"प्याज के दामों में आई भारी गिरावट से हुए नुकसान के बाद महाराष्ट्र के हजारों किसान नासिक से मुंबई लॉन्ग मार्च पर निकल गए हैं। किसान तुरंत वित्तीय राहत, निरंतर बिजली सप्लाई और कर्ज माफी आदि की मांग कर रहे हैं। प्रमुख मांगों में प्याज के लिए 2000 रुपये प्रति कुंतल और निर्यात नीतियों में बदलाव के साथ 600 रुपये प्रति कुंतल की तत्काल सब्सिडी की मांग शामिल हैं। किसानों की हालत से जुड़े इस मामले की गंभीरता को इससे भी समझा जा सकता है कि राज्य में रोजाना 8 किसान कथित तौर पर अपनी जिंदगी खत्म कर ले रहे हैं।"
किसानों ने महाराष्ट्र के कई जिलों से नासिक में इकठ्ठा हो कर, वहां से करीब 170 किमी दूर राजधानी मुंबई के लिए लॉन्ग मार्च (पदयात्रा) शुरू किया है। किसानों के 20 मार्च को मुंबई पहुंचने की संभावना है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक लॉन्ग मार्च में करीब 10,000 किसान शामिल हैं।
अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में हो रहे इस लॉन्ग मार्च की पृष्ठभूमि में हाल ही में प्याज के दामों के धराशायी होने से किसानों को हुआ नुकसान है, लेकिन पदयात्रा पर निकले किसानों की कई मांगें हैं। 17 सूत्री डिमांड चार्टर में किसानों की सबसे प्रमुख मांग विशेष रूप से प्याज के लिए लाभकारी मूल्य है। प्याज के लिए 2000 रुपये प्रति कुंतल और निर्यात नीतियों में बदलाव के साथ 600 रुपये प्रति क्विंटल की तत्काल सब्सिडी की मांग किसान कर रहे हैं। यही नहीं, प्याज के न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई फसल के लिए हर्जाना, कर्ज माफी, बिजली बिल माफी, कम से कम 12 घंटों की निरंतर बिजली सप्लाई, वन अधिकार कानून का पालन आदि मांगें शामिल हैं।
इसके साथ ही मार्च कर रहे किसानों ने सभी वन भूमि, चरागाह, मंदिर, इनाम, वक्फ, और बेनामी भूमि का कृषकों के नाम पर निहित करने की मांग भी रखी है। पीएम आवास योजना की सब्सिडी को 1.40 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने की मांग भी आंदोलनकारी कर रहे हैं। वृद्धावस्था और विशेष पेंशन राशि को 4000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाना. 2005 के बाद शामिल हुए सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग के साथ ये किसान मुंबई नाशिक हाईवे पर पैदल चलते हुए मुंबई की तरफ आगे बढ़ रहे हैं।
क्यों रुलाया प्याज ने
महाराष्ट्र में प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है और इस समय राज्य में प्याज के किसान भारी संकट से गुजर रहे हैं। अति उत्पादन की वजह से राज्य की मंडियों में प्याज के दाम इतने ज्यादा गिर गए हैं कि किसानों की लागत के बराबर भी आमदनी नहीं हो पा रही है।
महाराष्ट्र के लासलगांव में देश की सबसे बड़ी प्याज की मंडी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां फरवरी के शुरुआत तक प्याज 1,151 रुपए कुंतल बिक रहा था लेकिन अगले तीन हफ्तों के अंदर दाम गिर कर 550 रुपयों पर आ गए। कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि राज्य में कहीं कहीं पर तो दाम 200 से लेकर 400 रुपयों तक पहुंच गए थे।
इसके अलावा फसल को मंडियों तक ले कर जाने के लिए यातायात पर अलग से खर्च होता है जिससे किसानों की लागत और बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें अगर कम से कम 1200 से 1500 रुपए प्रति क्विंटल तक का भाव नहीं मिलता तो उनकी कमाई ना हो कर उल्टा उन्हें घाटा उठाना पड़ता है। दामों के इतना नीचे गिर जाने से नाराज और परेशान किसानों ने विरोध प्रदर्शन भी किया है। कुछ किसानों ने होली के समय अपने प्याज के ढेरों की ही होलिका जला दी थी, ताकि प्रशासन का उनकी तरफ ध्यान जाए। किसानों की मदद करने के लिए सरकारी संस्था नैफेड पिछले कुछ महीनों से सीधे उनसे प्याज खरीद रही है लेकिन किसानों का कहना है कि नैफेड के रेट भी नाकाफी हैं।
इसलिए किसानों ने अब पदयात्रा के जरिए अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन करने की ठानी है। पदयात्रा शुरू होने का बाद महाराष्ट्र सरकार ने दाम गिरने की वजह से नुकसान झेल चुके किसानों के लिए 300 रुपए प्रति कुंतल हर्जाने की घोषणा की, लेकिन किसानों की मांग कम से कम 600 रुपए प्रति कुंतल की सहायता की है।
