आने वाले विधानसभा चुनावों में जनता का मतदान व्यवहार नियंत्रित करने के लिए दक्षिणपंथी एज़ेंडा तेज़ी से काम कर रहा है लेकिन इस बीच हमें हिंदू-मुस्लिम एकता की पहलू नहीं भूलना चाहिए.
अगर आपको सितारे देखना पसंद है तो आपको राजस्थान ज़रूर पसंद होगा क्योंकि एक धूल भरे दिन के बाद सितारों को आंखों से साफ़ देखा जा सकता है. लेकिन नफ़रत के उन तूफ़ानों का क्या जो हमें प्यार और सद्भावना के प्रति अंधा बनाने के लिए हमारी आंखों में धूल झोंक रहे हैं?
पिछले कुछ महीनों में राजस्थान में मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह जनित बयानबाज़ियों और घटनाओं के आंकड़े बढ़े हैं. इसका मक़सद सीधे तौर पर विधानसभा चुनावों में मतदान व्यवहार को प्रभावित करना है. राजस्थान में 23 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं ऐसे में वहां बीते कुछ महीनों में VHP, RSS, बजरंग दल और अन्य संबंधित संगठनों की गतिविधियों में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है. विरोधी दलों ने ऐसी घटनाओं पर तो चुप्पी साध ली है या फिर नफ़रत के चक्र पर चंद कमज़ोर प्रहार किए हैं. ऐसे में ये बेहद ज़रूरी है कि हम भारत के रोज़मर्रा के सद्भाव को समझें जिससे कि नफ़रती बयानों और फर्जी ख़बरों का असर कम हो. हमें ये भी सवाल करना चाहिए कि इन दिनों मनोवैज्ञानिक क्यों ज़हरीले न्यूज़ कार्यक्रमों से दूर रहने की सलाह देते हैं और रवीश कुमार जैसे प्रबुद्ध स्वतंत्र पत्रकार आख़िर क्यों नागरिकों को गोदी मीडिया से बचने को कहते हैं? जबकि रोज़मर्रा की उम्मीदों की कहानियां हमारी समृद्ध गंगा-जमुना तहज़ीब पर मुहर लगाती हैं.
गुलाबी शहर जयपुर, जोधपुर का सौंदर्य, मनमोहक लोककलाएं, शास्त्रीय संगीत और कलाओं के वृहद इतिहास ने अरसे से विभिन्न समुदायों और जगहों से नाता रखने वालों को इस ओर आकर्षित किया है. इस सरज़मीं पर यात्रियों ने सितारों से रास्तों के पते पूछे हैं. CJP की मुहिम के तहत हम नफ़रत के नक़्शे के ज़रिए लगातार नफ़रत की घटनाओं का संज्ञान ले रहे हैं. अप्रैल, 2023 में CJP ने राजस्थान में युवाओं के बीच त्रिशूल बांटे जाने की घटनाओं का भी संज्ञान लिया है जहां वक्ताओं ने हिंदू भीड़ को अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नक़ली नफ़रती सूचनाओं के अंबार से भड़काने का प्रयास किया. लेकिन हम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाओं के अलावा एकता मिसालों का भी खुलकर स्वागत करते हैं. इन मिसालों को दोहराने से नफ़रत और हिंसा से उपजे अन्याय के माहौल में सुधार आता है.
पिछले कुछ अरसे में हमने राजस्थान राज्य में साहस, धर्मनिरपेक्षता और बहुल संस्कृति की अद्भुत झलक भी देखी है जिससे रोज़मर्रा की धार्मिक एकता को बल मिलता है.
बाड़मेर
राजस्थान में मुस्लिम आबादी का सांख्यिकीय आंकड़ा बेहद कम है और अधिकतर ज़िलों में हिंदू आबादी का राज है. अनेक बार कट्टर रिवायतों, पूर्वाग्रहों, सांप्रदायिकता और जातिवाद के नतीजे में भेदभाव की कट्टर घटनाएं सामने आई हैं लेकिन फिर भी समझदार और ज़मीनी स्तर के लोगों ने सद्भावना में यक़ीन को बचा रखा है. राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में अनेक गांवों में हिंदू आबादी रमज़ान के जश्न में हिस्सा लेती है. यहां गोहड़ का ताला, अरबी की गफ़न, सरतूपे का ताला और नवताला गांव विभाजन के इतिहास से संबंधित हैं जब पाकिस्तान से नागरिकों के एक जत्थे ने नज़दीकी ज़िलों में शरण ली थी. कुछ ग्रामवासी पीर पिथोरा के अनुयायी भी हैं जो कि सिंध, पाकिस्तान की एक मशहूर धार्मिक हस्ती हैं.
