उजाड़े गए घर, उठे कानूनी सवाल: भारत की बुलडोज़र कार्रवाई का कानूनी और सामाजिक असर

Written by Tanya Arora | Published on: June 20, 2025
दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना और अन्य राज्यों में चली तोड़फोड़ की कार्रवाईयों ने सैकड़ों लोगों को बेघर कर दिया है। वहीं, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में प्रक्रिया संबंधी चूकों, भूमि अधिकारों और कार्यपालिका की सीमाओं की समीक्षा कर रहे हैं।


प्रतीकात्मक तस्वीर

पिछले कुछ हफ्तों में भारत के कई शहरों में तोड़फोड़ की कार्रवाई अचानक तेज हो गई है जिनमें झुग्गी-झोपड़ियां, धार्मिक ढांचे, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और यहां तक कि सालों से बसे रिहायशी इलाके भी शामिल हैं। स्थानीय प्रशासन अक्सर इन कार्रवाइयों को अतिक्रमण हटाने या बाढ़ से बचाव के उपाय के तौर पर सही ठहराता है। लेकिन इन अभियानों की वजह से हजारों लोग बेघर हो गए हैं, जिससे यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया, क्या लोगों के आवास के अधिकारों की रक्षा की गई और क्या जवाबदेही तय की जा रही है। इस पूरी स्थिति के बीच न्यायपालिका भी इसमें शामिल हो गई है। जहां कुछ अदालतों ने बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण का हवाला देते हुए ध्वस्तीकरण आदेशों को सही ठहराया है, वहीं कुछ अन्य ने राज्य सरकारों की कार्रवाई को रोकते हुए या उस पर सवाल उठाते हुए यह देखा है कि क्या कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार किया गया, अस्पष्ट नोटिसों का सहारा लिया गया, या पुनर्वास की जिम्मेदारियों की अनदेखी की गई। यह रिपोर्ट दिल्ली, ग्रेटर नोएडा, जामनगर, ठाणे और पेद्दापल्ली जैसे इलाकों में हाल ही में हुई तोड़फोड़ की घटनाओं को एक साथ पेश करती है और यह दिखाती है कि हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की न्यायपालिका अब इन कार्रवाइयों से जुड़े ज़मीन, कानून और न्याय के अनेक स्तरों वाले जटिल सवालों का किस तरह से न्यायिक परीक्षण कर रही है।

ध्वस्तीकरण अभियान

1. दिल्ली के अशोक विहार में तोड़फोड़: सुबह-सुबह पहुंचा बुलडोजर दस्ता

एक बड़े पैमाने पर चलाए गए तोड़ फोड़ अभियान में विशेष टास्क फोर्स ने भारी पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मौजूदगी के साथ उत्तर दिल्ली के अशोक विहार इलाके में 300 से ज्यादा झुग्गियों को ढहा दिया। यह कार्रवाई दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के नेतृत्व में 16 जून को की गई, जिसका मुख्य निशाना घनी आबादी वाले जेलरवाला बाग झुग्गी समूह की 200 से ज्यादा बस्तियां थीं।

तोड़ फोड़ की ये कार्रवाई सुबह तड़के उस समय शुरू हो गई, जब अधिकारियों ने रास्तों को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया और कई विभागों के कर्मचारियों के साथ-साथ कई बुलडोज़र मौके पर तैनात कर दिए। दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के अनुसार, यह अभियान केवल उन झुग्गियों के खिलाफ चलाया गया, जिनके लोगों को पहले ही जेलरवाला बाग पुनर्वास परियोजना के तहत फ्लैट आवंटित किए जा चुके थे या जो आवास नीति के अनुसार पात्र नहीं थे। अधिकारियों का दावा है कि जिन झुग्गियों को अदालत से संरक्षण प्राप्त था, उन्हें नहीं तोड़ा गया।

अधिकारिक पक्ष: डीडीए ने इस तोड़ फोड़ को कानूनी और जरूरी कदम बताते हुए इसका बचाव किया। प्राधिकरण के अनुसार, 1,078 परिवारों को पहले ही उसी स्थान पर बने नए 1 BHK फ्लैट्स में पुनर्वासित किया जा चुका है। ये फ्लैट्स 421 करोड़ रूपये की लागत से बनाए गए हैं और प्रत्येक की बाजार कीमत लगभग 25 लाख रुपये है, लेकिन पुनर्वासित परिवारों को इन्हें 1.4 लाख रूपये की भारी सब्सिडी दर पर उपलब्ध कराया गया। इसके अलावा, नीतिगत दिशा-निर्देशों के आधार पर 567 परिवारों को अपात्र घोषित किया गया है।

दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) के अनुसार, पात्रता दो चीजों पर निर्भर करती है: 2012-2015 के मतदाता सूची में शामिल होना और बारह में से कम से कम एक पहचान पत्र जैसे राशन कार्ड, बिजली बिल, पासपोर्ट या बैंक पासबुक का होना। जिन परिवारों को अपात्र माना गया उनमें वो लोग शामिल हैं जो ऊपर की मंजिलों पर रहते थे लेकिन उनके पास अलग से कोई पहचान पत्र नहीं था, नाबालिग थे, या जिन्होंने 1 जनवरी 2015 से पहले अपने झुग्गियों का व्यावसायिक इस्तेमाल किया था।

अधिकारियों ने यह भी बताया कि नौ परिवारों ने अपनी अपात्रता को चुनौती दी और उन्हें बाद में लॉटरी के जरिए मकान आवंटित किए गए। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, DDA के प्रवक्ता ने कहा, “सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया। हमने हाई कोर्ट के स्टे आदेशों का सम्मान किया। तोड़ फोड़ केवल उन्हीं जगहों पर किया गया जहां पहले से ही पुनर्वास हो चुका था या जिन्हें पात्र नहीं पाया गया था।”

