संजौली मस्जिद मामले में निगम आयुक्त कोर्ट ने पूरी मस्जिद को तोड़ने के आदेश जारी किया है। बीते साल विरोध प्रदर्शन के बाद मस्जिद की उपर की तीन अवैध मंजिलों को गिराने का आदेश दिया गया था।

एचटी फाइल फोटो
हिमाचल प्रदेश में शिमला के संजौली इलाके में स्थित एक मस्जिद के मामले में शनिवार 3 मई को शिमला नगर निगम आयुक्त कोर्ट में सुनवाई हुई। इस सुनवाई में नगर निगम आयुक्त ने पूरी मस्जिद को अवैध बताते हुए पूरी तरह से ध्वस्त करने का आदेश दिया। इस मस्जिद को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, नगर निगम आयुक्त भूपेंद्र कुमार अत्री ने अपने फैसले में कहा कि मस्जिद का निर्माण नियमों का उल्लंघन करते हुए आवश्यक अनुमति के बिना किया गया था, जिसमें बिल्डिंग परमिट, अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) और स्वीकृत नक्शा शामिल हैं।
निगम आयुक्त अत्री ने इस मामले में पिछले साल अक्टूबर महीने में ध्वस्त किए जाने वाले ऊपर की तीन मंजिलों के अलावा निचली दो मंजिलों को भी गिराने का आदेश दिया है।
ज्ञात हो कि मस्जिद गिराने के इस आदेश के साथ ही ये मामला समाप्त हो गया। इस मामले में पिछले 15 सालों में नगर निगम आयुक्त की अदालत में 50 से ज्यादा बार सुनवाई हो चुकी है।
इस मामले में वक्फ बोर्ड मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक के कागजात पेश नहीं कर पाया। मस्जिद समिति संरचना का नक्शा या अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) देने में सक्षम नहीं थी।
हालांकि, वक्फ बोर्ड करीब एक दशक से ज्यादा समय से जमीन के मालिकाना हक का दावा करता रहा है।
इस मामले में संजौली के स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जगत पाल ने कहा, ‘एमसी कमिश्नर ने मस्जिद को ध्वस्त करने का आदेश दिया है, क्योंकि मस्जिद समिति या वक्फ बोर्ड उस भूमि के मालिकाना हक से संबंधित रिकॉर्ड उपलब्ध कराने में विफल रहे, जिस पर मस्जिद बनाई गई है।’
निगम आयुक्त के इस फैसले के बाद संजौली के रिहायशी इलाके में बनी ये मस्जिद ध्वस्त की जाएगी। यह काम वक्फ बोर्ड और संजौली मस्जिद कमेटी को खुद ही करना होगा।
पिछले साल विरोध प्रदर्शन के बाद इस मस्जिद की तीन अवैध मंजिलों को गिराने का आदेश दिया गया था।
ज्ञात हो कि पिछले साल 11 सितंबर को शिमला में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद कमिश्नर ने 5 अक्टूबर, 2024 को मस्जिद की तीन मंजिलों को गिराने का आदेश दिया था। मस्जिद समिति ने कमिश्नर से इसके अनधिकृत हिस्से को पत्र लिखकर गिराने की पेशकश की थी।
मस्जिद को लेकर 11 सितंबर को विरोध प्रदर्शन हुआ था। हजारों की तादाद में जुटे उग्र हिंदुओं ने बैरिकेडिंग तोड़कर घंटों नारेबाजी की थी। इस दौरान प्रदर्शकारियों की पुलिस से झड़प हुई जिसमें छह पुलिसकर्मियों और चार प्रदर्शनकारियों सहित कम से कम 10 लोग घायल हो गए थे।
ये तब हुआ जब पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बैरिकेड्स तोड़ने और मस्जिद के करीब पहुंचने से रोकने के लिए लाठीचार्ज करनी पड़ी और वाटर केनन का इस्तेमाल करना पड़ा।
ज्ञात हो कि यह विरोध 31 अगस्त को शिमला के मेहली में हुई सांप्रदायिक झड़प के बाद हुआ। इसके बाद एक समुदाय के लोग संजौली मस्जिद में छिप गए थे। जिसके बाद 1 सितंबर से लोगों ने शिमला और हिमाचल प्रदेश के अन्य जिलों में अनधिकृत मस्जिदों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था।
बता दें कि इस मस्जिद का निर्माण साल 2007 में शुरू हुआ था। स्थानीय लोगों ने मस्जिद को अवैध बताते हुए वर्ष 2010 में इसके खिलाफ नगर निगम की अदालत में याचिका दाखिल की थी। तब से यह मामला कोर्ट के समक्ष था। इस बीच प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें रहीं, लेकिन किसी ने भी मसले को हल करने में गंभीरता नहीं दिखाई।
इस मामले को लेकर कांग्रेस विधायक एवं ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने 4 सितंबर को राज्य विधानसभा में कहा था, ‘दरअसल नगर निगम की कोर्ट में मस्जिद के अवैध निर्माण को लेकर बार-बार नोटिस जारी किए गए, लेकिन फिर भी चार से पांच मंजिल अवैध तरीके से खड़ी हो गईं।’
