नवंबर 2022 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस पर दिए गए भाषण में ज़मानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण ग़रीब आदिवासियों के जेल में बंद होने का ज़िक्र किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे क़ैदियों का ब्योरा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे.
उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 29 नवंबर के अपने आदेश में उन विचाराधीन बंदियों का मुद्दा उठाया था, जो जमानत मिलने के बावजूद जमानत की शर्त नहीं पूरी कर पाने के कारण जेल में हैं.
पीठ ने कहा था कि जेल अधिकारियों को विचाराधीन कैदियों के नाम, उनके खिलाफ आरोप, जमानत आदेश की तारीख, जमानत की किन शर्तों को पूरा नहीं किया गया और जमानत के आदेश के बाद उन्होंने जेल में कितना समय बिताया है, इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने होंगे.
उच्चतम न्यायालय का 29 नवंबर का यह आदेश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पिछले साल 26 नवंबर को संविधान दिवस पर दिए गए भाषण के बाद आया था. राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में ओडिशा और झारखंड के गरीब जनजातीय लोगों के जमानत राशि न भर पाने के कारण जेल में बंद रहने का उल्लेख किया था.
राष्ट्रपति ने कहा था कि वे जमानत मिलने के बावजूद जमानत राशि की व्यवस्था न हो पाने के कारण कारागार में बंद हैं.
जमानत देने की नीतिगत रणनीति से जुड़ा मामला मंगलवार को जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया.
इस मामले में न्यायमित्र के रूप में शीर्ष अदालत का सहयोग कर रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने नालसा की ओर से पेश रिपोर्ट का उल्लेख किया.
नालसा ने कहा कि दिसंबर 2022 तक राज्यों के लगभग सभी एसएलएसए से डेटा प्राप्त कर लिया गया है. रिपोर्ट में इसके आधार पर कहा गया है कि जमानत मिलने के बावजूद जेल में रहने वाले बंदियों की संख्या करीब 5,000 थी, जिनमें से 2,357 को विधिक सहायता प्रदान की गई और 1,417 बंदियों को रिहा कराया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जमानत मिलने के बावजूद अभियुक्तों के जेल में होने का एक मुख्य कारण यह है कि वे कई मामलों में आरोपी हैं और जब तक उन्हें सभी मामलों में जमानत नहीं दी जाती है, तब तक वे जमानत राशि भरने को तैयार नहीं हैं.
विभिन्न राज्यों के एसएलएसए के मुताबिक, जमानत मिलने के बावजूद जेल में रह रहे विचाराधीन बंदियों की संख्या महाराष्ट्र में 703 (जिनमें से 314 रिहा कराए गए), ओडिशा में 238 (जिनमें से 81 रिहा कराए गए) और दिल्ली में 287 ((जिनमें से 71 रिहा कराए गए) थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि जहां भी रिहा न होने का कारण बॉन्ड या जमानत देने में असमर्थता है, नालसा संबंधित राज्य या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ उन मामलों का पालन करेगा और उम्मीद है कि अगले एक या दो महीनों में ऐसे विचाराधीन कैदी जेल से बाहर होंगे.
इसमें आगे कहा, ‘जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए कानूनी सहायता की आवश्यकता वाले ऐसे सभी कैदियों को डीएलएसए द्वारा कानूनी सहायता दी जाएगी.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे कैदियों की मदद के लिए तंत्र का पता लगाने के लिए कई बैठकें भी की गईं.
इसमें कहा, ‘तदनुसार, एनआईसी (राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र) द्वारा एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की गई है जो इस पहलू से भी संबंधित है (समय पूर्व रिहाई जैसे अन्य मुद्दों के अलावा).’
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनआईसी ई-जेल सॉफ्टवेयर, जो देश भर में लगभग 1,300 जेलों में काम कर रहा है, में अब एक फील्ड होगा जहां जमानत देने की तारीख जेल अधिकारियों को दर्ज करनी होगी.
इसमें कहा, ‘अगर आरोपी को जमानत देने की तारीख के 7 दिनों के भीतर रिहा नहीं किया जाता है, तो ई-जेल सॉफ्टवेयर स्वचालित रूप से एक रिमाइंडर जेनरेट करेगा. साथ ही, संबंधित डीएलएसए के कार्यालय को एक ईमेल भेजा जाएगा ताकि डीएलएसए आरोपी को रिहा न करने के कारण का पता लगा सके.’
रिपोर्ट में, नालसा ने शीर्ष अदालत से कई निर्देश मांगे हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि विचाराधीन/दोषी को जमानत देने वाली अदालत को उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक के माध्यम से कैदी को जमानत आदेश की एक प्रति भेजनी होगी.
इसने आगे एक निर्देश मांगा कि डीएलएसए के सचिव, अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति का पता लगाने के उद्देश्य से कैदी की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए प्रोबेशन अधिकारियों या पैरा-लीगल स्वयंसेवकों की मदद ले सकते हैं, जिसे जमानत या ज़मानत की शर्त में ढील देने के अनुरोध के साथ संबंधित अदालत के समक्ष रखा जा सकता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
Courtesy: The Wire
उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 29 नवंबर के अपने आदेश में उन विचाराधीन बंदियों का मुद्दा उठाया था, जो जमानत मिलने के बावजूद जमानत की शर्त नहीं पूरी कर पाने के कारण जेल में हैं.
