सहारनपुर में जूमे की नमाज के बाद हुए प्रदर्शन में गिरफ्तार 8 मुस्लिम युवकों के 21 दिन बाद सीजेएम कोर्ट ने निर्दोष पाते हुए रिहा करने का मामला जेहन में धुंधला भी नहीं हुआ था कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में माओवादी बता कर UAPA में जेल भेजे गए 121 आदिवासियों को 5 साल बाद एनआईए की कोर्ट ने निर्दोष पाते हुए बरी किया है। 2017 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में बुर्कापाल नक्सली हमले में गिरफ्तार 121 आदिवासियों को न्यायालय ने निर्दोष करार देते हुए रिहा कर दिया। ये सभी आरोपी आदिवासी समाज से आते हैं। इन बेकसूरों को 5 साल बाद न्याय मिला है लेकिन पांच साल कोई बिना जुर्म किए जेल में बिताए, इससे बड़ा अन्याय क्या होगा?
प्रतीकात्मक तस्वीर
यह सब भी तब है जब कानून का एक मूलभूत सिद्धांत है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। लेकिन तमाम दूसरे सिद्धांतों की तरह यह सिद्धांत भी व्यावहारिक स्तर पर खरा उतरता नहीं दिखता है। बताते हैं कि अभियुक्तों की संख्या अधिक थी, तो उन्हें पांच साल में केवल दो बार ही कोर्ट में पेश किया गया और कार्रवाई की इसी धीमी रफ्तार के कारण उन्हें बेगुनाह साबित होने में पांच साल लग गए।
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक अदालत ने यूएपीए (UAPA) के तहत अभियुक्त बनाए गए 121 आदिवासियों को रिहा कर दिया है। इन आदिवासियों पर आरोप था कि उन्होंने 5 साल पहले नक्सवादियों को एक हमला करने में मदद की थी। बता दें कि 24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले के बुर्कापाल सीआरपीएफ कैम्प से 74 बटालियन के जवान दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच निर्माण हो रही सड़क को सुरक्षा देने निकले थे। जिस दौरान हुए नक्सली हमले में CRPF के 24 जवान मारे गए थे। इस हमले के बाद नक्सलियों का साथ देने के जुर्म में पुलिस द्वारा बुर्कापाल और उससे लगे आसपास के गांव से 121 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया था।
इंडियन एक्सप्रेस आदि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब NIA कोर्ट ने उन आदिवासियों को दोषमुक्त करने का फैसला सुनाया है। दंतेवाड़ा के NIA कोर्ट ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया और कोर्ट के आदेश के बाद शनिवार की देर शाम जगदलपुर सेंट्रल जेल में बंद इन लोगों को रिहा कर दिया गया है। जेल अधीक्षक अमित शांडिल्य ने बताया कि शनिवार की शाम रिहा होने के बाद इन्हें दो बस के जरिए सुकमा और बीजापुर जिले में स्थित उनके गांव के लिए रवाना किया गया।
मामले में पुलिस कोर्ट में नक़्सलियो के समर्थक के रूप में ग्रामीणों के खिलाफ कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाई। इस आधार पर कोर्ट ने 5 साल तक केंद्रीय जेल में सजा काटने के बाद NIA कोर्ट से मिले फैसले के बाद इन्हें रिहा कर दिया गया है। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इन आदिवासी युवकों के जीवन के पांच अनमोल साल कैद में केवल इसलिए बीत गए क्योंकि वे उस इलाके के रहने वाले थे, जहां माओवादी हमला हुआ।
अगर संदेह के आधार पर इन युवकों को गिरफ्तार भी किया गया तो फिर जल्द से जल्द संदेह को पुष्ट करने के लिए सबूत पेश किए जाने चाहिए थे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अभियुक्तों की संख्या अधिक थी, तो उन्हें पांच साल में केवल दो बार ही कोर्ट में पेश किया गया और कार्रवाई की धीमी रफ्तार के कारण उनकी बेगुनाही साबित होने में पांच साल लग गए। इन पांच सालों में राज्य की सत्ता बदल गई, दुनिया के हालात बदल गए, मानव सभ्यता उत्तर कोरोना काल में पहुंच गई, लेकिन 121 आदिवासियों का जीवन वहीं के वहीं अटका रहा। अब वे जेल से रिहा हैं, लेकिन उनके लिए आगे के हालात कैसे रहेंगे, ये अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
जेल में कट गए पांच साल
