यूपी : मथुरा की शाही ईदगाह को 'विवादित ढांचा' बताने वाली याचिका को से हाईकोर्ट ने खारिज किया

Written by sabrang india | Published on: July 5, 2025
कोर्ट ने कहा कि फिलहाल जो दस्तावेज और सबूत हैं, उनके आधार पर शाही ईदगाह मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित नहीं किया जा सकता।


फोटो साभार : आज तक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार 3 जुलाई 2025 को मथुरा स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को सभी आगामी कार्यवाहियों में "विवादित ढांचा" कहने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने अधिवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि संबंधित स्टेनोग्राफर को निर्देश दिया जाए कि वह आगे की सभी कार्यवाहियों और संबंधित मामलों में “शाही ईदगाह मस्जिद” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द का इस्तेमाल करे।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, इस याचिका का विरोध करते हुए मस्जिद का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि इस आवेदन के जरिए से वादी 'बैकडोर' से एक नया मामला पेश करने की कोशिश कर रहा है और यह स्थापित तथ्य कि 'शाही मस्जिद ईदगाह' एक मस्जिद है, को नकारने की कोशिश कर रहा है।

याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “पक्षकारों की दलीलों में भी जिस ढांचे का उल्लेख है, उसे शाही मस्जिद ईदगाह कहा गया है और इस समय जब मुकदमे की सुनवाई शुरू भी नहीं हुई है और मुद्दे तक तय नहीं हुए हैं, ऐसे में याचिकाकर्ता द्वारा मांग की गई कि स्टेनोग्राफर को यह निर्देश देना कि वह शाही मस्जिद ईदगाह को आदेशों और निर्णयों में 'विवादित ढांचा' कहे, जो न तो उपयुक्त है और न ही आवश्यक।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट इस समय कुल 18 मामलों की सुनवाई कर रहा है, जिन्हें 2023 में एक साथ जोड़ा गया था। इन सभी का उद्देश्य शाही ईदगाह को हटाना है जिसे याचिकाकर्ताओं ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर में अतिक्रमण बताया है। उनका दावा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने कृष्ण मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर यह मस्जिद बनवाई थी।

दिसंबर 2023 में हाईकोर्ट ने मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की याचिका स्वीकार की थी लेकिन इस निर्णय पर जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की समिति और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच यह समझौता हुआ था कि दोनों पूजा स्थल एक साथ संचालित होंगे। बाद में याचिकाकर्ताओं ने इस समझौते को चुनौती दी और इसे कानूनन अमान्य बताया।

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि फिलहाल जो दस्तावेज और सबूत हैं, उनके आधार पर शाही ईदगाह मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि शाही ईदगाह को विवादित घोषित करने के लिए कोई "मज़बूत आधार" नहीं है।

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हिंदू पक्षकारों ने दावा किया कि जिस भूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है, वह मूल रूप से भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर का स्थान था। उन्होंने तर्क दिया कि मस्जिद की दीवारों पर आज भी हिंदू देवी-देवताओं के निशान और तस्वीर साफ तौर पर देखे जा सकते हैं। उनका कहना था कि केवल किसी स्थान पर अवैध रूप से कब्जा कर लेने से मालिकाना हक साबित नहीं होता। उन्होंने इस मामले की तुलना अयोध्या विवाद से करते हुए कहा कि जैसे बाबरी मस्जिद को पहले 'विवादित ढांचा' घोषित किया गया था, वैसे ही शाही ईदगाह को भी आगे की कानूनी कार्यवाही से पहले 'विवादित ढांचा' घोषित किया जाना चाहिए।

इसके उलट, मुस्लिम पक्ष ने इस याचिका पर कड़ी आपत्ति जताई और हिंदू पक्ष की दलीलों को पूरी तरह से निराधार बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि शाही ईदगाह पिछले 400 वर्षों से अस्तित्व में है। मुस्लिम पक्ष ने दलील दी कि न केवल इस याचिका को खारिज किया जाए, बल्कि याचिकाकर्ताओं पर दंड भी लगाया जाए।

इस मामले की अगली सुनवाई 2 अगस्त को तय की गई है। 

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