प्रशांत भूषण मामले में कल सजा नहीं सुनाई जा सकी और आज के अखबारों के अनुसार अदालत ने उन्हें सोचने का समय दिया है। इस मामले में फैसला चाहे जो हो आज की खबरों से लग रहा है कि मामला उलझ गया है। जिसे सीधे-सीधे अवमानना का मामला माना गया, जिसे बहुत जल्दी निपटाने या जिसपर बहुत जल्दी कार्रवाई की जरूरत समझी गई, उस कारण बहुत सारे मामले सामने आए जो शायद इस मामले को छोड़ दिया जाता या आम मामलों की तरह लिया जाता तो दबा छिपा रह जाता।
यह सही है कि लोक तंत्र में किसी भी विषय पर खुलकर चर्चा हो तो अच्छा ही रहता है पर जब तमाम महत्वपूर्ण मामले मामले दब रह जाते हैं तो हम किसे प्राथमिकता देते हैं उसे देखना, समझना और उसपर चर्चा करना कम महत्वपूर्ण नहीं है। आज हिन्दुस्तान टाइम्स में इस मामले से संबंधित खबर का शीर्षक है, महाधिवक्ता ने कहा, अवमानना मामले में भूषण को सजा न दी जाए। किसी भी पाठक को लगेगा कि महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट को आदेश दिया है। बेशक, यह सलाह ही होगी। पर सुप्रीम कोर्ट के बारे में हम आम लोग जो पढ़ते, सुनते जानते रहे हैं उसमें यह सलाह भी अटपटी लगती है।
आइए, इस मुद्दे से जुड़े कुछ ऐसी ही अटपटी चीजों को देखें, जाने समझें। सबसे पहले तो आज के अंग्रेजी के पांच अखबारों के शीर्षक देखिए। इंडियन एक्सप्रेस ने लाल स्याही से फ्लैग शीर्षक लगाया है, अदालत ने बिनाशर्त माफीनाफे के लिए 24 अगस्त की तारीख तय की। मुख्य शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा फिर सोचिए, भूषण दृढ़ कोई माफी नहीं, भविष्य के प्रति मेरी जिम्मेदारी है। उपशीर्षक है, अदालत ने कहा कि सजा (फैसला) तब तक लागू नहीं होगी जब तक पुनर्विचार पर फैसला न हो जाए।
टाइम्स ऑफ इंडिया में इसका शीर्षक है, दया नहीं चाहिए, कोई भी सजा स्वीकार करूंगा : विद्रोही / निडर भूषण। टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर का इंट्रो है, उन्हें सजा न दें : महाधिवक्ता। एक बॉक्स में कुछ खास खास बयान प्रकाशित किए गए हैं उसमें प्रशांत भूषण की तस्वीर है और शीर्षक है (लाल रंग में) अपने बयान पर पुनर्विचार करें : सुप्रीम कोर्ट (काले रंग में)। द हिन्दू में शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को अपने बयान पर पुनर्विचार करने के लिए कहा। वे तैयार हैं पर कहा कि वे कोई खाद बदलाव नहीं कर सकते हैं। द टेलीग्राफ का शीर्षक है, मैं दया की भीख नहीं मांगता ....। हिन्दुस्तान टाइम्स की चर्चा पहले हो चुकी है।
मुझे लगता है कि सुनवाई कार्रवाई या विचार की जगह इसे नजरअंदाज किया जाता या चेतावनी देकर छोड़ दिया गया होता तो यह स्थिति नहीं बनती। मैं सही गलत नहीं जानता पर जो स्थिति बनी है जो खबरें छपी हैं उनसे लगता है कि जो हुआ वह अच्छा नहीं है। उससे बचा जाना चाहिए था। इस राय के साथ यह बताना जरूरी है कि यह स्थिति बनी कैसे। असल में मैं उस स्थिति की ही चर्चा करना चाहता हूं जिससे यह स्थिति बनी है और उसके आलोक में एक या कुछ और मामलों की चर्चा जिससे समझ में आए कि पहले ऐसा क्यों नहीं होता था और अब क्यों हो रहा है और क्या इसके राजनीतिक कारण हैं? मुझे लगता है, हां। आइए उसे समझते हैं। मुख्य न्यायाधीश का मोटर साइकिल देखने जाना अगर अनूठा था तो उसकी तस्वीर सार्वजनिक होना भी अनूठा था। हालांकि इसका कारण हर किसी के हाथ में फोन होना और उसमें कैमरा होना है। सोशल मीडिया पर लोगों का समय देना भी। ऐसे में प्रशांत भूषण का ट्वीट करना सामान्य है पर मुख्यन्यायाधीश से संबंधित ट्वीट असामान्य है।