24 अप्रैल 2017 में बुरकापाल में नक़्सलियों के CRPF जवानों पर घात लगाकर किए गए हमले में 24 जवान मारे गए थे। घटना के बाद पुलिस ने गांव से लगे अलग अलग इलाकों से करीब 121 लोगों को आरोपी बनाया था। इसमें तीन ग्रामीण दंतेवाड़ा के जेल में बंद थे। उनके अलावा सभी आदिवासी जगदलपुर केंद्रीय जेल में बंद थे. करीब 5 साल से जेल में बंद इन लोगों का फैसला शुक्रवार को जैसे ही आया इनकी रिहाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। गौरतलब है कि इस मामले में एक महिला को भी आरोपी बनाया गया था जो जगदलपुर जेल में बंद थी।
आदिवासियों ने कहा फ़र्ज़ी मामले थे
जेल से रिहा हुए ग्रामीण पदम, माड़वी और उयाम ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मामला बनाया था। पुलिस उन्हें घटना के एक महीने बाद किसी को रात में तो किसी को तड़के सुबह करीब 4 बजे पकडक़र ले गई और उन पर इल्जाम लगाया कि वे बुरकापाल हमले में नक्सलियों के सहयोगी थे। जबकि ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने इस घटना को देखा ही नहीं था। इसके बाद उन पर फर्जी आरोप लगाकर और फर्जी तरीके से जेल में डाल दिया गया। ग्रामीणों ने कहा कि हम सभी लोग किसान हैं और अब न्यायालय ने हमें नई जिंदगी दी है। इन लोगों का कहना है कि वो वापस जाकर पहले की तरह खेती-किसानी करेंगे। इन ग्रामीणों में से कुछ ऐसे भी ग्रामीण हैं जो 5 साल सजा काटने के दौरान एक बार भी अपने परिवार वालों से नहीं मिल पाए और अब 5 साल बाद अपने परिवार से मिलेंगे।
कुछ ग्रामीणों का कहना है कि जेल में रहने के दौरान उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। वहीं खुद को बेकसूर बताने के बावजूद भी 5 साल तक उन्हें सजा काटनी पड़ी। आखिरकार सत्य की जीत हुई और कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया और अब 5 साल के बाद उनकी खुशी लौटी है और अब अपने परिवार से मिल पा रहे हैं।
इस मामले में बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि पुलिस ने ग्रामीणों को नक्सलियों के साथ सांठगांठ होने और घटना में नक्सलियों का समर्थन करने का साक्ष्य नहीं जुटा पाई इसलिए कोर्ट ने इन्हें दोषमुक्त किया है. कुछ ग्रामीण जो अन्य प्रकरण में भी शामिल थे। उन्हें रिहा नहीं किया गया है।
लेकिन इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जब अदालत एक ओर अनावश्यक गिरफ्तारियों पर चिंता जता रही थी तो दूसरी ओर दंतेवाड़ा की एनआईए की अदालत 121 आदिवासियों को रिहा करने का फैसला सुना रही थी। इन आदिवासियों को यूएपीए सहित कई गंभीर मामलों में आरोपी बनाया गया था और पिछले 5 सालों से जेल में कैद थे। गौरतलब है कि 24 अप्रैल 2017 को सुकमा ज़िले के बुरकापाल में हुए माओवादी हमले के बाद इन्हें गिरफ़्तार किया गया था। इस हमले में 24 जवान शहीद हुए थे और 7 गंभीर रूप से घायल हुए थे। पुलिस ने इस हमले के बाद घटनास्थल के आसपास के गांवों से 122 आदिवासियों को गिरफ़्तार किया था।
इनमें अधिकतर 19 से 30 साल की उम्र के थे। तब से अदालत का फैसला आने तक ये आदिवासी युवक जेल में ही थे, इनमें से एक की मौत भी जेल में हो गई। बीबीसी के मुताबिक, एनआईए के विशेष न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा, 'इस प्रकरण में उपलब्ध किसी भी अभियोजन साक्षियों के द्वारा घटना के समय मौक़े पर इन अभियुक्तों की उपस्थिति और पहचान के संबंध में कोई कथन नहीं किया गया है।
इन अभियुक्तों के पास से कोई घातक हथियार भी नहीं मिला था। माओवादी होने का ठप्पा एक बार लग गया, तो फिर वो आसानी से नहीं मिटेगा। उनकी रोजी-रोटी का प्रबंध कैसे होगा, समाज में सम्मान के साथ रहने की उम्मीदें कितनी बची होंगी, ये भी नहीं पता। इन युवकों को न्याय मिला या नहीं, इस पर विशेषज्ञ विचार करें, और ये भी सुनिश्चित करें कि आइंदा इस तरह संदेह के आधार पर हुई गिरफ्तारियों में फैसले लेने में कई बरस न लगें। अन्यथा अन्याय की प्रक्रिया जारी ही रहेगी।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जताया संतोष
