जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए छत्तीसगढ़ में आदिवासियों ने एक बार फिर से कमर कस ली है। अपनी बातों को राज्य और केंद्र की सरकार तक पहुंचाने के लिए खदान प्रभावित आदिवासियों ने 300 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू की है। मामला हसदेव अरण्य क्षेत्र का है जहां रिकॉर्ड के मुताबिक, अडानी कंपनी को एमडीओ के तहत कोयला खनन करने की अनुमति मिली है जबकि खनन के लिए लीज राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आवंटित है। क्षेत्र के आदिवासी सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र जो सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर आदि जिलों में फैला है, में करीब 1,70,000 हेक्टेयर जंगल है। इसमें 23 कोयला खदान प्रस्तावित हैं। पैदल मार्च कर रहे आदिवासी नेताओं का कहना है कि मोदी सरकार ने गैरकानूनी तरीके से 7 कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकार की कंपनियों को कर दिया। राज्य सरकारों ने इन कोल ब्लाकों को विकसित करने और खनन (MDO) के नाम पर अडानी कंपनी को सौंप दिया है। मामला, ग्राम सभा बनाम लोकसभा/विधानसभा के अधिकार क्षेत्रों का भी है। वनाधिकार कानून 2006 में ग्राम सभा को विशेष अधिकार दिए हैं।
यह जंगल जैव विविधता से भरी हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बागी बांध का केचमेंट है। यहां से जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर के नागरिकों और खेतों की प्यास बुझती है। इसके अलावा यह हाथी आदि वन्य प्राणियों का रहवास और उनकी आवाजाही का रास्ता (कॉरिडोर) भी है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि 2010 में केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए इस पूरे जंगल को ‘नो-गो क्षेत्र घोषित किया था। 2015 में हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्रामसभाओं ने प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजे थे। इन ग्राम सभाओं ने कहा था कि उनके क्षेत्र में किसी भी कोल ब्लॉक का आबंटन/नीलामी न की जाये। इन ग्राम सभाओं ने यह भी कहा था कि ऐसा किया गया तो आदिवासी और ग्राम सभाएं इसका पुरजोर विरोध करेंगी। ग्राम सभाओं ने इन प्रस्तावों में कहा था कि अपने जल-जंगल-जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का अधिकार संविधान से मिला है। संविधान की अनुसूची 5 और पेसा कानून 1996 आदिवासियों को यह अधिकार देता है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नाम की सामाजिक संस्था के मुताबिक कोयला खनन के तहत हसदेव अरण्य क्षेत्र के 5 गांव सीधे और 15 गांव आंशिक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। अगर ये सभी खदानें संचालित हो गईं तो सबसे पहले 17 हजार हेक्टेयर का जंगल समाप्त होगा। फिर धीरे-धीरे सभी जंगल समाप्त हो जाएंगें। इसी को लेकर 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर एक बार फिर से हसदेव अरण्य क्षेत्र में रहने वाले खदान प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों ने अवैध खनन और कोयला खदान के लिए जबरिया जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आखिरी सांस तक शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई जारी रखने का संकल्प को दोहराया और 4 अक्टूबर से हसदेव बचाओ पदयात्रा की शुरुआत की। 10 दिनों में यह पदयात्रा 300 किलोमीटर चलते हुए 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेगी।
पैदल मार्च कर रहे आदिवासी नेताओं का कहना है कि मोदी सरकार ने गैरकानूनी तरीके से 7 कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों की कंपनियों को कर दिया। राज्य सरकारों ने इन कोल ब्लाकों को विकसित करने और खनन (MDO) के नाम पर अडानी कंपनी को सौंप दिया है। ग्राम सभाओं द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध व आंदोलन के बाद जून 2015 में राहुल गांधी ने भी वादा किया था कि वो जंगल बचाने की लड़ाई का समर्थन करते हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी अपने वादे से मुकर रही है। हरदेव इलाक़े के ग्रामीणों ने साल 2019 में फत्तेपुर में 75 दिनों तक पर प्रदर्शन किया था। आदिवासियों का कहना है कि वो अपने जल-जंगल-जमीन पर निर्भर हमारी आजीविका, हमारी संस्कृति और पर्यावरण को बचाने के लिए अहिंसक सत्याग्रह और आन्दोलन करने के लिए बाध्य हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हसदेव बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े हुए सोशल एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला कहते हैं कि मदनपुर से यात्रा प्रारम्भ करने से पहले ग्रामीणों द्वारा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और मोदी सरकार की फासीवादी कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों पर जम कर हमला बोला। आलोक बताते हैं कि आज इस यात्रा की शुरुआत मदनपुर गांव के उस ऐतिहासिक स्थान से की गई, जहां 2015 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य के समस्त ग्राम सभाओं के लोगो को संबोधित करते हुए उनके जल जंगल जमीन को बचाने के लिए संकल्प लिया था और कहा था कि वे इस संघर्ष में उनके साथ हैं। हमारी लड़ाई अवैध उत्खनन, धोखाधड़ी से आदिवासियों का जमीन हड़पना, अनुसूचित क्षेत्र होने के बावजूद पेसा कानून का नहीं लागू करना जैसे मुद्दों को लेकर है। तो कॉरपोरेटीकरण और भ्रष्ट नौकरशाही को लेकर भी है। अतः हम लड़ेंगें और जीतेंगे।
