बेंगलुरु विश्वविद्यालय के दस दलित प्रोफेसरों ने भेदभाव का आरोप लगाते हुए प्रशासनिक पदों से इस्तीफा दिया

Written by sabrang india | Published on: July 4, 2025
इस्तीफा देने वालों में आंबेडकर अनुसंधान केंद्र के निदेशक प्रो. सी. सोमहर्षकर, छात्र कल्याण निदेशक नागेश पीसी, पीएम-उषा (PM-USHA) समन्वयक सुधेश वी, और दूरस्थ शिक्षा एवं ऑनलाइन शिक्षा केंद्र के निदेशक मुरलीधर बीएल शामिल हैं।


फोटो साभार : डेक्कन हेराल्ड

बेंगलुरु विश्वविद्यालय में दलित प्रोफेसरों के साथ भेदभाव का गंभीर मामला सामने आया है। करीब दस दलित प्रोफेसरों ने अपने अतिरिक्त प्रशासनिक दायित्वों से इस्तीफा दे दिया है। उनका कहना है कि इन पदों के आवंटन में उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।

इन प्रोफेसरों का कहना है कि पहले उन्हें शैक्षणिक कार्यों के साथ-साथ महत्वपूर्ण प्रशासनिक जिम्मेदारियां भी सौंपी जाती थीं। हालांकि, हाल ही में उन्हें केवल "प्रभारी" (in-charge) की भूमिकाएं दी जा रही हैं, जिसे वे अपनी अधिकार सीमित करने की एक कोशिश मानते हैं। उनका यह भी आरोप है कि विश्वविद्यालय उन्हें इन जिम्मेदारियों से जुड़ी अर्न्ड लीव (earned leave) बेनिफिट भी नहीं दे रहा है।

विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार (प्रशासन) को लिखे एक पत्र में इन प्रोफेसरों ने कहा, “अतिरिक्त प्रशासनिक जिम्मेदारियां देते समय केवल ‘प्रभारी’ के रूप में उल्लेख किया जा रहा है और साथ ही हमारे खातों में जमा अर्न्ड लीव को भी देने से बचा जा रहा है। इस विषय में कई बार अनुरोध करने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। इसलिए हम सभी सौंपे गए अतिरिक्त दायित्वों से इस्तीफा दे रहे हैं।”

इस्तीफा देने वालों में आंबेडकर अनुसंधान केंद्र के निदेशक प्रो. सी. सोमहर्षकर, छात्र कल्याण निदेशक नागेश पीसी, पीएम-उषा (PM-USHA) समन्वयक सुधेश वी, और दूरस्थ शिक्षा एवं ऑनलाइन शिक्षा केंद्र के निदेशक मुरलीधर बीएल शामिल हैं।

ज्ञात हो कि विश्वविद्यालयों में दलित प्रोफेसरों या दलित स्कॉलर से भेदभाव के मामले सामने आते रहे हैं। इसी साल अप्रैल महीने में प्रोफेसर डॉ. महेश प्रसाद अहिरवार ने आरोप लगाया था कि डिपार्टमेंट में सबसे सीनियर होने के बावजूद उन्हें विभागाध्यक्ष पद से वंचित कर दिया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डॉ. महेश प्रसाद अहिरवार ने आरोप लगाया कि विभाग में सबसे वरिष्ठ होने के बावजूद उन्हें विभागाध्यक्ष पद से वंचित कर दिया गया। 31 मार्च को कुलपति सुधीर कुमार जैन ने उनकी बजाय कला संकाय की डीन डॉ. सुषमा घिल्डियाल को इस पद पर नियुक्त कर दिया।

दलित प्रोफेसर अहिरवार ने कहा, "यह जातिगत भेदभाव का घिनौना रूप है।" उनका कहना था कि विभागाध्यक्ष पद वरिष्ठता के आधार पर रोटेशन से दिया जाता है और इस प्रक्रिया का उल्लंघन कर उन्हें नजरअंदाज किया गया।

