झारखंड में नक्सलियों की आड़ में आदिवासियों पर पुलिसिया कहर, CM के संज्ञान के बावजूद एक FIR नहीं

Written by Navnish Kumar | Published on: March 29, 2022
झारखंड में नक्सल विरोधी अभियान की आड़ में दलित आदिवासी युवकों पर पुलिसिया उत्पीड़न कहर बनकर टूट रहा है। झारखंड के गिरिडीह जिले के आदिवासी युवक भगवान दास किस्कू पर पुलिसिया अत्याचार का मामला सुर्खियों में था ही, कि नया मामला सामने आ गया। भगवान दास किस्कू विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन से जुड़े थे। वे पारसनाथ धर्मगढ़ रक्षा समिति, शहीद सुंदर मरांडी स्मारक समिति व झारखंड जन संघर्ष मोर्चा से भी जुड़े थे। वे लगातार आदिवासियों के दमन और विस्थापन के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। वे कई फैक्ट फाइंडिंग टीम के हिस्से थे।



विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के झारखंड संयोजक अधिवक्ता शैलेन्द्र सिन्हा बताते हैं कि नक्सलियों की आड़ में आदिवासी युवकों का उत्पीड़न चरम पर है। कहा कि भगवान दास व उसके दो साथियों के साथ 4 दिनों तक अवैध हिरासत में रखने के बाद छोड़ा। ताजा मामला झारखंड के लातेहार जिले का है जहां दलित आदिवासी युवक अनिल कुमार पर नक्सल विरोधी अभियान की आड़ में पुलिसिया कहर बरपा है। थाने में जमकर प्रताड़नाएं दी गई। यही नहीं, सीएम के संज्ञान लेने के एक महीने बाद तक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। थककर अनिल सिंह ने (एससी-एसटी) कोर्ट की शरण ली है। 

एक महीने पहले, झारखंड के लातेहार जिले के कुकू गांव के रहने वाले 42 वर्षीय आदिवासी युवक अनिल सिंह को पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर पीटा व 3 दिन तक कई तरह से यातनाएं दी थी। उन्होंने युवक पर माओवादी लिंक होने का आरोप लगाया था। पुलिस की मार से अनिल गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस पर दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर, ग्रामीण लगातार गारू थाने के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन एक माह से ऊपर हो गया, रिपोर्ट नही लिखी गई है। ग्रामीण, आदिवासियों के खिलाफ हिंसा के पैटर्न व माओवादी गतिविधियों के संदेह पर पुलिस द्वारा व्यक्तियों को निशाना बनाने की दोहराव वाली घटनाओं को रोके जाने की भी मांग कर रहे हैं।

23 फ़रवरी को गारू थाना प्रभारी व अन्य 2 पुलिसकर्मियों द्वारा थाने में आदिवासी अनिल सिंह (कुकू ग्राम, बरवाडीह प्रखंड, लातेहार, झारखंड) की बेरहमी से पिटाई की गई थी। उसे 3 दिनों तक गैरकानूनी तरीके से थाने में रखा गया। उनके ऊपर नक्सलियों को मदद करने का आरोप लगाया गया था। अनिल को 23 फ़रवरी की रात को 12 बजे गारू पुलिस उसके घर से उठा के थाने ले गई थी।
 
आरोप है कि थाना प्रभारी व अन्य 2 पुलिसकर्मियों ने लाठी से बेरहमी से पिटाई की। न केवल बेरहमी से पिटाई की बल्कि पिटाई के बाद थाना प्रभारी ने अनिल के पीछे से कपड़े के ऊपर से पेट्रोल डाल दिया और अगले दिन पुलिस ने उससे ज़बरदस्ती उसकी खून से लथपथ पैंट और अंडरवियर खुलवा के रख ली। खास यह है कि थाना प्रभारी व अन्य दोषी पुलिस के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाने अनिल सिंह 2 मार्च 2022 को अपने स्थानीय थाना गए थे लेकिन उनका आवेदन पुलिस ने नहीं लिया। 4 मार्च को अनिल ने एससी-एसटी एक्ट में थाना में आवेदन दिया और एसपी को भी शिकायत किया लेकिन हिंसा के एक महीने बाद भी दोषियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज नही हुई है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने भी इस हिंसा का संज्ञान लिया था और झारखंड पुलिस को कार्यवाई का आदेश दिया था। थककर 25 मार्च को अनिल सिंह ने स्थानीय न्यायालय में एक कंप्लेंट केस दायर किया और प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है। 

