मंत्रियों और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। हालांकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि अगर कोई मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक बयान देता है तो इसके लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया है कि एक मंत्री द्वारा आधिकारिक क्षमता में दिए गए बयान के लिए सरकार को ‘अप्रत्यक्ष रूप से’ जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
संविधान पीठ मंत्रियों और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध से संबंधित मुद्दों पर एक संदर्भ का जवाब दे रही थी।
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, नफरती भाषण के संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करने का उल्लेख करते हुए पांच न्यायाधीशों की पीठ में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई मंत्री अपनी ‘आधिकारिक क्षमता’ में अपमानजनक बयान देता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
पीठ द्वारा जिन प्रश्नों पर विचार किया गया उनमें से एक यह था, क्या राज्य के किसी भी मामले या सरकार की सुरक्षा के लिए मंत्री द्वारा दिए गए बयान को विशेष रूप से सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सवाल का जवाब देते हुए जस्टिस एस। अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी। रामासुब्रमण्यन ने कहा, ‘एक मंत्री द्वारा दिया गया बयान भले ही राज्य के किसी भी मामले या सरकार की सुरक्षा के लिए के लिए दिया गया हो, इसके लिए सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करके सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।’
हालांकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि एक मंत्री द्वारा आधिकारिक क्षमता में दिए गए बयान के लिए ‘अप्रत्यक्ष रूप से’ से सरकार जिम्मेदार है।
उन्होंने कहा, ‘यदि इस तरह के बयान अपमानजनक हैं और न केवल उन्हें देने वाले मंत्री के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि सरकार के विचारों को भी शामिल करते हैं, तब इस तरह के बयानों के लिए विशेष रूप से सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के मद्देनजर सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।’
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा, ‘दूसरे शब्दों में अगर इस तरह के बयानों का न केवल मंत्री द्वारा समर्थन किया जाता है, बल्कि सरकार के रुख को भी प्रतिबिंबित किया जाता है तो ऐसे बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, अगर इस तरह के बयान एक मंत्री के विचार हैं और सरकार के विचारों के अनुरूप नहीं हैं, तो इसके लिए व्यक्तिगत रूप से मंत्री जिम्मेदार होंगे, सरकार नहीं।’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हाल के दिनों में अविवेकपूर्ण भाषण चिंता का कारण है क्योंकि यह हानिकारक और अपमानजनक है।
उन्होंने कहा, ‘नफरती बयान समाज को असमान रूप में चिह्नित करके संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करते हैं। यह विविध पृष्ठभूमि के नागरिकों के भाईचारे के भी खिलाफ है। एक सामंजस्यपूर्ण समाज की आवश्यक स्थिति बहुलता और बहु-संस्कृतिवाद पर आधारित है, जैसे कि इंडिया जो कि ‘भारत’ है। भाईचारा इस विचार पर आधारित है कि नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां होती हैं।’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सार्वजनिक पदाधिकारियों और मशहूर हस्तियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने भाषण में अधिक जिम्मेदार और संयमित रहें।
उन्होंने कहा, ‘जनता की भावना और व्यवहार पर पड़ने वाले संभावित परिणामों के संबंध में उन्हें अपने शब्दों को समझने और मापने की आवश्यकता है और यह भी पता होना चाहिए कि वे साथी नागरिकों के लिए क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं।’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह राजनीतिक दलों के ऊपर है कि वह अपने मंत्रियों के बयानों को नियंत्रित करे जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘कोई भी नागरिक जो इस तरह के भाषणों या सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अभद्र भाषा आदि से आहत महसूस करता है, दीवानी समाधान के लिए अदालत से संपर्क कर सकता है। यह संसद के लिए है कि वह अपने ज्ञान के आधार पर सार्वजनिक पदाधिकारियों को अनुच्छेदों 19(1)(ए) और 19(2) को ध्यान में रखते हुए साथी नागरिकों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से रोकने के लिए एक कानून बनाए।’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हमारे जैसे संसदीय लोकतंत्र वाले देश के लिए स्वस्थ लोकतंत्र सुनिश्चित करने के वास्ते भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक आवश्यक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसकी पत्नी तथा बेटी से जुलाई 2016 में बुलंदशहर के समीप एक राजमार्ग पर कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया था। वह इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान पर उनके विवादित बयान के लिए एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध कर रहा है। आजम खान ने कहा था कि सामूहिक बलात्कार का यह मामला ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ है।
यह फैसला इस सवाल पर आया है कि क्या किसी जन प्रतिनिधि के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबंदियां लगायी जा सकती हैं?