पीठ ने कहा था कि जेल अधिकारियों को विचाराधीन कैदियों के नाम, उनके खिलाफ आरोप, जमानत आदेश की तारीख, जमानत की किन शर्तों को पूरा नहीं किया गया और जमानत के आदेश के बाद उन्होंने जेल में कितना समय बिताया है, इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने होंगे.
उच्चतम न्यायालय का 29 नवंबर का यह आदेश राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पिछले साल 26 नवंबर को संविधान दिवस पर दिए गए भाषण के बाद आया था. राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में ओडिशा और झारखंड के गरीब जनजातीय लोगों के जमानत राशि न भर पाने के कारण जेल में बंद रहने का उल्लेख किया था.
राष्ट्रपति ने कहा था कि वे जमानत मिलने के बावजूद जमानत राशि की व्यवस्था न हो पाने के कारण कारागार में बंद हैं.
जमानत देने की नीतिगत रणनीति से जुड़ा मामला मंगलवार को जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया.
इस मामले में न्यायमित्र के रूप में शीर्ष अदालत का सहयोग कर रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने नालसा की ओर से पेश रिपोर्ट का उल्लेख किया.
नालसा ने कहा कि दिसंबर 2022 तक राज्यों के लगभग सभी एसएलएसए से डेटा प्राप्त कर लिया गया है. रिपोर्ट में इसके आधार पर कहा गया है कि जमानत मिलने के बावजूद जेल में रहने वाले बंदियों की संख्या करीब 5,000 थी, जिनमें से 2,357 को विधिक सहायता प्रदान की गई और 1,417 बंदियों को रिहा कराया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जमानत मिलने के बावजूद अभियुक्तों के जेल में होने का एक मुख्य कारण यह है कि वे कई मामलों में आरोपी हैं और जब तक उन्हें सभी मामलों में जमानत नहीं दी जाती है, तब तक वे जमानत राशि भरने को तैयार नहीं हैं.
विभिन्न राज्यों के एसएलएसए के मुताबिक, जमानत मिलने के बावजूद जेल में रह रहे विचाराधीन बंदियों की संख्या महाराष्ट्र में 703 (जिनमें से 314 रिहा कराए गए), ओडिशा में 238 (जिनमें से 81 रिहा कराए गए) और दिल्ली में 287 ((जिनमें से 71 रिहा कराए गए) थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसमें कहा गया है कि जहां भी रिहा न होने का कारण बॉन्ड या जमानत देने में असमर्थता है, नालसा संबंधित राज्य या जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ उन मामलों का पालन करेगा और उम्मीद है कि अगले एक या दो महीनों में ऐसे विचाराधीन कैदी जेल से बाहर होंगे.
इसमें आगे कहा, ‘जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए कानूनी सहायता की आवश्यकता वाले ऐसे सभी कैदियों को डीएलएसए द्वारा कानूनी सहायता दी जाएगी.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे कैदियों की मदद के लिए तंत्र का पता लगाने के लिए कई बैठकें भी की गईं.
इसमें कहा, ‘तदनुसार, एनआईसी (राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र) द्वारा एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की गई है जो इस पहलू से भी संबंधित है (समय पूर्व रिहाई जैसे अन्य मुद्दों के अलावा).’
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनआईसी ई-जेल सॉफ्टवेयर, जो देश भर में लगभग 1,300 जेलों में काम कर रहा है, में अब एक फील्ड होगा जहां जमानत देने की तारीख जेल अधिकारियों को दर्ज करनी होगी.
इसमें कहा, ‘अगर आरोपी को जमानत देने की तारीख के 7 दिनों के भीतर रिहा नहीं किया जाता है, तो ई-जेल सॉफ्टवेयर स्वचालित रूप से एक रिमाइंडर जेनरेट करेगा. साथ ही, संबंधित डीएलएसए के कार्यालय को एक ईमेल भेजा जाएगा ताकि डीएलएसए आरोपी को रिहा न करने के कारण का पता लगा सके.’
रिपोर्ट में, नालसा ने शीर्ष अदालत से कई निर्देश मांगे हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि विचाराधीन/दोषी को जमानत देने वाली अदालत को उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक के माध्यम से कैदी को जमानत आदेश की एक प्रति भेजनी होगी.
इसने आगे एक निर्देश मांगा कि डीएलएसए के सचिव, अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति का पता लगाने के उद्देश्य से कैदी की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए प्रोबेशन अधिकारियों या पैरा-लीगल स्वयंसेवकों की मदद ले सकते हैं, जिसे जमानत या ज़मानत की शर्त में ढील देने के अनुरोध के साथ संबंधित अदालत के समक्ष रखा जा सकता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
Courtesy: The Wire