आलोचना की सजा आखिर कितनी बड़ी होती है? नफरत की राजनीति की आलोचना करने पर प्रोफेसर महमूदाबाद गिरफ्तार

Written by sabrang india | Published on: May 21, 2025
राष्ट्रीय सुरक्षा अभियान के दौरान नफरत की राजनीति पर की गई आलोचना के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के एक सम्मानित विद्वान को निशाना बनाया जाना आज के भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संस्थागत स्वायत्तता और असहमति की बढ़ती अवहेलना को उजागर करता है।



अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद को रविवार, 18 मई को दिल्ली में गिरफ्तार किया गया। यह गिरफ्तारी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर उनकी सोशल मीडिया टिप्पणी को लेकर हुई है, जो भारत की हालिया सैन्य कार्रवाई से जुड़ी थी। उनके खिलाफ हरियाणा में दो प्राथमिकी दर्ज हैं जिनमें उन पर देशविरोधी भावना भड़काने, धार्मिक आस्थाओं का अपमान करने और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए गए हैं। 

ये गिरफ्तारी हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया और जठेड़ी गांव के सरपंच व हरियाणा में भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेड़ी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों के आधार पर की गई। 

उन पर भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं, जिनमें शामिल हैं: 

    • धारा 152 – ऐसा कृत्य जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है
    • धारा 353 – ऐसे बयान जो सार्वजनिक शांति भंग करने की प्रवृत्ति रखते हैं
    • धारा 79 – किसी महिला की गरिमा का अपमान करने के उद्देश्य से कहे गए शब्द, संकेत या कृत्य
    • धारा 196(1)(b) – धर्म के आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना
    • धारा 197(1)(c) – ऐसे कथन जो राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक हैं
    • धारा 299 – धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से की गई दुर्भावनापूर्ण हरकतें

सोनीपत डीसीपी (अपराध) नरेंद्र कादियान के अनुसार, महमूदाबाद को एक स्थानीय अदालत में पेश किया गया, जहां उन्हें दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया ताकि मामले की जांच की जा सके।

पृष्ठभूमि: ‘ऑपरेशन सिंदूर’, राष्ट्रीय ब्रीफिंग और विचार व्यक्त करने का अधिकार

7 मई 2025 की सुबह भारतीय सशस्त्र बलों ने पीओके और पाकिस्तान में स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। यह कार्रवाई पहलगाम में 26 नागरिकों की सामूहिक हत्या की प्रतिक्रिया में की गई थी। इस पूरे अभियान को 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया गया, जो भारत की आतंकवाद के खिलाफ रणनीति में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। 

उसी दिन, कर्नल सोफिया कुरेशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह साथ ही विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने मीडिया से बात की। यह प्रेस ब्रीफिंग, जिसमें ये दोनों वरिष्ठ महिला अधिकारी शामिल थीं, मीडिया प्लेटफॉर्म्स और राजनीतिक टिप्पणीकारों द्वारा काफी कवरेज की गई और खासकर हिंदुत्व विचारधारा से जुड़े लोगों ने इसकी सराहना की। 

8 मई को प्रेस ब्रीफिंग के एक दिन बाद, प्रोफेसर महमूदाबाद ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली, जिसमें उन्होंने इस ब्रीफिंग के सार्वजनिक स्वागत पर टिप्पणी की। अपनी पोस्ट में, उन्होंने यह विडंबना जताई कि दक्षिणी विचारधारा से जुड़े लोग, खासकर कर्नल कुरेशी की सराहना कर रहे थे, जबकि वे मॉब लिंचिंग, मनमानी तोड़फोड़ और धार्मिक हिंसा जैसे घरेलू मुद्दों पर चुप थे। 

महमूदाबाद ने लिखा, "शायद वे उतनी ही जोरदार आवाज में यह भी मांग कर सकते हैं कि भीड़ द्वारा हत्या, मनमाने तरीके से तोड़ फोड़ और भारतीय जनता पार्टी की नफरत फैलाने वाली गतिविधियों के शिकार अन्य लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में सुरक्षा दी जाए।"  

