हमें पाकिस्तान भेजने वाले खुद वहां जाएं, ये मुल्क हमारा है: जमीयत

Written by Navnish Kumar | Published on: May 30, 2022
देवबंद में जमीयत उलेमा ए हिंद के दो दिनी जलसे में रविवार को काशी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा ईदगाह और यूनिफॉर्म सिविल कोड़ समेत कई प्रस्ताव पारित हुए।


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जमीयत अध्यक्ष ने देश के वर्तमान हालात पर चिंता जताई और देश के मुसलमानों से हिंदी को अपनाने की अपील करते हुए चेतावनी भरे लहजे में कहा कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह मस्जिद जैसे संवेदनशील प्रकरण, देश की एकता, अखंडता, शांति और भाइचारे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। साथ ही जमीयत ने अपने प्रस्ताव में 1991 के वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को संविधान का उल्लंघन बताया गया है। संगठन ने कहा कि इतिहास सुधारने के नाम पर मस्जिदों और इबादतगाहों में विवाद खड़ा किया जा रहा है। मदनी यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि बात बात में हमें पाकिस्तान चले जाने की बात करने वाले अच्छी तरह समझ लें कि हम कहीं जाने वाले नहीं है। क्योंकि ये देश हमारा है और हम यहां के बाशिंदे हैं।

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमें अल्पसंख्यक माना जाता है, लेकिन हम दूसरी बड़ी बहुसंख्यक आबादी हैं और नफरत फैलाने वालों के इतर यदि हम अपने सोच वालों को मिलाएं तो हम सबसे बड़ी आबादी हैं। क्योंकि देश में नफरत वाले लोग बहुत कम हैं। जबकि राष्ट्र निर्माण और देश को मजबूत करने वाले लोग ज्यादा हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अगर वह एकता अखंडता की बात करते हैं तो उनका राष्ट्रप्रेम है और अगर हम देश बचाने की बात करते हैं तो ढोंग बताया जाता है। लेकिन मैं कहता हूं इस देश के लिए मेरा खून बहेगा तो वह मेरे लिए सौभाग्य होगा। कहा कि अगर तुम्हें हमारा धर्म, हमारा खान पान, पहनावा पसंद नहीं है तुम कहीं और चले जाओ। हमें मौका मिला था पाकिस्तान जाने का लेकिन हम नहीं गए थे लेकिन जो अब हमें पाकिस्तान भेजना चाहते हैं वह खुद वहां चले जाएं। यह देश हमारा है, जो हमें करना होगा हम करेंगे। लेकिन कोई समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि हालात से परेशान होने की जरूरत नहीं है बल्कि हौसला और हिम्मत से काम लेने की जरूरत है। 

मदनी ने देश में प्रेम सद्भावना और एकता अखंडता को मजबूत करने के लिए सभी वर्गो और धर्मों के साथ मिलकर भाईचारे के साथ काम करने की जरूरत पर भी जोर दिया। महमूद मदनी ने जमीयत के कार्यों को गिनाते हुए कहा कि पूरे देश में जमीयत अकेला ऐसा संगठन है जिसने कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद दो टूक अंदाज में उसका विरोध किया था और जिस पर हम अब भी कायम है। उन्होंने कहा कि हर चीज से समझौता लेकिन हम अपनी आईडियोलॉजी से समझौता नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि देवबंद में बनने वाले स्काउट गाइड सेंटर पर मीडिया ने सवाल खड़े किए और उसे आतंकवाद का अड्डा बता दिया गया। मदनी ने गाजियाबाद में जमीयत की कोचिंग के लिए बन रही बिल्डिंग को बिना नोटिस सील किए जाने को प्रशासन की एकतरफा कार्रवाई बताया। सम्मेलन के अंतिम सत्र में पारित प्रस्ताव के जरिए जमीयत ने सरकार से कहा कि वह सियासी दलों और धार्मिक संगठनों को अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ने से रोकें और संविधान के पालन पर जोर दें।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रविवार को सम्मेलन के अंतिम सत्र में 3 प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए। इन प्रस्तावों में सरकार से मांग की गई है कि समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड़) लागू न की जाए। यह मुसलमानों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने जैसा होगा। प्रस्ताव में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 25 में देश के नागरिकों को अपनी पसंद के धर्म को अपनाने, उसका पालन एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता बुनियादी अधिकारों के रूप में प्राप्त है। प्रस्ताव में मुसलमानों से भी अपील की गई कि वे शरीयत के निर्देशों का सख्ती से पालन करें। इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव में कहा गया कि शादी, तलाक, खुला, विरासत के मामले, नमाज, रोजा, हज की तरह धार्मिक आदेशों का हिस्सा हैं जो कुरान और हदीस से मिले हैं। उसमें दखल इस्लाम में दखल होगा जो असंवैधानिक है।