उसके बाद क्या हुआ? इसकी चर्चा इसलिए जरूरी है कि शुरू में यह कहा गया था (सोशल मीडिया पर) कि इस मामले में कार्रवाई मुख्य न्यायाधीश नहीं कर रहे हैं। यह तथ्य है। कुछ लोगों ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली, हो सकता है कुछ लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण न हो फिर भी तथ्य तो तथ्य है। इस मामले में महक महेश्वरी की याचिका की चर्चा हो रही है।
खबरों के अनुसार, प्रशांत भूषण ने कल भी कहा कि उन्हें शिकायत की प्रति नहीं मिली। शुरू में मुझे लगा था कि प्रशांत भूषण जाने-माने वकील हैं और वे ऐसी गलती नहीं करेंगे जो कानूनन उन्हें सजा का भागीदार बना दे। इसलिए मैंने महक महेश्वरी की याचिका पर ध्यान नहीं दिया। मुझे लगा था कि यह मामला टिकेगा ही नहीं। अब जब मैं उस याचिका पर चर्चा करना चाहता हूं तो अंग्रेजी में उसपर कुछ सामग्री है, हिन्दी में कुछ उल्लेखनीय नहीं है। हिन्दी में जो उल्लेखनीय है वह अंग्रेजी का अनुवाद ही है और स्वयं अनुवाद करने (और उसके जोखिम) से बचने के लिए हिन्दी में जो उपलब्ध है उसी का हवाला दे रहा हूं।
जनचौक डॉट कॉम पर विजय शंकर सिंह की कई टिप्पणियां हैं। वे रिटायर आईपीएस अफसर हैं। उन्होंने लिखा है, 21 जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट महक माहेश्वरी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। उक्त याचिका में उन्होंने अदालत से अनुरोध किया, “वे सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट, प्रशांत भूषण के विरुद्ध, उनके 29 जून के ट्वीट के सम्बंध में, न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई शुरू करें।” यह याचिका ट्वीट के एक महीने बाद दायर की गई।
चूंकि इस याचिका में अटॉर्नी जनरल की सहमति नहीं ली गई थी तो सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने अपनी प्रशासनिक शाखा को यह विचार करने के लिए भेजा कि, क्या इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध (लिस्ट) किया जाए या नहीं। रजिस्ट्री का कदम एक हैरानी भरा और परंपरा से हट कर था। रजिस्ट्री, हर याचिका को पहले चेक करती है और यह देखती है कि कोई कानूनी खामी तो नहीं है। कानूनी खामी वाली याचिकाओं को रजिस्ट्री की शब्दावली में डिफेक्टिव याचिका कहा जाता है।
डिफेक्टिव याचिका का डिफेक्ट दूर करने के बाद ही उसे सुनवाई के लिए अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इस याचिका में ऐसा नहीं हुआ और इस याचिका में डिफेक्ट था, जिसे हम आगे देखेंगे। रजिस्ट्री का यह हैरानी भरा कदम, इसलिए भी था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट, रूल्स टु रेगुलेट प्रोसिडिंग फ़ॉर कंटेंप्ट ऑफ द सुप्रीम कोर्ट, 1975, के नियम 3 के अंतर्गत केवल उन्हीं याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर सकती है, जिस पर अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति हो। महक माहेश्वरी की इस याचिका में ऐसी कोई सहमति थी ही नहीं। इस संदर्भ में महाधिवक्ता ने जो कहा वह अखबारों में छपा है और बहुत संभावना है कि उनकी अनुमति या सहमति मिलती ही नहीं और आज हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक इसी आलोक में आदेशात्मक लग रहा हो। जो भी हो कानून मेरा विषय नहीं है मैं खबरों की ही चर्चा करता हूं।