लाईव हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, रमज़ान के महीने में दशकों से इन गांवों में इस्लामिक रिवायतों का पालन किया जाता रहा है. सांस्कृतिक समानता और आदर्श ने यहां लोगों के बीच खींची सांप्रदायिकता की लकीर को हल्का करके उन्हें प्रेम के धागे से बंधने का प्रयास किया है. इस दौरान वो सेहरी (सूरज उगने से पहले नाश्ते और इबादत की परंपरा) के अलावा, रोज़ा (व्रत), इफ़्तार (व्रत तोड़ना) और नमाज़ (प्रार्थना) का भी पूरी निष्ठा से पालन करते हैं. दस्तरख्वान (भोजन की दरी) पर साथ बैठकर भोजन और दुआएं बांटना उन्हें आपस में जोड़ता है. इस समय जब अनेक शहरों में सड़कों पर नफ़रत भरे नारे गूंज रहे हैं, सिर्फ़ प्रेम की कहानियां ही पूर्वाग्रहों के पहाड़ों को पिघलाने की ताक़त रखती हैं.
जयपुर
बिल्कुल इसी तर्ज़ पर सांस्कृतिक, ऐतिहासिक महत्व के लिए मशहूर जयपुर में भी नागरिकों ने धर्म की दीवारें लांघकर एकता की नायाब मिसालें पेश की हैं.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिंक सिटी के राजेंन्द्र बागड़ी कोरोना लॉकडाउन के ख़तरनाक दौर में कैंसर का सामना कर रहे थे जब दुर्भाग्य से उनकी मौत हो गई. समय की नज़ाकत को देखते हुए इलाक़े के मुसलमान भाईयों ने उनके अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी ली जबकि राजेन्द्र की पत्नी और बच्चों ने उनका साथ दिया. भाईचारे और मानवता की झलक देते हुए इन मुसलमान बाशिन्दों ने ऐसे कठिन समय में बेहतरीन मूल्यों का परिचय दिया. एक हिंदू का दाह संस्कार करते मुसलमानों का वीडियो भी इंटरनेट पर जारी किया गया था. नेटीज़न्स ने इस पर ख़ूब प्यार लुटाया और इस जज़्बे की जमकर तारीफ़ की.
करौली
हाल में ही रिलीज़ बॉलीवुड फ़िक्शन मूवी ‘अफ़वाह’ भी राजस्थान के शहर में फ़ेक न्यूज़ और नफ़रती बयानों के इर्द-गिर्द हक़ीक़त को टटोलने की कोशिश है. लेकिन लोग उस समय क्या करते हैं जब अफ़वाहें पांव पसारती हैं या हिंसा जगाने वाली ख़बरों का प्रसार होता है? ज़्यादातर समय जनता इन घटनाओं को सच, तर्क और सबूत की कसौटी पर परखने की कोई कोशिश नहीं करती है लेकिन फिर भी ज़हर फैलाने के लिए उनके पास हमेशा पर्याप्त समय और ऊर्जा होती है.
लेकिन मधूलिका राज नामक औरत ऐसे लोगों की कतार में नहीं थी. वो एक क़स्बे में दुकान की ज़िम्मेदारी संभालती है और उन्हें मुसलमान युवकों की जान बचाने का श्रेय हासिल है. जब उन्मादी हिदुत्ववादियों की भीड़ इन मुसलमान युवकों का पीछा कर रही थी तो उन्होंने उन्हें पनाह दी. ये हिंसक भीड़ जय श्री राम का नारा भी लगा रही थी जब उन्होंने इन युवकों को कॉम्पलेक्स में छिपने की जगह दी. इस घटना पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा-
‘उन्होंने पूछा कि क्या कोई भीतर छिपा है, लेकिन मैंने कहा कि अंदर कोई भी नहीं है. मैं नहीं चाहती थी कि दंगें और फैलें.’
इस घटना में क़रीब 35 लोग घायल हो गए लेकिन फिर भी उनकी सूझबूझ ने तेज़ी से पनपती सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ बेहतरीन मिसाल पेश की है. ये उन स्त्रीविरोधी सोच के पक्षधर लोगों के लिए भी एक मज़बूत जवाब है जो स्त्रियों के साहस पर सवाल उठाते हैं.
राजस्थान शब्द का अर्थ है राजाओं की भूमि, अब ये हमपर निर्भर करता है कि हमें नफ़रत, हिंसा और ज़ुल्म के सम्राटों को पनाह देनी है या फिर उन साधारण लोगों को जिन्होंने मानवता की गहरी समझ के साथ लोकतंत्र की आत्मा के साथ न्याय किया है.