सैकड़ों लोग अभी भी बेघर: इन आश्वासनों के बावजूद, जमीन पर हालात और प्रभावित लोगों की बात कुछ और ही दिखाती है। द इंडियन एक्सप्रेस समेत कई मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि कई लोग, जो दशकों से यहां रह रहे हैं और जिनके पास सही दस्तावेज भी हैं, उन्हें मकान आवंटन में शामिल नहीं किया गया। निकाले गए लोगों में से एक के रिश्तेदार रमा देवी ने कहा, “लगभग 1,000 परिवारों को फ्लैट मिले हैं, लेकिन 500 से ज्यादा परिवार अब भी बिना छत के हैं। हम यहां दशकों से रहते आ रहे हैं, सड़क पर सामान बेचते और घरेलू काम करते हैं। अब हमें बिना मुआवजे या वैकल्पिक आवास के निकाल दिया गया है।” कई लोगों ने नए मिले फ्लैट्स की हालत को लेकर भी चिंता जताई है।

वजीरपुर में भी एक साथ हुई तोड़ फोड़: जब अशोक विहार सुर्खियों में था, उसी दौरान वजीरपुर में भी अतिक्रमण हटाने का अभियान चल रहा था। यहां भारतीय रेलवे ने पटरी के किनारे बनी सैकड़ों झुग्गियों को हटाया। अधिकारियों ने बच्चों के रेलवे ट्रैक के बहुत करीब खेलने और ट्रेन ड्राइवर के लिए नजरों में बाधा होने जैसी सुरक्षा चिंताओं को वजह बताया। यह अभियान उस इलाके में एक महीने के अंदर दूसरी बड़ी कार्रवाई थी।

सुरक्षा कड़ी थी, पुलिस और दो कंपनियां अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई थी ताकि किसी भी तरह की अफरा-तफरी रोकी जा सके। अधिकारियों ने बताया कि इस कार्रवाई के दौरान करीब 308 अवैध झुग्गियां हटाई गईं।

एक पैटर्न उभरता दिख रहा है: अशोक विहार की तोड़फोड़ सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि दिल्ली भर में चल रही बेदखली की एक बड़ी कार्रवाई का हिस्सा है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे ही अभियान भूमिहीन कैंप, मद्रासी कैंप और हाल ही में पटेल नगर में भी चलाए गए जहां 11 जून को करीब 450 झुग्गियों को ढहा दिया गया। इन कार्रवाइयों को लेकर आवास अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता कह रहे हैं कि ये सब “शहरी विकास” के नाम पर बस्तियों को हटाने की एक तेज होती मुहिम का हिस्सा है।

इस तोड़फोड़ कार्रवाई से सियासत गरमा गई है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर बीजेपी के नेतृत्व वाले DDA पर आरोप लगाया कि उसने “जहां झुग्गी, वहीं मकान” के अपने वादे से मुकर गई है। केजरीवाल ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “बीजेपी आखिर चाहती क्या है, क्या दिल्ली की हर झुग्गी को मिटा देना है? चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने झूठ क्यों बोला?”



आप की दिल्ली इकाई के प्रमुख सौरभ भारद्वाज ने भी इसी तरह की आलोचना करते हुए इसे धोखा और बड़े पैमाने पर बेदखली करार दिया।



वजीरपुर में हो रही तोड़फोड़ के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया, जिससे राजनीतिक विवाद और भड़क गया।



कांग्रेस ने अध्यादेश की मांग की, पुराने उदाहरणों का हवाला दिया: हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, दिल्ली कांग्रेस ने शहर की बीजेपी सरकार से मांग की है कि झुग्गी बस्तियों को तोड़ने की कार्रवाई पर तुरंत रोक लगाने के लिए एक अध्यादेश लाया जाए। पार्टी नेताओं ने 2011 में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा उठाए गए ऐसे ही कदम का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह का फैसला एक मानवीय संकट को टालने के लिए जरूरी है।

दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा, “जैसे 2011 में लाया गया अध्यादेश लाखों लोगों के घरों को बचाया था, वैसे ही मौजूदा बीजेपी सरकार को भी तुरंत एक अध्यादेश लाकर गरीबों को बेघर होने से बचाना चाहिए।” उन्होंने यह बयान गोविंदपुरी में बेघर किए गए परिवारों से मिलने के बाद दिया, जहां करीब 350 घरों पर बुलडोज़र चला था।

यादव ने आगे आरोप लगाया कि बड़े पैमाने भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही की वजह से लंबे समय से रह रहे लोगों को पात्रता सर्वे से बाहर कर दिया गया। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, “जो लोग यहां 30–40 साल से रह रहे हैं, उन्हें जानबूझकर बाहर कर दिया गया। जबकि कोर्ट के आदेश भी उनके पक्ष में थे।” उन्होंने यह भी कहा, “बीजेपी गरीबी खत्म नहीं करना चाहती, वह तो गरीबों को ही शहर से खत्म करना चाहती है।”

2. गुजरात का जामनगर: 7.74 लाख वर्ग फुट सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाया गया; निर्माण की जांच जारी