आलू में भी वही हालात
मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि बाजार में आई आलू की फसल के साथ भी प्याज जैसा ही हश्र होता नजर आ रहा है। आलू की बंपर फसल बाजार में आ चुकी है लेकिन फसल को खरीदार नहीं मिल रहे हैं, जिसकी वजह से दाम कम से कम 20 प्रतिशत तक गिर गए हैं।
कृषि मामलों की वेबसाइट रूरल वॉइस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में किसानों का कहना है कि जहां उनकी लागत 10 रुपए किलो है, वहीं उन्हें दाम चार से छह रुपए किलो ही मिल रहे हैं। जानकारों की राय है सरकार को समय रहते हस्तक्षेप करना चाहिए नहीं तो आलू किसानों को भी वैसा ही नुकसान उठाना पड़ेगा जैसा प्याज किसानों को उठाना पड़ा है।
महाराष्ट्र में रोज़ाना 8 किसान अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर रहे हैं: NCP
महाराष्ट्र में प्रतिदिन 8 किसान कथित तौर पर आत्महत्या कर ले रहे हैं और एकनाथ शिंदे सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक कम से कम 1,203 किसानों ने अपनी जान ली है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता और विपक्ष के नेता अजीत पवार ने बीते 10 मार्च को महाराष्ट्र विधानसभा में यह जानकारी दी है। ये रिपोर्ट राज्य में किसानों की स्थिति बखूबी बयां कर दे रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पवार ने कहा, ‘बेमौसम बारिश के कारण महाराष्ट्र में खेती खतरे में है, कृषि उपज को अच्छी कीमत नहीं मिल पा रही है और इसके परिणामस्वरूप किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक रहे हैं। कृषि बिजली कनेक्शन काटे जा रहे हैं और उर्वरकों की कीमत बढ़ रही है। ’उन्होंने कहा, ‘शिंदे-फडणवीस सरकार कृषि के मामले में सबसे असंवेदनशील सरकारों में से एक है।’ द वायर ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि मौजूदा प्रशासन के सात महीनों के दौरान मरने वाले 1,203 किसानों के मुकाबले उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पिछली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के ढाई साल की अवधि में 1,660 किसानों की मौत हुई थी। एमवीए सरकार से पहले राज्य भाजपा शासन के अधीन था और देवेंद्र फडणवीस 2014 और 2019 के बीच मुख्यमंत्री थे। उस अवधि में 5,061 किसानों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने पवार के हवाले से कहा, ‘मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले दो महीनों में 62 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि बीड जिले में कुल 22 किसानों ने आत्महत्या की है।’ पवार ने आरोप लगाया, ‘हम किसी एक व्यक्ति या किसी खास मुख्यमंत्री को दोष नहीं देना चाहते, लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि शिंदे सरकार में बड़ी संख्या में किसान अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं।’
उन्होंने विस्तार से बताया कि किसानों के बीच वित्तीय संकट उनकी परेशानियों के प्रमुख कारकों में से एक था। पवार ने कहा, ‘कपास, प्याज और सोयाबीन उगाने वाले किसानों को इस वर्ष उनकी फसलों के उचित मूल्य नहीं मिले। हमने देखा है कि कैसे प्याज के किसान अपने उत्पादों को सड़क पर फेंक रहे हैं, जबकि उनमें से कुछ उन्हें खेतों में जला रहे हैं। किसान अपनी लागत और खर्च भी वसूल नहीं कर पा रहे हैं।’ हाल ही में पेश किए गए राज्य सरकार के बजट में किसानों के लिए 6,000 रुपये की वार्षिक नकद सहायता सहित कई योजनाओं की घोषणा करने के बाद विपक्ष ने सरकार की आलोचना की थी। यह वार्षिक सहायता केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की गई 6,000 रुपये की समान सहायता के अतिरिक्त होगी।
पवार ने, राज्य के सांगली जिले की एक घटना का जिक्र करते हुए, आरोप लगाया कि किसानों से उनकी जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है, जब वे उर्वरक खरीदने जाते हैं। एनसीपी नेता जयंत पाटिल ने कहा, ‘अब सरकारी साइट पर खाद खरीदते समय किसान की जाति पूछी गई है। यह अजीब है कि वे किसानों से उनकी जाति पूछकर उन्हें कैसे अपमानित कर सकते हैं। किसान तो किसान होता है, कृपया उन्हें जाति और धर्म के आधार पर न बांटें।’