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, अनिल सिंह ने कहा, "एक महीना से ऊपर हो गया है और एफआईआर दर्ज नही हो सकी है। मुझे पीटे जाने और प्रताड़ित करने के बाद मुझसे कहा गया कि पुलिस उचित कार्रवाई करेगी और मेरे इलाज का ध्यान रखा जाएगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। सिंह को कथित तौर पर देर रात उठाया गया था। अपनी गवाही में, उसने कथित पुलिस यातना का ग्राफिक विवरण साझा किया है, जिसमें कहा गया है कि उसे 300 से अधिक बार लाठियों से पीटा गया और उसके शरीर पर पेट्रोल डाला गया। लातेहार सदर अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट, दोनों नितंबों पर चोटों और उनके कूल्हे पर गहरे घर्षण का संकेत देती है। “मैं गारू थाना इंचार्ज के खिलाफ शिकायत लेकर चिपदोहर थाने गया था, जिसने 23 फरवरी की रात मुझे 300 से 400 लाठियों से पीटा था और मेरी गुदा पर पेट्रोल भी डाला था। अगले दिन पुलिस ने मुझे अपनी खून से सनी पतलून और अंडरवियर देने पर मजबूर किया और मुझे इसके बारे में शिकायत न करने के लिए कहा। 

चिपदोहर थाना इंचार्ज (सुजीत तिवारी) ने मेरी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया, मुझे उस थाने जाने के लिए कहा जहां घटना हुई थी और यह भी कहा कि चूंकि इसकी जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है, इसलिए एक अलग प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है। कथित तौर पर पीटे जाने और प्रताड़ित किए जाने के बाद अगली सुबह (24 फरवरी) उसे छोड़ दिया गया और बताया गया कि उसे गलती से उठा लिया गया था।

मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी राज्य पुलिस को जांच करने और इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया था। हालांकि, इस आदेश का अभी तक कोई खास नतीजा नहीं निकला है। जब द वायर ने गारू पुलिस स्टेशन से संपर्क किया तो दूसरी तरफ के अधिकारी ने कहा कि कार्रवाई की जा रही है और फिर फोन कॉल समाप्त कर दिया। द वायर से बात करते हुए, पत्रकार मनोज दत्त ने बताया, "हिंसा के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए व्यापक विरोध प्रदर्शन किए गए थे। इसके अलावा, कोई दवा नहीं, कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। हमारे समुदाय ने बार-बार पुलिस थानों को अपने कब्जे में ले लिया है और हिरासत में प्रताड़ना और हमारे लोगों की मनमानी गिरफ्तारी और हिरासत को समाप्त करने का आह्वान किया है। जमीनी गुस्सा भी इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या का द्योतक है। 



दत्त ने आगे कहा, "हमने हर जगह अपील, अनुरोध और याचिका के पत्र दिए हैं, क्या अब प्राथमिकी दर्ज करने का हमारा अधिकार नहीं है? जून 2021 में सेना ने एक अन्य आदिवासी व्यक्ति भ्रम देव सिंह को मार गिराया। क्या हमारे पास अधिकार नहीं हैं? पुलिस को हमें मारने और हमारे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार कैसे है? क्या हमारे पास काउंटर एफआईआर दर्ज करने के लिए कोई जगह नहीं है। अनिल सिंह को उठाया गया और थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया। 

ग्रामीणों का कहना है कि पिछले एक दशक में हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं और हिंसा की कहानी अकेले अनिल सिंह की नहीं है। विरोध प्रदर्शन में भाग ले रहे पिडी गांव के निवासी कुलदीप सिंह ने कहा, “आदिवासी समुदायों के खिलाफ हिंसा एक सतत प्रक्रिया है; आठ गांवों के ग्रामीणों ने एक साथ अपना विरोध दर्ज कराया। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम को इस हद तक कमजोर कर दिया गया है कि समुदाय के खिलाफ हिंसा के बारे में कोई संज्ञान नहीं लिया जाता है। क्षेत्र में हर कोई स्तब्ध और आहत है। हमारा समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर है और अब हिंसा का खामियाजा भुगत रहा है।” उन्होंने कहा, “यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है। जंगल में लकड़ी इकट्ठा करने वाले या महुआ के फूल, या पशुधन पालने वाले, हिंसा के शिकार हो रहे हैं क्योंकि पुलिस लगातार समुदाय को निशाना बना रही है।”
 
इस मामले में महासभा ने राज्य सरकार से मांग की है कि तुरंत थाना प्रभारी व अन्य दोषी पुलिसकर्मियों पर अत्याचार निवारण अधिनियम समेत अन्य धाराओं तहत प्राथमिकी दर्ज हो, उनके विरुद्ध कार्यवाई हो और अनिल सिंह को पर्याप्त मुआवज़ा मिले। साथ ही, नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए। लोगों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामला दर्ज करना पुर्णतः बंद हो। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के किसी गांव में सर्च ऑपरेशन चलाने से पहले ग्राम सभा व प्रधानों की अनुमति ली जाए। पांचवी अनुसूची क्षेत्र के थानों, सुरक्षा बलों व स्थानीय प्रशासन के निर्णायक पदों पर प्राथमिकता स्थानीय व आदिवासियों को दी जाए। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए। 
 

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