गुजरात के जामनगर में, अधिकारियों ने 15 जून को बच्चुनगर इलाके में एक बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ अभियान चलाया। इस दौरान उन्होंने करीब 7.74 लाख वर्ग फुट सरकारी जमीन से अवैध कब्जा हटाया। यह जमीन लगभग 193 करोड़ रूपये कीमत की मानी जा रही है। यह काम एक संयुक्त अभियान के तहत जामनगर जिला प्रशासन और पुलिस ने कड़ी सुरक्षा और समन्वय के बीच किया।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार,  तोड़फोड़ की इस कार्रवाई के दौरान, अधिकारियों को एक बड़ा ऐसा निर्माण मिला जो आम नजर से छुपा हुआ था। यह निर्माण करीब 11,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ था और इसका स्वरूप एक धार्मिक स्थल (दरगाह) जैसा था। इसमें संगमरमर की फर्श, कई कमरे, और खास नहाने की सुविधा मौजूद थी। बताया जा रहा है कि यह महंगा निर्माण बिना अनुमति के बनाया गया था, जिसने जिला प्रशासन का तुरंत ध्यान खींचा।

पुलिस अधीक्षक प्रेमसुख डेलू ने बताया कि हालांकि वहां बोर्ड लगे थे जो दान और बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगाते थे, लेकिन इस निर्माण के फंडिंग का स्रोत अभी स्पष्ट नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार डेलू ने कहा, “इस इमारत की प्रकृति और इसकी पहुंच या वित्तीय पारदर्शिता की कमी ने संदेह बढ़ा दिया है। हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या इस संरचना का इस्तेमाल धार्मिक उद्देश्यों के अलावा किसी और गतिविधि के लिए किया जा रहा था।”

स्वामित्व, निर्माण की वैधता और संभावित अवैध गतिविधियों से जुड़ाव का पता लगाने के लिए औपचारिक जांच शुरू कर दी गई है। अधिकारियों ने बताया है कि यह भवन सरकारी जमीन के इस्तेमाल के आधिकारिक रिकॉर्ड में शामिल नहीं था और इसका सार्वजनिक जमीन पर कब्जा करने का कोई कानूनी अनुमति नहीं था।

यह कार्रवाई गुजरात प्रशासन के उस बड़े प्रयास का हिस्सा है, जिसमें वह राज्य की सरकारी जमीन पर हुए अवैध अतिक्रमणों को हटाने की कोशिश कर रहा है। जामनगर जिला कलेक्टरेट ने कहा है कि इस इलाके में सरकारी जमीन के टाइटलों की और समीक्षा जारी है और अगर और उल्लंघन पाए जाते हैं तो और भी तोड़फोड़ की कार्रवाई हो सकती है।

3. दिल्ली का गोविंदपुरी: लू के बीच 300 से ज्यादा झुग्गियां ध्वस्त

11 जून 2025 की सुबह तड़के दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) ने गोविंदपुरी के भूमिहीन कैंप में तोड़फोड़ कार्रवाई शुरू की। यह कैंप दक्षिण-पूर्व दिल्ली में एक पुराना अनधिकृत इलाका है। यह अभियान लगभग सुबह 5 बजे शुरू हुआ, जिससे कई लोग चौंक गए। दोपहर तक, जब तापमान 45°C से ऊपर था और तेज लू चल रही थी, तब सैकड़ों परिवार बेघर हो गए क्योंकि उनके घर जमींदोज कर दिए गए।

DDA ने कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि ज्यादातर ढांचे ‘खाली’ थे: द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, DDA ने दावा किया कि ये तोड़फोड़ केवल सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले 344 झुग्गी-झोपड़ियों के खिलाफ की गई। DDA ने बताया कि 9 जून को लोगों को नोटिस दिए गए थे, जिसमें खाली करने के लिए तीन दिन का समय दिया गया था। DDA ने यह भी कहा कि किसी कोर्ट का स्टे ऑर्डर इस समय लागू नहीं था और कई तोड़े गए मकान ‘खाली’ थे।

हालांकि, वहां की तस्वीरें और लोगों की बातें इन दावों के बिलकुल उलट थीं। जब उनके घर तोड़े जा रहे थे तब कई परिवार अपने सामान बचाने के लिए इधर उधर दौड़ते नजर आए। प्रभावित कई परिवार प्रवासी दिहाड़ी मजदूर हैं, जो सालों से और कुछ तो दशकों से, इस कैंप में रह रहे थे।

AAP ने बीजेपी सरकार की साख पर उठाए सवाल: इस तोड़फोड़ के बाद तुरंत ही राजनीतिक विवाद तेज हो गया। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष की नेता और वरिष्ठ आप नेता अतीशी ने सीएम रेखा गुप्ता पर निशाना साधा और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। X (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा:

“बीजेपी का बुलडोजर आज सुबह 5 बजे से भूमिहीन कैंप में चल रहा है। रेखा गुप्ता- आपने तीन दिन पहले कहा था कि एक भी झुग्गी नहीं तोड़ी जाएगी। तो फिर यहां बुलडोजर क्यों चल रहे हैं?”





पूर्व सीएम अतीशी ने पिछले दिन भूमिहीन कैंप का दौरा किया था। रिपोर्ट के अनुसार, वह वहां रहने वाले लोगों से मिलने गई तब पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया, हालांकि पुलिस ने बाद में इससे इनकार कर दिया।

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इसके जवाब में कहा कि राज्य सरकार कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकती और साथ ही दावा किया कि प्रभावित लोगों को वैकल्पिक आवास भी दिया गया है। हालांकि, यह नहीं बताया गया कि कार्रवाई से पहले वास्तव में कितने परिवारों को राहत दी गई थी।

जब दिल्ली में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने रेड अलर्ट जारी किया तो इसके डिमोलिशन के समय को लेकर भी काफी आलोचना हुई। IMD ने खासकर उन लोगों के लिए खतरा बताया था जिन्हें सही से रहने की जगह नहीं मिल रही और सभी उम्र के लोगों के लिए गर्मी से होने वाली बीमारियों और हीटस्ट्रोक का खतरा जताया था।

