यूपी : 5 हजार सरकारी स्कूल बंद करने को लेकर प्रदर्शन, तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Written by sabrang india | Published on: July 14, 2025
“उत्तर प्रदेश में लगभग 5,000 सरकारी स्कूल बंद होने जा रहे हैं... 3 लाख से अधिक छोटे बच्चों को जबरन पास के स्कूलों में दाखिला लेने को मजबूर किया जा रहा है।”



यूपी सरकार द्वारा 5 हजार सरकारी स्कूलों को बंद या मर्ज करने के निर्णय को लेकर विरोध तेज हो गया है। जौनपुर में सरकारी स्कूल बचाओ संघर्ष समिति द्वारा कलेक्ट्रेट में मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा गया।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, विकास खंड बदलापुर में पूर्व माध्यमिक विद्यालय पहितियापुर को कम छात्र संख्या के कारण 26 जून से बंद कर दिया गया। यह कार्रवाई स्कूल विलय की अंतिम तिथि 30 जून से पहले ही कर दी गई। अभिभावकों को छात्र संख्या बढ़ाने का अवसर नहीं मिला।

पहितियापुर गांव की भौगोलिक स्थिति विशेष है। गांव के दक्षिण और पूर्व में पीली नदी व जंगल हैं, उत्तर में हाईवे बाईपास व रेल लाइन है, और पश्चिम में हाईवे व बाजार है। स्कूल को 3 किलोमीटर दूर सिंगरामऊ में विलय किया गया है।

मुश्किल रास्तों के चलते बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच रहे

अभिभावकों का कहना है कि दुर्गम रास्तों के कारण उनके बच्चे दूर स्थित स्कूलों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 45 राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे। वहीं, शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना उनका मौलिक अधिकार है।

इस अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक बच्चे को अपने घर के नजदीक स्थित स्कूल में पढ़ाई का अधिकार प्राप्त है। ग्रामवासियों का कहना है कि केवल छात्र संख्या के आधार पर स्कूलों को बंद करना न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन भी है। उन्होंने मांग की है कि पहितियापुर सहित अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों को बंद न किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

वहीं, स्कूलों के मर्जर के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई है। यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के उस आदेश को चुनौती देती है, जिसमें कोर्ट ने स्कूलों को बंद करने को सरकार का नीतिगत निर्णय बताते हुए याचिका खारिज कर दी थी। याचिकाकर्ता के वकील का तर्क है कि हाईकोर्ट ने मामले की मेरिट पर विचार किए बिना ही केवल इस आधार पर फैसला सुना दिया कि जिन स्कूलों में 50 या उससे कम छात्र हैं, उन्हें पास के स्कूलों में विलय किया जा सकता है।

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, वकील का कहना है कि ये स्कूल 15–20 साल पहले खोले गए थे और तब से उत्तर प्रदेश की आबादी बढ़ी है, घटी नहीं। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार यह जांच क्यों नहीं करती कि इन स्कूलों में शिक्षक हैं या नहीं। उन्होंने कर्नाटक सरकार का उदाहरण दिया, जहां कम बच्चों वाले स्कूल भी चलाए जा रहे हैं। याचिका में शिक्षा के अधिकार को आधार बनाया गया है।

वकील ने कहा, "सभी 14 साल से नीचे के बच्चों का मौलिक अधिकार है कि उनको प्राइमरी एजुकेशन दी जाए।" उनका तर्क है कि सरकार अगर अन्य धार्मिक गतिविधियों पर खर्च कर सकती है, तो बच्चों की शिक्षा पर क्यों नहीं। इन 5000 स्कूलों में मदरसे शामिल नहीं हैं—केवल सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर विचार करने की बात कही है, लेकिन शीघ्र सुनवाई की अर्जी फिलहाल खारिज कर दी है। अगली सुनवाई का इंतजार है।

3 लाख से ज्यादा बच्चे पास के स्कूलों में जाने को मजबूर

लाइव लॉ ने वकील के हवाले से सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका को लेकर लिखा, “उत्तर प्रदेश में लगभग 5,000 सरकारी स्कूल बंद होने जा रहे हैं।” वकील ने सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई की मांग की। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “हम इस पर विचार करेंगे, विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करें।” वकील ने कहा, “3 लाख से अधिक छोटे बच्चों को जबरन पास के स्कूलों में दाखिला लेने को मजबूर किया जा रहा है।” जवाब में जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “यह नीतिगत मामला है... [लेकिन] हम इसकी सुनवाई करेंगे।”



