मुजफ्फरनगर में 5 सितंबर की एसकेएम रैली को सफल बनाने की अपील, सम्मेलन में आंदोलन का देश के गांव-गांव तक विस्तार करने का संकल्प पारित
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी प्रदर्शनों की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने 25 सितंबर को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। एसकेएम ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य पिछले साल नवंबर से शुरू हुए किसान आंदोलन को और अधिक मजबूती और विस्तार देना है।
संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि एसकेएम का राष्ट्रीय अधिवेशन 28 अगस्त को सर्वसम्मति से देश के हर गाँव में अपने आंदोलन का विस्तार करने और 25 सितंबर, 2021 को एक दिवसीय भारत बंद का आह्वान करने के बाद संपन्न हुआ। इसने किसानों से यह भी आह्वान किया कि वे मुजफ्फरनगर में संयुक्त किसान मोर्चा की रैली को विरोध का एक विशाल प्रदर्शन बनाने के लिए पूर्ण प्रयास करें।
विभिन्न किसानों, कृषि श्रमिकों, ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं, व्यापारी निकायों के 90 वक्ताओं, 2000 से अधिक प्रतिनिधियों ने 3 कृषि अधिनियमों को रद्द करने, सी2+50 प्रतिशत के एमएसपी पर सभी कृषि उपज की खरीद की कानूनी गारंटी के लिए, नए बिजली बिल को निरस्त करने और एनसीआर में वायु गुणवत्ता के नाम पर किसानों पर मुकदमा चलाने पर प्रतिबंध लगाने के नारे लगाए और हवा में बंधी मुट्ठी लहराते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया।
सभा ने बार-बार अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक हमलों करने और देश की प्राकृतिक संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्र को कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचने के खिलाफ भी नारे लगाए। इन तथा अन्य संबंधित विषयों पर प्रस्तावों को मंजूरी दी गई।
सम्मेलन में व्यक्ताओं के विचारों को सारांशित करते हुए, आयोजन समिति के संयोजक, डॉ आशीष मित्तल ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आज पूरा किसान समुदाय कृषि, खाद्य भंडारण और कृषि बाजार के सभी पहलुओं पर कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण से लड़ने के लिए मजबूर है। सरकार द्वारा किये जा रहे इन परिवर्तनों से किसान ऋण, आत्महत्या और भूमि से विस्थापन में व्यापक वृद्धि होगी।
लेकिन यह हमला किसानों और खेतिहर मजदूरों तक सीमित नहीं है। यह भारत के मेहनतकश लोगों के सभी वर्गों पर चौतरफा हमला है। देश की संपत्ति, जो अपने लोगों को रोजगार और सुरक्षा प्रदान करने के लिए है, जैसे रेलवे, पावर ट्रांसमिशन लाइन, प्राकृतिक गैस संसाधन, दूरसंचार परियोजनाएं, खाद्य भंडारण, बीमा, बैंक, आदि, को बेचे जा रहा है। 4 श्रम कोड के माध्यम से औद्योगिक श्रमिकों के मूल अधिकारों पर हमला किया जा रहा है। गरीबों के लिए कल्याण और सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सब्सिडी और राशन पर निशाना साधा जा रहा है। आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि की जा रही है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है और इन क्षेत्रों के विकास में केवल कॉरपोरेट का वर्चस्व है। अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर, हिंदुत्व की आड़ में, जो लोगों की चेतना को सुन्न करने का काम करती है, और लोगों की स्वतंत्रता पर फासीवादी हमलों के माध्यम से, आम लोगों को आतंकित करके, कॉरपोरेट की लाभ वृद्धि में मदद की जा रही है जिसके लिए मानव जीवन के हर पहलू का मुद्रीकरण किया जा रहा है।
यह ऐतिहासिक किसान संघर्ष, जिसने अपने ऊपर सरकार के हमले को चुनौती दी है, केवल अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं है। यह देश को भारतीय और विदेशी कॉरपोरेट्स द्वारा, पूरी तरह से अपने कब्जे में लेने से बचाने की लड़ाई है। यह वास्तविक आत्म-निर्भर विकास का मार्ग है, जो अपने देशभक्त नागरिकों के जीवन और आजीविका की रक्षा करता है। इसने करोड़ों लोगों के विश्वास को प्रेरित किया है और आने वाले दिनों में भी ऐसा करती रहेगी।
