दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट आकार पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उन आदेशों पर रोक लगाने की मांग की है, जिनमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों को अपना नाम और क्यूआर कोड सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है।

फोटो साभार : एचटी
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट आकार पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकारों द्वारा जारी उन निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की गई है जिनमें कहा गया है कि रेस्टोरेंट और ढाबा मालिक कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले दुकानों पर अपना नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करें।
राज्य सरकारों ने निर्देश दिए हैं कि दुकानों पर ऐसे क्यूआर कोड लगाए जाएं, जिन्हें स्कैन करने पर दुकानदार का नाम दिखाई दे। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह पहल ‘भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग’ का रास्ता खोल सकती है, जिस पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाई जा चुकी है।"
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला संभवतः 15 जुलाई को सुनवाई के लिए निर्धारित है। बार एंड बेंच के अनुसार, इस पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और एन.के. सिंह की पीठ इस सप्ताह सुनवाई कर सकती है।
अपूर्वानंद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इन दोनों राज्यों के निर्देश संविधान के कई प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं और यह सुप्रीम कोर्ट के 22 जुलाई 2024 के अंतरिम आदेश के भी विरुद्ध हैं। उस आदेश में अदालत ने स्पष्ट किया था कि 'व्यक्तिगत पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने का न तो कोई कानूनी आधार है और न ही यह सार्वजनिक व्यवस्था या खाद्य सुरक्षा अनुपालन जैसे उद्देश्यों के लिए आवश्यक है।
ज्ञात हो कि अपूर्वानंद, आकार पटेल और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा इस मामले में 2024 में दाखिल की गई याचिका के भी याचिकाकर्ता थे।
याचिका में उल्लेख किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि राज्य की कोई भी ऐसी कार्रवाई, जो व्यक्ति की निजता और गरिमा को प्रभावित करती हो, उसे वैध उद्देश्य, उपयुक्तता, आवश्यकता और अनुपातिकता की कसौटी पर खरा उतरना अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इन राज्यों द्वारा जारी निर्देश इन सभी मानकों का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा, ये निर्देश किसी वैधानिक प्रावधान के अंतर्गत नहीं आते और इनका प्रभाव भेदभावपूर्ण तथा कलंकित करने वाला होगा। याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार के निर्देश निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
याचिकाकर्ता का कहना है कि लाइसेंस एक प्रकार का प्रमाणपत्र होता है, जिसमें मालिक का नाम दर्ज होता है और जिसे दुकान के भीतर ऐसी जगह पर लगाया जाता है, जहां आवश्यकता होने पर उसे देखा जा सके। लेकिन दुकानों पर बिलबोर्ड के जरिए मालिक, प्रबंधक और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करना, या ऐसा नाम न रखने का निर्देश देना जो मालिक की धार्मिक पहचान को छुपाए, ये सभी निर्देश लाइसेंस संबंधी आवश्यकताओं के दायरे से बाहर हैं।
ज्ञात हो कि पिछले साल जुलाई में, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित कुछ अन्य सरकारों को उस निर्देश को लागू करने से रोक दिया था, जिसमें कांवड़ यात्रा के मार्गों पर दुकानदारों और फेरीवालों को अपने और अपने कर्मचारियों के नाम भी अपनी दुकानों पर प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था। कोर्ट ने माना कि खाद्य विक्रेताओं को केवल यह बताना पर्याप्त है कि वे किस प्रकार का भोजन परोस रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने बीते साल 22 जुलाई को दिए गए आदेश में कहा, "हम यह उचित समझते हैं कि एक अंतरिम आदेश पारित किया जाए, जिससे इन विवादित निर्देशों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जा सके। दूसरे शब्दों में, खाद्य विक्रेताओं (जैसे ढाबा मालिक, रेस्टोरेंट, फल-सब्जी विक्रेता, फेरीवाले आदि) को केवल यह प्रदर्शित करना होगा कि वे किस प्रकार का खाना कांवड़ियों को परोस रहे हैं। लेकिन उन्हें मालिकों और उनके प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों के नाम/पहचान प्रदर्शित करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।”