आइए, एक पुरानी खबर की याद दिलाऊं जिससे समझ में आएगा कि अब कैसे-कैसे मामले अदालतों में आते हैं। पहले ऐसा होता ही नहीं था या होता भी हो तो याचिका नहीं दायर होती थी। अब याचिकाएं दायर हो रही हैं और उनपर सुनवाई भी। 19 मार्च 2017 की यह खबर दैनिक जनसत्ता की है, “वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के साथ मारपीट करने के विवाद को लेकर चर्चा में आए तेजिंदर पाल सिंह को बीजेपी दिल्ली प्रदेश का प्रवक्ता बनाया गया है। तेजिंदर दिल्ली में काफी सक्रिए हैं और कई बार मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं। तेजिंदर के दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता बनने पर एक महिला पत्रकार ने ट्वीट करके इस पर विरोध जताया।
लेकिन तेजिंदर को उनके विरोध का तरीका पसंद नहीं आया और उन्होंने पुलिस में उनके ट्वीट को लेकर शिकायत दर्ज करा दी। स्वाती चतुर्वेदी नाम की पत्रकार तेजिंदर के प्रवक्ता बनाए जाने का विरोध करते हुए अपने ट्विटर अकाउंट से ट्विट किया था उन्होंने ट्वीट करके लिखा कि, ” वो आदमी जिसने प्रशांत भूषण को पीटा और यौन उत्पीड़न के केस में गिरफ्तार हो चुका है बीजेपी के लिए बोलेगा। गुड जॉब।”
उनके इस ट्वीट के खिलाफ तेजिंदर ने पुलिस में शिकायत करा दी है और शिकायत की कॉपी ट्विटर पर शेयर की जा रही है।“शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई मुझे नहीं पता लेकिन लगता है कि बग्गा ने प्रशांत भूषण को पीटने की बजाय उनके खिलाफ शिकायत की होती तो आज स्थिति कुछ और होती। हालांकि, अब मैं महक महेश्वरी का भविष्य देखना – जानना चाहूंगा।
यह सही है कि लोक तंत्र में किसी भी विषय पर खुलकर चर्चा हो तो अच्छा ही रहता है पर जब तमाम महत्वपूर्ण मामले मामले दब रह जाते हैं तो हम किसे प्राथमिकता देते हैं उसे देखना, समझना और उसपर चर्चा करना कम महत्वपूर्ण नहीं है। आज हिन्दुस्तान टाइम्स में इस मामले से संबंधित खबर का शीर्षक है, महाधिवक्ता ने कहा, अवमानना मामले में भूषण को सजा न दी जाए। किसी भी पाठक को लगेगा कि महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट को आदेश दिया है। बेशक, यह सलाह ही होगी। पर सुप्रीम कोर्ट के बारे में हम आम लोग जो पढ़ते, सुनते जानते रहे हैं उसमें यह सलाह भी अटपटी लगती है।
आइए, इस मुद्दे से जुड़े कुछ ऐसी ही अटपटी चीजों को देखें, जाने समझें। सबसे पहले तो आज के अंग्रेजी के पांच अखबारों के शीर्षक देखिए। इंडियन एक्सप्रेस ने लाल स्याही से फ्लैग शीर्षक लगाया है, अदालत ने बिनाशर्त माफीनाफे के लिए 24 अगस्त की तारीख तय की। मुख्य शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा फिर सोचिए, भूषण दृढ़ कोई माफी नहीं, भविष्य के प्रति मेरी जिम्मेदारी है। उपशीर्षक है, अदालत ने कहा कि सजा (फैसला) तब तक लागू नहीं होगी जब तक पुनर्विचार पर फैसला न हो जाए।