छत्तीसगढ़ की जानी-पहचानी सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया ने इस ख़बर को ट्वीट किया है। उन्होंने जेल से छूटे आदिवासियों के बयान के सहारे कहने की कोशिश की है कि निर्दोष आदिवासियों को जेल में रखा गया था।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
यह सब भी तब है जब कानून का एक मूलभूत सिद्धांत है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। लेकिन तमाम दूसरे सिद्धांतों की तरह यह सिद्धांत भी व्यावहारिक स्तर पर खरा उतरता नहीं दिखता है। बताते हैं कि अभियुक्तों की संख्या अधिक थी, तो उन्हें पांच साल में केवल दो बार ही कोर्ट में पेश किया गया और कार्रवाई की इसी धीमी रफ्तार के कारण उन्हें बेगुनाह साबित होने में पांच साल लग गए।
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक अदालत ने यूएपीए (UAPA) के तहत अभियुक्त बनाए गए 121 आदिवासियों को रिहा कर दिया है। इन आदिवासियों पर आरोप था कि उन्होंने 5 साल पहले नक्सवादियों को एक हमला करने में मदद की थी। बता दें कि 24 अप्रैल 2017 को सुकमा जिले के बुर्कापाल सीआरपीएफ कैम्प से 74 बटालियन के जवान दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच निर्माण हो रही सड़क को सुरक्षा देने निकले थे। जिस दौरान हुए नक्सली हमले में CRPF के 24 जवान मारे गए थे। इस हमले के बाद नक्सलियों का साथ देने के जुर्म में पुलिस द्वारा बुर्कापाल और उससे लगे आसपास के गांव से 121 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया था।
इंडियन एक्सप्रेस आदि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब NIA कोर्ट ने उन आदिवासियों को दोषमुक्त करने का फैसला सुनाया है। दंतेवाड़ा के NIA कोर्ट ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया और कोर्ट के आदेश के बाद शनिवार की देर शाम जगदलपुर सेंट्रल जेल में बंद इन लोगों को रिहा कर दिया गया है। जेल अधीक्षक अमित शांडिल्य ने बताया कि शनिवार की शाम रिहा होने के बाद इन्हें दो बस के जरिए सुकमा और बीजापुर जिले में स्थित उनके गांव के लिए रवाना किया गया।
मामले में पुलिस कोर्ट में नक़्सलियो के समर्थक के रूप में ग्रामीणों के खिलाफ कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाई। इस आधार पर कोर्ट ने 5 साल तक केंद्रीय जेल में सजा काटने के बाद NIA कोर्ट से मिले फैसले के बाद इन्हें रिहा कर दिया गया है। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इन आदिवासी युवकों के जीवन के पांच अनमोल साल कैद में केवल इसलिए बीत गए क्योंकि वे उस इलाके के रहने वाले थे, जहां माओवादी हमला हुआ।
अगर संदेह के आधार पर इन युवकों को गिरफ्तार भी किया गया तो फिर जल्द से जल्द संदेह को पुष्ट करने के लिए सबूत पेश किए जाने चाहिए थे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अभियुक्तों की संख्या अधिक थी, तो उन्हें पांच साल में केवल दो बार ही कोर्ट में पेश किया गया और कार्रवाई की धीमी रफ्तार के कारण उनकी बेगुनाही साबित होने में पांच साल लग गए। इन पांच सालों में राज्य की सत्ता बदल गई, दुनिया के हालात बदल गए, मानव सभ्यता उत्तर कोरोना काल में पहुंच गई, लेकिन 121 आदिवासियों का जीवन वहीं के वहीं अटका रहा। अब वे जेल से रिहा हैं, लेकिन उनके लिए आगे के हालात कैसे रहेंगे, ये अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
जेल में कट गए पांच साल
24 अप्रैल 2017 में बुरकापाल में नक़्सलियों के CRPF जवानों पर घात लगाकर किए गए हमले में 24 जवान मारे गए थे। घटना के बाद पुलिस ने गांव से लगे अलग अलग इलाकों से करीब 121 लोगों को आरोपी बनाया था। इसमें तीन ग्रामीण दंतेवाड़ा के जेल में बंद थे। उनके अलावा सभी आदिवासी जगदलपुर केंद्रीय जेल में बंद थे. करीब 5 साल से जेल में बंद इन लोगों का फैसला शुक्रवार को जैसे ही आया इनकी रिहाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। गौरतलब है कि इस मामले में एक महिला को भी आरोपी बनाया गया था जो जगदलपुर जेल में बंद थी।