4. जंगपुरा, दिल्ली: 50 साल पुराना मद्रासी कैंप गिराया गया, 150 से ज्यादा परिवार बेघर हुए

1 जून 2025 को दक्षिण दिल्ली के जंगपुरा में दशकों पुराना मद्रासी कैंप बस्ती गिरा दी गई। इस बस्ती में तमिल मूल के सैकड़ों लोग पिछले 50 से ज्यादा सालों से रह रहे थे। यह कार्रवाई दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के तहत की गई, जिसमें मानसून से पहले बाढ़ के खतरे को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया था। यह बस्ती बारापुल्ला नाले के किनारे स्थित थी, जिससे जोखिम बढ़ जाता था।

यह बस्ती एक मजबूत कामकाजी वर्ग वाला इलाका बन गई थी, जहां करीब 370 परिवार रहते थे। इनमें से कई लोग अनौपचारिक क्षेत्र और पब्लिक सर्विस से जुड़े थे। लेकिन जब बुलडोजर ने उस इलाके को गिराया तो यह सवाल उठने लगे कि पुनर्वास की प्रक्रिया कितनी कानूनी, उपयुक्त और मानवीय थी और क्या राज्य ने बेघर हुए लोगों के अधिकारों का सम्मान किया या नहीं।

सरकार का दावा बनाम हकीकत:  इस कार्रवाई के तुरंत बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने मीडिया से कहा, “कोर्ट के आदेशों को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। उस कैंप के लोगों को मकान दिए जा चुके हैं और उन्हें शिफ्ट कर दिया गया है।”

हालांकि, आंकड़ों की जांच से सरकार के पुनर्वास के पूरे आश्वासन का विरोधाभास सामने आता है। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य ने दावा किया कि सभी प्रभावित परिवारों को नरेला में EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के फ्लैट दिए गए हैं, लेकिन शुरुआती तौर पर 370 में से सिर्फ 189 परिवारों को ही फ्लैट आवंटित किए गए। बाद में 26 परिवारों को और आवास दिया गया। इसका मतलब है कि कम से कम 155 परिवार यानी कि पूरे परिवार का 40% से ज्यादा अब भी बिना किसी वैकल्पिक घर के बच गए हैं।

ये लोग तो दशकों से यहां रह रहे थे, फिर भी अब उनके घर उजाड़ दिए गए हैं। इससे ये सवाल उठते हैं कि जो नियम बनाए गए हैं, जो कागज मांगे गए हैं, क्या उन्हें सही तरीके से लागू किया गया? और क्या सरकार ने घर तोड़ने से पहले उन्हें नया घर देने का पूरा ध्यान रखा जो सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के आधार से ऐसा होना जरूरी होता है।

इतिहास और सामाजिक पृष्ठभूमी को नजरअंदाज किया गया: मद्रासी कैंप दिल्ली की सबसे पुरानी झुग्गी बस्तियों में से एक थी, जहां ज्यादातर तमिल बोलने वाले दलित और मेहनतकश लोग रहते थे। इनमें से कई लोग 1970 और 1980 के दशक में रोजगार के लिए दिल्ली आए थे। इतने सालों से बसे होने के बावजूद, लोगों का कहना है कि उन्हें पहले से सही जानकारी नहीं दी गई और पुनर्वास की जांच प्रक्रिया गड़बड़ और अपारदर्शी रही। छोटी-छोटी तकनीकी बातों की वजह से सैकड़ों लोग अपात्र घोषित कर दिए गए।

इन कार्रवाइयों में पारदर्शिता, लोगों की भागीदारी और समय पर सुनवाई की कमी ने शहरी गरीबों के आवास के अधिकार को लेकर गंभीर चिंता खड़ी कर दी है- खासकर उस शहर में, जहां झुग्गी-बस्तियां अक्सर सरकार की नाकाफी आवास नीति की खाली जगह भरती हैं।

5. ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश: GNIDA ने 20 से ज्यादा कथित अनधिकृत कॉलोनियों के हटाने की योजना बनाई

ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (GNIDA) ने अपने इलाके में 20 से ज्यादा कथित अनधिकृत कॉलोनियों और अवैध निर्माणों को हटाने के लिए बड़ा अभियान चलाने का ऐलान किया है। यह तोड़ फोड़ अभियान जून के आखिर या जुलाई 2025 की शुरुआत से शुरू हो सकता है। इसे जिला प्रशासन और पुलिस के साथ मिलकर चलाया जाएगा, जिसमें भारी मशीनरी और बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाएंगे।

जहां अधिकारी इस अभियान को "जमीन के इस्तेमाल में अनुशासन और पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी कदम" बता रहे हैं, वहीं स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और आवास अधिकार समूहों ने चिंता जताई है कि इस कार्रवाई में न तो पुनर्वास की कोई गारंटी दी गई है और न ही यह साफ किया गया है कि जिन लोगों पर कार्रवाई हो रही है, वे कथित तौर पर किसी नियम का उल्लंघन कर रहे थे या नहीं।

GNIDA के अतिरिक्त सीईओ सुमित यादव के अनुसार, प्राधिकरण ने हर वार्ड के हिसाब से उन सभी इलाकों की सूची तैयार कर ली है जहां कार्रवाई की जानी है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यादव ने कहा, “लगातार चेतावनियों और नोटिसों के बावजूद अवैध कॉलोनियां फैलती जा रही हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि जिन निर्माणों को बिना आधिकारिक मंजूरी के खड़ा किया गया है, उन्हें हटाने के लिए अर्थमूवर्स का इस्तेमाल किया जाएगा।