हालांकि यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेश ने इस पर ऑफिशियल स्टेटमेंट नहीं दिया था, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा खा कि वरिष्ठता तय करने के लिए बैठक बुलाई जाएगी। अहिरवार का कहना था कि यह नियमों के खिलाफ है, क्योंकि उनकी वरिष्ठता पहले से तय है। उन्होंने आगे कहा कि यदि विश्वविद्यालय ने इस मामले को नहीं सुलझाया, तो वे कानूनी कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं।

वहीं, इसी साल जनवरी महीने में मध्य प्रदेश के सीधी जिले के एक दलित प्रोफेसर डॉ. रामजस चौधरी का मामला अब हाईकोर्ट पहुंच था। उन पर जानलेवा हमला किया गया और नौकरी से अवैधानिक तरीके से बर्खास्त किया गया। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने सीधी के एसपी को आदेश दिया कि सात दिनों के भीतर सभी आरोपियों पर आपराधिक कार्यवाही करें।

द मूकनायक की रिपोरट के अनुसार, डॉ. रामजस चौधरी, जो सीधी जिले के एक कॉलेज में वाणिज्य विभाग के गेस्ट फैकल्टी थे, उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका (क्रमांक 488/2025) दायर कर आरोप लगाया कि कॉलेज की प्राचार्य गीता भारती और उनके पति एस.आर. भारती समेत 20 लोगों ने स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सदस्यता लेने और उनके कार्यक्रमों में आर्थिक सहयोग करने का दबाव बनाया। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें बाथरूम में बंद करने जैसी घटनाएं हुईं।

प्रोफेसर डॉ. चौधरी ने पुलिस और एसपी कार्यालय को मामले की शिकायत की लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट दरवाजा खटखटाया।

उधर दलित स्कॉलर से भेदभाव की बात करें कई संस्थानों में इस तरह का मामला देखने को मिला है। दलित छात्र के न्याय के लिए संघर्ष ने विरोध और राजनीतिक कार्रवाई की आग को हवा दे दिया था क्योंकि उसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पीएचडी कार्यक्रम में प्रवेश देने से कथित तौर पर मना कर दिया गया जबकि उसने सामान्य श्रेणी में दूसरा स्थान हासिल किया था।

अनुसूचित जाति समुदाय के छात्र शिवम सोनकर ने विश्वविद्यालय पर जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाया था। उनका दावा था कि आरईटी छूट श्रेणी में खाली सीटों के बावजूद उन्हें दाखिला प्रक्रिया से बाहर रखा गया। वायरल वीडियो में कैद उनके भावनात्मक विरोध ने लोगों का ध्यान खींचा था। इसको लेकर मछलीशहर विधायक डॉ. रागिनी सोनकर और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ने उनका समर्थन किया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीएचयू के कुलपति से तत्काल दखल की मांग की थी।

शिवम सोनकर ने 2024-25 शैक्षणिक सत्र के लिए बीएचयू के मालवीय पीस रिसर्च सेंटर में पीस एंड कनफ्लिक्ट स्टडीज में पीएचडी के लिए आवेदन किया था। उन्होंने रिसर्च एंट्रेंस टेस्ट (आरईटी) की सामान्य श्रेणी में दूसरा स्थान हासिल किया, लेकिन उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया गया। शिवम का आरोप था कि आरईटी छूट श्रेणी में तीन सीटें खाली हैं, लेकिन विश्वविद्यालय उन्हें आरईटी श्रेणी में बदलने से इनकार कर रहा है, जिससे उनका दाखिला नहीं हुआ। कुलपति से की गई अपनी गुहार में शिवम ने लिखा, "मैं एक दलित छात्र हूं, जिसने सामान्य श्रेणी में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। आरईटी छूट श्रेणी में तीन सीटें खाली होने के बावजूद मुझे प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। यह शैक्षणिक हत्या से कम नहीं है।"

कुलपति आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन के दौरान शिवम के रोने और जमीन पर लेटने का वीडियो वायरल हो गया था जिससे सोशल मीडिया पर भारी नाराजगी देखी गई। कार्यकर्ता, छात्र और नेता बीएचयू पर जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाते हुए उसके साथ खड़े थे।

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