उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक और प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डा. अली जावेद का निधन हो गया। 12 अगस्त 2021 की शाम को ब्रेन हेमरेज के बाद उन्हें दिल्ली के मैक्स हास्पिटल में भर्ती कराया गया था जहां तत्काल उनका आपरेशन किया गया। मगर उनकी हालत लगातार गंभीर बनी रही। सुधार न होने की स्थिति में उनको जी.बी.पंत हास्पिटल में शिफ्ट किया गया। वे लगातार वेंटिलेटर पर थे।

प्रगतिशील लेखक संघ ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा है- हम उनके सेहतयाब होकर अस्पताल से लौटने की आस लगाए बैठे थे। मगर अब ये ख़बर जिस पर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है। वे हम सभी को ग़मज़दा कर गये। जावेद साहब हरदिल अज़ीज़ शख़्स थे। वे उच्च कोटि के अंतरराष्ट्रीय विद्वान और बेहद कुशल वक्ता थे। उर्दू के साथ ही हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में भी उनका गहन अध्ययन था। डा.जावेद की अदबी शख्सियत में एक ख़ास तरह का एक्टिविज़्म था।
अंधेरगर्दी के खिलाफ लड़ना उनका मिजाज़ था। वे सही मायने में इंकलाबी थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय और जेएनयू से उन्होंने पढ़ाई की थी। बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में शिक्षक नियुक्त हुए। पिछले साल ही वे वहां से सेवानिवृत्त हुए थे। मूलतः वे इलाहाबाद के निवासी थे लेकिन दिल्ली आए तो यहीं के हो कर रह गये।फिर भी इलाहाबाद उनसे कभी नहीं छूटा।मगर अब जावेद साहब हम सबके बीच कभी नहीं होंगे। हां, उनकी ढेर सारी स्मृतियां हमारे बीच होंगी। उनका जाना प्रगतिशील आंदोलन के लिए बहुत बड़ा नुक़सान है,जिसकी भरपाई नहीं हो सकेगी।
साथियों दुख की इस घड़ी में हम सबकी संवेदना जावेद साहब के परिवार के साथ है।
प्रगतिशील लेखक संघ,उ.प्र.की तरफ से हम उन्हें ख़िराज़-ए- अकीदत पेश करते हैं।
अलविदा जावेद साहब !!
वरिष्ठ पत्रकार सीपी झा ने जनचौक पर प्रकाशित श्रद्धांजलि लेख में लिखा है- वे नई दिल्ली के स्कूल ऑफ लेंग्वेजेस के भारतीय भाषा केंद्र में ऊर्दू के छात्र रहे थे। अली जावेद बाद में दिल्ली विश्विद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर रहे। उन्हें कुछ बरस पहले दिल का दौरा पड़ा था। बावजूद इसके वह जन संघर्षों का साथ देने सड़क पर उतरने से गुरेज नहीं करते थे। वह हालिया दिनों में बहुत अस्वस्थ हो गए थे।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जी ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा है- साथी अली जावेद का असमय जाना बहुत दुखद है. मुझे लगता था कि जावेद अस्पताल से सकुशल घर लौटेंगे और कुछ दिनों बाद जब मुलाकात होगी तो तमाम दोस्तों के बीच वादा करेंगे कि अब से वह अपनी सेहत को लेकर ज्यादा सजग और सतर्क रहेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. वह चले गये!
सुबह उठते ही यह बुरी खबर मिली. तबसे मन बहुत उदास और परेशान है. सन् 1978 में हम लोग पहली बार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र के गलियारे में कभी मिले थे. छात्र जीवन में हम लोग अलग-अलग समूहों-संगठनों में थे. विभिन्न मसलों में उलझते और झगड़ते भी थे. पर रिश्ता हमेशा बना रहा. जब कभी मिलते पुराने दोस्त की तरह. फोन पर तो अक्सर ही मिलते थे. जब कभी मुझे किसी उर्दू शब्द का इस्तेमाल करना होता था और उस शब्द को लेकर किसी तरह का कन्फ्यूजन होता, अली जावेद को फौरन फोन लगाता. अफसोस, हमारी वो फोन वार्ताएं अब नहीं हो सकेंगी. पर रिश्ता कहां खत्म होने वाला?