जो बस्तियां अब तोड़ी जा रही हैं, उनमें से कई वहां बसाई गई थीं जहां की जमीन निजी कॉलोनी बसाने वालों ने गैरकानूनी तरीके से बेची और खेती की जमीन को रहने-सहने के लिए प्लॉट में बदल दिया। ऐसा उन्होंने खरीदारों को बताए बिना किया कि ये जमीन रहने के लिए मंज़ूर नहीं थी। अब वहां रहने वाले लोग, जिन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लगाई है, बिना किसी स्पष्ट जानकारी के बेदखल किए जा रहे हैं, न कोई वैकल्पिक इंतजाम है और न ही धोखाधड़ी करने वालों की कोई जिम्मेदारी तय हुई है।

GNIDA का कहना है कि वह किसानों से जमीन अधिग्रहित करता है सुनियोजित शहरी विकास योजनाओं के तहत, जो एक अधिसूचित मास्टर प्लान के अनुसार होती हैं। इस प्लान में सड़कें, जरूरी सेवाओं और अलग-अलग तरह के जमीन के इस्तेमाल के लिए ज़ोन तय किए जाते हैं। एचटी की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “प्लॉट्स को मंजूरशुदा रिहायशी, औद्योगिक, संस्थागत और व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आवंटित किया जाता है। लेकिन कुछ कॉलोनी बनाने वाले इसे दरकिनार कर अवैध कॉलोनियां काट रहे हैं और खरीदारों को गुमराह कर रहे हैं।”

अथॉरिटी ने कहा कि यह अभियान शुरू करने का फैसला हाल ही में हुई एक अंतर-विभागीय रणनीति बैठक के बाद लिया गया है। साथ ही यह भी कहा कि सख्त कार्रवाई सिर्फ बसने वालों के खिलाफ ही नहीं, बल्कि उन जमीन माफियाओं और बिचौलियों के खिलाफ भी की जाएगी जो जमीन के अवैध कनवर्जन और बिक्री में शामिल हैं।

विरोध की आशंका को देखते हुए अथॉरिटी ने लोगों से अपील की है कि वे प्लॉट खरीदने से पहले जमीन की स्थिति जरूर जांच लें। इसके लिए GNIDA की वेबसाइट और भूमि अभिलेख विभाग से जमीन के मालिकाना हक और इस्तेमाल की जानकारी ली जा सकती है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि ऐसी बाद में दी जाने वाली सलाह उन कम आय वाले खरीदारों के लिए कोई राहत नहीं हैं, जो अब बेघर होने की कगार पर हैं।

आगामी तोड़फोड़ अभियान भारत के शहरों में दिखने वाले एक बड़े रुझान का हिस्सा है, जहां तेजी से हो रहे विकास और अटकलों पर आधारित रियल एस्टेट बाजार का टकराव अक्सर लोगों के आवास के अधिकारों और व्यापक रूप से फैली अनौपचारिक शहरीकरण की वास्तविकता से होता है।

अदालत के समक्ष तोड़फोड़ से जुड़ी याचिकाएं:

1. भूमि माफिया और अवैध निर्माण से जुड़े मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के तोड़ फोड़ कार्रवाई के आदेश को बरकरार रखा।

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने 17 जून, 2025 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को बरकरार रखा, जिसमें महाराष्ट्र के ठाणे में 17 अवैध रूप से बनाए गए भवनों के तोड़ फोड़ का निर्देश दिया गया था। ये भवन ऐसे बिल्डरों द्वारा बनाए जाने का आरोप है जिनका अंडरवर्ल्ड से संबंध है और जिनके पास जमीन पर कोई अनुमति या स्वामित्व नहीं है।

न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने एक विशेष अवकाश याचिका खारिज कर दी जो एक फ्लैट खरीदार द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वह और अन्य निर्दोष खरीदार (400 से अधिक परिवार) बिना किसी गलती के बेघर हो रहे हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि वह एक वरिष्ठ नागरिक हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री समेत कई राज्य अधिकारियों के समक्ष अपनी शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन उन्हें कोई समाधान नहीं मिला।

हालांकि, न्यायालय ने दखल देने से इनकार कर दिया और यह देखा कि ये इमारतें बिना किसी अनुमति के तीसरे पक्ष की जमीन पर बनाई गई थीं। इसके साथ ही न्यायालय ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस कड़े रुख का समर्थन किया, जिसे उसने “भूमि माफिया” ऑपरेशन कहा, जो राज्य की निष्क्रियता और सांठगांठ के कारण फल-फूल रहा था।

लाइव लॉ के अनुसार न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, “उच्च न्यायालय के सही निर्णय के लिए बधाई… जब इस तरह के बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण अंडरवर्ल्ड के समर्थन से होते हैं, तो कानून का शासन नहीं रह जाता। जब तक इन बेईमान बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती, यह जारी रहेगा - लोग निर्दोष खरीदारों के कंधों का इस्तेमाल करके गोरिल्ला युद्ध लड़ते रहेंगे। इसे रोकना ही होगा।”

न्यायमूर्ति भुयान ने सवाल उठाया कि लोग बिना उचित दस्तावेज के ऐसे प्रोजेक्ट्स में फ्लैट कैसे खरीद सकते हैं और यह सुझाव दिया कि खरीदारों को बिल्डरों के खिलाफ उचित मंचों पर शिकायत दर्ज करनी चाहिए।

ध्यान देने वाली बात यह है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अपने 12 जून के आदेश में याचिकाकर्ता की परेशानी को स्वीकार किया, लेकिन यह भी कहा, “ऐसा निर्माण सरकार और नगरपालिका अधिकारियों की सहमति के बिना संभव नहीं हो सकता था…यह चौंकाने वाली बात है कि ऐसी स्पष्ट गैरकानूनी चीजें चलती रहीं, जिससे आखिरकार निर्दोष फ्लैट खरीदारों को धोखा हुआ।”