उन्होंने आगे लिखा:

"दो महिला सैनिकों द्वारा अपनी रिपोर्ट पेश करना प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल प्रतीकात्मकता से काम नहीं चलेगा, जब तक यह जमीनी स्तर पर वास्तविक बदलाव में परिवर्तित न हो, तब तक यह महज़ एक पाखंड ही रहेगा।" (विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।)

इन टिप्पणियों को शिकायतकर्ताओं द्वारा राष्ट्रीय सैन्य प्रयासों की अवमानना और एक राष्ट्रीय सुरक्षा अभियान को सांप्रदायिक एवं राजनीतिक रंग देने का प्रयास माना गया। 

गिरफ्तारी का आधार

हरियाणा राज्य महिला आयोग की कार्रवाई: हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा राज्य महिला आयोग ने महमूदाबाद की टिप्पणियों का स्वतः संज्ञान लिया और आरोप लगाया कि ये टिप्पणियां:

●भारतीय सशस्त्र बलों की महिला अधिकारियों का अपमान करना

●सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने का प्रयास करना

●एक संवेदनशील राष्ट्रीय क्षण के दौरान सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन करना

आयोग ने 14 मई को महमूदाबाद को समन भेजा लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया। फिर 15 मई को आयोग के अधिकारी अशोका यूनिवर्सिटी पहुंचे, लेकिन बताया गया कि महमूदाबाद उनसे मिलने नहीं आए। 

अपने पुलिस शिकायत में आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया ने महमूदाबाद पर निम्नलिखित आरोप लगाए: 

●"जंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना," जबकि सरकार ने आधिकारिक तौर पर किसी युद्ध की घोषणा नहीं की थी।

● एक राजनीतिक पार्टी को "नफरत फैलाने वाली पार्टी" कहना, जिसे रेनू भाटिया ने भड़काऊ और एकतरफा (पक्षपाती) बताया।

दूसरी शिकायत और बीजेपी की भूमिका: इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दूसरी एफआईआर योगेश जठेड़ी की शिकायत पर दर्ज हुई, जो जठेड़ी गांव के सरपंच और बीजेपी युवा नेता हैं। उन्होंने कहा कि महमूदाबाद की बातें उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत आहत करने वाली लगीं और उनका लहजा देशविरोधी था।

हरियाणा बीजेपी प्रवक्ता संजय शर्मा ने एफआईआर और पुलिस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा:

"देश की सुरक्षा के लिए सुरक्षा एजेंसियां जो उचित है वही कार्रवाई कर रही हैं।"

प्रोफेसर महमूदाबाद की प्रतिक्रिया:

गिरफ्तारी से पहले और महिला आयोग का नोटिस मिलने के बाद, प्रोफेसर महमूदाबाद ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक सार्वजनिक बयान जारी किया। उसमें उन्होंने अपने बयान का बचाव किया और महिला आयोग द्वारा की गई व्याख्या की आलोचना की।

मैं हैरान हूं कि महिला आयोग ने अपनी सीमा से बाहर जाकर मेरी पोस्टों को इस हद तक गलत पढ़ा और समझा है कि उनके असली मतलब को ही उलट दिया गया है।"

उन्होंने आगे कहा कि उनका शैक्षणिक और सार्वजनिक कार्य हमेशा शांति को बढ़ावा देने, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता को समर्थन देने पर केंद्रित रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य सेना का अपमान करना नहीं था, बल्कि:

"भारतीय सशस्त्र बलों की दृढ़ कार्रवाई की सराहना करना, साथ ही उन लोगों की आलोचना करना जो नफरत फैलाते हैं और भारत को अस्थिर करने की कोशिश करते हैं।" 



कानूनी और संस्थागत प्रभाव:

सोमवार 19 मई को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष पेश होकर प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी के मामले में त्वरित सुनवाई की मांग की।

