यूपी: क़रीब 3 महीने से मिड डे मील के लिए सरकारी फंड नहीं मिला, हेडमास्टर जुटा रहे पैसे

Written by अब्दुल अलीम जाफ़री | Published on: August 1, 2022
शिक्षा विभाग ने भुगतान में देरी के लिए राज्य के वित्त विभाग द्वारा राशि जारी न होने को जिम्मेदार ठहराया है।


प्रतीकात्मक तस्वीर

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों को कथित तौर पर पिछले तीन महीनों से मिड-डे-मील के लिए कोई पैसा नहीं मिला है, जिससे कुछ स्कूल इस योजना के तहत बच्चों को भोजन नहीं दे पा रहे हैं। कुछ स्कूलों में शिक्षक और ग्राम प्रधान अपने पैसे खर्च कर रहे हैं या बच्चों को भोजन देने की व्यवस्था कराने के लिए उधार राशन खरीद रहे हैं। शिक्षा विभाग ने भुगतान में देरी के लिए वित्त विभाग की ओर से राशि जारी न करने को जिम्मेदार ठहराया है।

खाद्य पदार्थों की खरीद करने वाली एजेंसियों से गेहूं और चावल की आपूर्ति प्राप्त करने के बाद स्कूलों को आम तौर पर राज्य सरकार से प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्रति छात्र 4.97 रुपये और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए 7.45 रुपये की दर से खाना बनाने की राशि मिलती है। दाल, सब्जियां, तेल, नमक, मसाले, हल्दी और एलपीजी जैसी सामग्री की खरीद के लिए ये राशि प्रदान की जाती है। स्कूलों को उपलब्ध कराए जाने वाले मिड-डे-मील की राशि छात्रों की संख्या के अनुसार है। राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत खाना बनाने की लागत का 60% केंद्र और 40% राज्य द्वारा दिया जाता है।

सीतापुर जिले के एक स्कूल के शिक्षक अजय सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार ने मिड-डे-मील योजना की धनराशि को किसी अन्य कार्यों के लिए दे दिया है। उन्होंने दावा किया कि उनके जिले में इस योजना के लिए दिए गए 2.3 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जानबूझकर राज्य में भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा अन्य कार्यों में दिए गए थे।

एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ''योगी सरकार बच्चों के मुंह से खाना छीनकर अपनी छवि बनाने पर पैसा खर्च कर रही है।'' शिक्षकों का कहना है कि वे खाना खरीद रहे हैं क्योंकि जो लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं , वे बहुत ही गरीब हैं। सिर्फ गोंडा जिले में ही 2.7 करोड़ रुपये तक के बिल बन गए हैं।

इस योजना के तहत गाजीपुर जिले के 412 स्कूलों में कुल 34,7117 छात्रों को भोजन परोसा जाता है। जिले में खाना बनाने की लागत के लिए इन स्कूलों का बकाया 2 करोड़ रुपये से अधिक है।

गाजीपुर के राजापुर के ग्राम प्रधान अश्वनी राय ने कहा कि उनके स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के लिए मार्च महीने के बाद से उन्हें धनराशि नहीं मिली है। इसके चलते दुकानदारों से कर्ज लेकर बच्चों के लिए खाना तैयार किया जा रहा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग ने चीजों को सुव्यवस्थित करना शुरू कर दिया है और आने वाले दिनों में स्कूलों को धनराशि जारी कर दी जाएगी।

इस बीच शिक्षा विभाग ने भुगतान में देरी के लिए राज्य के वित्त विभाग द्वारा राशि जारी न होने को जिम्मेदार ठहराया है। स्कूल शिक्षा विभाग के सूत्रों ने कहा कि बिल पिछले महीने ही वित्त विभाग को जमा कर दिए गए थे लेकिन अब तक धनराशि जारी नहीं की गई है।

प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के राष्ट्रीय स्तर के संगठन राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ (आरएसएम) के राष्ट्रीय प्रवक्ता वीरेंद्र मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "यह सिर्फ एक या दो जिलों की बात नहीं है, बल्कि सभी सरकारी स्कूलों में स्थिति एक जैसी है क्योंकि हर बार राज्य से बहुत देर से बजट आता है। सामग्री के लिए राशि पिछले कई महीनों से बकाया है।" उन्होंने आगे कहा कि शिक्षक बच्चों के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च कर रहे थे। बता दें कि मिश्रा गोंडा जिले के गौरिया डिहा के एक प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक भी हैं।