समाजवादी पार्टी ने स्कूल के मर्जर को लेकर सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, "मुख्यमंत्री योगी ने यूपी की शिक्षा व्यवस्था को किया बर्बाद, स्कूलों के मर्जर के कारण स्कूलों की बढ़ी दूरी, हजारों बच्चे नहीं जा पा रहे स्कूल। सरकार की गलत नीतियों के कारण चौपट हो रहा मासूमों का भविष्य। नहीं चाहिए भाजपा।"



स्कूलों के विलय को लेकर शिक्षकों का प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बीते सप्ताह मंगलवार को स्कूल शिक्षकों ने विभिन्न मुद्दों को लेकर प्रदर्शन किया, जिनमें कम नामांकन वाले प्राथमिक स्कूलों का विलय प्रमुख मुद्दा रहा। शिक्षकों ने दोहराया कि यह विलय राज्य की पहले से ही जर्जर प्राथमिक शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज में सर्व शिक्षा अभियान कार्यालय के बाहर प्राथमिक शिक्षक संघ के सैकड़ों सदस्यों ने विरोध किया। उन्होंने 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों के विलय, 150 से कम छात्रों वाले स्कूलों में प्रधानाध्यापक के पद समाप्त करने, 100 से कम छात्रों वाले उच्च प्राथमिक स्कूलों में यही प्रक्रिया अपनाने, पुरानी पेंशन योजना (OPS), कैशलेस चिकित्सा सुविधा, मृतक आश्रितों की नियुक्ति, पदोन्नति, बीएलओ ड्यूटी से छूट, ग्रीष्मकालीन स्कूल समय में बदलाव और पदोन्नत वेतनमान जैसे मुद्दों को लेकर नाराजगी जताई।

"शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी”

शिक्षक नेता देवेंद्र श्रीवास्तव ने कहा, “विलय से पहले से ही संकटग्रस्त प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी। छात्रों को दूर-दराज के स्कूलों में जाना पड़ेगा, जिससे अभिभावकों पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। प्राथमिक शिक्षकों की अनेक समस्याएं हैं, जिन्हें सरकार लगातार नजरअंदाज कर रही है।”

राज्य के कई अन्य जिलों में भी शिक्षकों ने अपनी मांगों को लेकर अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा।

इस मुद्दे को लेकर न सिर्फ शिक्षकों बल्कि विपक्षी दलों ने भी सरकार की आलोचना की है और इस फैसले को गरीब विरोधी करार दिया है। कुछ छात्रों ने अपने अभिभावकों के माध्यम से इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस विलय के खिलाफ याचिका दायर की थी। हालांकि, 7 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि स्कूलों का जोड़ीकरण (विलय) संविधान के अनुच्छेद 21A का उल्लंघन नहीं करता।

गरीब विरोधी फैसला

उत्तर प्रदेश में 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों के विलय की प्रक्रिया को लेकर समाजवादी पार्टी ने सरकार पर गरीबों को शिक्षा से वंचित करने का आरोप लगाया था।

उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का विलय शुरू करने की प्रक्रिया के बीच, जिनमें 50 से कम छात्र नामांकित हैं, समाजवादी पार्टी ने राज्य सरकार पर हमला बोला है। पार्टी ने इस नीति को गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित करने की “सुनियोजित रणनीति” करार दिया है।

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शिक्षक संगठनों की बैठक को संबोधित करते हुए कहा, “जैसे ही शिक्षक और अभिभावक समझेंगे कि भाजपा सरकार शिक्षक विरोधी और शिक्षा विरोधी है, हालात में सुधार होना शुरू होगा। स्कूलों का विलय गरीबों को शिक्षा से दूर रखने की एक सोच-समझकर बनाई गई रणनीति है। यह सरकार संवेदनहीन है। इस फैसले का सबसे बड़ा असर ग्रामीण क्षेत्रों के उन बच्चों पर पड़ेगा, जो हाशिए पर रह रहे और आर्थिक रूप से वंचित समुदायों से आते हैं। ग्रामीण बच्चों को शिक्षा व्यवस्था से बाहर होना पड़ेगा।”

अखिलेश यादव ने आश्वासन दिया था कि अगर समाजवादी पार्टी सत्ता में आती है, तो वह शिक्षकों की मांगों के साथ हमेशा खड़ी रहेगी और उनकी समस्याओं का समाधान करेगी।

विलय पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज

वहीं, बीते सप्ताह इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों के विलय पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने 4 जुलाई को दो दिन की सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सीतापुर के 51 छात्रों की ओर से एक अभिभावक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि स्कूलों का यह विलय छात्रों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता का कहना था कि विलय के बाद छात्रों को अब दूर स्थित स्कूलों में जाना पड़ेगा, जिससे उन्हें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

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