सरकार बैंक से लेकर कंपनी तक बेचने जा रही है। इसके लिए तरह-तरह के वाक्य गढ़े गए हैं जिन्हें सुन कर लगेगा कि मंत्र फूंकने वाली है। विरोध-प्रदर्शन से जब कृषि क़ानून वापस नहीं हुए तो सरकारी कंपनियों में काम करने वाले लोगों को समझना चाहिए कि उनके आंदोलन पर मीडिया और राजनीति हंसेगी। ठठा कर हंसेगी। जब दूसरी कंपनियों को ख़त्म किया जा रहा था तब इस वर्ग के व्हाट्सएप ग्रुप में कुछ और चल रहा था। वही कि नेहरू मुसलमान हैं। मुसलमानों से नफ़रत की राजनीति ने दिमाग़ को सुन्न कर दिया है। हालत यह हो गई है कि हर दूसरा नेता धार्मिक प्रतीक का सहारा ले रहा है। इससे समाज को क्या लाभ हुआ, धार्मिक प्रतीकों की राजनीति की चपेट में आने वाले लोग ही बता सकते हैं। इससे धर्म और उसकी पहचान को क्या लाभ हुआ इसका भी मूल्यांकन कर सकते हैं।
विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के निजीकरण के ख़िलाफ़ 35 दिनों से धरना प्रदर्शन चल रहा है। इसे कोई नोटिस तक नहीं ले रहा है। इस हालत के लिए कुछ हद तक वे लोग भी ज़िम्मेदार हैं। आप सभी भी। आपने जिस मीडिया को बढ़ावा दिया अब वह राक्षस बन गया है। मीडिया के ज़रिए किसी भी आंदोलन को करने और सरकार पर दबाव बनाने की आपकी चाह प्रदर्शन करने वालों को पागल कर देगी। इसलिए मेरी राय में उन्हें किसी मीडिया से संपर्क नहीं करना चाहिए। मुझसे भी नहीं। आप इस आंदोलन के साथ साथ प्रायश्चित भी करें। क्यों आंदोलन कर रहे हैं इस पर गहराई से सोचें। क्योंकि दूसरे दल के लोग भी निजीकरण करते हैं। ठीक है मोदी जी थोक भाव में कर दिए। लेकिन निजीकरण को लेकर समग्र सोच क्या है? क्या आपकी सोच केवल अपनी कंपनी और अपनी नौकरी बचाने तक सीमित है तो उसमें भी कोई दिक़्क़त नहीं है। आप तुरंत नेहरू मुसलमान हैं वाले मैसेज को फार्वर्ड करने में लग जाएँ।
बौद्धिक पतन का भी अपना सुख है। न दूसरे के दुख से दुख होता है और न अपने दुख से दुख होता है। इस वक़्त आप सभी बौद्धिक पतन की प्रक्रिया को तेज़ कर दें। जब चुनाव आए तो धर्म की बात करें। नेता के लिए भी आसान होगा। दो चार मंत्र दो चार चौपाई सुना कर निकल जाएगा। आपको भी तकलीफ़ नहीं होगी कि आपने चुनाव में राजनीतिक कारणों से भाग लिया था। एक दिन होगा यह कि आप धार्मिक आयोजनों में राजनीति करेंगे, मारपीट करेंगे और राजनीतिक आयोजनों में धार्मिक बात करेंगे। इसी तरह एक नागरिक के रुप में आप किसी दल के लिए प्रभावविहीन हो जाएँगे। जिस दल को इस खेल में बढ़त मिली है ज़ाहिर है फ़ायदा उसी को होगा।
विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के निजीकरण के ख़िलाफ़ 35 दिनों से धरना प्रदर्शन चल रहा है। इसे कोई नोटिस तक नहीं ले रहा है। इस हालत के लिए कुछ हद तक वे लोग भी ज़िम्मेदार हैं। आप सभी भी। आपने जिस मीडिया को बढ़ावा दिया अब वह राक्षस बन गया है। मीडिया के ज़रिए किसी भी आंदोलन को करने और सरकार पर दबाव बनाने की आपकी चाह प्रदर्शन करने वालों को पागल कर देगी। इसलिए मेरी राय में उन्हें किसी मीडिया से संपर्क नहीं करना चाहिए। मुझसे भी नहीं। आप इस आंदोलन के साथ साथ प्रायश्चित भी करें। क्यों आंदोलन कर रहे हैं इस पर गहराई से सोचें। क्योंकि दूसरे दल के लोग भी निजीकरण करते हैं। ठीक है मोदी जी थोक भाव में कर दिए। लेकिन निजीकरण को लेकर समग्र सोच क्या है? क्या आपकी सोच केवल अपनी कंपनी और अपनी नौकरी बचाने तक सीमित है तो उसमें भी कोई दिक़्क़त नहीं है। आप तुरंत नेहरू मुसलमान हैं वाले मैसेज को फार्वर्ड करने में लग जाएँ।
बौद्धिक पतन का भी अपना सुख है। न दूसरे के दुख से दुख होता है और न अपने दुख से दुख होता है। इस वक़्त आप सभी बौद्धिक पतन की प्रक्रिया को तेज़ कर दें। जब चुनाव आए तो धर्म की बात करें। नेता के लिए भी आसान होगा। दो चार मंत्र दो चार चौपाई सुना कर निकल जाएगा। आपको भी तकलीफ़ नहीं होगी कि आपने चुनाव में राजनीतिक कारणों से भाग लिया था। एक दिन होगा यह कि आप धार्मिक आयोजनों में राजनीति करेंगे, मारपीट करेंगे और राजनीतिक आयोजनों में धार्मिक बात करेंगे। इसी तरह एक नागरिक के रुप में आप किसी दल के लिए प्रभावविहीन हो जाएँगे। जिस दल को इस खेल में बढ़त मिली है ज़ाहिर है फ़ायदा उसी को होगा।