लाइव लॉ के अनुसार, कपिल सिब्बल ने अदालत के सामने दलील दी, “उन्हें देशभक्ति वाले बयान के लिए गिरफ्तार किया गया है” और अदालत से इस मामले को बिना देर किए सुनने की अपील की।

इस पर पीठ ने जवाब दिया कि यह मामला 20 या 21 मई को सूचीबद्ध किया जाएगा, जिससे यह संकेत मिला कि अदालत गिरफ्तारी की वैधता और इसकी तात्कालिकता पर विचार करने को तैयार है।

प्रोफेसर महमूदाबाद एक प्रतिष्ठित विद्वान और बुद्धिजीवी हैं, जो अपने शोध, लेखन और नीतिगत कार्यों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पूर्व में वरिष्ठ नौकरशाहों, सैन्य अधिकारियों और नीति-निर्माताओं के साथ सहयोग किया है और वे संवैधानिक मूल्यों, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता के पक्ष में अपनी मजबूत आवाज के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी गिरफ्तारी ने शैक्षणिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में वैध आलोचना की सीमाओं को लेकर व्यापक बहस छेड़ दी है। कई लोगों ने इस बात पर चिंता जताई है कि राजनीतिक टिप्पणियों को आपराधिक बना देना, खासकर जब वे सत्तारूढ़ पार्टी या राज्य संस्थाओं की आलोचना करती हैं, लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा बन सकता है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया: विपक्ष की कड़ी आलोचना

इस गिरफ्तारी के बाद विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (SP), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM), तृणमूल कांग्रेस (TMC) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेताओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमले के रूप में निंदा किया।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया पर तीखा बयान जारी किया, उन्होंने कहा, "अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी से यह साफ होता है कि बीजेपी किसी भी ऐसी राय से कितनी डरती है, जो उसे पसंद नहीं आती।" 

खड़गे ने बीजेपी के दोहरे मानदंडों पर ध्यान खींचते हुए कहा कि जहां महमूदाबाद को एक "वैचारिक" पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया, वहीं मध्यप्रदेश के आदिवासी कल्याण मंत्री विजय शाह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिन्होंने 12 मई को ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में कर्नल सोफिया कुरेशी को "उनकी अपनी समाज की बहन के जरिए" कहकर सेक्सिस्ट और सांप्रदायिक टिप्पणियां की थीं। (विवरण यहां पढ़ी जा सकती है।) 

अपने सोशल मीडिया पोस्ट में खड़गे ने कहा, “सशस्त्र बलों का अपमान करने वाले अपनी ही मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय बीजेपी-आरएसएस उन आवाजों को चुप कराने पर तुले हैं जो बहुलवाद का समर्थन करती हैं, सरकार की चुनौती करती हैं, या सिर्फ ईमानदारी से अपना काम करती हैं। 

उन्होंने अंत में यह कहा कि कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र सबसे जरूरी है और सशस्त्र बलों का समर्थन करने का मतलब यह नहीं है कि असहमतियों को दबाया जाए। 



कांग्रेस के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा ने गिरफ्तारी को असहमति को अपराध बना देने जैसा बताया, उन्होंने कहा, "एक इतिहासकार और विद्वान को हिंसा भड़काने के लिए नहीं, बल्कि इसके खिलाफ बोलने के लिए जेल में डाला गया। उनका अपराध? सत्ता को सच बताना और बीजेपी के झूठे दिखावे को बेनकाब करना।" 

खेड़ा ने यह भी कहा कि महमूदाबाद की "सिर्फ एक गलती" यह थी कि "उन्होंने एक वैचारिक पोस्ट लिखा और उनकी दूसरी गलती उनका नाम था।" उन्होंने आगे यह याद दिलाया कि महमूदाबाद पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त जगत एस. मेहता के नाती हैं, जो भारत के पूर्व विदेश सचिव थे और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में सेवा दे चुके हैं।

