वक्फ संशोधन विधेयक पर गठित जेपीसी के विपक्षी पार्टियों के कुछ सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल पर कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर समिति में उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे समिति छोड़ने पर मजबूर होंगे।
फोटो साभार : जगदंबिका पाल के सोशल मीडिया एक्स अकाउंट से
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के कुछ विपक्षी सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल पर कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति के कुछ विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लिखे पत्र में समिति से अलग होने की चेतावनी दी है। उन्होंने समिति के अध्यक्ष और भाजपा नेता जगदंबिका पाल पर “कार्यवाही को बाधित करने” और “बाधा डालने” का आरोप लगाया है।
3 नवंबर को लिखे गए इस पत्र पर छह विपक्षी सदस्यों- असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम), कल्याण बनर्जी (टीएमसी), मोहम्मद जावेद (कांग्रेस), संजय सिंह (आप), मोहम्मद नदीमुल हक (टीएमसी) और एमएम अब्दुल्ला (डीएमके) ने हस्ताक्षर किए हैं। 31 सदस्यीय समिति में 13 विपक्षी सदस्य (नौ लोकसभा, चार राज्यसभा) शामिल हैं।
इस पत्र में कहा गया है, "हम विपक्षी जेपीसी के सदस्य महसूस करते हैं कि जेपीसी यानी एक छोटी संसद के गठन को सरकार की इच्छा के अनुसार विधेयक पारित करवाने के लिए मात्र एक ऐसे माध्यम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, जिसमें तथाकथित 'बहुमत' का अलोकतांत्रिक तरीके से इस्तेमाल करके संसदीय प्रक्रिया की अनदेखी की गई है। इसलिए, यह हमारा कर्तव्य है कि हम आपके ध्यान में यह बात लाएं कि सदस्यों की इच्छा के खिलाफ उचित समय दिए बिना जेपीसी की कार्यवाही को रोकना संवैधानिक धर्म और संसद पर क्रूर हमले के अलावा और कुछ नहीं है।"
पाल पर "लगातार तीन दिनों तक बैठकों की तारीखें तय करने पर एकतरफा निर्णय लेने का आरोप लगाया, जहां व्यक्तियों/ निकायों को गवाह के रूप में बुलाया जाना है।" उन्होंने कहा है कि उनके लिए तैयारी करना "व्यावहारिक रूप से संभव" नहीं है।
इस पत्र में अध्यक्ष से पाल को निर्देश देने के लिए कहा गया है कि वे “इन मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले समिति के सदस्यों के साथ औपचारिक परामर्श करें, ताकि देश को आश्वस्त किया जा सके कि समिति बिना किसी पूर्वाग्रह और सुस्थापित संसदीय प्रक्रियाओं से अलग हटकर विधेयक पर निष्कर्ष पर पहुंचने में निष्पक्ष और स्वतंत्र है।”
इस पत्र में कहा गया है, “अन्यथा, हम विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि हमें जेपीसी से हमेशा के लिए अलग होने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, क्योंकि हमें रोका गया है।”
प्रस्तावित विधेयक पर अपनी आपत्तियों को व्यक्त करते हुए, विपक्षी सदस्यों ने कहा है कि “इस विधेयक के माध्यम से सरकार द्वारा की गई कानूनी कवायद संसद द्वारा उचित सावधानी के साथ बनाए गए पहले के कानून को हलका करने का एक गुप्त प्रयास है, जो हमारे संविधान की धर्मनिरपेक्ष साख को सुनिश्चित करता है”।
उन्होंने रेखांकित किया है कि “विभिन्न विभागों और मुस्लिम संगठनों के बयान” की “अकादमिक और साथ ही कानूनी रूप से जांच की जानी चाहिए और सदस्यों द्वारा चर्चा किए गए मुद्दों को समझने के लिए हर बैठक के बाद समन्वय किया जाना चाहिए, जिसके लिए बैठकों के बीच उचित समय अंतराल की आवश्यकता होती है”।
पत्र में कहा गया है कि नए विधेयक में 100 से अधिक संशोधन किए गए हैं, जबकि सरकार ने केवल 44 संशोधन करने का दावा किया है। पत्र में आगे कहा गया है, "इन संशोधनों के बारे में, हम यह आशंका व्यक्त करने के लिए उचित रूप से सीमित हैं कि एक कानूनी संस्था यानी वक्फ बोर्ड का धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक ढांचा मिटने जा रहा है, जो हमारे संविधान में गारंटीकृत अल्पसंख्यक अधिकारों पर दुनिया की नजरों में हमारे देश की छवि को धूमिल करेगा।"