आदिवासियों ने कहा फ़र्ज़ी मामले थे
जेल से रिहा हुए ग्रामीण पदम, माड़वी और उयाम ने बताया कि पुलिस ने उनके खिलाफ फर्जी मामला बनाया था। पुलिस उन्हें घटना के एक महीने बाद किसी को रात में तो किसी को तड़के सुबह करीब 4 बजे पकडक़र ले गई और उन पर इल्जाम लगाया कि वे बुरकापाल हमले में नक्सलियों के सहयोगी थे। जबकि ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने इस घटना को देखा ही नहीं था। इसके बाद उन पर फर्जी आरोप लगाकर और फर्जी तरीके से जेल में डाल दिया गया। ग्रामीणों ने कहा कि हम सभी लोग किसान हैं और अब न्यायालय ने हमें नई जिंदगी दी है। इन लोगों का कहना है कि वो वापस जाकर पहले की तरह खेती-किसानी करेंगे। इन ग्रामीणों में से कुछ ऐसे भी ग्रामीण हैं जो 5 साल सजा काटने के दौरान एक बार भी अपने परिवार वालों से नहीं मिल पाए और अब 5 साल बाद अपने परिवार से मिलेंगे।
कुछ ग्रामीणों का कहना है कि जेल में रहने के दौरान उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। वहीं खुद को बेकसूर बताने के बावजूद भी 5 साल तक उन्हें सजा काटनी पड़ी। आखिरकार सत्य की जीत हुई और कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया और अब 5 साल के बाद उनकी खुशी लौटी है और अब अपने परिवार से मिल पा रहे हैं।
इस मामले में बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि पुलिस ने ग्रामीणों को नक्सलियों के साथ सांठगांठ होने और घटना में नक्सलियों का समर्थन करने का साक्ष्य नहीं जुटा पाई इसलिए कोर्ट ने इन्हें दोषमुक्त किया है. कुछ ग्रामीण जो अन्य प्रकरण में भी शामिल थे। उन्हें रिहा नहीं किया गया है।
लेकिन इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जब अदालत एक ओर अनावश्यक गिरफ्तारियों पर चिंता जता रही थी तो दूसरी ओर दंतेवाड़ा की एनआईए की अदालत 121 आदिवासियों को रिहा करने का फैसला सुना रही थी। इन आदिवासियों को यूएपीए सहित कई गंभीर मामलों में आरोपी बनाया गया था और पिछले 5 सालों से जेल में कैद थे। गौरतलब है कि 24 अप्रैल 2017 को सुकमा ज़िले के बुरकापाल में हुए माओवादी हमले के बाद इन्हें गिरफ़्तार किया गया था। इस हमले में 24 जवान शहीद हुए थे और 7 गंभीर रूप से घायल हुए थे। पुलिस ने इस हमले के बाद घटनास्थल के आसपास के गांवों से 122 आदिवासियों को गिरफ़्तार किया था।
इनमें अधिकतर 19 से 30 साल की उम्र के थे। तब से अदालत का फैसला आने तक ये आदिवासी युवक जेल में ही थे, इनमें से एक की मौत भी जेल में हो गई। बीबीसी के मुताबिक, एनआईए के विशेष न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा, 'इस प्रकरण में उपलब्ध किसी भी अभियोजन साक्षियों के द्वारा घटना के समय मौक़े पर इन अभियुक्तों की उपस्थिति और पहचान के संबंध में कोई कथन नहीं किया गया है।
इन अभियुक्तों के पास से कोई घातक हथियार भी नहीं मिला था। माओवादी होने का ठप्पा एक बार लग गया, तो फिर वो आसानी से नहीं मिटेगा। उनकी रोजी-रोटी का प्रबंध कैसे होगा, समाज में सम्मान के साथ रहने की उम्मीदें कितनी बची होंगी, ये भी नहीं पता। इन युवकों को न्याय मिला या नहीं, इस पर विशेषज्ञ विचार करें, और ये भी सुनिश्चित करें कि आइंदा इस तरह संदेह के आधार पर हुई गिरफ्तारियों में फैसले लेने में कई बरस न लगें। अन्यथा अन्याय की प्रक्रिया जारी ही रहेगी।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जताया संतोष
छत्तीसगढ़ की जानी-पहचानी सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया ने इस ख़बर को ट्वीट किया है। उन्होंने जेल से छूटे आदिवासियों के बयान के सहारे कहने की कोशिश की है कि निर्दोष आदिवासियों को जेल में रखा गया था।
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