हाईकोर्ट ने ठाणे महानगरपालिका (TMC) को यह अधिकार दे दिया था कि वह बिना किसी और आदेश का इंतजार किए अवैध इमारतों को गिराने की कार्रवाई शुरू कर सकती है, क्योंकि मामला काफी गंभीर था और ज़मीन पर अवैध कब्जा तुरंत हटाना ज़रूरी था। हाईकोर्ट में मूल याचिका एक महिला ने दायर की थी, जिसने दावा किया था कि वह उस जमीन की मालिक है जिस पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया गया है और वहां भू माफिया ने प्लानिंग कानूनों का उल्लंघन करते हुए पांच मंज़िला इमारतें खड़ी कर दी हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली महिला को अपनी याचिका वापस लेने और हाईकोर्ट में फिर से जाने की इजाजत दी गई, लेकिन हाईकोर्ट का अंतरिम (अस्थायी) आदेश अब भी लागू है। यह साफ संकेत है कि अदालतें अब अवैध निर्माण और सरकारी मिलीभगत के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट ने दरगाह तोड़ने की कार्रवाई पर 7 दिन के लिए रोक लगाई, ट्रस्ट को हाईकोर्ट के आदेश को फिर से चुनौती देने की इजाजत दी

17 जून को सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए ठाणे में स्थित विवादित दरगाह को गिराने की कार्रवाई पर सात दिन के लिए रोक लगा दी। यह फैसला 'परदेशी बाबा ट्रस्ट' को थोड़ी मगर बेहद जरूरी राहत देता है, जो इस दरगाह की कानूनी मान्यता को लेकर लंबे समय से कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा है। न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की अवकाश पीठ ने यह अंतरिम आदेश उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के हालिया विध्वंस आदेश को चुनौती दी गई थी।

यह मामला ठाणे की एक दरगाह को लेकर है, जो सरकारी रिकॉर्ड और अदालत की कार्यवाही के अनुसार शुरुआत में सिर्फ 160 वर्ग फुट जगह पर बनी थी। लेकिन धीरे-धीरे, बिना नगरपालिका की मंजूरी के इसका दायरा बढ़ता गया और अब यह निर्माण करीब 17,610 वर्ग फुट में फैल गया है। जिस जमीन पर यह दरगाह बनी है, वह निजी जमीन है, और उसी जमीन के असली मालिक ने इस अवैध विस्तार को अदालत में चुनौती दी है। इसी वजह से पिछले करीब 20 सालों से यह मामला अलग-अलग अदालतों में चलता आ रहा है।

अपने हालिया आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रस्ट और ठाणे महानगरपालिका (TMC) दोनों को कड़ी फटकार लगाई। लाइव लॉ के अनुसार, हाईकोर्ट ने ट्रस्ट की हरकतों को “बेईमानी भरी” बताया और नगरपालिका पर “घुमा-फिराकर जवाब देने” का आरोप लगाया। अदालत ने दरगाह के सभी अवैध हिस्सों को गिराने का निर्देश दिया और नाराजगी जताते हुए कहा कि धार्मिक गतिविधियों की आड़ में जमीन पर खुला कब्जा किया गया है। इससे पहले TMC ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि बिना किसी प्लानिंग मंजूरी के निर्माण हुआ है और पहले की गई तोड़फोड़ के बाद भी कुछ हिस्सों को दोबारा बना दिया गया था।

परदेशी बाबा ट्रस्ट ने आदेश को दी चुनौती, खारिज सिविल केस का हवाला दिया: परदेशी बाबा ट्रस्ट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम तथ्य पर ध्यान नहीं दिया यानी जो अप्रैल 2025 में ट्रस्ट से जुड़ा एक सिविल मुकदमा खारिज हो चुका था। अहमदी के अनुसार, ट्रस्ट ने अपनी दलीलों में इस बात का जिक्र किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने न तो इस पर कोई टिप्पणी की और न ही इसके असर को तोड़ फोड़ आदेश में शामिल किया। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने इस बड़ी बात को ध्यान में नहीं रखा, जिससे तोड़फोड़ के आदेश की निष्पक्षता पर बड़ा असर पड़ा।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अहमदी ने कथित अतिक्रमण की विस्तार को भी चुनौती दी। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने गलती से पूरे 17,610 वर्ग फुट को अवैध निर्माण मान लिया, जबकि असल में विवाद सिर्फ 3,600 वर्ग फुट का था। उन्होंने जमीन मालिक पर बिना अनुमति वाले इलाके की सीमा बढ़ा-चढ़ा कर बताने का आरोप भी लगाया और तर्क दिया कि तोड़फोड़ का आदेश रिट पिटीशन की सीमा से कहीं ज्यादा था।
दूसरी ओर, निजी जमीन मालिक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दिवान ने हाईकोर्ट के फैसलों का पूरी तरीके से बचाव किया। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट ने धर्म के नाम पर जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से जमीन हड़पने का काम किया है और इसलिए हाईकोर्ट की टिप्पणियां सही थीं। उन्होंने नगरपालिका के निरीक्षण रिपोर्ट और तस्वीर वाली सबूतों की तरफ इशारा किया, जिनसे पता चलता है कि अवैध हिस्से न सिर्फ बिना मंजूरी के बनाए गए थे, बल्कि कुछ हिस्सों को पहले के आदेशों की अवहेलना करते हुए फिर से बनाया गया था। दिवान ने ट्रस्ट पर कार्रवाई में देरी करने और अतिक्रमण को छिपाने के लिए कानूनी चालें चलने का भी आरोप लगाया।