छात्र-जीवन से लेकर अब तक का रिश्ता प्रो Ali Javed के इस तरह असमय चले जाने से खत्म नही होने वाला है. हम सब जब तक रहेंगे, अली जावेद भी चार दशक से ज्यादा लंबे रिश्ते की तमाम स्मृतियों के साथ हमारे बीच बने रहेंगे.
सलाम और श्रद्धांजलि साथी अली जावेद!

प्रगतिशील लेखक संघ ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा है- हम उनके सेहतयाब होकर अस्पताल से लौटने की आस लगाए बैठे थे। मगर अब ये ख़बर जिस पर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है। वे हम सभी को ग़मज़दा कर गये। जावेद साहब हरदिल अज़ीज़ शख़्स थे। वे उच्च कोटि के अंतरराष्ट्रीय विद्वान और बेहद कुशल वक्ता थे। उर्दू के साथ ही हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में भी उनका गहन अध्ययन था। डा.जावेद की अदबी शख्सियत में एक ख़ास तरह का एक्टिविज़्म था।
अंधेरगर्दी के खिलाफ लड़ना उनका मिजाज़ था। वे सही मायने में इंकलाबी थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय और जेएनयू से उन्होंने पढ़ाई की थी। बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में शिक्षक नियुक्त हुए। पिछले साल ही वे वहां से सेवानिवृत्त हुए थे। मूलतः वे इलाहाबाद के निवासी थे लेकिन दिल्ली आए तो यहीं के हो कर रह गये।फिर भी इलाहाबाद उनसे कभी नहीं छूटा।मगर अब जावेद साहब हम सबके बीच कभी नहीं होंगे। हां, उनकी ढेर सारी स्मृतियां हमारे बीच होंगी। उनका जाना प्रगतिशील आंदोलन के लिए बहुत बड़ा नुक़सान है,जिसकी भरपाई नहीं हो सकेगी।
साथियों दुख की इस घड़ी में हम सबकी संवेदना जावेद साहब के परिवार के साथ है।
प्रगतिशील लेखक संघ,उ.प्र.की तरफ से हम उन्हें ख़िराज़-ए- अकीदत पेश करते हैं।
अलविदा जावेद साहब !!
वरिष्ठ पत्रकार सीपी झा ने जनचौक पर प्रकाशित श्रद्धांजलि लेख में लिखा है- वे नई दिल्ली के स्कूल ऑफ लेंग्वेजेस के भारतीय भाषा केंद्र में ऊर्दू के छात्र रहे थे। अली जावेद बाद में दिल्ली विश्विद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर रहे। उन्हें कुछ बरस पहले दिल का दौरा पड़ा था। बावजूद इसके वह जन संघर्षों का साथ देने सड़क पर उतरने से गुरेज नहीं करते थे। वह हालिया दिनों में बहुत अस्वस्थ हो गए थे।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जी ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा है- साथी अली जावेद का असमय जाना बहुत दुखद है. मुझे लगता था कि जावेद अस्पताल से सकुशल घर लौटेंगे और कुछ दिनों बाद जब मुलाकात होगी तो तमाम दोस्तों के बीच वादा करेंगे कि अब से वह अपनी सेहत को लेकर ज्यादा सजग और सतर्क रहेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. वह चले गये!
सुबह उठते ही यह बुरी खबर मिली. तबसे मन बहुत उदास और परेशान है. सन् 1978 में हम लोग पहली बार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र के गलियारे में कभी मिले थे. छात्र जीवन में हम लोग अलग-अलग समूहों-संगठनों में थे. विभिन्न मसलों में उलझते और झगड़ते भी थे. पर रिश्ता हमेशा बना रहा. जब कभी मिलते पुराने दोस्त की तरह. फोन पर तो अक्सर ही मिलते थे. जब कभी मुझे किसी उर्दू शब्द का इस्तेमाल करना होता था और उस शब्द को लेकर किसी तरह का कन्फ्यूजन होता, अली जावेद को फौरन फोन लगाता. अफसोस, हमारी वो फोन वार्ताएं अब नहीं हो सकेंगी. पर रिश्ता कहां खत्म होने वाला?
छात्र-जीवन से लेकर अब तक का रिश्ता प्रो Ali Javed के इस तरह असमय चले जाने से खत्म नही होने वाला है. हम सब जब तक रहेंगे, अली जावेद भी चार दशक से ज्यादा लंबे रिश्ते की तमाम स्मृतियों के साथ हमारे बीच बने रहेंगे.
सलाम और श्रद्धांजलि साथी अली जावेद!