मुजफ्फरनगर दंगों में 60 से ज्यादा मौत व 40000 से ज्यादा लोग बेघर हुए थे
Image Courtesy: timesofindia.indiatimes.com
अदालत ने मुजफ्फरनगर दंगा मामले में भाजपा विधायक विक्रम सैनी समेत 12 लोगों को दोषी मानते हुए दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। हालांकि सजा सुनाने के कुछ देर बाद सभी को निजी मुचलकों पर रिहा भी कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की जड़ कहे जाने वाले 9 साल पुराने कवाल कांड मामले में विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने मंगलवार को भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 11 अन्य को दोषी करार देते हुए दो-दो साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई है। सभी को दो साल के सश्रम कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी भरना होगा। अदालत ने 15 अन्य आरोपी, सबूतों के अभाव में बरी कर दिए हैं। मुजफ्फरनगर दंगा मामले में सजा तीन साल से कम होने की वजह से भाजपा नेता विक्रम सैनी को अदालत से जमानत भी मिल गई। दंगे की वजह से 40 हजार से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ा था। इस दंगे की वजह से तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।
विशेष एमपी/एमएलए अदालत के न्यायाधीश गोपाल उपाध्याय ने खतौली क्षेत्र से भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 11 अन्य अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 336 (जीवन को खतरा पैदा करने), 353 (सरकारी काम में बाधा डालने के लिए आपराधिक हमला), 147 (दंगा करना), 148 (घातक शस्त्रों से दंगा फैलाना), 149 (गैरकानूनी रूप से भीड़ जमा करना) तथा आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम की धारा सात के तहत दोषी करार देते हुए दो-दो साल की कैद तथा 10-10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
अदालत ने मामले के 15 अभियुक्तों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया। हालांकि सजा सुनाए जाने के बाद भाजपा विधायक सैनी तथा अन्य दोषियों को 25-25 हजार रुपये के दो मुचलकों पर रिहा कर दिया गया। जमानत मिलने से पहले इन सभी को कई घंटों तक न्यायिक हिरासत में रखा गया। जमानत मिलने के बाद अब वे अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे सकेंगे।
भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 26 अन्य के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगों की मुख्य वजह माने जाने वाले कवाल कांड मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस मामले में 12वें आरोपी को एक साल कैद की सजा सुनाई गई है। यह मुजफ्फरनगर का दूसरा मामला है, जो सजा के साथ खत्म हुआ है। सैनी खतौली से भाजपा विधायक हैं। उनके वकील भरतवीर अहलावत ने कहा कि फैसले के खिलाफ अपील दायर की जाएगी। अहलावत ने कहा, ‘अदालत ने सभी आरोपियों को हत्या के प्रयास के आरोप से बरी कर दिया है। ’सरकारी वकील नरेंद्र शर्मा ने कहा कि 12वें आरोपी को आर्म्स एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया है। शर्मा ने कहा, ‘अदालत ने बाद में विक्रम सैनी सहित सभी 12 आरोपियों को जमानत दे दी। उन्हें 25-25 हजार रुपये की दो जमानत राशि जमा करने के बाद रिहा कर दिया गया। ’उन्होंने कहा कि मामले में सबूतों के अभाव में 15 अन्य को बरी कर दिया गया। अदालत ने अभियोजन पक्ष के कुल नौ गवाहों से पूछताछ की थी।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक मामला 28 अगस्त 2013 का है, जब मुजफ्फरनगर के कवाल कस्बे में शाहनवाज की हत्या के बाद मलिकपुरा निवासी ममेरे भाईयों सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने कहा कि शाहनवाज की हत्या के आरोपी सचिन और गौरव की ग्रामीणों ने हत्या कर दी थी। इन हत्याओं से मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में सांप्रदायिक तनाव हो गया था। 28 अगस्त को सचिन और गौरव की अंत्येष्टि से लौटते वक्त झड़प हो गई थी जिसमें लोगों ने कवाल में तोड़फोड़ की थी। दोनों समुदाय के लोगों के बीच झड़प के दौरान मौके पर पहुंची पुलिस ने 9 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। जबकि 15 लोग मौके से फरार हो गए थे।
कवाल कांड के बाद सितंबर 2013 में मुजफ्फनगर और आसपास के कुछ जिलों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिनमें कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा 40 हजार से अधिक लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा था। 28 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और बाद में पुलिस ने आरोप-पत्र दायर किया। सरकारी वकील शर्मा ने कहा कि सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई। सभी आरोपी जमानत पर बाहर थे। इस मामले में सैनी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्यवाही की गई थी।