मस्जिद की ज़मीन पर भी विवाद था। अनिरुद्ध सिंह ने बयान दिया था कि यह मस्जिद हिमाचल सरकार की जमीन पर बनी है।
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हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, नगर निगम आयुक्त भूपेंद्र कुमार अत्री ने अपने फैसले में कहा कि मस्जिद का निर्माण नियमों का उल्लंघन करते हुए आवश्यक अनुमति के बिना किया गया था, जिसमें बिल्डिंग परमिट, अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) और स्वीकृत नक्शा शामिल हैं।
निगम आयुक्त अत्री ने इस मामले में पिछले साल अक्टूबर महीने में ध्वस्त किए जाने वाले ऊपर की तीन मंजिलों के अलावा निचली दो मंजिलों को भी गिराने का आदेश दिया है।
ज्ञात हो कि मस्जिद गिराने के इस आदेश के साथ ही ये मामला समाप्त हो गया। इस मामले में पिछले 15 सालों में नगर निगम आयुक्त की अदालत में 50 से ज्यादा बार सुनवाई हो चुकी है।
इस मामले में वक्फ बोर्ड मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक के कागजात पेश नहीं कर पाया। मस्जिद समिति संरचना का नक्शा या अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) देने में सक्षम नहीं थी।
हालांकि, वक्फ बोर्ड करीब एक दशक से ज्यादा समय से जमीन के मालिकाना हक का दावा करता रहा है।
इस मामले में संजौली के स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जगत पाल ने कहा, ‘एमसी कमिश्नर ने मस्जिद को ध्वस्त करने का आदेश दिया है, क्योंकि मस्जिद समिति या वक्फ बोर्ड उस भूमि के मालिकाना हक से संबंधित रिकॉर्ड उपलब्ध कराने में विफल रहे, जिस पर मस्जिद बनाई गई है।’
निगम आयुक्त के इस फैसले के बाद संजौली के रिहायशी इलाके में बनी ये मस्जिद ध्वस्त की जाएगी। यह काम वक्फ बोर्ड और संजौली मस्जिद कमेटी को खुद ही करना होगा।
पिछले साल विरोध प्रदर्शन के बाद इस मस्जिद की तीन अवैध मंजिलों को गिराने का आदेश दिया गया था।
ज्ञात हो कि पिछले साल 11 सितंबर को शिमला में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद कमिश्नर ने 5 अक्टूबर, 2024 को मस्जिद की तीन मंजिलों को गिराने का आदेश दिया था। मस्जिद समिति ने कमिश्नर से इसके अनधिकृत हिस्से को पत्र लिखकर गिराने की पेशकश की थी।
मस्जिद को लेकर 11 सितंबर को विरोध प्रदर्शन हुआ था। हजारों की तादाद में जुटे उग्र हिंदुओं ने बैरिकेडिंग तोड़कर घंटों नारेबाजी की थी। इस दौरान प्रदर्शकारियों की पुलिस से झड़प हुई जिसमें छह पुलिसकर्मियों और चार प्रदर्शनकारियों सहित कम से कम 10 लोग घायल हो गए थे।
ये तब हुआ जब पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बैरिकेड्स तोड़ने और मस्जिद के करीब पहुंचने से रोकने के लिए लाठीचार्ज करनी पड़ी और वाटर केनन का इस्तेमाल करना पड़ा।
ज्ञात हो कि यह विरोध 31 अगस्त को शिमला के मेहली में हुई सांप्रदायिक झड़प के बाद हुआ। इसके बाद एक समुदाय के लोग संजौली मस्जिद में छिप गए थे। जिसके बाद 1 सितंबर से लोगों ने शिमला और हिमाचल प्रदेश के अन्य जिलों में अनधिकृत मस्जिदों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था।
बता दें कि इस मस्जिद का निर्माण साल 2007 में शुरू हुआ था। स्थानीय लोगों ने मस्जिद को अवैध बताते हुए वर्ष 2010 में इसके खिलाफ नगर निगम की अदालत में याचिका दाखिल की थी। तब से यह मामला कोर्ट के समक्ष था। इस बीच प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें रहीं, लेकिन किसी ने भी मसले को हल करने में गंभीरता नहीं दिखाई।
इस मामले को लेकर कांग्रेस विधायक एवं ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने 4 सितंबर को राज्य विधानसभा में कहा था, ‘दरअसल नगर निगम की कोर्ट में मस्जिद के अवैध निर्माण को लेकर बार-बार नोटिस जारी किए गए, लेकिन फिर भी चार से पांच मंजिल अवैध तरीके से खड़ी हो गईं।’
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