मुजफ्फरनगर दंगे: BJP विधायकों से केस वापस लेगी योगी सरकार, विपक्ष का प्रहार

Written by Navnish Kumar | Published on: December 26, 2020
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपी भाजपा विधायकों से मुकदमे वापस लेने की अर्जी ने राजनीति को एकाएक गरमा दिया है। मुजफ्फरनगर दंगे ने जहां वेस्ट यूपी के गंगा-जमुनी के साझे ताने-बाने को उधेड़ कर रख दिया था वहीं, दंगे में 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे और करीब 50 हजार लोग बेघर हो गए थे। 



मुजफ्फरनगर दंगे में सरधना विधायक संगीत सोम, शामली के थानाभवन से विधायक सुरेश राणा (कबीना गन्ना मंत्री) व मुजफ्फरनगर सदर से विधायक कपिल देव अग्रवाल समेत हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची भी आरोपी हैं। भाजपा नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने व जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त किए बिना महापंचायत आयोजित करने, लोक सेवकों को उनकी ड्यूटी करने से रोकने के लिए अवरोध पैदा करने, प्रतिबंधात्मक आदेशों का उल्लंघन करने आदि के आरोप है। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकारी वकील राजीव शर्मा ने बताया कि इस मामले में केस वापसी के लिए सरकार की तरफ से मुजफ्फरनगर की एडीजे कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। कोर्ट ने फिलहाल इस पर सुनवाई नहीं की है।

बता दें कि 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल गांव से ही दंगे की शुरुआत हुई थी। जिसमें सचिन, गौरव और शाहनवाज के बीच हुआ झगड़ा दंगों की आग में बदल गया। आरोप है कि कवाल गांव में सचिन और गौरव से शहनवाज की किसी बात को लेकर कहा सुनी हुई जिसके बाद शाहनवाज कुरैशी की हत्या हो गई। फिर शहनवाज की हत्या को लेकर कवाल गांव के लोगों द्वारा सचिन और गौरव की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इन तीनों की मौत के बाद 7 सितंबर 2013 को नगला मंदौड़ गांव इंटर कॉलेज में जाटों द्वारा महापंचायत बुलाई गई थी। जिससे लौटते काफिले पर हमले के बाद मुजफ्फरनगर दंगों की आग में जल उठा था। 

इन दंगों में 60 से ज्यादा लोगो की मौत हो गई थी और 50,000 लोग बेघर हो गए थे जिसके बाद इस दंगे के बाद कुल 510 आपराधिक मामले दर्ज किए गए और 175 में आरोप पत्र दायर किए गए हैं। बाकी में, पुलिस ने या तो क्लोजर रिपोर्ट दायर की है या मामले को उजागर किया है। राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सोम, राणा, कपिल देव व प्राची सहित 14 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र भी दायर किए हैं। 

योगी सरकार के फैसले ने कड़ाके की ठंड में सियासी पारा चढ़ा दिया है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि जब सरकार ही अपराधियों की हो जाए तो सबसे पहला 'एनकाउंटर' इंसाफ का होता है। ओवैसी ने ट्वीट के जरिए कहा, '2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खुद उनके खिलाफ दर्ज कई मुकदमों को वापस ले लिया था। अब वो उनके बाकी साथियों के साथ खड़े हैं।

कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जब योगी मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले अपने ख़िलाफ़ दंगा, लूट, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, आगजनी जैसी गंभीर धाराओं में दर्ज मुकदमे हटा लेते हैं तो उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वो दंगों के अन्य भाजपाई आरोपियों पर से भी मुकदमें हटा लें। इसी नैतिक ज़िम्मेदारी के तहत सरकार ने मंत्री सुरेश राणा, विधायक संगीत सोम और कपिल देव के खिलाफ दर्ज मुकदमों को हटाने की अर्जी मुज़फ्फरनगर अदालत में दाखिल की है। लेकिन दंगे में मारे गए लोगों के प्रति यह अन्याय है। 

भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने भी तीनों विधायकों से मुकदमा हटाए जाने की प्रक्रिया शुरू करने का कड़ा विरोध किया है। माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने जारी बयान में कहा कि योगी सरकार की यह कार्रवाई न्याय व्यवस्था का मखौल उड़ाने वाली, अपराध को संरक्षण देने वाली, भेदभाव पूर्ण, साम्प्रदायिक और दोहरे मापदंड की द्योतक है। उन्होंने कहा कि डा. कफील खान मामले में अलीगढ़ विवि में भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाकर उन पर योगी सरकार द्वारा अवैध रूप से रासुका तक लगा दिया गया। यह अलग बात है कि तथाकथित भड़काऊ भाषण से इंसान तो क्या एक मच्छर तक के मरने की खबर नहीं मिली थी।

लेकिन भाजपा के मौजूदा तीन विधायकों संगीत सोम, सुरेश राणा व कपिल देव के खिलाफ तो एसआईटी ने चार्जशीट तक दाखिल कर दी है और इनके भड़काऊ भाषणों के बाद भड़के मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 40 हजार से ज्यादा लोगों को पलायन करना पड़ा था। ऐसे में इन आरोपियों पर से मुकदमे हटाने की कार्रवाई शुरू करना अपने आप में अपराध और मृतकों व पीड़ितों के प्रति घोर अन्याय है। 

उन्होंने कहा कि एसआईटी ने अपनी जांच में भाजपा विधायकों को दोषी पाया था। अब सरकार को खुद ही जज बनने और उक्त आपराधिक मुकदमे की वापसी की अर्जी लगाने के बजाय न्याय करने की जिम्मेदारी न्यायालय पर छोड़ देनी चाहिए।

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने विपक्षी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ दर्ज राजनीतिक मुकदमों को भी वापस लेने की मांग की है। बसपा सुप्रीमो ने ट्वीट करते हुए कहा कि, 'यूपी में बीजेपी के लोगों के ऊपर 'राजनैतिक द्वेष' की भावना से दर्ज मुकदमे वापिस होने के साथ ही, सभी विपक्षी पार्टियो के लोगों पर भी ऐसे दर्ज मुकदमे भी जरूर वापिस होने चाहिए। बीएसपी की यह मांग है।



समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा कि क्या इसी के लिए भाजपा सरकार बनी थी? मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, मंत्री या विधायक हों, सब पर लगे केस वापस ले लिए जाएंगे। क्या इससे अपराधियों का मनोबल नहीं बढ़ेगा? क्या उनको ऐसा नहीं लगेगा कि आपराधिक मुकदमे भी वापस लिए जा सकते हैं? यही कारण है कि एसडीएम और सीओ की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। तभी यहां पुलिस वालों का एनकाउंटर होने लगा है और महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं।

बाकी ख़बरें