उन्होंने बीजेपी पर लेखकों, प्रोफेसरों और आलोचकों को चुप कराने के लिए राज्य मशीनरी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और चेतावनी दी कि "जब असहमति को अपराध माना जाता है, तो असली दुश्मन खुद लोकतंत्र है।"



समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने निंदा करते हुए एक शेर लिखा, "हुक्मरान जब गलत बातें करते हैं तो आजादी है, लेकिन कोई सच बोले तो उसे पकड़ लिया जाता है।" 



स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने महमूदाबाद के असहमत होने के अधिकार का बचाव करते हुए कहा, "उन्हें अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने के लिए गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। यह राज्य की ताकत का गलत इस्तेमाल है।”

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस गिरफ्तारी को "पूरी तरह निंदा योग्य" बताया और कहा कि महमूदाबाद को एक सोच-समझकर की गई राय के लिए सजा दी गई, "उनकी पोस्ट न तो देश विरोधी थी और न ही महिलाओं के खिलाफ। बीजेपी कार्यकर्ता की एक मामूली शिकायत पर ही हरियाणा पुलिस ने इतनी जल्दी कार्रवाई की।" 



तृणमूल कांग्रेस (TMC) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेताओं ने भी इस मामले में अपनी राय दी, और गिरफ्तारी को "निंदनीय", "राजनीतिक उद्देश्य से की गई" और शैक्षिक और सार्वजनिक संवाद में "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए स्पष्ट खतरा" करार दिया। 

विवाद के बीच अशोका विश्वविद्यालय का दुविधापूर्ण रुख

अशोका विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी के बाद कुछ सतर्क और दूरी बनाए रखने वाला रवैया अपनाया है। गिरफ्तारी से पहले, विश्वविद्यालय ने ये साफ किया था कि प्रोफेसर की सोशल मीडिया पोस्ट उनकी अपनी निजी राय हैं और ये विश्वविद्यालय का आधिकारिक रुख नहीं हैं। आलोचक इसे शैक्षणिक स्वतंत्रता का सही तरीके से बचाव न करने के तौर पर देखते हैं, खासकर जब राजनीति का माहौल इतना गरम हो। 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गिरफ्तारी के बाद अशोका विश्वविद्यालय ने एक तटस्थ बयान जारी किया, जिसमें कहा कि वह "विवरण की जांच कर रहा है" और "पुलिस और स्थानीय अधिकारियों के साथ पूरी तरह से सहयोग करते रहेंगे।" यह प्रक्रियागत संतुलित जवाब था। इसको कई लोगों ने एक फैकल्टी सदस्य के प्रति समर्थन की कमी के रूप में देखा जो समर्थकों के मुताबिक, राजनीतिक कारणों से और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अत्यधिक दबाव का सामना कर रहा था। 

विश्वविद्यालय का गिरफ्तारी के खिलाफ मजबूती से विरोध न करना, खासकर जब आरोप महमूदाबाद की शैक्षणिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर आलोचनात्मक सोच से जुड़े हैं, इसे संस्थागत सहमति और भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता के कमजोर होने के तौर पर देखा जा रहा है। महमूदाबाद की इस गलत गिरफ्तारी का विरोध करने वाले लोग कहते हैं कि ऐसे वक्त में अगर शैक्षिक संस्थान चुप रहते हैं या तटस्थ रहते हैं, तो ये राज्य के दखल को बढ़ावा देता है और उन मूल्यों को कमजोर करता है जिन्हें विश्वविद्यालयों को बनाए रखना चाहिए। 

शैक्षणिक और सिविल सोसाइटी की प्रतिक्रिया: “जानबूझकर की गई परेशान करने वाली कार्रवाई” पर गुस्सा