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किसानों ने महाराष्ट्र के कई जिलों से नासिक में इकठ्ठा हो कर, वहां से करीब 170 किमी दूर राजधानी मुंबई के लिए लॉन्ग मार्च (पदयात्रा) शुरू किया है। किसानों के 20 मार्च को मुंबई पहुंचने की संभावना है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक लॉन्ग मार्च में करीब 10,000 किसान शामिल हैं।
अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में हो रहे इस लॉन्ग मार्च की पृष्ठभूमि में हाल ही में प्याज के दामों के धराशायी होने से किसानों को हुआ नुकसान है, लेकिन पदयात्रा पर निकले किसानों की कई मांगें हैं। 17 सूत्री डिमांड चार्टर में किसानों की सबसे प्रमुख मांग विशेष रूप से प्याज के लिए लाभकारी मूल्य है। प्याज के लिए 2000 रुपये प्रति कुंतल और निर्यात नीतियों में बदलाव के साथ 600 रुपये प्रति क्विंटल की तत्काल सब्सिडी की मांग किसान कर रहे हैं। यही नहीं, प्याज के न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई फसल के लिए हर्जाना, कर्ज माफी, बिजली बिल माफी, कम से कम 12 घंटों की निरंतर बिजली सप्लाई, वन अधिकार कानून का पालन आदि मांगें शामिल हैं।
इसके साथ ही मार्च कर रहे किसानों ने सभी वन भूमि, चरागाह, मंदिर, इनाम, वक्फ, और बेनामी भूमि का कृषकों के नाम पर निहित करने की मांग भी रखी है। पीएम आवास योजना की सब्सिडी को 1.40 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने की मांग भी आंदोलनकारी कर रहे हैं। वृद्धावस्था और विशेष पेंशन राशि को 4000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाना. 2005 के बाद शामिल हुए सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग के साथ ये किसान मुंबई नाशिक हाईवे पर पैदल चलते हुए मुंबई की तरफ आगे बढ़ रहे हैं।
क्यों रुलाया प्याज ने
महाराष्ट्र में प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है और इस समय राज्य में प्याज के किसान भारी संकट से गुजर रहे हैं। अति उत्पादन की वजह से राज्य की मंडियों में प्याज के दाम इतने ज्यादा गिर गए हैं कि किसानों की लागत के बराबर भी आमदनी नहीं हो पा रही है।
महाराष्ट्र के लासलगांव में देश की सबसे बड़ी प्याज की मंडी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां फरवरी के शुरुआत तक प्याज 1,151 रुपए कुंतल बिक रहा था लेकिन अगले तीन हफ्तों के अंदर दाम गिर कर 550 रुपयों पर आ गए। कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि राज्य में कहीं कहीं पर तो दाम 200 से लेकर 400 रुपयों तक पहुंच गए थे।
इसके अलावा फसल को मंडियों तक ले कर जाने के लिए यातायात पर अलग से खर्च होता है जिससे किसानों की लागत और बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें अगर कम से कम 1200 से 1500 रुपए प्रति क्विंटल तक का भाव नहीं मिलता तो उनकी कमाई ना हो कर उल्टा उन्हें घाटा उठाना पड़ता है। दामों के इतना नीचे गिर जाने से नाराज और परेशान किसानों ने विरोध प्रदर्शन भी किया है। कुछ किसानों ने होली के समय अपने प्याज के ढेरों की ही होलिका जला दी थी, ताकि प्रशासन का उनकी तरफ ध्यान जाए। किसानों की मदद करने के लिए सरकारी संस्था नैफेड पिछले कुछ महीनों से सीधे उनसे प्याज खरीद रही है लेकिन किसानों का कहना है कि नैफेड के रेट भी नाकाफी हैं।
इसलिए किसानों ने अब पदयात्रा के जरिए अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन करने की ठानी है। पदयात्रा शुरू होने का बाद महाराष्ट्र सरकार ने दाम गिरने की वजह से नुकसान झेल चुके किसानों के लिए 300 रुपए प्रति कुंतल हर्जाने की घोषणा की, लेकिन किसानों की मांग कम से कम 600 रुपए प्रति कुंतल की सहायता की है।
आलू में भी वही हालात
मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि बाजार में आई आलू की फसल के साथ भी प्याज जैसा ही हश्र होता नजर आ रहा है। आलू की बंपर फसल बाजार में आ चुकी है लेकिन फसल को खरीदार नहीं मिल रहे हैं, जिसकी वजह से दाम कम से कम 20 प्रतिशत तक गिर गए हैं।
कृषि मामलों की वेबसाइट रूरल वॉइस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में किसानों का कहना है कि जहां उनकी लागत 10 रुपए किलो है, वहीं उन्हें दाम चार से छह रुपए किलो ही मिल रहे हैं। जानकारों की राय है सरकार को समय रहते हस्तक्षेप करना चाहिए नहीं तो आलू किसानों को भी वैसा ही नुकसान उठाना पड़ेगा जैसा प्याज किसानों को उठाना पड़ा है।
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महाराष्ट्र में प्रतिदिन 8 किसान कथित तौर पर आत्महत्या कर ले रहे हैं और एकनाथ शिंदे सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक कम से कम 1,203 किसानों ने अपनी जान ली है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता और विपक्ष के नेता अजीत पवार ने बीते 10 मार्च को महाराष्ट्र विधानसभा में यह जानकारी दी है। ये रिपोर्ट राज्य में किसानों की स्थिति बखूबी बयां कर दे रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पवार ने कहा, ‘बेमौसम बारिश के कारण महाराष्ट्र में खेती खतरे में है, कृषि उपज को अच्छी कीमत नहीं मिल पा रही है और इसके परिणामस्वरूप किसान अपनी उपज सड़क पर फेंक रहे हैं। कृषि बिजली कनेक्शन काटे जा रहे हैं और उर्वरकों की कीमत बढ़ रही है। ’उन्होंने कहा, ‘शिंदे-फडणवीस सरकार कृषि के मामले में सबसे असंवेदनशील सरकारों में से एक है।’ द वायर ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि मौजूदा प्रशासन के सात महीनों के दौरान मरने वाले 1,203 किसानों के मुकाबले उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पिछली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के ढाई साल की अवधि में 1,660 किसानों की मौत हुई थी। एमवीए सरकार से पहले राज्य भाजपा शासन के अधीन था और देवेंद्र फडणवीस 2014 और 2019 के बीच मुख्यमंत्री थे। उस अवधि में 5,061 किसानों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली थी।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने पवार के हवाले से कहा, ‘मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले दो महीनों में 62 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि बीड जिले में कुल 22 किसानों ने आत्महत्या की है।’ पवार ने आरोप लगाया, ‘हम किसी एक व्यक्ति या किसी खास मुख्यमंत्री को दोष नहीं देना चाहते, लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि शिंदे सरकार में बड़ी संख्या में किसान अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं।’
उन्होंने विस्तार से बताया कि किसानों के बीच वित्तीय संकट उनकी परेशानियों के प्रमुख कारकों में से एक था। पवार ने कहा, ‘कपास, प्याज और सोयाबीन उगाने वाले किसानों को इस वर्ष उनकी फसलों के उचित मूल्य नहीं मिले। हमने देखा है कि कैसे प्याज के किसान अपने उत्पादों को सड़क पर फेंक रहे हैं, जबकि उनमें से कुछ उन्हें खेतों में जला रहे हैं। किसान अपनी लागत और खर्च भी वसूल नहीं कर पा रहे हैं।’ हाल ही में पेश किए गए राज्य सरकार के बजट में किसानों के लिए 6,000 रुपये की वार्षिक नकद सहायता सहित कई योजनाओं की घोषणा करने के बाद विपक्ष ने सरकार की आलोचना की थी। यह वार्षिक सहायता केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की गई 6,000 रुपये की समान सहायता के अतिरिक्त होगी।
पवार ने, राज्य के सांगली जिले की एक घटना का जिक्र करते हुए, आरोप लगाया कि किसानों से उनकी जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है, जब वे उर्वरक खरीदने जाते हैं। एनसीपी नेता जयंत पाटिल ने कहा, ‘अब सरकारी साइट पर खाद खरीदते समय किसान की जाति पूछी गई है। यह अजीब है कि वे किसानों से उनकी जाति पूछकर उन्हें कैसे अपमानित कर सकते हैं। किसान तो किसान होता है, कृपया उन्हें जाति और धर्म के आधार पर न बांटें।’
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