इस कन्वेंशन ने तीन कानूनों, एमएसपी और अन्य की मांग पर चर्चा की और प्रत्येक पहलू पर एक विस्तृत प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसने किसानों से राज्य / जिला एसकेएम इकाइयों का गठन करने और सभी सहायक संगठनों के साथ राज्यों और जिलों में संघर्ष करने, सम्मेलनों, रैलियों का आयोजन करने, टोल वसूली का विरोध करने और किसानों की देशभक्ति मांगों को स्वीकार करने से इनकार करने के लिए भाजपा और एनडीए नेताओं के खिलाफ विरोध करने का आह्वान किया।
कन्वेंशन ने देखा कि जहां किसानों ने सरकार को सच्चाई दिखाने के लिए एक विशाल, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलन का निर्माण किया था, वहीं कॉरपोरेट मुनाफे के हितों की सेवा करने के लिए अपनी अंधी प्रतिबद्धता में, सरकार हठ पर अड़ी रही और उसने मांगें मानने से इनकार कर दिया।
कन्वेंशन ने समझाया कि सरकार द्वारा सुझाए गए, ‘समाधान’ के सभी प्रस्ताव, कृषि के कॉरपोरेट अधिग्रहण, किसानों की भूमि और आजीविका के नुकसान और पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को नुकसान की किसानों की आशंका में कोई राहत नहीं देते हैं।
सम्मेलन ने, किसानों को, आरएसएस-भाजपा के सभी उकसावों, सरकार द्वारा निराधार और झूठे आरोप लगाने, कठोर कानूनों के तहत फर्जी रूप से पाबंद करने के बावजूद, देश को लूट से बचाने हेतु, नागरिकों को पेरित करने के लिए, शांतिपूर्ण विरोध जारी रखने का आह्वान किया।
कन्वेंशन ने समझाया कि इस आंदोलन ने सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण काम किया है और कॉरपोरेट लूट से मुक्त आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में, सबसे उत्पीड़ित वर्गों के विश्वास और भागीदारी को प्रेरित किया है।
जारीकर्ता
स्टीयरिंग कमिटी
डॉ आशीष मित्तल कन्वीनर, बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ अशोक धावले,जगजीत सिंह डल्लेवाल, प्रेम सिंह भंगू, धर्मेंद्र मलिक, बलदेव सिंह निहालगढ़, अवीक शाहा, सत्यवान, डॉ सतनाम सिंह अजनाला, हरपाल सिंह, प्रेम सिंह गहलावत, जगमोहन सिंह, हरमीत सिंह कादिया, किरणजीत सेखों, जय करण
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संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि एसकेएम का राष्ट्रीय अधिवेशन 28 अगस्त को सर्वसम्मति से देश के हर गाँव में अपने आंदोलन का विस्तार करने और 25 सितंबर, 2021 को एक दिवसीय भारत बंद का आह्वान करने के बाद संपन्न हुआ। इसने किसानों से यह भी आह्वान किया कि वे मुजफ्फरनगर में संयुक्त किसान मोर्चा की रैली को विरोध का एक विशाल प्रदर्शन बनाने के लिए पूर्ण प्रयास करें।
विभिन्न किसानों, कृषि श्रमिकों, ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं, व्यापारी निकायों के 90 वक्ताओं, 2000 से अधिक प्रतिनिधियों ने 3 कृषि अधिनियमों को रद्द करने, सी2+50 प्रतिशत के एमएसपी पर सभी कृषि उपज की खरीद की कानूनी गारंटी के लिए, नए बिजली बिल को निरस्त करने और एनसीआर में वायु गुणवत्ता के नाम पर किसानों पर मुकदमा चलाने पर प्रतिबंध लगाने के नारे लगाए और हवा में बंधी मुट्ठी लहराते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया।
सभा ने बार-बार अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक हमलों करने और देश की प्राकृतिक संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्र को कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचने के खिलाफ भी नारे लगाए। इन तथा अन्य संबंधित विषयों पर प्रस्तावों को मंजूरी दी गई।
सम्मेलन में व्यक्ताओं के विचारों को सारांशित करते हुए, आयोजन समिति के संयोजक, डॉ आशीष मित्तल ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आज पूरा किसान समुदाय कृषि, खाद्य भंडारण और कृषि बाजार के सभी पहलुओं पर कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण से लड़ने के लिए मजबूर है। सरकार द्वारा किये जा रहे इन परिवर्तनों से किसान ऋण, आत्महत्या और भूमि से विस्थापन में व्यापक वृद्धि होगी।