इन कारणों से समिति की बैठकों को "संसद की विधायी क्षमता सहित विधेयक के हर खंड पर चर्चा और विचार-विमर्श करने के लिए पर्याप्त समय के साथ इस तरह से तय किया जाना चाहिए।"
ये समिति जिसे वक्फ बोर्डों को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन करने के लिए विधेयक की जांच करने का काम सौंपा गया है वह 22 अगस्त को पहली बैठक के बाद से ही विवादों में रहा है।
पिछले महीने भी, विपक्षी सदस्यों ने बिरला को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि पाल द्वारा कार्यवाही "पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई" और अध्यक्ष से "तत्काल हस्तक्षेप" की मांग की। उधर पाल ने कहा कि बैठकों के दौरान विपक्षी सदस्यों को बोलने के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं। 22 अक्टूबर को टीएमसी के कल्याण बनर्जी को एक दिन के लिए निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने भाजपा सदस्य और कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय के साथ बहस के दौरान कांच की बोतल तोड़ दी थी।
पाल ने आरोप लगाया था कि बनर्जी ने बोतल से “कुर्सी पर हमला करने” की कोशिश की थी। विपक्षी सदस्यों ने “गैर-हितधारकों” के बयान पर सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा सदस्यों ने विपक्ष द्वारा कठिन सवालों का सामना करने से बचने के लिए “जानबूझकर व्यवधान” डालने का आरोप लगाया है।
पाल ने आरोप लगाया था कि बनर्जी ने बोतल से “कुर्सी पर हमला करने” की कोशिश की थी। विपक्षी सदस्यों ने “गैर-हितधारकों” के बयान पर सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा सदस्यों ने विपक्ष द्वारा कठिन सवालों का सामना करने से बचने के लिए “जानबूझकर व्यवधान” डालने का आरोप लगाया है।
फोटो साभार : जगदंबिका पाल के सोशल मीडिया एक्स अकाउंट से
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर चर्चा के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के कुछ विपक्षी सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल पर कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति के कुछ विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लिखे पत्र में समिति से अलग होने की चेतावनी दी है। उन्होंने समिति के अध्यक्ष और भाजपा नेता जगदंबिका पाल पर “कार्यवाही को बाधित करने” और “बाधा डालने” का आरोप लगाया है।
3 नवंबर को लिखे गए इस पत्र पर छह विपक्षी सदस्यों- असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम), कल्याण बनर्जी (टीएमसी), मोहम्मद जावेद (कांग्रेस), संजय सिंह (आप), मोहम्मद नदीमुल हक (टीएमसी) और एमएम अब्दुल्ला (डीएमके) ने हस्ताक्षर किए हैं। 31 सदस्यीय समिति में 13 विपक्षी सदस्य (नौ लोकसभा, चार राज्यसभा) शामिल हैं।
इस पत्र में कहा गया है, "हम विपक्षी जेपीसी के सदस्य महसूस करते हैं कि जेपीसी यानी एक छोटी संसद के गठन को सरकार की इच्छा के अनुसार विधेयक पारित करवाने के लिए मात्र एक ऐसे माध्यम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, जिसमें तथाकथित 'बहुमत' का अलोकतांत्रिक तरीके से इस्तेमाल करके संसदीय प्रक्रिया की अनदेखी की गई है। इसलिए, यह हमारा कर्तव्य है कि हम आपके ध्यान में यह बात लाएं कि सदस्यों की इच्छा के खिलाफ उचित समय दिए बिना जेपीसी की कार्यवाही को रोकना संवैधानिक धर्म और संसद पर क्रूर हमले के अलावा और कुछ नहीं है।"
