हर्ष चौहान ने कार्यकाल समाप्त होने से आठ महीने पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हर्ष चौहान का ये इस्तीफा वन संरक्षण नियम 2022 को लेकर पर्यावरण मंत्रालय के साथ टकराव के बाद आया है, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह वनाधिकार अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है। उधर, अपने ट्वीट में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चौहान पर दवाब बनाकर अपने कार्यकाल से आठ महीने पहले इस्तीफा दिलवाने का आरोप लगाया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) अध्यक्ष हर्ष चौहान ने अपना कार्यकाल समाप्त होने में आठ महीने शेष रहते हुए इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद, आदिवासी अधिकार निकाय एक अकेले सदस्य, अनंत नायक के साथ काम कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मध्य प्रदेश के रहने वाले सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता चौहान ने 26 जून को इस्तीफा दे दिया था। उनका इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पिछले हफ्ते स्वीकार कर लिया था।
उन्हें फरवरी 2021 में तीन साल के कार्यकाल के लिए एनसीएसटी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। यह इस्तीफा पर्यावरण मंत्रालय के साथ चल रहे टकराव के बाद आया है, क्योंकि अक्टूबर 2022 में, चौहान ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र लिखकर, नए वन संरक्षण नियम, 2022 को लाल झंडी दिखा दी थी। उन्होंने कहा था कि परियोजना मंजूरी को प्रधानता प्रदान करने वाले ये नियम, वन अधिकार अधिनियम-2006 (FRA-2006) का खुला उल्लंघन करते हैं।
कांग्रेस ने उनके इस्तीफे को नए वन संरक्षण नियम 2022 से जोड़ा है। दरअसल, पिछले साल सितंबर में चौहान ने पर्यावरण मंत्रालय में इस नियम को निलंबित करने के लिए पत्र लिखा था। चौहान ने मंत्रालय से 2017 के वन संरक्षण नियमों के कुछ प्रावधानों के अनुपालन को बहाल करने, मजबूत करने और सख्ती से निगरानी करने का आग्रह किया था। हालांकि, इसी साल जनवरी में पर्यावरण मंत्रालय ने चौहान के द्वारा उठाई गई चिंताओं को खारिज कर दिया था। खास है कि चौहान ने मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है और अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित संघ निकायों से जुड़े रहे हैं।
कांग्रेस ने भाजपा को ठहराया जिम्मेवार
हर्ष चौहान ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) का अध्यक्ष पद, अपना कार्यकाल पूरा होने से आठ महीने पहले ही छोड़ दिया। उनके इस फैसले के लिए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि उन्हें वनों और आदिवासी अधिकारों के मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से भिड़ने की कीमत चुकानी पड़ी है।
जयराम रमेश का आरोप
ट्वीट में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चौहान पर दवाब बनाकर अपने कार्यकाल से आठ महीने पहले इस्तीफा दिलवाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि साल 2021 में हर्ष चौहान राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष के तौर पर पदभार संभाला था। पिछले दो सालों में जिस तरह से वन कानूनों को कमजोर किया गया है, इससे आदिवासियों के हितों को काफी नुकसान पहुंचा है। इसके लिए वह अन्य कार्यकर्ताओं की तरह कड़ी आपत्तियां जताते रहे हैं।'
रमेश ने कहा, 'अब चौहान इसकी कीमत चुका रहे हैं। उन्हें अपना कार्यकाल खत्म होने के आठ महीने पहले ही इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।"
खाली है एनसीएसटी का अध्यक्ष पद
चौहान के इस्तीफे के साथ अब आदिवासी पैनल में अध्यक्ष पक्ष खाली है और इसमें अनंत नायक के अलावा कोई भी अन्य सदस्य नहीं है। साल 2021 में भी चौहान की नियुक्ति से पहले यह पद खाली था। 27 फरवरी 2020 में नंद कुमार साई का कार्यकाल खत्म होने के बाद पैनल पूरे एक साल तक बिना अध्यक्ष के काम करता रहा। जुलाई 2019 में अनुसुइया उइके के छत्तीसगढ़ का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद से एनसीएसटी का उपाध्यक्ष पद तब से खाली है। वर्तमान में उइके मणिपुर की राज्यपाल है।