यह पूछे जाने पर कि स्कूल बच्चों को मिड-डे-मील कैसे देते हैं तो मिश्रा ने कहा, “ग्राम प्रधान अपनी जेब से मिड-डे-मील उपलब्ध कराते हैं या अपनी जेब से क्रेडिट पर राशन उठा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर स्कूलों में, प्रधानाध्यापक अपने वेतन से मैनेज करते हैं या शिक्षकों से धन इकट्ठा करते हैं क्योंकि अधिकांश बच्चे बेहद वंचित तबके से हैं। हम उन्हें खाली पेट वापस नहीं भेज सकते हैं।" उन्होंने आगे कहा कि वह अपने स्कूल में नामांकित लगभग 217 छात्रों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए अपने स्वयं के वेतन से पैसे निकालते हैं।

उन्होंने कहा कि, "औसतन अगर 150 बच्चे स्कूल आ रहे हैं तो मिड-डे-मील के लिए प्रति दिन लगभग 750 रुपये से 800 रुपये खर्च होते हैं। हमें अपनी जेब से योजना चलाने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि बेसिक एजुकेशन डिपार्टमेंट धमकी देता है कि यदि योजना बंद होती है तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

इस बीच, स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को इस मामले में अधिक ध्यान देना चाहिए ताकि उनके बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जा सके और शिक्षकों को असुविधा न हो।

2020 के बाद परिवर्तित लागत में कोई वृद्धि नहीं

मिड-डे-मील योजना 2001 में केंद्र सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाने और साथ ही बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के तहत, किसी भी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालय के छात्र को कम से कम 200 दिनों के लिए न्यूनतम 300 कैलोरी ऊर्जा और 8-12 ग्राम प्रोटीन से युक्त भोजन एक दिन में दिया जाना है।

यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि केंद्र सरकार ने 2020 से स्कूलों में मिड-डे-मील के राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपी-एमडीएमएस) के तहत परिवर्तित लागत (कनवर्जन कॉस्ट) में कोई वृद्धि नहीं की है। प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1से 5 तक) के लिए खाना बनाने की लागत प्रति बच्चा 4.97 रुपये है और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6 से 8) के लिए 7.45 रुपये है, जिसे 2018 में संशोधित किया गया था।



22 जुलाई को, राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ ने धौरहरा से भाजपा सांसद और पार्टी उपाध्यक्ष रेखा अरुण वर्मा को एक पत्र लिखा ताकि एमडीएम की परिवर्तित लागत में वृद्धि की जा सके क्योंकि मुद्रास्फीति आसमान छू रही है और खाद्य तेल और एलजीपी की कीमत कई गुना बढ़ गई है।

इस पत्र में लिखा गया कि 1 सितंबर 2004 से 15 अगस्त 2006 तक प्राथमिक स्तर पर परिवर्तित लागत 1 रुपये प्रति छात्र थी और 1 अक्टूबर 2007 से 30 जून 2008 तक, परिवर्तित लागत उच्च प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र 2.50 रुपये थी। इसके बाद, मुद्रास्फीति के सापेक्ष लगभग हर साल परिवर्तित लागत में वृद्धि की गई। लेकिन 1 जुलाई 2016 से 15 दिसंबर 2018 तक परिवर्तित लागत मुद्रास्फीति के अनुसार नहीं बढ़ी।



अंत में सरकार द्वारा 1 जुलाई, 2020 को परिवर्तित लागत प्राथमिक स्तर पर 4.97 रुपये प्रति छात्र और उच्च प्राथमिक स्तर पर 7.45 रुपये प्रति छात्र कर दी गई। पिछले ढाई साल में एक पैसा भी नहीं बढ़ा, जबकि पिछले दो सालों में महंगाई दर में काफी बढ़ोतरी हुई है। मिड-डे मील में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमत दो गुना से तीन गुना बढ़ गई है। उदाहरण के लिए सरसों के तेल की कीमत जो पहले 70 रुपये से 80 रुपये प्रति किलो थी वह अब 180 रुपये प्रति किलो हो गई है। इसी तरह, गैस सिलेंडर की कीमत 600 रुपये से बढ़कर लगभग 1050 रुपये हो गई है। वहीं सोयाबीन की कीमत 50 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 110 रुपये प्रति किलो हो गई है।

लखीमपुर खीरी जिले के ईशानगर प्रखंड के अंतर्गत चिकनपुरवा के एक सरकारी स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक संतोष मौर्य कहते हैं कि, "छह दिन के भोजन के लिए प्रति छात्र 4.97 रुपये दिए जाते हैं जिसमें हमें प्रत्येक बुधवार को 150 मिलीलीटर दूध प्रत्येक छात्र को देना होता है। यदि हम दूध के खर्च को अलग करते हैं तो 3.57 रुपये प्रति छात्र भोजन के लिए बचेंगे। चूंकि मुद्रास्फीति इतनी उच्च है कि खाद्य तेल, सब्जियां, दूध, एलपीजी और खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाली अन्य सामग्री महंगी हैं। हम यह सब सिर्फ 3.57 रुपये में कैसे मैनेज करेंगे?


Courtesy: Newsclick

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