सुप्रीम कोर्ट ने अनदेखी की निंदा की और थोड़ी राहत दी: दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने प्रक्रिया में अनियमितताओं पर चिंता जताई, खासकर ट्रस्ट के उस दावे पर कि हाईकोर्ट ने सिविल मुकदमे के खारिज होने को ध्यान में नहीं रखा। न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने इस अनदेखी को “शर्मनाक” बताया और कहा कि अगर हाईकोर्ट को सिविल मुकदमे के नतीजे की पूरी जानकारी होती, तो उसका फैसला अलग हो सकता था।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार बेंच ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा, “हम उन्हें अनुमति देने का प्रस्ताव करते हैं कि वे पुनर्विचार याचिका दाखिल करें, क्योंकि ऐसा लगता है कि हाईकोर्ट ने मुकदमे के निपटारे के तथ्य को नजरअंदाज कर दिया।”

इसके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट को बॉम्बे हाईकोर्ट में रिकॉल (पुनर्विचार) अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी और सात दिनों के लिए विध्वंस की कार्रवाई पर रोक लगा दी, ताकि यह प्रक्रिया पूरी हो सके। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह निर्माण की वैधता पर कोई फैसला नहीं दे रहा है, बल्कि केवल प्रक्रिया संबंधी आधार पर हस्तक्षेप कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर हाईकोर्ट रिकॉल अर्जी सुनने से इनकार करता है, तो ट्रस्ट दोबारा सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है। कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि इस अंतरिम अवधि में आगे कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी। संरचना की कानूनी स्थिति, कितनी निर्माण अवैध है और यदि कोई पूर्व स्वीकृति मिली थी तो उसकी वैधता-इन सभी मुद्दों पर अभी अंतिम निर्णय होना बाकी है।

3. बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्रकार पर SRA प्रोजेक्ट के खिलाफ PIL दायर करने पर 1 लाख रूपये का जुर्माना लगाया

17 जून 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता अंकुश जायसवाल पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। खुद को एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार बताने वाले जायसवाल ने मुंबई के कांदिवली (ईस्ट) इलाके में एक स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी (SRA) प्रोजेक्ट को गिराने की मांग करते हुए जनहित याचिका (PIL) दायर की थी। हाईकोर्ट ने इस याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग बताते हुए खारिज कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप वी. मर्ने की खंडपीठ ने पाया कि यह जनहित याचिका (PIL) किसी भी वास्तविक जनहित पर आधारित नहीं थी और रिस ज्यूडिकेटा (res judicata) के सिद्धांत के तहत निषिद्ध थी, क्योंकि इसी मुद्दे पर इसी याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई एक और याचिका पहले ही सितंबर 2022 में एक अन्य पीठ द्वारा खारिज की जा चुकी थी।

कुल छह विंग वाले विवादित इमारत में बांदोंगरी एकता को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड का हिस्सा है, जिसे SRA स्कीम के तहत बनाया गया है। जायसवाल ने आरोप लगाया कि निर्माण के दौरान कई नियमों का उल्लंघन हुआ, जैसे नेशनल हाइवे से तय दूरी नहीं रखना और निर्माण शुरू करने से पहले जरूरी एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) न लेना।

हालांकि, लाइव लॉ के अनुसार बेंच ने कुछ अहम बातों को गंभीरता से लिया:

● याचिकाकर्ता ने कोर्ट का रुख उस प्रोजेक्ट के पूरे होने के 22 साल बाद किया,
● वह खुद उसी SRA बिल्डिंग में रहता है जिसे उसने “जान के लिए खतरा” बताया,
● और अगर कोर्ट इस तरह की याचिका को स्वीकार करता, तो वहां रह रहे पुनर्वासित झुग्गी वाले लोगों को बेघर होना पड़ता।


कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह PIL पहले से पुनर्वास किए गए लोगों के लिए रहन-सहन के संवैधानिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या जायसवाल "जनहित" के नाम पर वहां रहने वालों को फिर से सड़क पर लाना चाहते हैं।

लाइव लॉ के अनुसार, याचिका खारिज करते हुए बेंच ने कहा:

“यह याचिका न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसमें कोई जनहित नहीं है और यह रिस ज्युडिकेटा के नियम के तहत निषिद्ध है। कोर्ट का काम नहीं है कि दशकों पहले पूरा हुआ पुनर्वास उलटफेर करे, खासकर तब जब यह याचिकाकर्ता खुद उसी इमारत में रहता हो जिस पर वह हमला कर रहा है।”

कोर्ट ने निर्देश दिया कि 1 लाख रुपये का जुर्माना, जो याचिकाकर्ता ने अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए पहले जमा कराया था, वहीं से वसूल किया जाए और यह राशि महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (MSLSA) को भेजी जाए।

4. तेलंगाना हाईकोर्ट ने पेद्दापल्ली सरकारी अस्पताल के पास स्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के तोड़ फोड़ पर अंतरिम रोक लगाई

17 जून 2025 को, तेलंगाना हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश में पेद्दापल्ली सरकारी अस्पताल के पास स्थित एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के प्रस्तावित तोड़ फोड़ को रोकने को कहा है। यह राहत याचिकाकर्ता किशन प्रकाश झावर को मिली थी, जिन्होंने राज्य अधिकारियों द्वारा जारी किए गए खाली करने के नोटिस को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की थी।

न्यायमूर्ति के. सरथ ने यह अंतरिम रोक तब लगाई जब सुनवाई के दौरान तर्क प्रस्तुत किए गए कि तोड़ फोड़ मनमाना, राजनीतिक रुप से प्रेरित और कानूनी तौर पर आधारहीन है।