पैदल यात्रा में भाग ले रही सुनीता पोर्ते कहती है कि हम रायपुर जाकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से पूछेंगे कि कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए हमारी जमीन को क्यों छीना जा रहा है? ग्राम फत्तेपुर के मुनेश्वर पोर्ते कहते हैं कि 2015 में ही 20 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर कर कह दिया था कि हम कोयला खनन का विरोध करेंगे। आरोप लगाया कि परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति ग्रामसभा का फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई। शासन प्रशासन सबको पता है कि उसके बावजूद न तो आजतक फर्जी प्रस्ताव को निरस्त किया गया, न ही दोषियों पर कार्रवाई की गई। हमारी मांग है कि इस तरह की फर्जी सहमति को निरस्त किया जाए। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष रामेश्वर सिंह आर्मो कहते हैं कि अपने जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए हसदेव के लोग एक दशक से संघर्षरत हैं। लेकिन केंद्र हो या राज्य की सरकार, दोनों ही हमसे सौतेला व्यवहार कर रही हैं। आदिवासियों का कहना हैं कि अडानी को जिस प्रकार मोदी सरकार देश के तमाम संसाधनों को सौंपने की कोशिश कर रही है उस प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ सरकार भी अपनी पूर्ण सहभागिता निभा रही है। ऐसे में अपने संवैधानिक अधिकारों के रक्षा के लिए हम यह पदयात्रा निकाल है। हमारी मांगें निम्नलिखित हैं।
हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त किया जाए।
बिना ग्राम सभा सहमती के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बोरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए।
पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमती के प्रावधान को लागू किया जाए।
परसा कोल ब्लाक के लिए फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त कराएं ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर एफआईआर दर्ज की जाए।
घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांव में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दो।
पेसा कानून 1996 का पालन किया जाए।
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यह जंगल जैव विविधता से भरी हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बागी बांध का केचमेंट है। यहां से जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर के नागरिकों और खेतों की प्यास बुझती है। इसके अलावा यह हाथी आदि वन्य प्राणियों का रहवास और उनकी आवाजाही का रास्ता (कॉरिडोर) भी है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि 2010 में केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हसदेव क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए इस पूरे जंगल को ‘नो-गो क्षेत्र घोषित किया था। 2015 में हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्रामसभाओं ने प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजे थे। इन ग्राम सभाओं ने कहा था कि उनके क्षेत्र में किसी भी कोल ब्लॉक का आबंटन/नीलामी न की जाये। इन ग्राम सभाओं ने यह भी कहा था कि ऐसा किया गया तो आदिवासी और ग्राम सभाएं इसका पुरजोर विरोध करेंगी। ग्राम सभाओं ने इन प्रस्तावों में कहा था कि अपने जल-जंगल-जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का अधिकार संविधान से मिला है। संविधान की अनुसूची 5 और पेसा कानून 1996 आदिवासियों को यह अधिकार देता है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन नाम की सामाजिक संस्था के मुताबिक कोयला खनन के तहत हसदेव अरण्य क्षेत्र के 5 गांव सीधे और 15 गांव आंशिक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। अगर ये सभी खदानें संचालित हो गईं तो सबसे पहले 17 हजार हेक्टेयर का जंगल समाप्त होगा। फिर धीरे-धीरे सभी जंगल समाप्त हो जाएंगें। इसी को लेकर 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर एक बार फिर से हसदेव अरण्य क्षेत्र में रहने वाले खदान प्रभावित आदिवासी ग्रामीणों ने अवैध खनन और कोयला खदान के लिए जबरिया जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आखिरी सांस तक शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई जारी रखने का संकल्प को दोहराया और 4 अक्टूबर से हसदेव बचाओ पदयात्रा की शुरुआत की। 10 दिनों में यह पदयात्रा 300 किलोमीटर चलते हुए 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेगी।
