इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि "श्रमिक नियमित रूप से बिना आराम किए खेतों में 12 से 14 घंटे काम करते हैं और कुछ श्रमिक 3-4 महीने तक बिना छुट्टी के काम करते हैं"।
प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : द इकोनॉमिक टाइम्स
अमेरिकी सरकार के श्रम विभाग की एक रिपोर्ट में महाराष्ट्र के बीड जिले में गन्ना कटाई को जबरन मजदूरी करवाने वाली श्रेणी में शामिल किया गया है।
इस रिपोर्ट को लेकर उद्योग के हितधारकों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह “अधूरी जानकारी के आधार पर तैयार की गई है”।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश या कर्नाटक के चीनी उद्योग के विपरीत महाराष्ट्र और गुजरात की चीनी मिलें खेतों से गन्ना काटने और परिवहन के लिए मजदूरों की व्यवस्था करती हैं। कटाई करने वाले मुख्य रूप से बीड, अहमदनगर और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ अन्य जिलों से आते हैं। मिलें मुगद्दम नामक बिचौलियों के माध्यम से मजदूरों से संपर्क करती हैं।
अग्रिम भुगतान के बाद मुगद्दम मिलों को मजदूर उपलब्ध कराते हैं। और जब किसानों के साथ अंतिम बिल का निपटान होता है तो दी गई सेवा के बदले में एकमुश्त राशि काट ली जाती है। यह महाराष्ट्र की अनूठी व्यवस्था है जिसे अमेरिकी श्रम विभाग ने जबरन मजदूरी कहा है।
पिछले महीने जारी की गई रिपोर्ट में जबरन और बाल श्रम द्वारा तैयार वस्तुओं की सूची का दावा किया गया है। ऐसी रिपोर्टें हैं कि "भारत में मुख्य रूप से बीड जिले में गन्ने के उत्पादन में जबरन श्रम कराया जाता है। गैर सरकारी संगठनों और मीडिया संगठनों की रिपोर्टें बताती हैं कि जबरन श्रम संकेतक जैसे कि ओवरटाइम, अनुचित वेतन कटौती, रहने की बदतर स्थिति और कर्ज से जुड़ी भर्ती सभी गन्ना क्षेत्र में आम बात हैं।"
इसमें आगे दावा किया गया है कि "श्रमिक नियमित रूप से बिना आराम किए खेतों में 12 से 14 घंटे काम करते हैं, और कुछ श्रमिक 3-4 महीने तक बिना छुट्टी के काम करते हैं"।
यह पहली मौका है जब किसी रिपोर्ट में इस संदर्भ में गन्ना उद्योग का उल्लेख किया गया है।
बीड से पारंपरिक रूप से राज्य के विभिन्न हिस्सों में गन्ना कटाई के लिए श्रमिक जाते हैं। लगभग पांच-छह लाख पुरुष व महिलाएं प्रत्येक सीजन की शुरुआत में अपने घरों से जाते हैं जो पांच-छह महीने तक काम करते हैं।
हितधारकों का कहना है कि चूंकि किसान साल भर अपनी गन्ने की फसल की देखरेख करते हैं और मजदूरों को दैनिक मजदूरी पर रखते हैं, इसलिए छुट्टी या हेल्थ केयर के बारे में सवाल ही नहीं उठता।
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑप शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल ने इस रिपोर्ट को निराधार और शरारतपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “भारत के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में, हाथ से कटाई और खेत से कारखाने तक गन्ने को ले जाने की सदियों पुरानी प्रथा रही है। इस प्रणाली में कटाई से पेराई तक का समय कम से कम लगता है, जिससे चीनी की अधिकतम रिकवरी होती है। कुशल मजदूरों को उचित आश्रय, भोजन, समय पर वेतन (श्रम बोर्ड द्वारा तय), उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं और स्वास्थ्य बीमा दिया जाता है। सामूहिक विवाह की व्यवस्था जैसी सामाजिक कल्याण सेवाएं चीनी मिलों द्वारा नियमित रूप से की जाती हैं।”
राज्य में निजी मिल मालिकों की शीर्ष संस्था वेस्ट इंडियन शुगर मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीबी थोम्बरे ने कहा कि ये रिपोर्ट मामलों की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है। उन्होंने कहा, "रिपोर्ट अधूरी जानकारी के आधार पर तैयार की गई है और हम इसे अस्वीकार करते हैं।"
किसान नेता राजू शेट्टी ने कहा कि कुछ महीने पहले अमेरिका स्थित शोधकर्ताओं ने उनसे मुलाकात की थी जो यह समझना चाहते थे कि चीजें कैसे काम करती हैं। उन्होंने कहा, "बैठक के दौरान, मैंने इस बारे में बात की कि कैसे मैंने हार्वेस्टर की स्थिति को बेहतर करने के लिए एक निजी सदस्य विधेयक का प्रस्ताव रखा था। मेरे जैसे लोगों की पैरवी के परिणामस्वरूप, राज्य सरकार ने गन्ना हार्वेस्टर कल्याण बोर्ड का गठन किया जिसका नाम बाद में दिवंगत केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे के नाम पर रखा गया।"
कटाई की दर तय करने के अलावा, बोर्ड को हॉस्टल्स के निर्माण और कटाई करने वालों की स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी जरूरतों की देखभाल का काम सौंपा गया है। उन्होंने कहा, "अमेरिकी सरकार को मेरी सलाह है कि उन्हें वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ने का काम हम जैसे लोगों पर छोड़ देना चाहिए। हमें उनकी मदद या निर्णय की जरूरत नहीं है।"
महाराष्ट्र के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन राज्य सरकार ने कहा कि सामाजिक न्याय विभाग ने पहले ही गन्ना कटाई करने वालों के कल्याण के लिए ओष्टोडनी कामगार मंडल का गठन कर दिया है।