पाल पर "लगातार तीन दिनों तक बैठकों की तारीखें तय करने पर एकतरफा निर्णय लेने का आरोप लगाया, जहां व्यक्तियों/ निकायों को गवाह के रूप में बुलाया जाना है।" उन्होंने कहा है कि उनके लिए तैयारी करना "व्यावहारिक रूप से संभव" नहीं है।
इस पत्र में अध्यक्ष से पाल को निर्देश देने के लिए कहा गया है कि वे “इन मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले समिति के सदस्यों के साथ औपचारिक परामर्श करें, ताकि देश को आश्वस्त किया जा सके कि समिति बिना किसी पूर्वाग्रह और सुस्थापित संसदीय प्रक्रियाओं से अलग हटकर विधेयक पर निष्कर्ष पर पहुंचने में निष्पक्ष और स्वतंत्र है।”
इस पत्र में कहा गया है, “अन्यथा, हम विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि हमें जेपीसी से हमेशा के लिए अलग होने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, क्योंकि हमें रोका गया है।”
प्रस्तावित विधेयक पर अपनी आपत्तियों को व्यक्त करते हुए, विपक्षी सदस्यों ने कहा है कि “इस विधेयक के माध्यम से सरकार द्वारा की गई कानूनी कवायद संसद द्वारा उचित सावधानी के साथ बनाए गए पहले के कानून को हलका करने का एक गुप्त प्रयास है, जो हमारे संविधान की धर्मनिरपेक्ष साख को सुनिश्चित करता है”।
उन्होंने रेखांकित किया है कि “विभिन्न विभागों और मुस्लिम संगठनों के बयान” की “अकादमिक और साथ ही कानूनी रूप से जांच की जानी चाहिए और सदस्यों द्वारा चर्चा किए गए मुद्दों को समझने के लिए हर बैठक के बाद समन्वय किया जाना चाहिए, जिसके लिए बैठकों के बीच उचित समय अंतराल की आवश्यकता होती है”।
पत्र में कहा गया है कि नए विधेयक में 100 से अधिक संशोधन किए गए हैं, जबकि सरकार ने केवल 44 संशोधन करने का दावा किया है। पत्र में आगे कहा गया है, "इन संशोधनों के बारे में, हम यह आशंका व्यक्त करने के लिए उचित रूप से सीमित हैं कि एक कानूनी संस्था यानी वक्फ बोर्ड का धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक ढांचा मिटने जा रहा है, जो हमारे संविधान में गारंटीकृत अल्पसंख्यक अधिकारों पर दुनिया की नजरों में हमारे देश की छवि को धूमिल करेगा।"
इन कारणों से समिति की बैठकों को "संसद की विधायी क्षमता सहित विधेयक के हर खंड पर चर्चा और विचार-विमर्श करने के लिए पर्याप्त समय के साथ इस तरह से तय किया जाना चाहिए।"
ये समिति जिसे वक्फ बोर्डों को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन करने के लिए विधेयक की जांच करने का काम सौंपा गया है वह 22 अगस्त को पहली बैठक के बाद से ही विवादों में रहा है।
पिछले महीने भी, विपक्षी सदस्यों ने बिरला को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि पाल द्वारा कार्यवाही "पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई" और अध्यक्ष से "तत्काल हस्तक्षेप" की मांग की। उधर पाल ने कहा कि बैठकों के दौरान विपक्षी सदस्यों को बोलने के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं। 22 अक्टूबर को टीएमसी के कल्याण बनर्जी को एक दिन के लिए निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने भाजपा सदस्य और कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय के साथ बहस के दौरान कांच की बोतल तोड़ दी थी।
पाल ने आरोप लगाया था कि बनर्जी ने बोतल से “कुर्सी पर हमला करने” की कोशिश की थी। विपक्षी सदस्यों ने “गैर-हितधारकों” के बयान पर सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा सदस्यों ने विपक्ष द्वारा कठिन सवालों का सामना करने से बचने के लिए “जानबूझकर व्यवधान” डालने का आरोप लगाया है।
पाल ने आरोप लगाया था कि बनर्जी ने बोतल से “कुर्सी पर हमला करने” की कोशिश की थी। विपक्षी सदस्यों ने “गैर-हितधारकों” के बयान पर सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा सदस्यों ने विपक्ष द्वारा कठिन सवालों का सामना करने से बचने के लिए “जानबूझकर व्यवधान” डालने का आरोप लगाया है।