टाइम्स ऑफ इंडिया में इसका शीर्षक है, दया नहीं चाहिए, कोई भी सजा स्वीकार करूंगा : विद्रोही / निडर भूषण। टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर का इंट्रो है, उन्हें सजा न दें : महाधिवक्ता। एक बॉक्स में कुछ खास खास बयान प्रकाशित किए गए हैं उसमें प्रशांत भूषण की तस्वीर है और शीर्षक है (लाल रंग में) अपने बयान पर पुनर्विचार करें : सुप्रीम कोर्ट (काले रंग में)। द हिन्दू में शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने भूषण को अपने बयान पर पुनर्विचार करने के लिए कहा। वे तैयार हैं पर कहा कि वे कोई खाद बदलाव नहीं कर सकते हैं। द टेलीग्राफ का शीर्षक है, मैं दया की भीख नहीं मांगता ....। हिन्दुस्तान टाइम्स की चर्चा पहले हो चुकी है।
मुझे लगता है कि सुनवाई कार्रवाई या विचार की जगह इसे नजरअंदाज किया जाता या चेतावनी देकर छोड़ दिया गया होता तो यह स्थिति नहीं बनती। मैं सही गलत नहीं जानता पर जो स्थिति बनी है जो खबरें छपी हैं उनसे लगता है कि जो हुआ वह अच्छा नहीं है। उससे बचा जाना चाहिए था। इस राय के साथ यह बताना जरूरी है कि यह स्थिति बनी कैसे। असल में मैं उस स्थिति की ही चर्चा करना चाहता हूं जिससे यह स्थिति बनी है और उसके आलोक में एक या कुछ और मामलों की चर्चा जिससे समझ में आए कि पहले ऐसा क्यों नहीं होता था और अब क्यों हो रहा है और क्या इसके राजनीतिक कारण हैं? मुझे लगता है, हां। आइए उसे समझते हैं। मुख्य न्यायाधीश का मोटर साइकिल देखने जाना अगर अनूठा था तो उसकी तस्वीर सार्वजनिक होना भी अनूठा था। हालांकि इसका कारण हर किसी के हाथ में फोन होना और उसमें कैमरा होना है। सोशल मीडिया पर लोगों का समय देना भी। ऐसे में प्रशांत भूषण का ट्वीट करना सामान्य है पर मुख्यन्यायाधीश से संबंधित ट्वीट असामान्य है।
उसके बाद क्या हुआ? इसकी चर्चा इसलिए जरूरी है कि शुरू में यह कहा गया था (सोशल मीडिया पर) कि इस मामले में कार्रवाई मुख्य न्यायाधीश नहीं कर रहे हैं। यह तथ्य है। कुछ लोगों ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली, हो सकता है कुछ लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण न हो फिर भी तथ्य तो तथ्य है। इस मामले में महक महेश्वरी की याचिका की चर्चा हो रही है।
खबरों के अनुसार, प्रशांत भूषण ने कल भी कहा कि उन्हें शिकायत की प्रति नहीं मिली। शुरू में मुझे लगा था कि प्रशांत भूषण जाने-माने वकील हैं और वे ऐसी गलती नहीं करेंगे जो कानूनन उन्हें सजा का भागीदार बना दे। इसलिए मैंने महक महेश्वरी की याचिका पर ध्यान नहीं दिया। मुझे लगा था कि यह मामला टिकेगा ही नहीं। अब जब मैं उस याचिका पर चर्चा करना चाहता हूं तो अंग्रेजी में उसपर कुछ सामग्री है, हिन्दी में कुछ उल्लेखनीय नहीं है। हिन्दी में जो उल्लेखनीय है वह अंग्रेजी का अनुवाद ही है और स्वयं अनुवाद करने (और उसके जोखिम) से बचने के लिए हिन्दी में जो उपलब्ध है उसी का हवाला दे रहा हूं।
जनचौक डॉट कॉम पर विजय शंकर सिंह की कई टिप्पणियां हैं। वे रिटायर आईपीएस अफसर हैं। उन्होंने लिखा है, 21 जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट महक माहेश्वरी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। उक्त याचिका में उन्होंने अदालत से अनुरोध किया, “वे सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट, प्रशांत भूषण के विरुद्ध, उनके 29 जून के ट्वीट के सम्बंध में, न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई शुरू करें।” यह याचिका ट्वीट के एक महीने बाद दायर की गई।
