैक्षणिक ईमेल्स छात्राओं को भेजे, उन्हें तोड़-मरोड़कर यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। साथ ही, कुछ वरिष्ठ शिक्षकों पर आरोप है कि वे छात्रों को उकसाकर डॉ. नायक के खिलाफ शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। डॉ. नायक के अनुसार, यह सब उन्हें कानूनी कार्रवाई से रोकने और संस्थागत अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई को कुचलने की रणनीति का हिस्सा है।
डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने संस्थान से एक स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित करने और उन्हें 10 अगस्त 2023 से एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत करने सहित सभी संबंधित लाभ पिछले प्रभाव से देने की मांग की है। हालांकि, ‘द मूकनायक’ द्वारा एमएनआईटी निदेशक और सचिव से इन गंभीर आरोपों पर प्रतिक्रिया मांगे जाने के लगभग छह सप्ताह बाद भी संस्थान की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।
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मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनआईटी) के आदिवासी समुदाय के सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने इंस्टिट्यूट एडमिनिस्ट्रेशन पर जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में त्वरित राहत देने से इनकार करते हुए उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करने का निर्देश दिया है।
प्रोफेसर नायक का आरोप है कि संस्थान ने उनकी शिकायतों का समाधान करने के बजाय, उन पर झूठी अनुशासनात्मक कार्रवाई और यौन उत्पीड़न के फर्जी आरोप लगाकर उनके न्याय की लड़ाई को दबाने की कोशिश की है। द मूकनायक से बातचीत में नायक ने बताया, 'संस्थान ने मुझे डराने के इरादे से 21 जुलाई को पहला नोटिस और 28 जुलाई को दूसरा नोटिस भेजा, ताकि मैं कोई कानूनी कदम न उठाऊं।
यह मामला उच्च शिक्षण संस्थानों में संकाय सदस्यों को मिलने वाली प्रोन्नति और शोध अवसरों में मौजूद जातीय पक्षपात की गंभीर स्थिति को उजागर करता है। एमएनआईटी प्रशासन ने उनके कानूनी संघर्ष के बाद प्रतिशोधात्मक कार्रवाई की, जिससे हालात और अधिक खराब हो गए। उन्होंने आरोप लगाया कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) से संबंध रखने के कारण जानबूझकर उन्हें पीएचडी छात्रों के मार्गदर्शन का अवसर नहीं दिया गया और उनकी प्रोन्नति में भी देरी की गई। इसके ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने के बावजूद, डॉ. नायक को हर स्तर पर संस्थागत विरोध का सामना करना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा त्वरित राहत देने से इनकार किए जाने और इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करने के निर्देश के बाद, डॉ. नायक ने आरोप लगाया है कि संस्थान अब कानूनी प्रक्रिया में देरी का लाभ उठाकर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई कर रहा है, जिससे उन्हें और ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। यह मामला भारत के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में वंचित समुदायों से आने वाले शिक्षकों की सुरक्षा, समानता और न्याय के सवालों को गंभीर रूप से उजागर करता है।
वर्ष 2012 में जब डॉ. एम. नायक ने मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनआईटी) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला, तब उनके साथ ही डॉ. नवनीत कुमार सिंह (अनुसूचित जाति) और डॉ. निरज कुमार चौधरी (सामान्य वर्ग) ने भी पदभार ग्रहण किया। वर्ष 2017 तक तीनों ने अपनी पीएचडी पूरी कर ली, लेकिन डॉ. नायक का आरोप है कि इसके बाद से ही उनके साथ भेदभाव शुरू हो गया। डॉ. नायक के अनुसार, तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. पॉलसन सैम्युअल ने डॉ. चौधरी को वर्ष 2017, 2018 और 2019 के बीच कुल छह पीएचडी छात्र आवंटित किए, वहीं डॉ. सिंह को चार छात्र दिए गए। लेकिन डॉ. नायक, जो अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से आते हैं, को इस पूरी अवधि में एक भी पीएचडी छात्र नहीं दिया गया।
