
विवान सुंदरम एक ऐसे कलाकार थे, जिनका दिल और कला दोनों ही गरीबों, शोषितों, हाशिए के लोगों के साथ थे। अपने आधी सदी से अधिक लंबे कलात्मक करियर के दौरान, उन्होंने कला की कुलीन धारणाओं पर सवाल उठाए। उन्होंने ऐसी कला का निर्माण किया जो बाज़ार की जकड़ से मुक्त थी - वह कला जो आम लोगों के साथ गाती और नाचती थी, उनसे संवेदना रखती थी, जो हमसे और हमारी मानवता से कठिन सवाल पूछती थी। वह एक असाधारण व्यक्तित्व थे जो अपने पीछे कला की एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं, जो हमारे दौर का दस्तावेज़ है।
चित्रकला और इंस्टॉलेशन आर्ट के गुणी, विवान सुन्दरम अपने कला अमल को विविध माध्यमों से संवारते रहे। हर बार उनकी कोशिश एक व्यापक दर्शक समूह तक पहुंचने की होती थी। सहमत के लिए डिज़ाइन की गई उनकी प्रदर्शनी 'वर्ड्स एंड ईमेजस' अनेक रिहायशी बस्तियों में देखी और सराही गई। इस प्रदर्शनी को लगाने के लिए विवान ख़ुद लग जाया करते थे। 1984 में दंगों के बाद होने वाले 'कम्युनल हारमनी मार्च' के आयोजन में विवान ने बढ़-चढ़ कर शिरकत की। हमेशा सार्वजनिक मंच पर बोलने से कतराने वाले विवान, 'कमेटी फॉर कम्यूनल हारमनी' द्वारा आयोजित इस मार्च के लिए कई स्कूलों में जाकर बोले। 'आर्टिस्ट एगेंस्ट कम्युनलिज्म' प्रदर्शनी को आयोजित करने में भी उनकी विशेष भुमिका रही। 1988 में दिल्ली-गाज़ियाबाद के मज़दूरों की सात दिन की हड़ताल के समर्थन में जब कलाकार और बुद्धिजीवियों ने बोटक्लब पर मार्च किया तो विवान अगली कतार में थे। 2 जनवरी 1989 को सफ़दर की मौत के बाद सफ़दर हाशमी मैमोरियल ट्रस्ट का गठन हुआ, विवान उसके संस्थापक सदस्य थे। इसी वक्त उन्होंने एक बेहद ख़ूबसूरत तस्वीर ‘Moloyashree and Safdar’ बनाई ।

1989 में सफदर हाशमी की मौत के बाद विवान सुंदरम द्वारा बनाया गया पोस्टर
जन्म के साथ उनका एक कलात्मक रिश्ता भी बना, जब उन्होंने अनुराधा कपूर द्वारा निर्देशित जनम के नाटक 'गोल खोपड़ी नुकीले खोपड़ी' के लिए सेट, काॅस्ट्यूम और बैकड्रॉप डिज़ाइन किये। विवान मंच नाटक के सेट डिज़ाइन से तो जुड़े ही थे लेकिन नाटक के ज़रिए इलाकों और पुनर्वास बस्तियों में जाने का उनका ये पहला अनुभव था। सहमत द्वारा आयोजित जनोत्सव को लेकर भी वो बहुत उत्साहित थे।
विवान न केवल एक रंगकार थे बल्कि वो एक सिद्धांतकार भी थे। वे जर्नल ऑफ आर्ट्स एंड आइडियाज़ के संपादक मंडल में थे, जिसके ज़रिये उन्होंने अगली पीढ़ी के लिए बौद्धिक धरोहर छोड़ी है। वो स्वंय को आर्टिस्ट ही नहीं बल्कि एक आर्टिस्ट -एक्टिविस्ट भी मानते थे। विवान सरीखे प्रतिभा के धनी प्रतिबद्ध कलाकार का जाना आज के दौर में एक बहुत भारी क्षति है।
जन नाट्य मंच विवान सुंदरम की याद को, उनकी कला को, और उनकी मानवता को सलाम करता है।
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