अगर आपको सितारे देखना पसंद है तो आपको राजस्थान ज़रूर पसंद होगा क्योंकि एक धूल भरे दिन के बाद सितारों को आंखों से साफ़ देखा जा सकता है. लेकिन नफ़रत के उन तूफ़ानों का क्या जो हमें प्यार और सद्भावना के प्रति अंधा बनाने के लिए हमारी आंखों में धूल झोंक रहे हैं?
पिछले कुछ महीनों में राजस्थान में मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह जनित बयानबाज़ियों और घटनाओं के आंकड़े बढ़े हैं. इसका मक़सद सीधे तौर पर विधानसभा चुनावों में मतदान व्यवहार को प्रभावित करना है. राजस्थान में 23 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं ऐसे में वहां बीते कुछ महीनों में VHP, RSS, बजरंग दल और अन्य संबंधित संगठनों की गतिविधियों में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है. विरोधी दलों ने ऐसी घटनाओं पर तो चुप्पी साध ली है या फिर नफ़रत के चक्र पर चंद कमज़ोर प्रहार किए हैं. ऐसे में ये बेहद ज़रूरी है कि हम भारत के रोज़मर्रा के सद्भाव को समझें जिससे कि नफ़रती बयानों और फर्जी ख़बरों का असर कम हो. हमें ये भी सवाल करना चाहिए कि इन दिनों मनोवैज्ञानिक क्यों ज़हरीले न्यूज़ कार्यक्रमों से दूर रहने की सलाह देते हैं और रवीश कुमार जैसे प्रबुद्ध स्वतंत्र पत्रकार आख़िर क्यों नागरिकों को गोदी मीडिया से बचने को कहते हैं? जबकि रोज़मर्रा की उम्मीदों की कहानियां हमारी समृद्ध गंगा-जमुना तहज़ीब पर मुहर लगाती हैं.
गुलाबी शहर जयपुर, जोधपुर का सौंदर्य, मनमोहक लोककलाएं, शास्त्रीय संगीत और कलाओं के वृहद इतिहास ने अरसे से विभिन्न समुदायों और जगहों से नाता रखने वालों को इस ओर आकर्षित किया है. इस सरज़मीं पर यात्रियों ने सितारों से रास्तों के पते पूछे हैं. CJP की मुहिम के तहत हम नफ़रत के नक़्शे के ज़रिए लगातार नफ़रत की घटनाओं का संज्ञान ले रहे हैं. अप्रैल, 2023 में CJP ने राजस्थान में युवाओं के बीच त्रिशूल बांटे जाने की घटनाओं का भी संज्ञान लिया है जहां वक्ताओं ने हिंदू भीड़ को अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नक़ली नफ़रती सूचनाओं के अंबार से भड़काने का प्रयास किया. लेकिन हम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाओं के अलावा एकता मिसालों का भी खुलकर स्वागत करते हैं. इन मिसालों को दोहराने से नफ़रत और हिंसा से उपजे अन्याय के माहौल में सुधार आता है.
पिछले कुछ अरसे में हमने राजस्थान राज्य में साहस, धर्मनिरपेक्षता और बहुल संस्कृति की अद्भुत झलक भी देखी है जिससे रोज़मर्रा की धार्मिक एकता को बल मिलता है.
बाड़मेर
राजस्थान में मुस्लिम आबादी का सांख्यिकीय आंकड़ा बेहद कम है और अधिकतर ज़िलों में हिंदू आबादी का राज है. अनेक बार कट्टर रिवायतों, पूर्वाग्रहों, सांप्रदायिकता और जातिवाद के नतीजे में भेदभाव की कट्टर घटनाएं सामने आई हैं लेकिन फिर भी समझदार और ज़मीनी स्तर के लोगों ने सद्भावना में यक़ीन को बचा रखा है. राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में अनेक गांवों में हिंदू आबादी रमज़ान के जश्न में हिस्सा लेती है. यहां गोहड़ का ताला, अरबी की गफ़न, सरतूपे का ताला और नवताला गांव विभाजन के इतिहास से संबंधित हैं जब पाकिस्तान से नागरिकों के एक जत्थे ने नज़दीकी ज़िलों में शरण ली थी. कुछ ग्रामवासी पीर पिथोरा के अनुयायी भी हैं जो कि सिंध, पाकिस्तान की एक मशहूर धार्मिक हस्ती हैं.