प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : द इकोनॉमिक टाइम्स
अमेरिकी सरकार के श्रम विभाग की एक रिपोर्ट में महाराष्ट्र के बीड जिले में गन्ना कटाई को जबरन मजदूरी करवाने वाली श्रेणी में शामिल किया गया है।
इस रिपोर्ट को लेकर उद्योग के हितधारकों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह “अधूरी जानकारी के आधार पर तैयार की गई है”।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश या कर्नाटक के चीनी उद्योग के विपरीत महाराष्ट्र और गुजरात की चीनी मिलें खेतों से गन्ना काटने और परिवहन के लिए मजदूरों की व्यवस्था करती हैं। कटाई करने वाले मुख्य रूप से बीड, अहमदनगर और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ अन्य जिलों से आते हैं। मिलें मुगद्दम नामक बिचौलियों के माध्यम से मजदूरों से संपर्क करती हैं।
अग्रिम भुगतान के बाद मुगद्दम मिलों को मजदूर उपलब्ध कराते हैं। और जब किसानों के साथ अंतिम बिल का निपटान होता है तो दी गई सेवा के बदले में एकमुश्त राशि काट ली जाती है। यह महाराष्ट्र की अनूठी व्यवस्था है जिसे अमेरिकी श्रम विभाग ने जबरन मजदूरी कहा है।
पिछले महीने जारी की गई रिपोर्ट में जबरन और बाल श्रम द्वारा तैयार वस्तुओं की सूची का दावा किया गया है। ऐसी रिपोर्टें हैं कि "भारत में मुख्य रूप से बीड जिले में गन्ने के उत्पादन में जबरन श्रम कराया जाता है। गैर सरकारी संगठनों और मीडिया संगठनों की रिपोर्टें बताती हैं कि जबरन श्रम संकेतक जैसे कि ओवरटाइम, अनुचित वेतन कटौती, रहने की बदतर स्थिति और कर्ज से जुड़ी भर्ती सभी गन्ना क्षेत्र में आम बात हैं।"
इसमें आगे दावा किया गया है कि "श्रमिक नियमित रूप से बिना आराम किए खेतों में 12 से 14 घंटे काम करते हैं, और कुछ श्रमिक 3-4 महीने तक बिना छुट्टी के काम करते हैं"।
यह पहली मौका है जब किसी रिपोर्ट में इस संदर्भ में गन्ना उद्योग का उल्लेख किया गया है।
बीड से पारंपरिक रूप से राज्य के विभिन्न हिस्सों में गन्ना कटाई के लिए श्रमिक जाते हैं। लगभग पांच-छह लाख पुरुष व महिलाएं प्रत्येक सीजन की शुरुआत में अपने घरों से जाते हैं जो पांच-छह महीने तक काम करते हैं।
हितधारकों का कहना है कि चूंकि किसान साल भर अपनी गन्ने की फसल की देखरेख करते हैं और मजदूरों को दैनिक मजदूरी पर रखते हैं, इसलिए छुट्टी या हेल्थ केयर के बारे में सवाल ही नहीं उठता।
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑप शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल ने इस रिपोर्ट को निराधार और शरारतपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “भारत के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में, हाथ से कटाई और खेत से कारखाने तक गन्ने को ले जाने की सदियों पुरानी प्रथा रही है। इस प्रणाली में कटाई से पेराई तक का समय कम से कम लगता है, जिससे चीनी की अधिकतम रिकवरी होती है। कुशल मजदूरों को उचित आश्रय, भोजन, समय पर वेतन (श्रम बोर्ड द्वारा तय), उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं और स्वास्थ्य बीमा दिया जाता है। सामूहिक विवाह की व्यवस्था जैसी सामाजिक कल्याण सेवाएं चीनी मिलों द्वारा नियमित रूप से की जाती हैं।”
राज्य में निजी मिल मालिकों की शीर्ष संस्था वेस्ट इंडियन शुगर मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीबी थोम्बरे ने कहा कि ये रिपोर्ट मामलों की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है। उन्होंने कहा, "रिपोर्ट अधूरी जानकारी के आधार पर तैयार की गई है और हम इसे अस्वीकार करते हैं।"
किसान नेता राजू शेट्टी ने कहा कि कुछ महीने पहले अमेरिका स्थित शोधकर्ताओं ने उनसे मुलाकात की थी जो यह समझना चाहते थे कि चीजें कैसे काम करती हैं। उन्होंने कहा, "बैठक के दौरान, मैंने इस बारे में बात की कि कैसे मैंने हार्वेस्टर की स्थिति को बेहतर करने के लिए एक निजी सदस्य विधेयक का प्रस्ताव रखा था। मेरे जैसे लोगों की पैरवी के परिणामस्वरूप, राज्य सरकार ने गन्ना हार्वेस्टर कल्याण बोर्ड का गठन किया जिसका नाम बाद में दिवंगत केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे के नाम पर रखा गया।"
कटाई की दर तय करने के अलावा, बोर्ड को हॉस्टल्स के निर्माण और कटाई करने वालों की स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी जरूरतों की देखभाल का काम सौंपा गया है। उन्होंने कहा, "अमेरिकी सरकार को मेरी सलाह है कि उन्हें वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ने का काम हम जैसे लोगों पर छोड़ देना चाहिए। हमें उनकी मदद या निर्णय की जरूरत नहीं है।"
महाराष्ट्र के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन राज्य सरकार ने कहा कि सामाजिक न्याय विभाग ने पहले ही गन्ना कटाई करने वालों के कल्याण के लिए ओष्टोडनी कामगार मंडल का गठन कर दिया है।