लेकिन यह हमला किसानों और खेतिहर मजदूरों तक सीमित नहीं है। यह भारत के मेहनतकश लोगों के सभी वर्गों पर चौतरफा हमला है। देश की संपत्ति, जो अपने लोगों को रोजगार और सुरक्षा प्रदान करने के लिए है, जैसे रेलवे, पावर ट्रांसमिशन लाइन, प्राकृतिक गैस संसाधन, दूरसंचार परियोजनाएं, खाद्य भंडारण, बीमा, बैंक, आदि, को बेचे जा रहा है। 4 श्रम कोड के माध्यम से औद्योगिक श्रमिकों के मूल अधिकारों पर हमला किया जा रहा है। गरीबों के लिए कल्याण और सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से सब्सिडी और राशन पर निशाना साधा जा रहा है। आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि की जा रही है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है और इन क्षेत्रों के विकास में केवल कॉरपोरेट का वर्चस्व है। अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर, हिंदुत्व की आड़ में, जो लोगों की चेतना को सुन्न करने का काम करती है, और लोगों की स्वतंत्रता पर फासीवादी हमलों के माध्यम से, आम लोगों को आतंकित करके, कॉरपोरेट की लाभ वृद्धि में मदद की जा रही है जिसके लिए मानव जीवन के हर पहलू का मुद्रीकरण किया जा रहा है।
यह ऐतिहासिक किसान संघर्ष, जिसने अपने ऊपर सरकार के हमले को चुनौती दी है, केवल अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं है। यह देश को भारतीय और विदेशी कॉरपोरेट्स द्वारा, पूरी तरह से अपने कब्जे में लेने से बचाने की लड़ाई है। यह वास्तविक आत्म-निर्भर विकास का मार्ग है, जो अपने देशभक्त नागरिकों के जीवन और आजीविका की रक्षा करता है। इसने करोड़ों लोगों के विश्वास को प्रेरित किया है और आने वाले दिनों में भी ऐसा करती रहेगी।
इस कन्वेंशन ने तीन कानूनों, एमएसपी और अन्य की मांग पर चर्चा की और प्रत्येक पहलू पर एक विस्तृत प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसने किसानों से राज्य / जिला एसकेएम इकाइयों का गठन करने और सभी सहायक संगठनों के साथ राज्यों और जिलों में संघर्ष करने, सम्मेलनों, रैलियों का आयोजन करने, टोल वसूली का विरोध करने और किसानों की देशभक्ति मांगों को स्वीकार करने से इनकार करने के लिए भाजपा और एनडीए नेताओं के खिलाफ विरोध करने का आह्वान किया।
कन्वेंशन ने देखा कि जहां किसानों ने सरकार को सच्चाई दिखाने के लिए एक विशाल, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलन का निर्माण किया था, वहीं कॉरपोरेट मुनाफे के हितों की सेवा करने के लिए अपनी अंधी प्रतिबद्धता में, सरकार हठ पर अड़ी रही और उसने मांगें मानने से इनकार कर दिया।
कन्वेंशन ने समझाया कि सरकार द्वारा सुझाए गए, ‘समाधान’ के सभी प्रस्ताव, कृषि के कॉरपोरेट अधिग्रहण, किसानों की भूमि और आजीविका के नुकसान और पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जैव विविधता को नुकसान की किसानों की आशंका में कोई राहत नहीं देते हैं।
सम्मेलन ने, किसानों को, आरएसएस-भाजपा के सभी उकसावों, सरकार द्वारा निराधार और झूठे आरोप लगाने, कठोर कानूनों के तहत फर्जी रूप से पाबंद करने के बावजूद, देश को लूट से बचाने हेतु, नागरिकों को पेरित करने के लिए, शांतिपूर्ण विरोध जारी रखने का आह्वान किया।
कन्वेंशन ने समझाया कि इस आंदोलन ने सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण काम किया है और कॉरपोरेट लूट से मुक्त आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में, सबसे उत्पीड़ित वर्गों के विश्वास और भागीदारी को प्रेरित किया है।
जारीकर्ता
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डॉ आशीष मित्तल कन्वीनर, बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ अशोक धावले,जगजीत सिंह डल्लेवाल, प्रेम सिंह भंगू, धर्मेंद्र मलिक, बलदेव सिंह निहालगढ़, अवीक शाहा, सत्यवान, डॉ सतनाम सिंह अजनाला, हरपाल सिंह, प्रेम सिंह गहलावत, जगमोहन सिंह, हरमीत सिंह कादिया, किरणजीत सेखों, जय करण
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