हिन्दू और हिंदुत्व आज महज हिंदी की शब्दावली नहीं रह गयी है. शब्द को मोहरा बना कर नफरत का बाज़ार सजाया जा चुका है. इस बाज़ार में हिंसा, हत्या, भेदभाव, क्रूरता, दुर्भावना, नफरत हर जगह देखी जा सकती है. हिंदुत्व के नाम पर लव जिहाद, कर्नाटक राज्य के एक स्कूल में हिंदुत्व के नाम पर क्रिसमस में बाधा डालना, हिंदुत्व के नाम पर मुस्लिम नरसंहार का आह्वान करना, भड़काऊ भाषण देना, भीड़ बन कर हत्या और हिंसा करना, स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो चली है.
उत्तराखंड के हरिद्वार में बीते दिनों स्वघोषित हिन्दुत्ववादी नेताओं के द्वारा धर्म संसद का आयोजन किया गया जिसमें मुस्लिम समुदाय के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की गयी. वहां खुलेआम नफरत को परोसा गया, मुसलमान समुदाय का सफाया किए जाने की बात की गयी. हालाँकि सोशल मीडिया पर नफरती बयानबाजी के वायरल वीडियो और स्थानीय लोगों के शिकायत पर हरिद्वार पुलिस नें वसीम रिजवी के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया है. वसीम रिजवी उत्तर प्रदेश शिया वफ्फ़ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष रह चुके थे जिन्होंने हाल में ही हिन्दू धर्म अपनाने का दावा करते हुए अपना नाम बदल कर जितेन्द्र नारायण त्यागी कर लिया है. जबकि गौर करने वाली बात यह है कि धर्म संसद में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने वाले स्वामी प्रबोधानंद गिरी, साध्वी अन्नपूर्णा उर्फ़ पूजा शकुन पाण्डे और स्वामी आनंद स्वरुप थे जिनके ख़िलाफ़ कोई मुकदमा नहीं हुआ है. इस कार्यक्रम में भाजपा के नेताओं ने भी भाग लिया जो दर्शाता है कि सत्ता पक्ष की शह पर नफरती बयानबाजी और नरसंहार की बातें खुलेआम की जा रही हैं.
धर्म संसद:
धर्म संसद का इतिहास बहुत पुराना है. आज से करीब 128 साल पहले 11 सितम्बर 1893 में एक धर्म संसद अमेरिका के शिकागो शहर में हुई थी जिसमें संत रामकृष्ण परमहंस के शिष्य और युवा संत स्वामी विवेकानंद भारत का प्रतिनिधित्व करने पहुचे थे. उन्होंने अपने भाषण में भारत की मानवतावादी, धर्मनिरपेक्ष, और वसुधैव कुटुम्बकम की रवायत पर गर्व से अपनी बात रखी. उन्होंने भाइयों और बहनों के साथ संबोधन की शुरुआत कर दुनिया भर के देशों से आए प्रतिनिधियों को अपनेपन से सराबोर कर दिया.
स्वामी विवेकानंद नें कहा था, “मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से आता हूँ जिसने दुनियां को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढाया. हम सिर्फ सार्भौमिकता में ही विश्वास नहीं रखते हैं बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से आता हूँ जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहाँ शरण दी है”. अंग्रेजों द्वारा गुलामी की दासता झेल रहे स्वामी विवेकानंद नें उस समय भी भारत देश का सर ऊँचा किया वहीँ आज अंग्रेजों के वंशजों और उनकें हितेषियों के द्वारा धर्म के नाम पर विभाजनकारी नीतियों को अंजाम दिया जा रहा है. एक संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष देश में एकल धर्म को स्थापित करने के नाम पर हिंसक बयानबाजी की जा रही है जो न केवल असंवैधानिक ही है बल्कि कानूनन अपराध भी है.
शिकागो के अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि “साम्प्रदायिकता, कट्टरता और यथास्थितिवाद की हठधर्मिता वर्षों से पृथ्वी को जकड़े हुए है. पृथ्वी का लगभग हर हिस्सा हिंसा से भरा हुआ है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हो चूका है और न जानें कितने देश नष्ट हुए हैं. यदि ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होते लेकिन अब उनका समय पूरा हो चूका है. मुझे पूरी उमीद है कि आज इस सम्मलेन का शंखनाद सभी कट्टर पंथियों, हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हो या कलम से, यह सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावना का विनाश करेगा”.
पृथ्वी और सभ्यता को लेकर स्वामी विवेकानन्द के द्वारा जताई गयी चिंता आज भी बरक़रार है. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिस धर्म की मानवतावादी और धर्मनिरपेक्ष स्वरुप का गुणगान स्वामी विवेकानंद दुनिया भर के सामने कर चुके थे उस धर्म को आज नफरत का हथियार बनाया जा रहा है. वर्षों पहले हुए धर्म संसद में जहाँ स्वामी विवेकानंद ने देश की सार्वभौमिक छवि सामने रख कर देश को अकल्पनीय सम्मान दिलवाया वहीं हरिद्वार में हुए धर्म संसद ने देश को शर्मिंदगी का सामना करवाया.
