'सिर फोड़ने' का आदेश कितना जायज? तीस्ता सीतलवाड़ की पूर्व IPS विभूति नारायण राय से खास बातचीत

Written by Sabrangindia Staff | Published on: August 31, 2021
हरियाणा के करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के 'सिर फोड़ने' का आदेश देने वाले करनाल के एसडीएम आयुष सिन्हा को लेकर मामला सुर्खियों में है। आयुष सिन्हा के आदेश के बाद करनाल के बसताड़ा टोल प्लाजा पर कई किसानों को पुलिस बलों ने लाठीचार्ज कर बुरी तरह घायल कर दिया। सीजेपी की सचिव, सबरंग इंडिया की सह संस्थापक वरिष्ठ पत्रकार तीस्ता सीतलवाड़ ने सेवानिवृत्त IPS और कथाकार, विभूति नारायण राय के साथ पुलिस की कार्यशैली/व्यवहार के बारे में विस्तृत बातचीत की। 



तीस्ता सीतलवाड़ ने विभूति नारायण राय से पूछा कि शनिवार शाम आयुष सिन्हा का जो सिर फोड़ने वाला बयान आया था, आजाद भारत में पुलिस की जो मानसिकता बनी हुई है उसपर आपकी क्या टिप्पणी है?

विभूति नारायण राय ने कहा कि यह जो वीडियो वायरल हुआ है, बहुत ही शर्मनाक है। एक आईएएस जो अपनी शुरूआत की सर्विस में ही इस तरह का आदेश देता है वह बहुत ही गलत है। उन्होंने 1860 के दशक का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय कुछ कानून बने जो भीड़ के लिए बनाए गए जो हिंदुस्तान में कायम हुए। उससे पहले तो राजा थे, नवाब थे जिनके सामने जनता इकट्ठा नहीं हो पाती थी। अगर कोई उनका विरोध करने की हिम्मत करता था तो उसका नतीजा भी बुरा होता था। लेकिन जब सीआरपीसी, आईपीसी पुलिस एक्ट जैसे कानून बने तो उसमें प्रोविजन किया गया है कि अगर कोई क्राउड अनलॉफुल हो जाए तो उसे कैसे डिसपर्सल किया जाए। सीआरपीसी का सेक्शन 130 बहुत महत्वपूर्ण है। सेक्शन 130 में एग्जिक्युटिव मजिस्ट्रेट को ये पावर है कि अगर कोई क्राउड अनलॉफुल असेंबली डिसपर्स नही हो रही तो वो आर्म फोर्स के सीनियर अधिकारी को बल उपयोग कराने के लिए कहे। लेकिन इस फोर्स का इस्तेमाल किस तरह करना है यह वे तय नहीं कर सकते। इस मामले में आयुष सिन्हा का सिर फोड़ने वाला मानक इसके अनुरूप नहीं है। 

विभूति नारायण राय ने कहा कि पहले लाठी काफी लंबी होती थी लेकिन अब तो लाठी से लकड़ी का हिस्सा भी हटाया जा रहा है ताकि ये शोर ज्यादा करे और चोट कम पहुंचाए। लेकिन यहां एसडीएम द्वारा दिया जा रहा आदेश पूरी तरह गलत है, वे पुलिस को नहीं बता सकते कि किस तरह मारें। वहां मौजूद पुलिस अफसर को ये डिसाइड करना था। अगर अदालतों के पुराने आदेश निकाले जाएँ तो यह कंटेप्ट ऑफ कोर्ट है। उन्होंने कहा कि किसान लंबे समय से अपनी मांगों के लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं ऐसे में उनका गुस्सा होना जायज है लेकिन उनके सिर फोड़ने के आदेश दिए जाएं यह सरासर गलत ही नहीं बल्कि निंदनीय है।

विभूति नारायण राय द्वारा पुराने जजमेंटों का जिक्र किए जाने पर तीस्ता सीतलवाड़ ने सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) का जिक्र करते हुए कहा कि हमारी इस वेबसाइट पर लीगल लिंक मिल जाएंगे। उन्होंने कहा कि विभूति नारायण राय जी ने जिन जजमेंट्स का जिक्र किया है मैं उनके बारे में कुछ कहना चाहती हूं कि ऐसे तीन खास जजमेंट्स हैं इनमें सबसे खास है अनीता ठाकुर वर्सेस गवर्नमेंट ऑफ जम्मू एंड कश्मीर (2016), दूसरा रामलीला मैदान इंसीडेंट का सुप्रीम कोर्ट का 2012 का जजमेंट है, तीसरा केरल हाई कोर्ट का पीपल्स काउंसिल फॉर सोशल जस्टिस का जजमेंट है। ये तीनों जजमेंट अगर हम देखें तो इनकी विभूति नारायण राय जी ने पूरी तरह से व्याख्या की है। 