इस उपेक्षा का प्रत्यक्ष प्रभाव डॉ. नायक की प्रोन्नति प्रक्रिया पर पड़ा। जब 6 जून 2019 को डॉ. नायक, डॉ. नवनीत कुमार सिंह और डॉ. निरज कुमार चौधरी को असिस्टेंट प्रोफेसर ग्रेड-वन (AGP 8000) में पदोन्नत किया गया, तब तक डॉ. नायक शोध निर्देशन के क्षेत्र में अपने सहयोगियों की तुलना में काफी पीछे रह चुके थे। नवंबर 2019 में एनआईटी सिलचर से डॉ. प्रशांत कुमार तिवारी के विभाग में शामिल होने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। डॉ. नायक को अपना पहला पीएचडी छात्र वर्ष 2020 में मिला, जबकि उनके सहयोगियों को पहले ही तीन साल का अकादमिक और पेशेवर लाभ मिल चुका था।
26 जुलाई 2023 को जब चारों शिक्षकों ने एसोसिएट प्रोफेसर (AGP 9500) पद के लिए साक्षात्कार दिया, तब सभी के पास आवश्यक क्रेडिट पॉइंट्स उपलब्ध थे। इसके बावजूद, उस समय किसी को भी पदोन्नति नहीं दी गई। हालांकि, 23 अगस्त 2024 को आयोजित दूसरे साक्षात्कार में केवल डॉ. एम. वेंकटेश नायक को शॉर्टलिस्ट नहीं किया गया। संस्थान ने इसका कारण यह बताया कि डॉ. नायक किसी भी पीएचडी छात्र का मार्गदर्शन नहीं कर पाए थे जबकि यह वही शर्त थी, जिसे पूरा करना उनके लिए लगभग असंभव था, क्योंकि उन्हें पहला पीएचडी छात्र वर्ष 2020 में ही आवंटित किया गया था।
6 जनवरी 2025 को डॉ. सिंह, डॉ. चौधरी और डॉ. तिवारी को एसोसिएट प्रोफेसर पद पर पदोन्नत कर दिया गया, जबकि डॉ. नायक को इस पद से वंचित रखा गया। इसके परिणामस्वरूप डॉ. तिवारी, जिन्होंने डॉ. नायक के बाद संस्थान में नियुक्ति ली थी, पदोन्नति के आधार पर अब वरिष्ठ माने जा रहे हैं। यह सीनियरिटी का नुकसान डॉ. नायक के अनुसार, सीधे तौर पर वर्ष 2017 से 2019 के बीच जानबूझकर उन्हें पीएचडी छात्र न दिए जाने के फैसले का परिणाम था।
5 मार्च 2025 को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) की एक बैठक में एमएनआईटी के निदेशक प्रो. आर.एस. वर्मा ने सात अन्य सदस्यों के साथ भाग लिया। डॉ. नायक का आरोप है कि इस बैठक में उनके खिलाफ झूठे साक्ष्य प्रस्तुत किए गए। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो आयोग के सदस्य जतोठ हुसैन ने उन्हें जबरन बैठक से बाहर कर दिया और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। डॉ. नायक का यह भी कहना है कि एनसीएसटी के निदेशक पी. कल्याण रेड्डी ने उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाणों की न तो जांच की और न ही उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई शुरू की। बैठक के मिनट्स केवल लगातार आरटीआई आवेदन और अनुरोधों के बाद तीन महीने बाद, 2 जून 2025 को जारी किए गए। हालांकि, डॉ. नायक के अनुसार, एमएनआईटी प्रशासन ने आयोग की सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया।
डॉ. नायक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि, 8 अगस्त 2025 को हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का निर्देश दिया। डॉ. नायक का आरोप है कि संस्थान उनकी आवाज को दबाने के उद्देश्य से उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर रहा है। उनका कहना है कि उन्होंने जो शैक्षणिक ईमेल्स छात्राओं को भेजे, उन्हें तोड़-मरोड़कर यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। साथ ही, कुछ वरिष्ठ शिक्षकों पर आरोप है कि वे छात्रों को उकसाकर डॉ. नायक के खिलाफ शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। डॉ. नायक के अनुसार, यह सब उन्हें कानूनी कार्रवाई से रोकने और संस्थागत अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई को कुचलने की रणनीति का हिस्सा है।
डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने संस्थान से एक स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित करने और उन्हें 10 अगस्त 2023 से एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत करने सहित सभी संबंधित लाभ पिछले प्रभाव से देने की मांग की है। हालांकि, ‘द मूकनायक’ द्वारा एमएनआईटी निदेशक और सचिव से इन गंभीर आरोपों पर प्रतिक्रिया मांगे जाने के लगभग छह सप्ताह बाद भी संस्थान की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।
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