जमीयत ने देश के मुसलमानों से पुरजोर अपील की है कि भारत के मुसलमान हिंदी को अपनाएं और अंग्रेजी भाषा से परहेज करें। जमीयत ने मुसलमानों से यह भी कहा कि हिंदी की तरह बंगाली, तमिल, मलयालम, पंजाबी, गुजराती, असमिया, कन्नड आदि सभी भारतीय भाषाएं हैं। सभी को मुसलमान दिल से इस्तेमाल करें। इस संबंध में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि शेखुल इस्लाम मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने जमीयत की हैदराबाद में आयोजित 17वीं महासभा में हिंदी के बारे में कहा था कि यह देश की अपनी भाषा है। यह अंग्रेजी की तरह सात समुंदर पार कर भारत नहीं आई है। इसे मुसलमान अपनाएं और दूसरों को भी प्रोत्साहित करें। 

अंत में वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि आज देश जिस दौर से गुजर रहा है उसमें मुसलमानों को डर, निराशा, अलग-थलग पड़ने और उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिशें हो रही है। जिससे यह आशंका पैदा होती है कि यदि मुस्लिम किसी वजह से संयम और धैर्य छोड़ते हुए कोई अनुचित प्रतिक्रिया कर देते हैं तो उससे सांप्रदायिक ताकतों का हित सधेगा और फांसीवादी अपने लक्ष्यों की पूर्ति में कामयाब हो जायेंगे। इसलिए मुसलमान किसी भी प्रतिक्रिया से बचें। यही नहीं, तकरीरों में इस बात का भरोसा दिलाया गया कि जमीयत उनके हितों और मान-सम्मान की सुरक्षा के लिए सदैव उनके साथ खडी है। न वे डरें, न संयम छोड़ें। बल्कि, पूरे मन से अपने कामकाज में लगे रह कर देश के विकास में अपना भरपूर योगदान दें।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव नियाज अहमद फारूकी ने कहा, “हम लोग जिन विवादित मुद्दों पर लड़ रहे हैं ऐसे हालात में हम अभी बुद्धिमानी से सोच भी नहीं पा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड को छेड़ना देश के हित में नहीं है।” जमीयत महासचिव ने कहा कि जब आप ये सुनिश्चित कर सकें कि आप किसी के भी साथ नाइंसाफी नहीं करेंगे तब आप यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में सोचें। अभी तो ऐसा लगता है कि एक समुदाय विशेष को सपोर्ट किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विवादित मुद्दों को छेड़ने की जगह ऐसे मुद्दे लाए जाएं जिनसे देश का विकास हो। उधर, एआईयूडीएफ अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि अब खामोश बैठकर तमाशा देखने का वक्त नहीं है। उन्होंने कहा कि आज जहां ये सरकार बैठी है कल हम भी वहां बैठ सकते हैं, ये सिर्फ अल्लाह की दो उंगलियों के बीच में है। कहा कि मुस्लिमों को उनके अधिकारों से वंचित रखने की कोशिश की जा रही है जो असंवैधानिक है।

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