एनसीएसटी की स्थापना फरवरी 2004 में संविधान की धारा 338A के तहत की गई थी। यह एक संवैधानिक निकाय है, जो अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों, हितों और कल्याण की सुरक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने पर काम करती है। पैनल के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। जहां अध्यक्ष के पास केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का पद होता है, तो वहीं उपाध्यक्ष के पास राज्य मंत्री और तीन सदस्यों के पास भारत सरकार के सचिव का पद होता है।
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उन्हें फरवरी 2021 में तीन साल के कार्यकाल के लिए एनसीएसटी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। यह इस्तीफा पर्यावरण मंत्रालय के साथ चल रहे टकराव के बाद आया है, क्योंकि अक्टूबर 2022 में, चौहान ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र लिखकर, नए वन संरक्षण नियम, 2022 को लाल झंडी दिखा दी थी। उन्होंने कहा था कि परियोजना मंजूरी को प्रधानता प्रदान करने वाले ये नियम, वन अधिकार अधिनियम-2006 (FRA-2006) का खुला उल्लंघन करते हैं।
कांग्रेस ने उनके इस्तीफे को नए वन संरक्षण नियम 2022 से जोड़ा है। दरअसल, पिछले साल सितंबर में चौहान ने पर्यावरण मंत्रालय में इस नियम को निलंबित करने के लिए पत्र लिखा था। चौहान ने मंत्रालय से 2017 के वन संरक्षण नियमों के कुछ प्रावधानों के अनुपालन को बहाल करने, मजबूत करने और सख्ती से निगरानी करने का आग्रह किया था। हालांकि, इसी साल जनवरी में पर्यावरण मंत्रालय ने चौहान के द्वारा उठाई गई चिंताओं को खारिज कर दिया था। खास है कि चौहान ने मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है और अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित संघ निकायों से जुड़े रहे हैं।
कांग्रेस ने भाजपा को ठहराया जिम्मेवार
हर्ष चौहान ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) का अध्यक्ष पद, अपना कार्यकाल पूरा होने से आठ महीने पहले ही छोड़ दिया। उनके इस फैसले के लिए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि उन्हें वनों और आदिवासी अधिकारों के मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से भिड़ने की कीमत चुकानी पड़ी है।
जयराम रमेश का आरोप
ट्वीट में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चौहान पर दवाब बनाकर अपने कार्यकाल से आठ महीने पहले इस्तीफा दिलवाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि साल 2021 में हर्ष चौहान राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष के तौर पर पदभार संभाला था। पिछले दो सालों में जिस तरह से वन कानूनों को कमजोर किया गया है, इससे आदिवासियों के हितों को काफी नुकसान पहुंचा है। इसके लिए वह अन्य कार्यकर्ताओं की तरह कड़ी आपत्तियां जताते रहे हैं।'
रमेश ने कहा, 'अब चौहान इसकी कीमत चुका रहे हैं। उन्हें अपना कार्यकाल खत्म होने के आठ महीने पहले ही इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।"
खाली है एनसीएसटी का अध्यक्ष पद
चौहान के इस्तीफे के साथ अब आदिवासी पैनल में अध्यक्ष पक्ष खाली है और इसमें अनंत नायक के अलावा कोई भी अन्य सदस्य नहीं है। साल 2021 में भी चौहान की नियुक्ति से पहले यह पद खाली था। 27 फरवरी 2020 में नंद कुमार साई का कार्यकाल खत्म होने के बाद पैनल पूरे एक साल तक बिना अध्यक्ष के काम करता रहा। जुलाई 2019 में अनुसुइया उइके के छत्तीसगढ़ का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद से एनसीएसटी का उपाध्यक्ष पद तब से खाली है। वर्तमान में उइके मणिपुर की राज्यपाल है।
एनसीएसटी की स्थापना फरवरी 2004 में संविधान की धारा 338A के तहत की गई थी। यह एक संवैधानिक निकाय है, जो अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों, हितों और कल्याण की सुरक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने पर काम करती है। पैनल के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। जहां अध्यक्ष के पास केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का पद होता है, तो वहीं उपाध्यक्ष के पास राज्य मंत्री और तीन सदस्यों के पास भारत सरकार के सचिव का पद होता है।
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