वर्तमान सरकार की नीति नहीं नियत समझे जनता
देश बेरोजगारी और भुखमरी से गुजर रहा है और सरकार अग्निपथ स्कीम लाकर बची हुई सरकारी नौकरियों को भी ख़त्म कर रही है. सरकार द्वारा एक के बाद एक तुगलकी फरमान जारी किया जा रहा है जिससे देश की जनता त्राहिमाम कर रही है. सरकार के निजी दोस्तों के प्रति वफादारी ने अंततः देश का गुरुर भारतीय सेना के भी निजीकरण करने की तैयारी कर ली है. 14 जून को घोषित अग्निपथ स्कीम की घोषणा के बाद से ही देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी हैं जो कई जगहों पर हिंसक रूप में सामने आए हैं. कई ट्रेनें रद्द कर दी गयी हैं जिससे रेलवे को करोड़ो का नुकसान हुआ है. हालाँकि तीनों सेना प्रमुखों ने प्रेस वार्ता कर यह बताया है कि इस योजना से देश के युवाओं को फायदा है और इसे किसी भी हालत में वापस नहीं लिया जाएगा साथ ही अग्निवीरों के लिए भर्ती की अधिसूचना भी जारी कर दी.
क्या है अग्निपथ योजना?
भारतीय सेना के तीनों अंगों थलसेना, वायुसेना और नौसेना में क्रमशः जवान, एयरमेन और नाविक के पदों पर भर्ती के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा अग्निपथ स्कीम लायी गयी है. एक बार भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद इन्हें अग्निवीर की संज्ञा दी जाएगी और उनका कार्यकाल 4 साल का होगा. इस पद के आवेदन के लिए 17 से 21 साल की उम्र सीमा तय की गयी है जिसे काफी विरोध के बाद और कोरोना महामारी में बर्बाद हुए समय के कारण प्रथम एक साल में 23 साल तक के युवा को आवेदन करने की छुट मिली है. यह योजना अफसर रैंक के सैन्य कर्मियों पर लागू नहीं होगी. उनकी भर्ती के लिए मौजूदा अलग अलग प्रक्रियाएं चलती रहेंगी. पहले साल में तीनों सेनाओं को मिलाकर 46 हजार जवानों की भर्ती अग्निवीर के रूप में की जाएगी जिसे बाद में बढाए जाने की बात की जा रही है.
अग्निवीर और बाकी सेना की सुविधाओं में अंतर
सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों ने पत्रकार वार्ता में बताया कि अग्निपथ योजना से भर्ती किए जा रहे सेना के हर तरह के भत्ते यानि दुर्गम स्थान में काम करने वाला या राशन या यात्रा भत्ता हो, सब पहले के जवानों के जैसे होंगे. यूनिफार्म अलग दिखेंगे जिससे अग्नीवीरों की पहचान की जा सके. हालांकि अग्निवीर महंगाई भत्ता और मिलिट्री सर्विस पे को पाने के हकदार नहीं होंगे. सैन्य सेवा के 4 साल के दौरान अग्निवीरों को फौज को मिलने वाली स्वास्थ्य और कैन्टीन की सुविधाएँ उपलब्ध होंगी लेकिन एक बार 4 साल की सेवा ख़त्म होने के बाद वे न किसी तरह की पेंशन, और न ही पूर्व सैनिकों को मिलने वाली मेडिकल और कैंटीन सुविधाएँ पा सकेंगे. अग्निवीरों को पूर्व सैनिक का दर्जा और अन्य सुविधाएँ भी प्राप्त नहीं होंगी. तीनों सेनाओं में तैनाती और ट्रांसफर के मामले में कहीं कोई अंतर नहीं किया जाएगा. उन्हें कठोर जलवायु क्षेत्रों जैसे सियाचिन या किसी पनडुब्बी में तैनात किया जा सकता है लेकिन सुविधाओं में फर्क किया जाना अनिवार्य है.
सरकारी भर्ती प्रक्रिया को लेकर पहले भी हुए हैं हिंसक प्रदर्शन
अग्निपथ योजना को लेकर बिहार, राजस्थान, हरियाण, उत्तर प्रदेश समेत उतर भारत में कई जगह पर आक्रोशित युवाओं द्वारा लगातार हिंसक प्रदर्शन हो रहा है. सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया को लेकर पहले भी हिंसक प्रदर्शन हुए हैं. निजीकरण की घोर हिमायती इस सरकार ने सरकारी नौकरियों और सार्वजानिक सम्पतियों को निजी दोस्तों के हवाले करने का फैसला कर लिया है चाहे देश का कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए. इससे पहले जनवरी में रेलवे भर्ती प्रक्रिया में हुए विलम्ब को लेकर बिहार में हिंसक प्रदर्शन हुए थे. शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में हुई अनियमितताओं को लेकर उत्तर प्रदेश में विरोध प्रदर्शन हुए. वर्तमान अग्निपथ योजना ने युवाओं में सरकार के प्रति असंतुष्टि के भाव को गहरा किया है.