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
Courtesy: The Wire
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया है कि एक मंत्री द्वारा आधिकारिक क्षमता में दिए गए बयान के लिए सरकार को ‘अप्रत्यक्ष रूप से’ जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
संविधान पीठ मंत्रियों और उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध से संबंधित मुद्दों पर एक संदर्भ का जवाब दे रही थी।
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, नफरती भाषण के संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करने का उल्लेख करते हुए पांच न्यायाधीशों की पीठ में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई मंत्री अपनी ‘आधिकारिक क्षमता’ में अपमानजनक बयान देता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
पीठ द्वारा जिन प्रश्नों पर विचार किया गया उनमें से एक यह था, क्या राज्य के किसी भी मामले या सरकार की सुरक्षा के लिए मंत्री द्वारा दिए गए बयान को विशेष रूप से सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सवाल का जवाब देते हुए जस्टिस एस। अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी। रामासुब्रमण्यन ने कहा, ‘एक मंत्री द्वारा दिया गया बयान भले ही राज्य के किसी भी मामले या सरकार की सुरक्षा के लिए के लिए दिया गया हो, इसके लिए सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करके सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।’
हालांकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि एक मंत्री द्वारा आधिकारिक क्षमता में दिए गए बयान के लिए ‘अप्रत्यक्ष रूप से’ से सरकार जिम्मेदार है।
उन्होंने कहा, ‘यदि इस तरह के बयान अपमानजनक हैं और न केवल उन्हें देने वाले मंत्री के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि सरकार के विचारों को भी शामिल करते हैं, तब इस तरह के बयानों के लिए विशेष रूप से सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के मद्देनजर सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।’
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा, ‘दूसरे शब्दों में अगर इस तरह के बयानों का न केवल मंत्री द्वारा समर्थन किया जाता है, बल्कि सरकार के रुख को भी प्रतिबिंबित किया जाता है तो ऐसे बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, अगर इस तरह के बयान एक मंत्री के विचार हैं और सरकार के विचारों के अनुरूप नहीं हैं, तो इसके लिए व्यक्तिगत रूप से मंत्री जिम्मेदार होंगे, सरकार नहीं।’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हाल के दिनों में अविवेकपूर्ण भाषण चिंता का कारण है क्योंकि यह हानिकारक और अपमानजनक है।
उन्होंने कहा, ‘नफरती बयान समाज को असमान रूप में चिह्नित करके संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करते हैं। यह विविध पृष्ठभूमि के नागरिकों के भाईचारे के भी खिलाफ है। एक सामंजस्यपूर्ण समाज की आवश्यक स्थिति बहुलता और बहु-संस्कृतिवाद पर आधारित है, जैसे कि इंडिया जो कि ‘भारत’ है। भाईचारा इस विचार पर आधारित है कि नागरिकों की एक दूसरे के प्रति पारस्परिक जिम्मेदारियां होती हैं।’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सार्वजनिक पदाधिकारियों और मशहूर हस्तियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने भाषण में अधिक जिम्मेदार और संयमित रहें।
उन्होंने कहा, ‘जनता की भावना और व्यवहार पर पड़ने वाले संभावित परिणामों के संबंध में उन्हें अपने शब्दों को समझने और मापने की आवश्यकता है और यह भी पता होना चाहिए कि वे साथी नागरिकों के लिए क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं।’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह राजनीतिक दलों के ऊपर है कि वह अपने मंत्रियों के बयानों को नियंत्रित करे जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘कोई भी नागरिक जो इस तरह के भाषणों या सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अभद्र भाषा आदि से आहत महसूस करता है, दीवानी समाधान के लिए अदालत से संपर्क कर सकता है। यह संसद के लिए है कि वह अपने ज्ञान के आधार पर सार्वजनिक पदाधिकारियों को अनुच्छेदों 19(1)(ए) और 19(2) को ध्यान में रखते हुए साथी नागरिकों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से रोकने के लिए एक कानून बनाए।’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हमारे जैसे संसदीय लोकतंत्र वाले देश के लिए स्वस्थ लोकतंत्र सुनिश्चित करने के वास्ते भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक आवश्यक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसकी पत्नी तथा बेटी से जुलाई 2016 में बुलंदशहर के समीप एक राजमार्ग पर कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया था। वह इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान पर उनके विवादित बयान के लिए एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध कर रहा है। आजम खान ने कहा था कि सामूहिक बलात्कार का यह मामला ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ है।
यह फैसला इस सवाल पर आया है कि क्या किसी जन प्रतिनिधि के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबंदियां लगायी जा सकती हैं?
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
Courtesy: The Wire