अशोका विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र प्रोफेसर महमूदाबाद के समर्थन में खड़े हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को भेजे गए एक आंतरिक ईमेल में अशोका यूनिवर्सिटी की अकैडमिक फ्रीडम कमेटी (CAF) ने उनकी गिरफ्तारी की निंदा की और कहा कि यह बहुत ही कमजोर वजहों पर की गई जरूरत से ज्यादा सख्त कार्रवाई है। कमेटी ने इसे शैक्षणिक आजादी पर सीधा हमला बताया।

अशोका यूनिवर्सिटी फैकल्टी एसोसिएशन ने भी एक आधिकारिक बयान जारी कर प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी की निंदा की और कहा कि उन पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं और टिक ही नहीं सकते। उन्होंने इसे “सोच-समझकर किया गया परेशान करने वाला कदम” बताया और कहा कि प्रोफेसर महमूदाबाद को:

● उन्हें सुबह-सुबह दिल्ली वाले घर से गिरफ्तार किया गया,
● ट्रांजिट रिमांड लिए बिना सीधे सोनीपत ले जाया गया,
● जरूरी दवाइयां तक नहीं लेने दी गईं,
● और बिना ये बताए कि उन्हें कहां ले जा रहे हैं, घंटों तक गाड़ी में घुमाया गया।

बयान में उन्हें यूनिवर्सिटी का एक बहुत ही अहम और भरोसेमंद सदस्य बताया गया और उनके ज्ञान, ईमानदारी, संविधानिक मूल्यों, बहुलता (pluralism) और अकादमिक सच्चाई के प्रति उनकी सोच की तारीफ की गई।

"उन्होंने हमें सिखाया है कि एक सच्चा नागरिक-विद्वान (citizen-scholar) क्या होता है जो सोच-समझकर बात करता है, सवाल उठाता है, लेकिन दुनिया से जुड़ते हुए सम्मान और उदारता नहीं छोड़ता…। हम उनकी तुरंत और बिना शर्त रिहाई की मांग करते हैं, साथ ही सभी आरोप हटाए जाएं।"



प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के छात्रों ने उनके समर्थन में एक मजबूत और भावनात्मक संदेश जारी किया।



1000 से ज़्यादा शिक्षकों और बुद्धिजीवियों ने समर्थन किया: प्रोफेसर महमूदाबाद के समर्थन में एक खुला पत्र जारी किया गया, जिस पर 1000 से ज्यादा देश-विदेश के शिक्षाविदों और विद्वानों ने दस्तखत किए। इस पत्र में उनकी गिरफ्तारी को "बिलकुल बेवजह" और आजादी से बोलने के हक पर सीधा हमला बताया गया। इसमें कहा गया कि ये मामला दिखाता है कि भारत में लोगों की बोलने की आजादी धीरे-धीरे खतरे में पड़ती जा रही है। 

इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख हस्तियों में रोमिला थापर, रामचंद्र गुहा, जयती घोष, निवेदिता मेनन और राम पुनियानी शामिल हैं। 

इस पत्र में कहा गया: "यह बहुत ही अजीब और चौंकाने वाली बात है कि हम भारत में इस मोड़ पर आ गए हैं कि सेना की तारीफ करना, भले ही युद्ध की मांग करने वालों की आलोचना करते हुए करें, अब ऐसे निशाना बनाने वाली परेशानियों और सेंसरशिप के प्रयासों का कारण बन सकता है।"

इस पत्र में महमूदाबाद की पोस्ट्स की तारीफ की गई, जिसमें उन्होंने आतंकवादियों और पाकिस्तानी सेना के बीच बढ़ती हुई समानता को दिखाया और साथ ही भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का जश्न मनाया, खासकर जब महिला अफसरों को सार्वजनिक ब्रीफिंग्स में शामिल किया गया। 

"प्रोफेसर खान की पोस्ट्स न तो महिलाओं के खिलाफ हैं और न ही देशविरोधी, बल्कि ये एक साफ-सुथरी नैतिक दृष्टि से प्रेरित हैं कि एक अच्छा नागरिक होने का क्या मतलब है...। ये एक सच्चे देशभक्त के शब्द हैं, जो सैनिकों और नागरिकों दोनों के जिंदगी की चिंता करते हैं।" 



शैक्षणिक जगत से आवाजें: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने गिरफ्तारी की वैधता पर कड़ी आलोचना की: "हरियाणा पुलिस ने डॉ. अली खान को अवैध रूप से गिरफ्तार किया। उन्हें दिल्ली से हरियाणा बिना ट्रांजिट रिमांड के ले जाया गया। FIR रात 8 बजे दर्ज की गई। पुलिस अगले दिन सुबह 7 बजे उनके घर पहुंची!" 