देश बेरोजगारी की प्रचंडता से गुजर रहा है. हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने अगले डेढ़ वर्षों में विभिन्न सरकारी विभागों में 10 लाख भर्तियों की घोषणा की है. देश की युवा आवादी के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने में सरकार नाकाम रही है. यह संकट एक दिन में अचानक से पैदा नहीं हुआ है. 2016-17 के राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय नें रोजगार सर्वेक्षण में बताया था कि देश में बेरोजगारी पिछले 46 साल के उच्च स्तर 6 फीसदी से अधिक है जिस पर सरकार द्वारा लीपापोती की गयी थी.
नोटबंदी के चलते देशभर में 50 लाख लोगों नें काम के अवसर खो दिए थे. वहीं, कोरोना महामारी और उसे रोकने के लिए सरकार द्वारा लागू किए गए सख्त लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म हुई. अनौपचारिक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर का संकुचन हुआ. यह स्थिति युवाओं के सपने दरकने और उससे उपजे आक्रोश की बानगी को बयां करती है.
सेना के निजीकरण का प्रयास है अग्निपथ स्कीम
सरकार के निजीकरण की तरफ लगातार बढ़ते कदम और निजी दोस्तों के प्रति वफादारी ने सार्वजानिक क्षेत्र के कामों और सरकारी जिम्मेदारियों से उन्हें परे कर दिया है. बहुत ही चालाकी से सरकार द्वारा कॉर्पोरेट घरानों के हित में और जनता के विरोध में फैसले लिए जा रहे हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के कंपनियों को कॉर्पोरेट घरानों के हवाले कर दिया गया है. रेलवे एयरपोर्ट व बंदरगाह को बेचा जा चुका है. खनिज संसाधनों पर पूंजीपतियों का कब्ज़ा हो रहा है. अधिकांश पीएसयू बिक चुके हैं. जाहिर है सैकड़ों एकड़ में फ़ैल रहे इस निजी साम्राज्य की रखवाली करने के लिए ट्रेंड सेना की जरुरत होगी. इस काम को सरकारी खर्चे और सरकारी संसाधनों के प्रयोग से भारत की सरकार बखूबी पूरा कर रही है. अग्निपथ से भर्ती हुए अग्निवीरों के कार्यकाल पूरा होने के बाद अदानी अंबानी के निजी साम्राज्य को सँभालने की जिम्मेवारी दी जा सकती है.
दुनिया के कई अन्य देशों में भी ठेके पर सेना भर्ती कराए जाने और उसे किराए पर अन्य देशों में भेजे जाने का इतिहास रहा है. दुनियाभर में जब भी युद्ध होते हैं तो कई देश किराए की सेना का सहारा भी लेते हैं. साल 2020 में प्रकाशित सीएसआईएस की रिपोर्ट के मुताबिक, शीत युद्ध के बाद, देश की सरकार और गैर सरकारी संस्थानों में प्राइवेट सिक्यूरिटी कंपनी (पीएससी) और प्राइवेट मिलिट्री कंपनी (पीएमसी) की मांग में तेजी आई. ये मिलिशिया (पार्ट टाइम सैनिक या नागरिक सेना) आमतौर पर ‘फ्रीलांस सैनिक’ होते हैं. ये सस्ती दर पर अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम देते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इनकी छोटी संख्या को किसी खास मिशन पर भेजा जा सकता है. इसके साथ ही, इस तरह के ग्रुप की जवाबदेही कम होती है. अग्निवीर भी इसी कॉन्सेप्ट के आधार पर बनाई गई योजना है और एक तरह से यह सब न्यू वर्ल्ड आर्डर का हिस्सा है. अभी जो युक्रेन में युद्ध चल रहा है वहा भी पुतिन द्वारा रूस की प्राइवेट सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप के सैनिक, यूक्रेन की राजधानी में तैनात किए गए हैं.
वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा जनता को लोकलुभावने चुनावी वादे बार बार किए गए हैं. अग्निपथ योजना के लगातार विरोध के कारण अग्निवीरों के चार साल की नौकरी समाप्त होने के बाद सरकारी नौकरियों में आरक्षण का वादा तक कर दिया गया है. वहीं एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी नौकरियों में पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पदों और उन पर हुई नियुक्तियों की संख्या में बड़ा अंतर है. खामियों से भरी अग्निपथ योजना से यह साफ़ हो गया है कि यह स्कीम देश की जनता और युवाओं के हित में नहीं है बल्कि देश के 90 फीसदी संसाधनों के मालिक कॉर्पोरेट घरानों के हित में है. विडम्बना यह है कि भारत सरकार की प्राथमिकता आज देश की जनता नहीं बल्कि पूंजीपति दोस्त बन गए हैं और उनकी सहूलियत सरकार की जिम्मेदारी बन चुकी है.
(डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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अग्निवीर और बाकी सेना की सुविधाओं में अंतर
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देश बेरोजगारी की प्रचंडता से गुजर रहा है. हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने अगले डेढ़ वर्षों में विभिन्न सरकारी विभागों में 10 लाख भर्तियों की घोषणा की है. देश की युवा आवादी के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने में सरकार नाकाम रही है. यह संकट एक दिन में अचानक से पैदा नहीं हुआ है. 2016-17 के राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय नें रोजगार सर्वेक्षण में बताया था कि देश में बेरोजगारी पिछले 46 साल के उच्च स्तर 6 फीसदी से अधिक है जिस पर सरकार द्वारा लीपापोती की गयी थी.
नोटबंदी के चलते देशभर में 50 लाख लोगों नें काम के अवसर खो दिए थे. वहीं, कोरोना महामारी और उसे रोकने के लिए सरकार द्वारा लागू किए गए सख्त लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म हुई. अनौपचारिक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर का संकुचन हुआ. यह स्थिति युवाओं के सपने दरकने और उससे उपजे आक्रोश की बानगी को बयां करती है.
सेना के निजीकरण का प्रयास है अग्निपथ स्कीम
सरकार के निजीकरण की तरफ लगातार बढ़ते कदम और निजी दोस्तों के प्रति वफादारी ने सार्वजानिक क्षेत्र के कामों और सरकारी जिम्मेदारियों से उन्हें परे कर दिया है. बहुत ही चालाकी से सरकार द्वारा कॉर्पोरेट घरानों के हित में और जनता के विरोध में फैसले लिए जा रहे हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के कंपनियों को कॉर्पोरेट घरानों के हवाले कर दिया गया है. रेलवे एयरपोर्ट व बंदरगाह को बेचा जा चुका है. खनिज संसाधनों पर पूंजीपतियों का कब्ज़ा हो रहा है. अधिकांश पीएसयू बिक चुके हैं. जाहिर है सैकड़ों एकड़ में फ़ैल रहे इस निजी साम्राज्य की रखवाली करने के लिए ट्रेंड सेना की जरुरत होगी. इस काम को सरकारी खर्चे और सरकारी संसाधनों के प्रयोग से भारत की सरकार बखूबी पूरा कर रही है. अग्निपथ से भर्ती हुए अग्निवीरों के कार्यकाल पूरा होने के बाद अदानी अंबानी के निजी साम्राज्य को सँभालने की जिम्मेवारी दी जा सकती है.
दुनिया के कई अन्य देशों में भी ठेके पर सेना भर्ती कराए जाने और उसे किराए पर अन्य देशों में भेजे जाने का इतिहास रहा है. दुनियाभर में जब भी युद्ध होते हैं तो कई देश किराए की सेना का सहारा भी लेते हैं. साल 2020 में प्रकाशित सीएसआईएस की रिपोर्ट के मुताबिक, शीत युद्ध के बाद, देश की सरकार और गैर सरकारी संस्थानों में प्राइवेट सिक्यूरिटी कंपनी (पीएससी) और प्राइवेट मिलिट्री कंपनी (पीएमसी) की मांग में तेजी आई. ये मिलिशिया (पार्ट टाइम सैनिक या नागरिक सेना) आमतौर पर ‘फ्रीलांस सैनिक’ होते हैं. ये सस्ती दर पर अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम देते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इनकी छोटी संख्या को किसी खास मिशन पर भेजा जा सकता है. इसके साथ ही, इस तरह के ग्रुप की जवाबदेही कम होती है. अग्निवीर भी इसी कॉन्सेप्ट के आधार पर बनाई गई योजना है और एक तरह से यह सब न्यू वर्ल्ड आर्डर का हिस्सा है. अभी जो युक्रेन में युद्ध चल रहा है वहा भी पुतिन द्वारा रूस की प्राइवेट सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप के सैनिक, यूक्रेन की राजधानी में तैनात किए गए हैं.
वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा जनता को लोकलुभावने चुनावी वादे बार बार किए गए हैं. अग्निपथ योजना के लगातार विरोध के कारण अग्निवीरों के चार साल की नौकरी समाप्त होने के बाद सरकारी नौकरियों में आरक्षण का वादा तक कर दिया गया है. वहीं एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी नौकरियों में पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित पदों और उन पर हुई नियुक्तियों की संख्या में बड़ा अंतर है. खामियों से भरी अग्निपथ योजना से यह साफ़ हो गया है कि यह स्कीम देश की जनता और युवाओं के हित में नहीं है बल्कि देश के 90 फीसदी संसाधनों के मालिक कॉर्पोरेट घरानों के हित में है. विडम्बना यह है कि भारत सरकार की प्राथमिकता आज देश की जनता नहीं बल्कि पूंजीपति दोस्त बन गए हैं और उनकी सहूलियत सरकार की जिम्मेदारी बन चुकी है.
(डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं।)
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