उत्तर प्रदेश: 21,000 से ज्यादा मुसलमान शिक्षकों की जाएगी नौकरी, 10 लाख बच्चे होंगे सीधे प्रभावित!

Written by Navnish Kumar | Published on: January 13, 2024
"उत्तर प्रदेश की योगी आदित्‍यनाथ सरकार ने मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत काम करने वाले 21,000 से ज्यादा शिक्षकों को मिलने वाले वेतन (मानदेय) पर रोक लगा दी है। अब प्रदेश के मदरसा में पढ़ाने वाले शिक्षकों को अतिरिक्‍त मानदेय नहीं दिया जाएगा। मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत प्रदेश के मदरसों में हिन्‍दी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान विषयों के लिए रखे गए शिक्षकों को राज्‍य सरकार की ओर से अतिरिक्‍त मानदेय (धन) का भुगतान किया जाता था। फैसले से इन विषयों के करीब 10 लाख बच्चे सीधे प्रभावित होंगे। खास है कि लंबित वेतन को लेकर आधुनिक विषयों के ये शिक्षक 18 दिसंबर 2023 से ही लखनऊ में धरना दे रहे हैं।"



जी हां, केंद्र के बाद अब योगी सरकार भी मदरसा आधुनिकीकरण योजना में शिक्षकों को मानदेय न देने का फैसला किया है। मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान व सामाजिक अध्ययन विषय पढ़ाने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत 21 हजार से ज्यादा शिक्षक रखे गए थे। प्रदेश सरकार ने बजट में अतिरिक्त मानदेय देने की व्यवस्था को समाप्त करते हुए कोई भी वित्तीय स्वीकृति इस मद में नहीं जारी करने के निर्देश दिए हैं। अल्‍पसंख्‍यक विभाग ने मदरसा में पढ़ाने वाले शिक्षकों को अतिरिक्‍त मानदेय को लेकर शासन स्‍तर से निर्देश जारी किया है। अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण निदेशक जे. रीभा ने इसकी जानकारी सभी जिला अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण अधिकारियों को भेज दी है, ताकि इस पर ससमय अमल किया जा सके। हालांकि पिछले दिनों उत्‍तर प्रदेश के अल्‍पसंख्‍यक कल्‍याण मंत्री धर्मपाल सिंह ने मदरसा शिक्षकों के मानदेय को लेकर उच्‍चस्‍तरीय बैठक कर, मामले की समीक्षा करने की बात कही है।

सभी की चली जाएगी नौकरी! 

मदरसा बोर्ड का कहना है कि इन सभी टीचरों की नौकरी चली जाएगी। डीडब्ल्यू और वायर न्यूज पोर्टल की खबर के अनुसार, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के प्रमुख इफ्तिखार अहमद जावेद ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि 21,000 से भी ज्यादा शिक्षकों की नौकरी जाने वाली है। उन्होंने अंदेशा जताया कि इस फैसले से मुसलमान छात्र और शिक्षक "30 साल पीछे चले जाएंगे।" जावेद बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव भी हैं। रॉयटर्स ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय का एक दस्तावेज देखा है, जिसके मुताबिक इन अध्यापकों का वेतन 'स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसाज' से आता था। यह केंद्र सरकार का कार्यक्रम है। केंद्र ने मार्च 2022 में यह स्कीम बंद कर दी थी।

क्यों बंद हुई फंडिंग?

दस्तावेज दिखाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस कार्यक्रम के तहत 2017-18 और 2020-21 के लिए राज्यों से आए नए प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दी और फिर कार्यक्रम को पूरी तरह से बंद ही कर दिया। हालांकि 2015-16 में मोदी सरकार ने इस कार्यक्रम के लिए करीब तीन अरब रुपयों की रिकॉर्ड फंडिंग दी थी।

मदरसों की फंडिंग के लिए यूपीए सरकार द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम को मोदी सरकार ने बंद कर दिया है। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने टिप्पणी के लिए भेजे गए अनुरोध का जवाब नहीं दिया। अल्पसंख्यक मंत्रालय ने भी कोई जवाब नहीं दिया। दस्तावेज में कार्यक्रम को बंद करने का कोई कारण नहीं दिया गया, लेकिन एक सरकारी अधिकारी ने अनुमान जताया कि यह 2009 के शिक्षा का अधिकार कानून की वजह से हो सकता है। इस कानून के तहत सिर्फ नियमित सरकारी स्कूल आते हैं।

सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि इस कार्यक्रम को 2009-10 में यूपीए सरकार ने शुरू किया था और शुरुआती छह सालों में इसके तहत 70,000 से ज्यादा मदरसों को फंडिंग दी जाती थी। अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर एक सरकारी समिति के एक सदस्य शाहिद अख्तर कहते हैं कि इस कार्यक्रम से मुसलमान बच्चों को लाभ पहुंचा था और इसे फिर से शुरू किया जाना चाहिए। अख्तर ने रॉयटर्स को बताया, "प्रधानमंत्री भी चाहते हैं कि बच्चों को इस्लामिक और आधुनिक, दोनों शिक्षा मिले। यह योजना बरकरार रहे, इसके लिए मैंने अधिकारियों से बातचीत शुरू की है।"