शैक्षणिक जगत के बयान: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने गिरफ्तारी की वैधता पर कड़ा सवाल उठाया, उन्होंने कहा, "हरियाणा पुलिस ने डॉ. अली खान को गलत तरीके से गिरफ्तार किया। उन्हें दिल्ली से बिना ट्रांजिट रिमांड के हरियाणा ले जाया गया। FIR रात 8 बजे दर्ज की गई और पुलिस अगले दिन सुबह 7 बजे उनके घर पहुंची!" 

इस बीच, द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (JNUTA) ने कड़ी निंदा की: 

"JNUTA ने हरियाणा पुलिस द्वारा डॉ. खान की बिना वजह की गई गिरफ्तारी पर नाराजगी जाहिर की है। यह गिरफ्तारी... हरियाणा राज्य महिला आयोग द्वारा प्रोफेसर खान के कुछ बयानों पर बिना वजह ध्यान दिए जाने के बाद हुई है जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था।" 

निष्कर्ष

प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक गहरी चिंता की बात है, जहां अब आलोचना करने, सवाल उठाने और तर्कसंगत तरीके से सार्वजनिक चर्चा करने का अधिकार धीरे-धीरे अस्पष्ट और राजनीतिक कारणों से प्रेरित आरोपों के तहत अपराधीकरण का शिकार हो रहा है। यह मामला साफ तौर पर दिखाता है कि शैक्षणिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो किसी भी मजबूत लोकतंत्र की बुनियाद हैं, अब खतरे में हैं। राष्ट्रीय प्रगति के लिए बातचीत और असहमति को अहम समझने के बजाय, राज्य का तंत्र अब कानून का इस्तेमाल उन आवाजों को दबाने के लिए कर रहा है, जो मुख्यधारा की सोच को चुनौती देती हैं या सरकार की नीतियों पर सवाल उठाती हैं।

एक सम्मानित विद्वान के खिलाफ इतनी जल्दी और सख्त कार्रवाई, जिनका काम हमेशा संविधानिक मूल्यों, बहुलवाद और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है, ये संस्थागत स्वतंत्रता और बौद्धिक स्वतंत्रता के घटने का खतरा दिखाता है। इसके अलावा, राजनीतिक लोगों और नियामक संस्थाओं का ऐसे मुद्दों में शामिल होना जो शैक्षणिक और सिविल सोसाइटी के बीच बातचीत होनी चाहिए, ये सत्ता के दुरुपयोग और असहमति के लिए जगह कम होने के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। 

शैक्षणिक जगत, नागरिक समाज और राजनीतिक विपक्ष की आवाजें प्रोफेसर महमूदाबाद की तुरंत रिहाई और सभी आरोपों को हटाने की मांग करते हुए एकजुट हो रही हैं और यह मामला भारत में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को बचाने की एक बड़ी चेतावनी बनना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शैक्षणिक शोध को बनाए रखना सिर्फ शैक्षिक मामला नहीं है, यह एक महत्वपूर्ण बचाव है, जो तानाशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ खड़ा होता है और जो हमारे देश की बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता को खतरे में डाल सकती हैं। प्रोफेसर महमूदाबाद का बचाव करते हुए हम हर नागरिक के इस अधिकार की रक्षा कर रहे हैं कि वह बिना डर के सच बोले और इससे भारत की लोकतांत्रिक ताकत भी मजबूत हो रही है। 

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