राजनीति से लैस हरिद्वार में हुए धर्म संसद नें केवल हिन्दू धर्म को ही बदनाम नहीं किया है बल्कि देश के युवाओं को हथियार उठाने की बात करके उनके भविष्य के साथ भी खिलवाड़ करने को कोशिश की गयी है. देश में कत्लेआम करने के लिए युवाओं को प्रेरित किया गया. घृणा, नफरत व हिंसा के इस विचार को लागू कर देश को गृहयुद्ध की तरफ़ बढ़ाए जाने की तैयारी है.
आज हिन्दू और हिंदुत्व का फर्क समझना और लोगों को समझाना बेहद आवश्यक हो गया है. विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी वर्तमान में इस फर्क को समझाने में जुटे हैं. भारत चार्वाक, कबीर, शंकराचार्य व् शिवाजी की धरती है जिसमें धर्म के सदभाव की दास्तां मिलती है.
हरिद्वार की धर्म संसद में जो हुआ वो हिन्दुत्ववाद है. हजारों सालों के विकासक्रम में ऐसा कभी नहीं हुआ. इस धर्म ने कभी सामूहिक हत्याओं का आह्वान नहीं किया. महर्षि चार्वाक प्रचंड भौतिकवादी थे. कर्म और कर्मफल की अवधारणा की खिल्ली उड़ाते घूमते रहे. किसी सनातनी ने उनकी ह्त्या का आह्वान नहीं किया.
कबीर बनारस में रह कर पाखण्ड की खिलाफत करते रहे. किसी हिंदू ने उनकी ह्त्या का आह्वान नहीं किया. आज के बनारस में हिन्दुत्ववादी उनका भला क्या हश्र करते? तुलसी और रहीम की मित्रता के किस्से मशहूर हैं. तुलसी के राम द्वारा रहीम की हत्या की बात की जाने के किस्से नहीं सुने गए.
मदारी मेहतर शिवाजी महाराज का एक मुसलमान सेवक था. उसने अपनी जान पर खेलकर औरंगजेब की कैद से उन्हें निकाला था. शिवाजी हिंदू थे और उनका सेवक मुसलमान. महाराणा प्रताप के एक विश्वस्त सहयोगी हसन खान मेवाती थे. हल्दीघाटी की लड़ाई में वो मानसिंह की सेना के खिलाफ लड़े थे. महाराणा प्रताप हिंदू थे, हिन्दुत्ववादी होते तो मेवाती को अकबर का एजेंट मानते रहते. हमें अपने इतिहास से अपने धर्म को समझने की जरुरत है जहां हिन्दू महाराज छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप के विश्वासी सेवक मुसलमान हुआ करते थे तो अकबर के नवरत्नों में हिन्दुओं की भरमार थी.
19वीं सदी के अंत में हिंदुत्व शब्द का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू हुआ जिसे आज घृणा के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इतिहास गवाह है हिन्दू धर्म और इस धर्म के संत व् सन्यासी देश में एकता, सदभाव, शांति और समरसता की बातें किया करते थे लेकिन आज सन्यासियों के भेष में सत्ता लोलुप लोगों की भरमार है. सनातन धर्म जीव मात्र के कल्याण की बात करता है और ये नकली हिन्दू संत सनातन सभ्यता के नाम पर हिंसा और अधर्मिता की बात करते हैं. आरएसएस की राजनीति धर्म पर आधारित रही है. धर्म की खेती में नफरत के बीज बो कर आज वे हिंदुत्व के नाम पर सत्ता की फ़सल काट रहे हैं.
हरिद्वार में संपन्न हुए धर्म संसद को सोशल मीडिया पर अधर्म संसद के नाम से प्रचारित किया जा रहा है. जिसमें लोग वर्तमान में स्वघोषित संत के अमानवीय, अधर्मी चरित्र को भी उजागर कर रहे हैं. इस धर्म संसद नें स्वामी विवेकानंद द्वारा संबोधित धर्म संसद को अपमानित किया है. साथ ही देश के सनातनी परंपरा और हिन्दू धर्म को शर्मसार किया.
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धर्म संसद:
धर्म संसद का इतिहास बहुत पुराना है. आज से करीब 128 साल पहले 11 सितम्बर 1893 में एक धर्म संसद अमेरिका के शिकागो शहर में हुई थी जिसमें संत रामकृष्ण परमहंस के शिष्य और युवा संत स्वामी विवेकानंद भारत का प्रतिनिधित्व करने पहुचे थे. उन्होंने अपने भाषण में भारत की मानवतावादी, धर्मनिरपेक्ष, और वसुधैव कुटुम्बकम की रवायत पर गर्व से अपनी बात रखी. उन्होंने भाइयों और बहनों के साथ संबोधन की शुरुआत कर दुनिया भर के देशों से आए प्रतिनिधियों को अपनेपन से सराबोर कर दिया.