पैदल मार्च कर रहे आदिवासी नेताओं का कहना है कि मोदी सरकार ने गैरकानूनी तरीके से 7 कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों की कंपनियों को कर दिया। राज्य सरकारों ने इन कोल ब्लाकों को विकसित करने और खनन (MDO) के नाम पर अडानी कंपनी को सौंप दिया है। ग्राम सभाओं द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध व आंदोलन के बाद जून 2015 में राहुल गांधी ने भी वादा किया था कि वो जंगल बचाने की लड़ाई का समर्थन करते हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी अपने वादे से मुकर रही है। हरदेव इलाक़े के ग्रामीणों ने साल 2019 में फत्तेपुर में 75 दिनों तक पर प्रदर्शन किया था। आदिवासियों का कहना है कि वो अपने जल-जंगल-जमीन पर निर्भर हमारी आजीविका, हमारी संस्कृति और पर्यावरण को बचाने के लिए अहिंसक सत्याग्रह और आन्दोलन करने के लिए बाध्य हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हसदेव बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े हुए सोशल एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला कहते हैं कि मदनपुर से यात्रा प्रारम्भ करने से पहले ग्रामीणों द्वारा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और मोदी सरकार की फासीवादी कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों पर जम कर हमला बोला। आलोक बताते हैं कि आज इस यात्रा की शुरुआत मदनपुर गांव के उस ऐतिहासिक स्थान से की गई, जहां 2015 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य के समस्त ग्राम सभाओं के लोगो को संबोधित करते हुए उनके जल जंगल जमीन को बचाने के लिए संकल्प लिया था और कहा था कि वे इस संघर्ष में उनके साथ हैं। हमारी लड़ाई अवैध उत्खनन, धोखाधड़ी से आदिवासियों का जमीन हड़पना, अनुसूचित क्षेत्र होने के बावजूद पेसा कानून का नहीं लागू करना जैसे मुद्दों को लेकर है। तो कॉरपोरेटीकरण और भ्रष्ट नौकरशाही को लेकर भी है। अतः हम लड़ेंगें और जीतेंगे।
पैदल यात्रा में भाग ले रही सुनीता पोर्ते कहती है कि हम रायपुर जाकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से पूछेंगे कि कॉरपोरेट के मुनाफे के लिए हमारी जमीन को क्यों छीना जा रहा है? ग्राम फत्तेपुर के मुनेश्वर पोर्ते कहते हैं कि 2015 में ही 20 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर कर कह दिया था कि हम कोयला खनन का विरोध करेंगे। आरोप लगाया कि परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति ग्रामसभा का फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई। शासन प्रशासन सबको पता है कि उसके बावजूद न तो आजतक फर्जी प्रस्ताव को निरस्त किया गया, न ही दोषियों पर कार्रवाई की गई। हमारी मांग है कि इस तरह की फर्जी सहमति को निरस्त किया जाए। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष रामेश्वर सिंह आर्मो कहते हैं कि अपने जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए हसदेव के लोग एक दशक से संघर्षरत हैं। लेकिन केंद्र हो या राज्य की सरकार, दोनों ही हमसे सौतेला व्यवहार कर रही हैं। आदिवासियों का कहना हैं कि अडानी को जिस प्रकार मोदी सरकार देश के तमाम संसाधनों को सौंपने की कोशिश कर रही है उस प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ सरकार भी अपनी पूर्ण सहभागिता निभा रही है। ऐसे में अपने संवैधानिक अधिकारों के रक्षा के लिए हम यह पदयात्रा निकाल है। हमारी मांगें निम्नलिखित हैं।
हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला खनन परियोजना निरस्त किया जाए।
बिना ग्राम सभा सहमती के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बोरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए।
पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमती के प्रावधान को लागू किया जाए।
परसा कोल ब्लाक के लिए फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई वन स्वीकृति को तत्काल निरस्त कराएं ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर एफआईआर दर्ज की जाए।
घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वन अधिकार को बहाल करते हुए सभी गांव में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत वन अधिकारों को मान्यता दो।
पेसा कानून 1996 का पालन किया जाए।
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