लाईव हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, रमज़ान के महीने में दशकों से इन गांवों में इस्लामिक रिवायतों का पालन किया जाता रहा है. सांस्कृतिक समानता और आदर्श ने यहां लोगों के बीच खींची सांप्रदायिकता की लकीर को हल्का करके उन्हें प्रेम के धागे से बंधने का प्रयास किया है. इस दौरान वो सेहरी (सूरज उगने से पहले नाश्ते और इबादत की परंपरा) के अलावा, रोज़ा (व्रत), इफ़्तार (व्रत तोड़ना) और नमाज़ (प्रार्थना) का भी पूरी निष्ठा से पालन करते हैं. दस्तरख्वान (भोजन की दरी) पर साथ बैठकर भोजन और दुआएं बांटना उन्हें आपस में जोड़ता है. इस समय जब अनेक शहरों में सड़कों पर नफ़रत भरे नारे गूंज रहे हैं, सिर्फ़ प्रेम की कहानियां ही पूर्वाग्रहों के पहाड़ों को पिघलाने की ताक़त रखती हैं.
जयपुर
बिल्कुल इसी तर्ज़ पर सांस्कृतिक, ऐतिहासिक महत्व के लिए मशहूर जयपुर में भी नागरिकों ने धर्म की दीवारें लांघकर एकता की नायाब मिसालें पेश की हैं.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिंक सिटी के राजेंन्द्र बागड़ी कोरोना लॉकडाउन के ख़तरनाक दौर में कैंसर का सामना कर रहे थे जब दुर्भाग्य से उनकी मौत हो गई. समय की नज़ाकत को देखते हुए इलाक़े के मुसलमान भाईयों ने उनके अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी ली जबकि राजेन्द्र की पत्नी और बच्चों ने उनका साथ दिया. भाईचारे और मानवता की झलक देते हुए इन मुसलमान बाशिन्दों ने ऐसे कठिन समय में बेहतरीन मूल्यों का परिचय दिया. एक हिंदू का दाह संस्कार करते मुसलमानों का वीडियो भी इंटरनेट पर जारी किया गया था. नेटीज़न्स ने इस पर ख़ूब प्यार लुटाया और इस जज़्बे की जमकर तारीफ़ की.
करौली
हाल में ही रिलीज़ बॉलीवुड फ़िक्शन मूवी ‘अफ़वाह’ भी राजस्थान के शहर में फ़ेक न्यूज़ और नफ़रती बयानों के इर्द-गिर्द हक़ीक़त को टटोलने की कोशिश है. लेकिन लोग उस समय क्या करते हैं जब अफ़वाहें पांव पसारती हैं या हिंसा जगाने वाली ख़बरों का प्रसार होता है? ज़्यादातर समय जनता इन घटनाओं को सच, तर्क और सबूत की कसौटी पर परखने की कोई कोशिश नहीं करती है लेकिन फिर भी ज़हर फैलाने के लिए उनके पास हमेशा पर्याप्त समय और ऊर्जा होती है.
लेकिन मधूलिका राज नामक औरत ऐसे लोगों की कतार में नहीं थी. वो एक क़स्बे में दुकान की ज़िम्मेदारी संभालती है और उन्हें मुसलमान युवकों की जान बचाने का श्रेय हासिल है. जब उन्मादी हिदुत्ववादियों की भीड़ इन मुसलमान युवकों का पीछा कर रही थी तो उन्होंने उन्हें पनाह दी. ये हिंसक भीड़ जय श्री राम का नारा भी लगा रही थी जब उन्होंने इन युवकों को कॉम्पलेक्स में छिपने की जगह दी. इस घटना पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा-
‘उन्होंने पूछा कि क्या कोई भीतर छिपा है, लेकिन मैंने कहा कि अंदर कोई भी नहीं है. मैं नहीं चाहती थी कि दंगें और फैलें.’
इस घटना में क़रीब 35 लोग घायल हो गए लेकिन फिर भी उनकी सूझबूझ ने तेज़ी से पनपती सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ बेहतरीन मिसाल पेश की है. ये उन स्त्रीविरोधी सोच के पक्षधर लोगों के लिए भी एक मज़बूत जवाब है जो स्त्रियों के साहस पर सवाल उठाते हैं.
राजस्थान शब्द का अर्थ है राजाओं की भूमि, अब ये हमपर निर्भर करता है कि हमें नफ़रत, हिंसा और ज़ुल्म के सम्राटों को पनाह देनी है या फिर उन साधारण लोगों को जिन्होंने मानवता की गहरी समझ के साथ लोकतंत्र की आत्मा के साथ न्याय किया है.