मामले की पृष्ठभूमि:

    • याचिकाकर्ता ने 2007 में मेडिकल विभाग के साथ बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) समझौता किया था, जिसके तहत उसे 25 वर्षों के लिए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स संचालित करने का अधिकार मिला।
    • 22 मई 2025 को अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को परिसर खाली करने का नोटिस जारी किया।
    • याचिकाकर्ता के वकील दीपक मिश्रा ने तर्क दिया कि यह नोटिस स्थानीय विधायक के मौखिक निर्देश पर जारी किया गया था, जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है।
    • उन्होंने यह भी बताया कि अस्पताल की जर्जर बिल्डिंग के विध्वंस और पुनर्निर्माण के लिए जुलाई 2024 में अलग कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई थी, जो शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से अलग है।

याचिकाकर्ता की दलीलें :

• नोटिस में कानूनी अधिकार की कमी थी और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को तोड़ने के लिए कोई औपचारिक निर्णय या सरकारी आदेश का हवाला नहीं दिया गया था।
• शॉपिंग कॉम्प्लेक्स एक स्वतंत्र संरचना थी, पुनर्निर्माण के लिए निर्धारित पुराने अस्पताल भवन का हिस्सा नहीं थी।
• यह कार्रवाई मनमानी थी, राजनीतिक दबाव से प्रेरित थी और बीओटी पट्टे के तहत संविदात्मक अधिकारों का उल्लंघन करती थी।

कोर्ट का आदेश: जस्टिस के. सरथ ने देखा कि पहली नजर में याचिकाकर्ता का मामला ठीक है, इसलिए अगली सुनवाई तक तोड़ने की कार्रवाई पर रोक लगा दी।

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अस्पताल के पुनर्विकास के नाम पर किसी वैध रूप से पट्टे पर ली गई स्वतंत्र संरचना को ध्वस्त करना उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना संभव नहीं है और राजनीतिक रूप से प्रेरित मौखिक निर्देश विधिक अनुबंधों पर प्रभाव नहीं डाल सकते।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बटला हाउस में तोड़ फोड़ पर अंतरिम राहत दी

16 जून 2025 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दक्षिण-पूर्व दिल्ली के ओखला स्थित बटला हाउस इलाके में छह संपत्तियों के तोड़ फोड़ पर अंतरिम राहत दी। यह राहत उन याचिकाओं पर दी गई, जिन्हें स्थानीय लोगों ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा जारी नोटिसों की वैधता को चुनौती देते हुए दायर किया था।

न्यायमूर्ति तेजस कारिया ने अगली सुनवाई की तारीख तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया और दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। यह मामला 10 जुलाई 2025 को रोस्टर पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

विवाद की पृष्ठभूमि:  याचिकाकर्ताओं- हिना परवीन, जिनत कौसर, रुखसाना बेगम, निहाल फातिमा, सुफ़ियान अहमद, साजिद फखर एवं अन्य - ने मई 2025 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) से तोड़ फोड़ की नोटिस मिलने के बाद अदालत का रुख किया। ये नोटिस कथित रूप से खसरा नंबर 279 में मौजूद संपत्तियों के लिए भेजे गए थे।

उनके अहम तर्कों में शामिल थे:

सीमांकन की कमी: याचिकाकर्ताओं का कहना था कि खसरा नंबर 279 में स्थित सभी संपत्तियां अवैध नहीं हैं और कुछ संपत्तियां इसकी सीमा से बाहर भी आती हैं। DDA ने न तो स्पष्ट सीमांकन किया और न ही नोटिसों में प्रत्येक संपत्ति का अलग से मूल्यांकन पेश किया।

PM-UDAY स्कीम कवरेज: कई याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनकी संपत्तियां PM-UDAY योजना के तहत हैं, जो दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों को वैध बनाने का एक फ्रेमवर्क प्रदान करती है।

•  ऐतिहासिक निवास: निहाल फातिमा जैसी कुछ याचिकाकर्ताओं ने 1980-82 से इस इलाके में रहने का दावा किया और कहा कि ये संरचनाएं बिल्डरों से खरीदी गई थीं, जिनके सपोर्ट में दस्तावेज मौजूद हैं-हालांकि इनमें से कुछ दस्तावेज उर्दू और फारसी में थे, जिन्हें बाद में अनुवाद किया गया।

DDA का पक्ष और सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ: DDA के स्टैंडिंग काउंसल ने इस याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि सीमांकन रिपोर्ट पहले ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश की जा चुकी है। इसी के आधार पर 4 जून 2025 को तोड़ फोड़ का आदेश जारी किया गया था।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के 7 मई के पूर्व के आदेश का उल्लेख किया जिसमें स्पष्ट किया गया था कि लोगों के लिए उचित कानूनी उपाय तलाशने की स्वतंत्रता है, जिससे उच्च न्यायालय को वर्तमान याचिकाओं पर सुनवाई करने का अधिकार प्राप्त होता है।

न्यायालय ने इशरत जहां मामले में 4 जून के आदेश का भी उल्लेख किया, जिसमें DDA को सीमांकन और प्रस्तावित कार्रवाई पर डिटेल हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया था, जिसकी समयसीमा तीन सप्ताह थी।

Related

यूपी : लक्कड़ शाह बाबा की मजार पर बुलडोजर एक्शन, 16वीं सदी से लगता रहा मेला

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाई, कहा- कोर्ट की इजाज़त के बिना नहीं होगी तोड़फोड़

बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने विधवा का घर ढहाया

बाकी ख़बरें