फोटो साभार : एचटी
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट आकार पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकारों द्वारा जारी उन निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की गई है जिनमें कहा गया है कि रेस्टोरेंट और ढाबा मालिक कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले दुकानों पर अपना नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करें।
राज्य सरकारों ने निर्देश दिए हैं कि दुकानों पर ऐसे क्यूआर कोड लगाए जाएं, जिन्हें स्कैन करने पर दुकानदार का नाम दिखाई दे। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह पहल ‘भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग’ का रास्ता खोल सकती है, जिस पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाई जा चुकी है।"
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला संभवतः 15 जुलाई को सुनवाई के लिए निर्धारित है। बार एंड बेंच के अनुसार, इस पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और एन.के. सिंह की पीठ इस सप्ताह सुनवाई कर सकती है।
अपूर्वानंद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इन दोनों राज्यों के निर्देश संविधान के कई प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं और यह सुप्रीम कोर्ट के 22 जुलाई 2024 के अंतरिम आदेश के भी विरुद्ध हैं। उस आदेश में अदालत ने स्पष्ट किया था कि 'व्यक्तिगत पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने का न तो कोई कानूनी आधार है और न ही यह सार्वजनिक व्यवस्था या खाद्य सुरक्षा अनुपालन जैसे उद्देश्यों के लिए आवश्यक है।
ज्ञात हो कि अपूर्वानंद, आकार पटेल और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा इस मामले में 2024 में दाखिल की गई याचिका के भी याचिकाकर्ता थे।
याचिका में उल्लेख किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि राज्य की कोई भी ऐसी कार्रवाई, जो व्यक्ति की निजता और गरिमा को प्रभावित करती हो, उसे वैध उद्देश्य, उपयुक्तता, आवश्यकता और अनुपातिकता की कसौटी पर खरा उतरना अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इन राज्यों द्वारा जारी निर्देश इन सभी मानकों का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा, ये निर्देश किसी वैधानिक प्रावधान के अंतर्गत नहीं आते और इनका प्रभाव भेदभावपूर्ण तथा कलंकित करने वाला होगा। याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार के निर्देश निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
याचिकाकर्ता का कहना है कि लाइसेंस एक प्रकार का प्रमाणपत्र होता है, जिसमें मालिक का नाम दर्ज होता है और जिसे दुकान के भीतर ऐसी जगह पर लगाया जाता है, जहां आवश्यकता होने पर उसे देखा जा सके। लेकिन दुकानों पर बिलबोर्ड के जरिए मालिक, प्रबंधक और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करना, या ऐसा नाम न रखने का निर्देश देना जो मालिक की धार्मिक पहचान को छुपाए, ये सभी निर्देश लाइसेंस संबंधी आवश्यकताओं के दायरे से बाहर हैं।
ज्ञात हो कि पिछले साल जुलाई में, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित कुछ अन्य सरकारों को उस निर्देश को लागू करने से रोक दिया था, जिसमें कांवड़ यात्रा के मार्गों पर दुकानदारों और फेरीवालों को अपने और अपने कर्मचारियों के नाम भी अपनी दुकानों पर प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था। कोर्ट ने माना कि खाद्य विक्रेताओं को केवल यह बताना पर्याप्त है कि वे किस प्रकार का भोजन परोस रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने बीते साल 22 जुलाई को दिए गए आदेश में कहा, "हम यह उचित समझते हैं कि एक अंतरिम आदेश पारित किया जाए, जिससे इन विवादित निर्देशों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जा सके। दूसरे शब्दों में, खाद्य विक्रेताओं (जैसे ढाबा मालिक, रेस्टोरेंट, फल-सब्जी विक्रेता, फेरीवाले आदि) को केवल यह प्रदर्शित करना होगा कि वे किस प्रकार का खाना कांवड़ियों को परोस रहे हैं। लेकिन उन्हें मालिकों और उनके प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों के नाम/पहचान प्रदर्शित करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।”
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