सिंह देश के “पहले गैर-हिंदू प्रधानमंत्री” थे और उन्होंने भारत की 1.2 बिलियन आबादी के दो-तिहाई लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जो गरीबी में जी रहे थे।
courtesy : thewomenleaders.com
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठकों को पूर्व जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'फ्रीडम: मेमोयर्स 1951-2021’ में लिखा है कि जब से उन्होंने पद संभाला है तब से भारत में “अन्य धर्मों के लोगों, मुख्य रूप से मुस्लिम और ईसाईयों पर हिंदू समाज के लोगों द्वारा हमला किया जा रहा है”।
मर्केल के अनुसार, जब उन्होंने मोदी के सामने इस विषय को उठाया तो मोदी ने “इसका जोरदार खंडन किया और इस बात पर जोर दिया कि भारत धार्मिक सहिष्णुता का देश था और रहेगा”।
मर्केल ने अप्रैल 2015 में जर्मनी में मोदी के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए कहा कि उन्हें विजुअल इफेक्ट्स में गहरी दिलचस्पी थी। मोदी ने उनके साथ चुनाव प्रचार के लिए अपने अभिनव दृष्टिकोण को साझा किया था जहां उन्होंने 2014 के आम चुनावों के दौरान होलोग्राम का इस्तेमाल किया था। इस तकनीकी के जरिए मोदी ने अपनी तस्वीर को एक स्टूडियो से 50 से अधिक अलग-अलग स्थानों पर प्रसारित किया, जहां हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए इकट्ठा हुए।
मर्केल ने पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ अपनी बातचीत के बारे में भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि सिंह देश के “पहले गैर-हिंदू प्रधानमंत्री” थे और उन्होंने भारत की 1.2 बिलियन आबादी के दो-तिहाई लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जो गरीबी में जी रहे थे।
सोमवार को मर्केल ने वाशिंगटन डी.सी. में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बातचीत में अपनी आत्मकथा फ्रीडम पेश की। दोनों नेताओं ने अपने संबंधों पर चर्चा की और बताया कि कैसे दक्षिणपंथी आंदोलनों ने वैश्विक स्तर पर सत्ता हासिल करने के लिए अप्रवासी विरोधी बयानबाजी का फायदा उठाया है।
उनकी चर्चा एंथम कॉन्सर्ट हॉल में सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में लगभग दो घंटे तक चली, जहां कार्यक्रम शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही टिकट बिक गए। उन्होंने जर्मन चांसलर के रूप में मर्केल के 16 साल के कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण क्षणों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें कई संकटों के साथ-साथ उनके राजनीतिक करियर से पहले पूर्व जीडीआर में उनके जीवन पर भी ध्यान केंद्रित किया।
मर्केल ने यह भी कहा कि "लोकतांत्रिक दलों" को मजबूत किया जाना चाहिए और लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें "गंभीर" होना चाहिए।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठकों को पूर्व जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'फ्रीडम: मेमोयर्स 1951-2021’ में लिखा है कि जब से उन्होंने पद संभाला है तब से भारत में “अन्य धर्मों के लोगों, मुख्य रूप से मुस्लिम और ईसाईयों पर हिंदू समाज के लोगों द्वारा हमला किया जा रहा है”।
मर्केल के अनुसार, जब उन्होंने मोदी के सामने इस विषय को उठाया तो मोदी ने “इसका जोरदार खंडन किया और इस बात पर जोर दिया कि भारत धार्मिक सहिष्णुता का देश था और रहेगा”।
मर्केल ने अप्रैल 2015 में जर्मनी में मोदी के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए कहा कि उन्हें विजुअल इफेक्ट्स में गहरी दिलचस्पी थी। मोदी ने उनके साथ चुनाव प्रचार के लिए अपने अभिनव दृष्टिकोण को साझा किया था जहां उन्होंने 2014 के आम चुनावों के दौरान होलोग्राम का इस्तेमाल किया था। इस तकनीकी के जरिए मोदी ने अपनी तस्वीर को एक स्टूडियो से 50 से अधिक अलग-अलग स्थानों पर प्रसारित किया, जहां हजारों लोग उन्हें सुनने के लिए इकट्ठा हुए।
मर्केल ने पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ अपनी बातचीत के बारे में भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि सिंह देश के “पहले गैर-हिंदू प्रधानमंत्री” थे और उन्होंने भारत की 1.2 बिलियन आबादी के दो-तिहाई लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जो गरीबी में जी रहे थे।
सोमवार को मर्केल ने वाशिंगटन डी.सी. में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ बातचीत में अपनी आत्मकथा फ्रीडम पेश की। दोनों नेताओं ने अपने संबंधों पर चर्चा की और बताया कि कैसे दक्षिणपंथी आंदोलनों ने वैश्विक स्तर पर सत्ता हासिल करने के लिए अप्रवासी विरोधी बयानबाजी का फायदा उठाया है।
उनकी चर्चा एंथम कॉन्सर्ट हॉल में सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में लगभग दो घंटे तक चली, जहां कार्यक्रम शुरू होने से कुछ घंटे पहले ही टिकट बिक गए। उन्होंने जर्मन चांसलर के रूप में मर्केल के 16 साल के कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण क्षणों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें कई संकटों के साथ-साथ उनके राजनीतिक करियर से पहले पूर्व जीडीआर में उनके जीवन पर भी ध्यान केंद्रित किया।
मर्केल ने यह भी कहा कि "लोकतांत्रिक दलों" को मजबूत किया जाना चाहिए और लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें "गंभीर" होना चाहिए।