स्वामी विवेकानंद नें कहा था, “मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से आता हूँ जिसने दुनियां को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढाया. हम सिर्फ सार्भौमिकता में ही विश्वास नहीं रखते हैं बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से आता हूँ जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहाँ शरण दी है”. अंग्रेजों द्वारा गुलामी की दासता झेल रहे स्वामी विवेकानंद नें उस समय भी भारत देश का सर ऊँचा किया वहीँ आज अंग्रेजों के वंशजों और उनकें हितेषियों के द्वारा धर्म के नाम पर विभाजनकारी नीतियों को अंजाम दिया जा रहा है. एक संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष देश में एकल धर्म को स्थापित करने के नाम पर हिंसक बयानबाजी की जा रही है जो न केवल असंवैधानिक ही है बल्कि कानूनन अपराध भी है.
शिकागो के अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि “साम्प्रदायिकता, कट्टरता और यथास्थितिवाद की हठधर्मिता वर्षों से पृथ्वी को जकड़े हुए है. पृथ्वी का लगभग हर हिस्सा हिंसा से भरा हुआ है. कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हो चूका है और न जानें कितने देश नष्ट हुए हैं. यदि ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होते लेकिन अब उनका समय पूरा हो चूका है. मुझे पूरी उमीद है कि आज इस सम्मलेन का शंखनाद सभी कट्टर पंथियों, हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हो या कलम से, यह सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावना का विनाश करेगा”.
पृथ्वी और सभ्यता को लेकर स्वामी विवेकानन्द के द्वारा जताई गयी चिंता आज भी बरक़रार है. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिस धर्म की मानवतावादी और धर्मनिरपेक्ष स्वरुप का गुणगान स्वामी विवेकानंद दुनिया भर के सामने कर चुके थे उस धर्म को आज नफरत का हथियार बनाया जा रहा है. वर्षों पहले हुए धर्म संसद में जहाँ स्वामी विवेकानंद ने देश की सार्वभौमिक छवि सामने रख कर देश को अकल्पनीय सम्मान दिलवाया वहीं हरिद्वार में हुए धर्म संसद ने देश को शर्मिंदगी का सामना करवाया.
राजनीति से लैस हरिद्वार में हुए धर्म संसद नें केवल हिन्दू धर्म को ही बदनाम नहीं किया है बल्कि देश के युवाओं को हथियार उठाने की बात करके उनके भविष्य के साथ भी खिलवाड़ करने को कोशिश की गयी है. देश में कत्लेआम करने के लिए युवाओं को प्रेरित किया गया. घृणा, नफरत व हिंसा के इस विचार को लागू कर देश को गृहयुद्ध की तरफ़ बढ़ाए जाने की तैयारी है.
आज हिन्दू और हिंदुत्व का फर्क समझना और लोगों को समझाना बेहद आवश्यक हो गया है. विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी वर्तमान में इस फर्क को समझाने में जुटे हैं. भारत चार्वाक, कबीर, शंकराचार्य व् शिवाजी की धरती है जिसमें धर्म के सदभाव की दास्तां मिलती है.
हरिद्वार की धर्म संसद में जो हुआ वो हिन्दुत्ववाद है. हजारों सालों के विकासक्रम में ऐसा कभी नहीं हुआ. इस धर्म ने कभी सामूहिक हत्याओं का आह्वान नहीं किया. महर्षि चार्वाक प्रचंड भौतिकवादी थे. कर्म और कर्मफल की अवधारणा की खिल्ली उड़ाते घूमते रहे. किसी सनातनी ने उनकी ह्त्या का आह्वान नहीं किया.
कबीर बनारस में रह कर पाखण्ड की खिलाफत करते रहे. किसी हिंदू ने उनकी ह्त्या का आह्वान नहीं किया. आज के बनारस में हिन्दुत्ववादी उनका भला क्या हश्र करते? तुलसी और रहीम की मित्रता के किस्से मशहूर हैं. तुलसी के राम द्वारा रहीम की हत्या की बात की जाने के किस्से नहीं सुने गए.
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19वीं सदी के अंत में हिंदुत्व शब्द का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू हुआ जिसे आज घृणा के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इतिहास गवाह है हिन्दू धर्म और इस धर्म के संत व् सन्यासी देश में एकता, सदभाव, शांति और समरसता की बातें किया करते थे लेकिन आज सन्यासियों के भेष में सत्ता लोलुप लोगों की भरमार है. सनातन धर्म जीव मात्र के कल्याण की बात करता है और ये नकली हिन्दू संत सनातन सभ्यता के नाम पर हिंसा और अधर्मिता की बात करते हैं. आरएसएस की राजनीति धर्म पर आधारित रही है. धर्म की खेती में नफरत के बीज बो कर आज वे हिंदुत्व के नाम पर सत्ता की फ़सल काट रहे हैं.
हरिद्वार में संपन्न हुए धर्म संसद को सोशल मीडिया पर अधर्म संसद के नाम से प्रचारित किया जा रहा है. जिसमें लोग वर्तमान में स्वघोषित संत के अमानवीय, अधर्मी चरित्र को भी उजागर कर रहे हैं. इस धर्म संसद नें स्वामी विवेकानंद द्वारा संबोधित धर्म संसद को अपमानित किया है. साथ ही देश के सनातनी परंपरा और हिन्दू धर्म को शर्मसार किया.
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