जमीयत सम्मेलन में बोले मौलाना महमूद मदनी: 1000 सद्भावना संसद करके देंगे इस्लामोफोबिया का जवाब

Written by Navnish Kumar | Published on: May 28, 2022
हालात खराब हैं लेकिन मायूस नहीं होना है, बोले आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता, प्यार से नफरत को जीतेंगे



देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जलसे में मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस्लामोफोबिया के खिलाफ आवाज उठाई। सरकार को घेरा और देश में सद्भाव का संदेश देने के लिए धर्म संसद की तर्ज पर 1000 सद्भावना संसद के आयोजन का ऐलान किया। जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हालात खराब हैं लेकिन मायूस नहीं होना है। उन्होंने कहा कि आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता है। प्यार से नफरत को जीतेंगे। खास है कि मदनी, देश में विभिन्न धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ रहे विवाद, कॉमन सिविल कोड और मुल्क के वर्तमान हालात को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा देवबंद ईदगाह मैदान में बुलाए गए दो दिनी इजलास के शुभारंभ पर बोल रहे थे। अधिवेशन में देशभर के दिग्गज उलेमा और गवर्निंग बॉडी के सदस्य मुस्लिमों की देशव्यापी समस्याओं पर मंथन के लिए इकट्ठा हुए हैं।

अधिवेशन के पहले दिन जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सांसद मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमें मायूस होने की जरूरत नहीं है, देश हमारा है और हमारे बुजुर्गों ने इस देश को आजाद कराने में मुख्य भूमिका निभाई है। देश में नफरत का कारोबार करने वालों की दुकानें ज्यादा दिन चलने वाली नहीं हैं, आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता है। प्यार से ही नफरत को हराया जा सकता है। हमें उकसाया जा रहा है। हमारे ही देश में हमें अजनबी बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि बेइज्जत होकर खामोश रहना कोई मुसलमान से सीखे। देश में नफरत का बाजार सजाया जा रहा है। ये सब्र का इम्तिहान है। उन्होंने कहा कि सरकारें आने-जाने वाली चीज है, लेकिन देश को जोड़ने और मजबूत करने वाले ही इस देश की ताकत है। महमूद मदनी ने इशारों-इशारों में सरकार और आरएसएस पर भी हमला बोला। कहा कि एकता और अखंड भारत की बात करने वाले वर्ग विशेष को परेशान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें सबसे ज्यादा प्यार इस देश की शांति से है। सभी लोग राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र को मजबूत करने की बात करते हैं लेकिन नफरत के मुद्दे पर खामोश रहते हैं।

उन्होंने कहा कि देश की एकता और अखंडता व अखंड भारत बनाने की बात करने वालों ने आज देश के मुसलमानों का रास्ते पर चलना मुश्किल कर दिया है, यह किस अखंडता और अखंड भारत की बात करते हैं? यह नफरती लोग देश के साथ दुश्मनी कर रहे हैं और देश के अमन शांति और यहां की गंगा जमुनी तहजीब व एकता अखंडता को तबाह बर्बाद कर रहे हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि हम धार्मिक स्थलों और इबादतगाहों के संरक्षण के लिए प्रस्ताव लाएंगे और प्रस्ताव लाकर बात रखेंगे और फिर पीछे नहीं हटेंगे। देश को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिए एक नए हौसले और नए खून की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम वह नहीं करेंगे जो वह चाहते हैं, हम वह करेंगे जो समय की जरूरत होगी, हम अपनी प्लानिंग से चलेंगे आपकी प्लानिंग पर हम नहीं चलेंगे।