करनाल लाठीचार्ज पर तीस्ता सीतलवाड़ की विभूति नारायण राय से पूरी बातचीत यहां देख सकते हैं

तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा कि आर्टिकल 19 में शांतिपूर्वक प्रदर्शन का अधिकार दिया गया है तो आर्टिकल 19 (1)(2) में कुछ पाबंदियां भी रखी गई हैं कि किस तरह आप कर सकते हैं या नहीं कर सकते। 1980 में बंबई के टेक्सटाइल वर्कर्स का जमाना हमने देखा है, अभी रेलवे स्ट्राइक हुई, आपने सेंट्रल स्ट्राइक का जिक्र किया और अब हम किसानों का एक ऐतिहासिक आंदोलन देख रहे हैं जिसे नौ महीने हो चुके हैं। इसमें जिस तरह से सरकार ने कानून बगैर बहस/चर्चा के कानून पास कर दिए उसे लेकर किसानों के अंदर एक फ्रस्टेशन है। इस बीच आप किसानों से सुलह का पॉलिटिकल रास्ता नहीं निकाल रहे हैं। तीस्ता ने कहा कि हमें पत्रकारिता को लेकर भी बड़ा कोफ्त होता है जब रामलीला मैदान में करप्शन के खिलाफ आंदोलन चल रहा था तो आपने उसे महीनों कवर किया लेकिन अब किसान अपनी मांगों को लेकर डटे हैं तो उनको मीडिया में जगह नहीं मिल पा रही। करनाल की घटना के बाद जिस तरह की लहूलुहान छवियां सामने आईं हैं वे बहुत ही परेशान करने वाली हैं। इस घटना को अखबार तो एडिटोरियल में कंडम कर रहे हैं लेकिन टीवी में जिस तरह दिखाना चाहिए उस तरह से दिखाई नहीं दे रहा। उन्होंने कहा कि मेरा ख्याल है कि आज मीडिया भी यह भूल चुका है कि लोकशाही में, जम्हूरियत में उसका किस तरह का रोल होता है। 

इस बातचीत के दौरान देशभर के कई राज्यों में जनता को हटाने के लिए पुलिसबल की कार्यशैली पर चर्चा हुई। विभूति नारायण राय ने कहा कि अब असम की पुलिस भी यूपी की तर्ज पर पैर में गोली मार रही है। यह बहुत ही गलत है। यूपी की घटनाओं में कानपुर का मामला तो बहुत ही चौंकाने वाला है कि कैसे एक गाड़ी पलटी और उसमें सिर्फ अपराधी ही मारा गया, पुलिस को खरोंच तक नहीं आई। विभूति नारायण राय ने कहा कि दरअसल हम जो डिजर्व करते हैं वैसी ही पुलिस हमें मिली है। 

राय ने कहा कि ऐसे अफसरों को दोबारा से ट्रेनिंग सेंटर भेज देना चाहिए ताकि वे इस तरह की मानसिकता को त्याग सकें और दोबारा काम पर लौटें तो थोड़े सेंसिबल हों। राय ने कहा कि नौकरी की शुरूआत में ही ये हाल हैं तो जब उनका प्रमोशन होगा, बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी तब वे क्या करेंगे। 

ये था आयुष सिन्हा का वायरल बयान-
आयुष सिन्हा पुलिसकर्मियों को समझाते नजर आ रहे हैं जिसका वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें वे कहते हैं-  प्रदर्शनकारी किसानों को सिर फोड़ दो। 'यह बहुत सिंपल और स्पष्ट है। कोई कहीं से हो, उसके आगे नहीं जाएगा। अगर जाता है तो लाठी से उसका सिर फोड़ देना। कोई निर्देश या डायरेक्शन की जरूरत नहीं है। उठा-उठा कर मारना। हम किसी भी तरह से सिक्योरिटी ब्रीच नहीं होने देंगे। हमारे पास पर्याप्त फोर्स है।'

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