ध्यान दिलाने पर गलती मान ली जाए, भूल सुधार भी चल जाए तो क्या यह गलती क्षम्य है? निष्पक्ष पत्रकारिता का पाठ पढ़ाने वाले इस पर चुप रहेंगे। सी-वोटर का सर्वे है। मोदी द्वारा चीन को पीछे कर दिए जाने पर भारत क्या कहता है? अव्वल तो यह सवाल ही गलत है। चीन ने या तो भारत में कदम रखा ही नहीं है या फिर डटा हुआ है। इस तीसरी बात को ही सही मान लें तो उसे मोदी ने पीछे किया - यह गलतफहमी किसे कैसे हो सकती है? और किसी को हो जाए, टाइम्स नाऊ अपने दर्शकों को क्या समझता है? दिखा कैसे रहा है? इसे 25 जून को दिखाया गया था औऱ दर्शकों ने इस पर खूब मजे लिए। ऐसे मामले में सर्वे का परिणाम दिखाने में कैसी जल्बाजी जो गलती रह जाए। बाद में टाइम्स नाऊ ने गलती मानी और सुधारकर ट्वीट किया।
मुख्य सवाल है, क्या आप समझते हैं कि भारत सरकार ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए उपयुक्त कदम उठाया है। भारत ने ऐसा कोई कदम उठाया है इसकी जानकारी अभी तक तो नहीं दी गई है। पहले दिन प्रधानमंत्री ने जरूर कहा था कि सेना यथोचित कार्रवाई करने में सक्षम है। लेकिन यह यथोचित बाद में विज्ञप्ति में निर्णायक और अंग्रेजी की विज्ञप्ति में बीफिटिंग यानी मुंहतोड़ हो गया। यानी जवाब दिया नहीं गया है यह कागजों में अनुवाद के जरिए ही कर दिया गया है। इस पर मैं लिख चुका हूं। पर यह सर्वेक्षण उनके लिए था जिन्होंने मेरा लिखा नहीं पढ़ा होगा।
फिर भी, जब मोदी जी या सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया कि चीन ने घुसपैठ की है तो अखबारों ने सूत्रों के हवाले से खबर छाप दी कि वह पीछे चला गया। जब 20 सैनिक शहीद हो गए तो फर्जी खबर चलवाई गई कि उनके 40 मर गए लेकिन पीछे करने की तो कोई खबर ही नही आई है। अगर राय फर्जी खबर पर भी ली जा सकती है तो सी-वोटर को अलग से सम्मानित किया जाना चाहिए। ऐसा सर्वे दिखाने जैसी सुप्रीम सेवा का सुप्रीम सम्मान भी कुछ होगा। पर वह अलग मुद्दा है। अभी तो मुद्दा यह है कि सरकार ने इतने दिनों बाद घुसपैठ की बात मानी। अभी मुहंतोड़ जवाब तो सोचा भी नहीं गया है। सब जानते हैं कि सेना मुंहतोड़ जवाब दे सकती है लेकिन ....
बात इतनी ही नहीं है। सर्वेक्षण में यही निकलकर आया कि ज्यादा लोग सवाल से सहमत नहीं हैं। वे नहीं मानते कि मोदी सरकार ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। ऐसे लोगों की संख्या 60.2 प्रतिशत है। सरकार की कार्रवाई से सहमत या सवाल का जवाब हां में देने वाले 39.8 प्रतिशत ही हैं। मोटे तौर पर साठ चालीस। लेकिन यह स्क्रीन देखिए 39.8 प्रतिशत यानी हरा रंग बड़ा है और 60.2 प्रतिशत यानी लाल रंग छोटा है। रंगों में गड़बड़ी नहीं हुई है इसकी पुष्टि नीचे होती है। यहां हरे को 39.8 लिखा गया है और ऊपर हरा रंग कम होते हुए भी ज्यादा जगह में फैला हुआ है। वैसे तो इसे हारी हुई लड़ाई लड़ना कहते हैं। पर टेलीविजन चैनल लड़ नहीं रहे हैं वे तो सेवा में लगे हैं। वरना यह सर्वेक्षण दिखाना ही कौन सा जरूरी था।
मुख्य सवाल है, क्या आप समझते हैं कि भारत सरकार ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए उपयुक्त कदम उठाया है। भारत ने ऐसा कोई कदम उठाया है इसकी जानकारी अभी तक तो नहीं दी गई है। पहले दिन प्रधानमंत्री ने जरूर कहा था कि सेना यथोचित कार्रवाई करने में सक्षम है। लेकिन यह यथोचित बाद में विज्ञप्ति में निर्णायक और अंग्रेजी की विज्ञप्ति में बीफिटिंग यानी मुंहतोड़ हो गया। यानी जवाब दिया नहीं गया है यह कागजों में अनुवाद के जरिए ही कर दिया गया है। इस पर मैं लिख चुका हूं। पर यह सर्वेक्षण उनके लिए था जिन्होंने मेरा लिखा नहीं पढ़ा होगा।
फिर भी, जब मोदी जी या सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया कि चीन ने घुसपैठ की है तो अखबारों ने सूत्रों के हवाले से खबर छाप दी कि वह पीछे चला गया। जब 20 सैनिक शहीद हो गए तो फर्जी खबर चलवाई गई कि उनके 40 मर गए लेकिन पीछे करने की तो कोई खबर ही नही आई है। अगर राय फर्जी खबर पर भी ली जा सकती है तो सी-वोटर को अलग से सम्मानित किया जाना चाहिए। ऐसा सर्वे दिखाने जैसी सुप्रीम सेवा का सुप्रीम सम्मान भी कुछ होगा। पर वह अलग मुद्दा है। अभी तो मुद्दा यह है कि सरकार ने इतने दिनों बाद घुसपैठ की बात मानी। अभी मुहंतोड़ जवाब तो सोचा भी नहीं गया है। सब जानते हैं कि सेना मुंहतोड़ जवाब दे सकती है लेकिन ....
बात इतनी ही नहीं है। सर्वेक्षण में यही निकलकर आया कि ज्यादा लोग सवाल से सहमत नहीं हैं। वे नहीं मानते कि मोदी सरकार ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। ऐसे लोगों की संख्या 60.2 प्रतिशत है। सरकार की कार्रवाई से सहमत या सवाल का जवाब हां में देने वाले 39.8 प्रतिशत ही हैं। मोटे तौर पर साठ चालीस। लेकिन यह स्क्रीन देखिए 39.8 प्रतिशत यानी हरा रंग बड़ा है और 60.2 प्रतिशत यानी लाल रंग छोटा है। रंगों में गड़बड़ी नहीं हुई है इसकी पुष्टि नीचे होती है। यहां हरे को 39.8 लिखा गया है और ऊपर हरा रंग कम होते हुए भी ज्यादा जगह में फैला हुआ है। वैसे तो इसे हारी हुई लड़ाई लड़ना कहते हैं। पर टेलीविजन चैनल लड़ नहीं रहे हैं वे तो सेवा में लगे हैं। वरना यह सर्वेक्षण दिखाना ही कौन सा जरूरी था।