चूंकि इस याचिका में अटॉर्नी जनरल की सहमति नहीं ली गई थी तो सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने अपनी प्रशासनिक शाखा को यह विचार करने के लिए भेजा कि, क्या इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध (लिस्ट) किया जाए या नहीं। रजिस्ट्री का कदम एक हैरानी भरा और परंपरा से हट कर था। रजिस्ट्री, हर याचिका को पहले चेक करती है और यह देखती है कि कोई कानूनी खामी तो नहीं है। कानूनी खामी वाली याचिकाओं को रजिस्ट्री की शब्दावली में डिफेक्टिव याचिका कहा जाता है।
डिफेक्टिव याचिका का डिफेक्ट दूर करने के बाद ही उसे सुनवाई के लिए अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इस याचिका में ऐसा नहीं हुआ और इस याचिका में डिफेक्ट था, जिसे हम आगे देखेंगे। रजिस्ट्री का यह हैरानी भरा कदम, इसलिए भी था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट, रूल्स टु रेगुलेट प्रोसिडिंग फ़ॉर कंटेंप्ट ऑफ द सुप्रीम कोर्ट, 1975, के नियम 3 के अंतर्गत केवल उन्हीं याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर सकती है, जिस पर अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति हो। महक माहेश्वरी की इस याचिका में ऐसी कोई सहमति थी ही नहीं। इस संदर्भ में महाधिवक्ता ने जो कहा वह अखबारों में छपा है और बहुत संभावना है कि उनकी अनुमति या सहमति मिलती ही नहीं और आज हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक इसी आलोक में आदेशात्मक लग रहा हो। जो भी हो कानून मेरा विषय नहीं है मैं खबरों की ही चर्चा करता हूं।
आइए, एक पुरानी खबर की याद दिलाऊं जिससे समझ में आएगा कि अब कैसे-कैसे मामले अदालतों में आते हैं। पहले ऐसा होता ही नहीं था या होता भी हो तो याचिका नहीं दायर होती थी। अब याचिकाएं दायर हो रही हैं और उनपर सुनवाई भी। 19 मार्च 2017 की यह खबर दैनिक जनसत्ता की है, “वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के साथ मारपीट करने के विवाद को लेकर चर्चा में आए तेजिंदर पाल सिंह को बीजेपी दिल्ली प्रदेश का प्रवक्ता बनाया गया है। तेजिंदर दिल्ली में काफी सक्रिए हैं और कई बार मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं। तेजिंदर के दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता बनने पर एक महिला पत्रकार ने ट्वीट करके इस पर विरोध जताया।
लेकिन तेजिंदर को उनके विरोध का तरीका पसंद नहीं आया और उन्होंने पुलिस में उनके ट्वीट को लेकर शिकायत दर्ज करा दी। स्वाती चतुर्वेदी नाम की पत्रकार तेजिंदर के प्रवक्ता बनाए जाने का विरोध करते हुए अपने ट्विटर अकाउंट से ट्विट किया था उन्होंने ट्वीट करके लिखा कि, ” वो आदमी जिसने प्रशांत भूषण को पीटा और यौन उत्पीड़न के केस में गिरफ्तार हो चुका है बीजेपी के लिए बोलेगा। गुड जॉब।”
उनके इस ट्वीट के खिलाफ तेजिंदर ने पुलिस में शिकायत करा दी है और शिकायत की कॉपी ट्विटर पर शेयर की जा रही है।“शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई मुझे नहीं पता लेकिन लगता है कि बग्गा ने प्रशांत भूषण को पीटने की बजाय उनके खिलाफ शिकायत की होती तो आज स्थिति कुछ और होती। हालांकि, अब मैं महक महेश्वरी का भविष्य देखना – जानना चाहूंगा।