जलसे के पहले दिन इस्लामोफोबिया के खिलाफ लामबंद होने पर भी सहमति बनी तो मुस्लिम धर्मगुरुओं ने सरकार को भी घेरा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सकारात्मक संदेश देने के लिए धर्म संसद की तर्ज पर 1000 जगह सद्भावना संसद के आयोजन का ऐलान किया। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख महमूद असद मदनी ने कहा कि बेइज्जत होकर खामोश हो जाना कोई मुसलमानों से सीखे। हम तकलीफ बर्दाश्त कर लेंगे लेकिन देश का नाम खराब नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि अगर जमीयत उलेमा शांति को बढ़ावा देने और दर्द, नफरत सहन करने का फैसला करते हैं तो ये हमारी कमजोरी नहीं, ताकत है और होगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मदनी ने वर्तमान हालात को लेकर शायरी के साथ अपने संबोधन की शुरुआत की और इस दौरान वे भावुक भी हो गए। उन्होंने कहा कि हमें हमारे ही देश में अजनबी बना दिया गया। महमूद असद मदनी ने अखंड भारत की बात पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि किस अखंड भारत की बात करते हैं? मुसलमानो के लिए आज राह चलना मुश्किल कर दिया है। ये सब्र का इम्तिहान है। फिर चेतावनी भरे लहजे में कहा कि, इम्तिहान हमारे सब्र का है लेकिन इसे कमजोरी ना समझें, जरूरत पड़ी तो फांसी चढ़ने से भी पीछे नहीं हटेंगे लेकिन वतन पर आंच नहीं आने देंगे।

जमीयत उलेमा को अमन और शांति का संदेशवाहक बताते हुए मौलाना महमूद बोले कि अगर जमीयत उलेमा ये फैसला लेती है कि जुल्म को बर्दाश्त करेंगे, दुख सहेंगे लेकिन मुल्क पर आंच नहीं आने देंगे तो यह फैसला हम किसी कमजोरी की वजह से नहीं बल्कि अपनी ताकत की वजह से लेंगे। इससे पहले, इस्लामोफोबिया को लेकर प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें इस्लामोफोबिया और मुस्लिमों के खिलाफ उकसावे की बढ़ती घटनाओं का जिक्र किया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि 'इस्लामोफोबिया' सिर्फ धर्म के नाम पर शत्रुता नहीं, इस्लाम के खिलाफ भय और नफरत को दिल और दिमाग पर हावी करने की मुहिम है। ये मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ एक प्रयास है। इसके कारण आज देश को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक अतिवाद का सामना करना पड़ रहा है। जमीयत की ओर से आरोप लगाया गया कि देश पहले कभी इतना प्रभावित नहीं हुआ था जितना अब हो रहा है। 

आगे कहा कि आज देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में आ गई है जो सदियों पुरानी भाईचारे की पहचान को बदल देना चाहते हैं। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर नाम लिए बगैर हमला बोलते हुए जमीयत ने कहा है कि उनके लिए हमारी साझी विरासत और सामाजिक मूल्यों का कोई महत्व नहीं है। उनको बस अपनी सत्ता ही प्यारी है। सम्मेलन के मंच से देश में चल रहे वर्तमान विवादों के मसलों जैसे ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर भी बातें हुईं लेकिन साफ किया गया कि इन महत्वपूर्ण मामलों पर कल यानी सम्मेलन के दूसरे दिन निर्णय होगा। कहा- इन मामलो पर अभी मुस्लिम विचारकों के विचार आना बाकी हैं। 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे मौलाना कारी उस्मान को याद करते हुए मौलाना महमूद मदनी ने पढ़ा 'जो घर को कर गए खाली वो मेहमां याद आते हैं' इतना पढ़ने के बाद उनका गला भर आया और बोले कि हम लोग यानी 'मुसलमान' जिन मुश्किल हालातों से गुजर रहे हैं जुल्म करने वाले उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते। उन्होंने आह्वान किया कि हालात भले मुश्किल हों लेकिन मायूस नहीं होना है। साफ शब्दों में कहा कि हम सब हालातों से समझौता कर सकते हैं लेकिन देश से नहीं कर सकते, यह बात सभी को समझ लेनी चाहिए। यह भी कहा कि हम कमजोर लोग हैं लेकिन कमजोरी का यह मतलब नहीं है कि हमें दबाया जाए।