2017 से नहीं मिला वेतन

मदरसा बोर्ड के सदस्य जावेद ने 10 जनवरी को पीएम मोदी के नाम एक चिट्ठी भेजी। इसमें उन्होंने लिखा कि केंद्र ने राज्य सरकारों को पिछले साल अक्टूबर में ही बताया कि कार्यक्रम बंद होने वाला है। जावेद ने आगे लिखा कि उत्तर प्रदेश ने अप्रैल 2023 से ही अपना हिस्सा शिक्षकों को नहीं दिया था और जनवरी 2024 में तो यह भुगतान बिल्कुल बंद ही कर दिया। केंद्रीय हिस्सा तो छह सालों से नहीं दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद शिक्षक "आराम से अपना काम कर रहे थे, इस उम्मीद में कि आपकी सज्जनता मामले को सुलझा लेगी।" खास है कि राज्य सरकार अपने बजट से विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी और अंग्रेजी समेत कई विषयों के अध्यापकों को हर महीने 3,000 रुपए तक देती थी। केंद्र सरकार 12,000 रुपए तक देती थी।

बहराइच में पिछले 14 सालों से मदरसा शिक्षक का काम कर रहे समीउल्लाह खान कहते हैं, "हम लोगों के पास दूसरी कोई नौकरी नहीं है और मैं तो अब दूसरी नौकरी पाने के लिए बहुत बूढ़ा हो चुका हूं।" इस बीच असम में बीजेपी की राज्य सरकार सैकड़ों मदरसों को परंपरागत स्कूलों में बदल रही है, जबकि विपक्षी पार्टियां और मुसलमान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सर्मा ने सभी राज्यों से भी कहा है कि वे मदरसों की फंडिंग बंद करें। वहीं, देश में कई मदरसे मुसलमान समुदाय के सदस्यों द्वारा दिए गए चंदे पर चलते हैं और बाकी सरकारी मदद पर निर्भर हैं।

इन शिक्षकों– जिन्हें ‘आधुनिक’ शिक्षकों के रूप में जाना जाता है, का आरोप है कि उन्हें 2017 से वेतन नहीं दिया गया है। उनका कहना है कि वे 2016 से मिलने वाले ‘अतिरिक्त पैसे’ पर निर्भर हैं– एक पहल जिसे राज्य सरकार ने उसी वर्ष शुरू किया था, शिक्षकों द्वारा यह आरोप लगाए जाने के बाद कि उनका वेतन वितरण पहले भी ‘अनियमित’ था। 

खास है कि मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत आधुनिक शिक्षक जो स्नातक हैं, उन्हें 6,000 रुपये प्रति माह मिलते हैं और जो स्नातकोत्तर हैं, उन्हें 12,000 रुपये का भुगतान किया जाता है। वेतन के बजाय इन शिक्षकों को ‘अतिरिक्त धन’ मिल रहा है – स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षकों के लिए क्रमशः 2,000 रुपये और 3,000 रुपये– जिसकी घोषणा राज्य सरकार ने 2016 में की थी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने ‘लंबित वेतन’ की मांग को लेकर कई आधुनिक शिक्षक 18 दिसंबर 2023 से लखनऊ के इको गार्डन में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह जानने के बाद कि राज्य सरकार ने ‘अतिरिक्त पैसा’ बंद कर दिया है, जिस पर वे आश्रित थे, शिक्षकों ने बुधवार (10 जनवरी) को अपना विरोध तेज करने का फैसला किया।

प्रदर्शनकारी मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के अध्यक्ष अशरफ अली ने कहा, ‘हमें 2017 से वेतन नहीं मिला है। कुछ शिक्षकों ने तब से नौकरी छोड़ दी है। बचे हुए लोगों ने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वेंडिंग, सिलाई, रिक्शा चलाना और खेती जैसे छोटे-मोटे काम करना शुरू कर दिया। पांच महीने पहले राज्य ने अतिरिक्त पैसा देना भी बंद कर दिया।’ अली ने कहा, ‘आधुनिक शिक्षकों के रूप में काम करने वाले लगभग 21,000 लोग अब बेरोजगार हैं। अब उनके लिए मदरसों में जाने का कोई कारण नहीं है।’

विरोध कर रहे आधुनिक शिक्षकों ने तब तक अनिश्चितकालीन आंदोलन करने का फैसला किया है, जब तक कि सरकार उनके लिए किसी भी संभावित मदद के बारे में घोषणा नहीं करती। अली ने कहा, ‘हम कार्रवाई की मांग करते हैं। अगर केंद्र यह योजना नहीं चलाएगा तो राज्य सरकार को यह योजना चलानी चाहिए और हमारा बकाया चुकाया जाना चाहिए।’

10 लाख बच्चे होंगे प्रभावित

राज्य भर में चल रहे 7,442 पंजीकृत मदरसों में 21,000 से अधिक आधुनिक शिक्षक तैनात हैं। इनमें से लगभग 8,000 हिंदू समुदाय के हैं। वे लगभग 10 लाख छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाते हैं। पंजीकृत मदरसों में 560 सरकारी सहायता प्राप्त हैं। 8 जनवरी को राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग की निदेशक जे. रीभा ने सभी जिला अल्पसंख्यक अधिकारियों को पत्र लिखकर निर्णय की जानकारी दी। हालांकि बुधवार को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा रीभा के फोन पर किए गए कॉल का जवाब नहीं दिया गया।

क्या थी योजना?

मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और अन्य भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण योजना 1993-94 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी, जिसका नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया। एक मदरसे में अधिकतम तीन आधुनिक शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं। अप्रैल 2021 में इस योजना को शिक्षा मंत्रालय से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया। 

पहले इसे मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीक्यूईएम) कहा जाता था, अब इसे मदरसों/अल्पसंख्यकों में शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीईएमएम) नाम दिया गया है। इस योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकारों ने 2018 में वेतन को 60:40 के अनुपात में विभाजित करने का निर्णय लिया था। 2018 से पहले वेतन का भुगतान पूरी तरह से केंद्र द्वारा किया जाता था। प्रबंधन समितियों की अनुशंसा पर जिला अल्पसंख्यक अधिकारियों द्वारा मदरसों में आधुनिक शिक्षकों की नियुक्ति की जाती थी।

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