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश के 2013 मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंसा में आरोपी भाजपा विधायक विक्रम सैनी और 11 अन्य को बरी कर दिया था। इस मामले में अभियोजन पक्ष के पांच गवाहों के मुकर जाने के बाद अन्य को संदेह का लाभ देकर छोड़ दिया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने 77 मामले वापस लिए थे, जिनमें से कुछ को अगस्त 2021 में आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई थी, जिसके बाद विधायक सैनी और अन्य को बरी किया गया था।
हालांकि द वायर की एक खबर के अनुसार, प्रकरण में कुल 510 मामलों में से सिर्फ 164 मामलों में ही अंतिम रिपोर्ट पेश की गई, जबकि 170 को हटा दिया गया है। इसके बाद सीआरपीसी की धारा 321 के तहत राज्य सरकार ने बिना कारण बताए 77 मामलों को वापस ले लिया था.मामले में एमिक्स क्यूरी (न्यायमित्र) वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने इस कदम की आलोचना की थी। इस फैसले का योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने कोई कारण नहीं बताया था, सिर्फ इतना कहा था कि प्रशासन ने इन मामलों को वापस लेने से पहले इस पर विचार किया था। साल 2019 में मुजफ्फरनगर की एक अदालत ने सचिन और गौरव की हत्या से संबंधित एक मामले में सात लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए 2016 में गठित किए गए जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग ने हिंसा के लिए खुफिया विफलता और कुछ शीर्ष अधिकारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया था।
पिछले साल एसआईटी ने कहा था कि दंगों के दौरान हत्या, बलात्कार, डकैती एवं आगजनी से संबंधित 97 मामलों में 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी हो गए। एसआईटी के अधिकारियों के मुताबिक, पुलिस ने 1,480 लोगों के खिलाफ 510 मामले दर्ज किए और 175 मामलों में आरोप-पत्र दायर किया था। एसआईटी 20 मामलों में आरोप-पत्र दायर कर नहीं सकी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उसे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली। दंगों संबंधित इन 20 मामलों में विधायक और सांसद भी आरोपियों की सूची में हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों से जुड़े 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था, लेकिन अदालत ने उत्तर प्रदेश के मंत्री सुरेश राणा, भाजपा विधायक संगीत सोम समेत 12 भाजपा विधायकों के खिलाफ सिर्फ एक मामला वापस लेने की अनुमति दी थी।
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अदालत ने मुजफ्फरनगर दंगा मामले में भाजपा विधायक विक्रम सैनी समेत 12 लोगों को दोषी मानते हुए दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। हालांकि सजा सुनाने के कुछ देर बाद सभी को निजी मुचलकों पर रिहा भी कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की जड़ कहे जाने वाले 9 साल पुराने कवाल कांड मामले में विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने मंगलवार को भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 11 अन्य को दोषी करार देते हुए दो-दो साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई है। सभी को दो साल के सश्रम कारावास के साथ 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी भरना होगा। अदालत ने 15 अन्य आरोपी, सबूतों के अभाव में बरी कर दिए हैं। मुजफ्फरनगर दंगा मामले में सजा तीन साल से कम होने की वजह से भाजपा नेता विक्रम सैनी को अदालत से जमानत भी मिल गई। दंगे की वजह से 40 हजार से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ा था। इस दंगे की वजह से तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार की काफी किरकिरी हुई थी।
विशेष एमपी/एमएलए अदालत के न्यायाधीश गोपाल उपाध्याय ने खतौली क्षेत्र से भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 11 अन्य अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 336 (जीवन को खतरा पैदा करने), 353 (सरकारी काम में बाधा डालने के लिए आपराधिक हमला), 147 (दंगा करना), 148 (घातक शस्त्रों से दंगा फैलाना), 149 (गैरकानूनी रूप से भीड़ जमा करना) तथा आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम की धारा सात के तहत दोषी करार देते हुए दो-दो साल की कैद तथा 10-10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
अदालत ने मामले के 15 अभियुक्तों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया। हालांकि सजा सुनाए जाने के बाद भाजपा विधायक सैनी तथा अन्य दोषियों को 25-25 हजार रुपये के दो मुचलकों पर रिहा कर दिया गया। जमानत मिलने से पहले इन सभी को कई घंटों तक न्यायिक हिरासत में रखा गया। जमानत मिलने के बाद अब वे अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे सकेंगे।
भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 26 अन्य के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगों की मुख्य वजह माने जाने वाले कवाल कांड मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस मामले में 12वें आरोपी को एक साल कैद की सजा सुनाई गई है। यह मुजफ्फरनगर का दूसरा मामला है, जो सजा के साथ खत्म हुआ है। सैनी खतौली से भाजपा विधायक हैं। उनके वकील भरतवीर अहलावत ने कहा कि फैसले के खिलाफ अपील दायर की जाएगी। अहलावत ने कहा, ‘अदालत ने सभी आरोपियों को हत्या के प्रयास के आरोप से बरी कर दिया है। ’सरकारी वकील नरेंद्र शर्मा ने कहा कि 12वें आरोपी को आर्म्स एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया है। शर्मा ने कहा, ‘अदालत ने बाद में विक्रम सैनी सहित सभी 12 आरोपियों को जमानत दे दी। उन्हें 25-25 हजार रुपये की दो जमानत राशि जमा करने के बाद रिहा कर दिया गया। ’उन्होंने कहा कि मामले में सबूतों के अभाव में 15 अन्य को बरी कर दिया गया। अदालत ने अभियोजन पक्ष के कुल नौ गवाहों से पूछताछ की थी।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक मामला 28 अगस्त 2013 का है, जब मुजफ्फरनगर के कवाल कस्बे में शाहनवाज की हत्या के बाद मलिकपुरा निवासी ममेरे भाईयों सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने कहा कि शाहनवाज की हत्या के आरोपी सचिन और गौरव की ग्रामीणों ने हत्या कर दी थी। इन हत्याओं से मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में सांप्रदायिक तनाव हो गया था। 28 अगस्त को सचिन और गौरव की अंत्येष्टि से लौटते वक्त झड़प हो गई थी जिसमें लोगों ने कवाल में तोड़फोड़ की थी। दोनों समुदाय के लोगों के बीच झड़प के दौरान मौके पर पहुंची पुलिस ने 9 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। जबकि 15 लोग मौके से फरार हो गए थे।
कवाल कांड के बाद सितंबर 2013 में मुजफ्फनगर और आसपास के कुछ जिलों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिनमें कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा 40 हजार से अधिक लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा था। 28 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और बाद में पुलिस ने आरोप-पत्र दायर किया। सरकारी वकील शर्मा ने कहा कि सुनवाई के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई। सभी आरोपी जमानत पर बाहर थे। इस मामले में सैनी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्यवाही की गई थी।
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश के 2013 मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंसा में आरोपी भाजपा विधायक विक्रम सैनी और 11 अन्य को बरी कर दिया था। इस मामले में अभियोजन पक्ष के पांच गवाहों के मुकर जाने के बाद अन्य को संदेह का लाभ देकर छोड़ दिया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने 77 मामले वापस लिए थे, जिनमें से कुछ को अगस्त 2021 में आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई थी, जिसके बाद विधायक सैनी और अन्य को बरी किया गया था।
हालांकि द वायर की एक खबर के अनुसार, प्रकरण में कुल 510 मामलों में से सिर्फ 164 मामलों में ही अंतिम रिपोर्ट पेश की गई, जबकि 170 को हटा दिया गया है। इसके बाद सीआरपीसी की धारा 321 के तहत राज्य सरकार ने बिना कारण बताए 77 मामलों को वापस ले लिया था.मामले में एमिक्स क्यूरी (न्यायमित्र) वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने इस कदम की आलोचना की थी। इस फैसले का योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने कोई कारण नहीं बताया था, सिर्फ इतना कहा था कि प्रशासन ने इन मामलों को वापस लेने से पहले इस पर विचार किया था। साल 2019 में मुजफ्फरनगर की एक अदालत ने सचिन और गौरव की हत्या से संबंधित एक मामले में सात लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए 2016 में गठित किए गए जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग ने हिंसा के लिए खुफिया विफलता और कुछ शीर्ष अधिकारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया था।
पिछले साल एसआईटी ने कहा था कि दंगों के दौरान हत्या, बलात्कार, डकैती एवं आगजनी से संबंधित 97 मामलों में 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी हो गए। एसआईटी के अधिकारियों के मुताबिक, पुलिस ने 1,480 लोगों के खिलाफ 510 मामले दर्ज किए और 175 मामलों में आरोप-पत्र दायर किया था। एसआईटी 20 मामलों में आरोप-पत्र दायर कर नहीं सकी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उसे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली। दंगों संबंधित इन 20 मामलों में विधायक और सांसद भी आरोपियों की सूची में हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों से जुड़े 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था, लेकिन अदालत ने उत्तर प्रदेश के मंत्री सुरेश राणा, भाजपा विधायक संगीत सोम समेत 12 भाजपा विधायकों के खिलाफ सिर्फ एक मामला वापस लेने की अनुमति दी थी।
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