उकसाने वालों के खिलाफ कानून बने
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जलसे में धर्मगुरुओं ने कहा कि 2017 में प्रकाशित लॉ कमीशन की 267 वीं रिपोर्ट में हिंसा के लिए उकसाने वालों के लिए कानून बनाने की सिफारिश की गई थी। इस कानून में सजा दिलाने का प्रावधान हो और सभी कमजोर वर्गों के लिए, खासकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के प्रयासों पर रोक लगाई जाए। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने लॉ कमीशन की इस सिफारिश पर तुरंत कदम उठाने को जरूरी बताया है। यही नहीं, धर्म गुरुओं ने कहा कि मानव की गरिमा का स्पष्ट सम्मान किया जाना चाहिए। सभी धर्म, जाति और कौम के बीच आपसी सद्भाव, सहनशीलता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संदेश देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रायोजित 'इस्लामोफोबिया की रोकथाम का अंतरराष्ट्रीय दिवस' हर साल 14 मार्च को मनाया जाए। हर प्रकार के नस्लवाद और धार्मिक आधार पर भेदभाव को मिटाने के लिए साझा संकल्प लिया जाए।

यही नहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने ताजा हालात को गंभीर बताते हुए हर स्तर पर प्रयास करने की जरूरत बताई और स्थिति से निपटने के लिए अलग विभाग बनाने का भी ऐलान किया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि हमने स्थिति से निपटने के लिए 'जस्टिस एंड एम्पावरमेंट इनीशिएटिव फॉर इंडियन मुस्लिम' नाम से विभाग बनाया है जिसका उद्देश्य नाइंसाफी और उत्पीड़न को रोकने, शांति और न्याय की रणनीति विकसित करना है। 

मौलाना महमूद मदनी ने मंच से एक और शेर सुनाते हुए कहा-
मोहब्बत के चिरागों को जो आंधी से डराते हैं, उन्हें जाकर बता देना हम जुगनू बनाते हैं,
ये दुनिया दो किनारों को कभी मिलने नहीं देती, चलो दोनों किसी दरिया पे पुल बनाते हैं। 


महमूद मदनी ने मीडिया पर भी हमला बोला। कहा मीडिया में भी मुकाबले का दौर चल रहा है, जिससे देश में नफरत की खाई बढ़ रही है। कहा कि फिलहाल नफरत का जो माहौल बन रहा है। इस नफरत को खत्म करने की जिम्मेदारी सरकार की और उससे कहीं ज्यादा मीडिया की है। हालांकि जमीयत वाले इस जिम्मेदारी को पहले से निभा रहे हैं और आगे भी निभाते रहेंगे।

वहीं दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम ने कहा कि देश एक गुलदस्ते की मानिंद हैं, जिसमें हर धर्म और वर्ग के लोग प्यार-मोहब्बत के साथ रहते हैं। यही एकता और भाईचारा इस मुल्क को हिंदुस्तान बनाता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद पश्चिम बंगाल अध्यक्ष और ममता सरकार में मंत्री मौलाना सिद्दीकउल्ला चौधरी ने जमीयत के इतिहास और उसके उद्देश्य पर रोशनी डालते हुए कहा कि मुल्क को बचाने में जमीयत ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं। कहा कि जमीयत के साथ मिलकर हिंदुस्तान के संविधान को बचाने का काम करें। शायर नवाज देवबंदी ने कहा कि लोगों के बीच मोहब्बत का पैगाम पहुंचाने की जरूरत है। आज जरूरत है कि ये पैगाम पहुंचाया जाए कि लोगों को मंदिर और मस्जिद के नाम पर लड़ने की जरूरत नहीं है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना मूसा कासमी और मौलाना फुरकान असदी ने कहा है कि इस समय देश में जिस तरह से मुस्लिमों के सामने तमाम धार्मिक और राजनीतिक संकट खड़े हुए हैं। कहा कि काशी-मथुरा के मुद्दे पर हम अपना स्टैंड पहले ही साफ कर चुके हैं कि उसे सड़क का मुद्दा न बनाया जाए, लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक मुस्लिम धार्मिक स्थलों को टारगेट किया जा रहा है उसे देखते हुए जमीयत इस पर एक प्रस्ताव लेकर आएगी।

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